चंपा पहाड़न - 3 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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चंपा पहाड़न - 3

चंपा पहाड़न

3

    चंपा की दर्दीली दास्तान उससे ऐसे चिपक गई थी जैसे फेविकोल या फिर गोंद की चिपचिपाहट !यह शुरू शुरू की बात है जब वह यहाँ लाई गईं थी | बाद में वह उस चिपकन में रहने की आदी हो गईं थी | हाँ, वह लाई गई थी, अपने आप नहीं आई थी | उसके जीवन में वह उसकी नन्ही सी अवस्था में ही आ गई थी|उस छोटे शहर के गणमान्य बड़े वकील साहब ने उसे अपने साथ लाकर उसके प्रति अहसान तो कर दिया था लेकिन उसकी आबरू न बन सके थे | उन्होंने उसे एक किराए के कमरे में सजा दिया था, एक छोटा सा कमरा जो कमरे के नाम पर कोठरी कहा जा सकता था और उससे सटी रसोई नाम की एक दूसरी कोठरी ! जिसके बाहर बिलकुल पतला-दुबला सा एक छज्जा होता था जिसमें शायद बमुश्किल एक छोटा मूढा घुसाया जा सकता हो| पर वे खुश थीं, माँ बताती थीं |ज़िंदगी के ताने-बानों में उलझी माँ भी अपने जीवन में किसी विशेष सुख से रूबरू नहीं हो सकी थीं | इस सुख के न भोग पाने के प्रत्येक के जीवन में अनेक कारण होते हैं | माँ के पास भी अनेक कारण हुआ करते थे, उन्होंने कई बच्चों को जन्म देकर उसे देखा था जिसकी उम्मीद भी शायद वे छोड़ चुकी थीं | उसका मुख देखकर उसकी दुबली-पतली माँ जीया करती लेकिन वह छोटी थी, उन सभी कारणों से, उनकी पीड़ा से अनभिज्ञ, अपनी मस्ती में मस्त ! अपनी दो चोटियों को लहराते हुए इधर से उधर नाचती-छलांगें लगाती |

   जब वह थोड़ी बड़ी होने लगी माँ ने उसे बताया कि चंपा की खूबसूरती से आसपास के सब लोग परेशान रहने लगे थे |सबसे पहले तो वकील साहब का परिवार वहाँ आकर चिल्लपों कर गया जिनकी दृष्टि में चंपा रंडी थी और उसने मासूम रईस वकील साहब पर डोरे डालकर उन्हें अपने मोहपाश में फँसा लिया था|इस खुलासे से आस-पास के तमाम सभ्य व आदरणीय सज्जन निवासियों के दिल की धड़कनें ताल पर थिरकने लगी थीं|जिधर चंपा का छोटा सा छज्जा खुलता, उधर की ओर कई रिहायशी मकानों के पिछवाड़े भी थे जिनके मुख्य द्वार आगे की ओर सड़क पर थे किन्तु पीछे का भाग उसी गली की ओर था जिसमें से चंपा का बेचारा सा निवास दिखाई देता |चंपा के आने के बाद अब उन घरों के पिछवाड़े की वर्षों से बंद खिड़कियाँ भी खुलनी शुरू हो गई थीं | चंपा के पास कोई अलग से गुसलखाना तो था नहीं, वह अपनी उस कोठरी को ही रसोई की भांति इस्तेमाल करती और उसीके कोने को नहाने के लिए भी, जहाँ एक कोने में छोटी सी नाली बना दी गई थी जो पिछवाड़े की छोटी गली में टपकती रहती थी |हाँ! टाट के पर्दे को लटकाकर कमरे के आगे वाले भाग के एक ओर छोटे से खाली स्थान पर उसके लिए एक खुड्डी बनवा दी गई थी जिसका पाईप नीचे वालों के ‘लैट्रीन’के पाईप से जुड़वा दिया गया था |वकील साहब काम के सिलसिले में व्यस्त रहते वे अपने कर्तव्य को भली-भांति समझते थे और चंपा के खाने-पीने तथा आवश्यकताओं के लिए धन की व्यवस्था करवा देते थे | अक्सर उनका मुंशी चंपा को धन व खाद्य-सामग्री आदि पहुंचा जाता और उनके परिवार-जन चंपा को खरी-खोटी सुनाने के लिए वहाँ कभी भी धमककर उसका तमाशा बना देते | फूल सी नाज़ुक चंपा नजरें नीची किए उन सबकी गुनाहगार बनी अपनी सुन्दर आँखों के बेशकीमती मोतियों को धरती पर टपकाती रहती, जिन्हें समेटने वाला कोई भी न होता |

क्रमश..

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