दरमियाना - 31 - अंतिम भाग Subhash Akhil द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दरमियाना - 31 - अंतिम भाग

दरमियाना

भाग - ३१

"जी, जरूर! आप जब भी, जैसी भी मदद कहेंगी, मैं जरूर करूँगा।" मैंने उन्हें आश्वासन दिया।... यह केवल दयारानी का ही दर्द नहीं था। तारा माँ के संपर्क में आने के दौरान मैं छोटा अवश्य था, मगर इनकी 'भिन्नता' की पीड़ा को भी समझने लगा था।... फिर संध्या की मौत ने तो मुझे बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। वर्षों तक उस अवसाद से बाहर निकलना मेरे लिए कठिन हो गया था।... सुनंदा के बिंदासपन का मैं कायल जरूर था, किन्तु उसके जिस्म और जज्बात के बीच एक संतुलन बनाने की पीड़ा को भी मैंने बहुत शिद्दत से महसूसा था।... और रेखा!... रेखा के इस तरह अंत की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।... हालाँकि इनके लिए कुछ अवश्य किया जाना चाहिए, यह मैंने श्री खैराती लाल भोला जी के संपर्क में आने के बाद सोचा अवश्य था, किन्तु इनके प्रति समाज में एक जागरूकता पैदा करने के अतिरिक्त और कुछ विशेष नहीं कर सका था। कुछ लेख अवश्य लिखे, मगर इस संवैधानिक लड़ार्इ के बारे में अब तक मैं भी नहीं सोच पाया था।

***

मीडिया से जुड़े होने के कारण मैं यह जानता था कि दिल्ली हार्इ कोर्ट से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था, जिसमें दो वयस्क लोग आपसी सहमती से संबंध बना सकते हैं। किन्तु 11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने हार्इ कोर्ट के इस आदेश को खारिज कर दिया था।... मगर इसके बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस टी.एस. ठाकुर ने इस मामले को गंभीर बताते हुए, इसे संवैधानिक बैंच को रेफर कर दिया था। वस्तुतः इस मामले में आठ क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की गर्इ थीं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल न्यायालय के सामने पेश हुए थे और उन्होंने दलील दी थी कि यह मामला बंद कमरे में सीमित जिंदगी का हिस्सा है, लेकिन अंग्रेजों के कानून के हिसाब से इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।

ज्ञात रहे कि सन् 1290 में इंग्लैंड ने अपने यहाँ अप्राकृतिक संबंधों को अपराध माना था। इसके बाद सन् 1861 में लॉर्ड मैकाले ने, जब आर्इ पी सी (इंडियान पीनल कोड -- अपराध तय करने वाले कानून) का ड्राफ्ट बनाया, तो उसमें धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को भारत में भी अपराध घोषित कर दिया। इसके लिए सहमति से भी बनाये गये समलैंगिक संबंधों के लिए दस साल से उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान रखा गया।

तब कपिल सिब्बल ने न्यायालय में दलील रखी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मौजूदा और फ्यूचर जेनरेशन सीमित हो कर रह जाएगी। इससे उनके आत्मसम्मान पर असर पड़ेगा। यह उनके ऊपर एक लांछन की तरह है और समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी। यह दो वयस्क व्यक्तियों का निजी मामला है और सरकार इसमें दखल नहीं दे सकती!... सुनवार्इ के बाद इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मान्य सर्वोच्च न्यायाधीश ने पांच जजों की बेंच को, खुली अदालत में सुनवार्इ करने का निर्देश दिया था।

इसके बाद, 20 दिसंबर 2013 को जब केन्द्र सरकार ने रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा भी था कि इस क्यूरेटिव पिटिशन के विरोध में कौन-कौन हैं! न्यायालय को बताया गया था कि 'चर्च ऑफ इंडिया' और 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' हैं। लेकिन तब केन्द्र सरकार के वकीलों ने चुप्पी साध ली थी। हालाँकि एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बार्इसेक्सुवल, ट्रान्सजेंडर कम्यूनिटी) की माँगों के विरुद्ध सरकार न्यायालय में पेश हुर्इ थी।... उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हार्इ कोर्ट के फैसले को पलट दिया था और केन्द्र की रिव्यू पिटिशन खारिज कर दी थी। कोर्ट ने बाद में थर्ड जेंडर से जुड़े सभी मामलों को इसी के साथ जोड़ दिया था और केस को स्पेशल बेंच के लिए भेज दिया था। यह इस मामले में जीत की ओर पहला बड़ा कदम था।

उन्हीं दिनों, एक दिन दयारानी का फोन मेरे पास आया था। उन्होंने अदालत के इस फैसले पर खुशी जाहिर की थी और बताया था कि वे भी अन्य सभी दूसरे समलैंगिकों (एलजीबीटी) के साथ -- जंतर-मंतर पर होने वाले प्रदर्शन में भाग लेने जाएँगी। उन्होंने मुझे भी इन सभी के समर्थन में वहाँ पहुंचने का निमंत्रण दिया था, जिसे मैंने स्वीकार भी किया था और गया भी था। हालाँकि वहाँ मैं दयारानी से नहीं मिल पाया था, मगर एक उम्मीद जरूर जगी थी -- कि अब तो इन्हें इनका हक मिलना ही चाहिए!

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इस बीच फिर एक लम्बा समय बीत गया था। आखिरकार 2014 में सुप्रीम कोर्ट से इन्हें थर्ड जेंडर या तृतीय लिंगी के रूप में मान्यता मिल ही गर्इ। यह लड़ार्इ भी लगभग 25-30 वर्ष चली। इस जीत की खुशी में दयारानी ने भी अपने घर पर एक जश्न का आयोजन किया था। बहुत-से किन्नर नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही उन्होंने कुछ पत्रकारों तथा अपने समर्थकों को भी आमंत्रित किया था। मैं भी गया था। वहीं इस आंदोलन से जुड़ी अन्य किन्नर नेता रोशनी ने भी इस जीत का एक बड़ा श्रेय दयारानी को दिया था। बेहद हर्ष और खुशी के माहौल में सभी एक-दूसरे के गले लग कर बधाइयाँ दे रहे थे।

ढोलक-हारमोनियम के साथ ही तालियों और टल्लियों की संगत ने भी समां बाँध दिया था। नाच-गाना शुरू हो गया था। इन्हीं में कुछ लोगों ने चोरी छिपे बोतल भी खोल ली थी।

2014 के चुनावों की आहट भी शुरू हो गर्इ थी। वे यह चुनाव भी जरूर लड़ेगी, इसकी सूचना उन्होंने मुझे भी दी थी। किन्तु ऐन वख्त पर इनके नामांकन में कुछ गलती रह जाने के कारण नामांकन रद्द हो गया था। दया बहुत आहत हुर्इ थीं और उन्होंने इसमें प्रशासनिक-राजनीतिक साजिश का आरोप भी लगाया था।

फिर कुछ महीने गुजर गये। इस बीच मेरा भी कोर्इ संपर्क उनसे नहीं हो पाया था।... मगर 2015 में होने वाले जिला पंचायत के चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी। इस बार भी उन्होंने अपने समर्थन व सहयोग के लिए फोन किया था।

***

तभी 5 जुलार्इ 2015 का अखबार मेरे लिए एक बहुत बुरी खबर लेकर आया था। खबर सिर्फ मेरे लिए ही बुरी नहीं थी, यह इस समाज के लिए लड़ रहे उन सभी लोगों के लिए घातक थी, जिन्हें दयारानी से एक बेहतर भविष्य की आकांक्षा पनपने लगी थी। यह हर उस मानवीय हृदय के लिए एक बेहद कष्टकारक खबर थी, जो दयारानी के रूप में एक संवेदनशील 'मन' को महसूस कर सकता था।

खबर थीः—

शुक्रवार रात (3 जुलार्इ 2015) को किसी अज्ञात हमलावर ने 'किन्नर गुरु' एवं सामाजिक कार्यकर्ता दयारानी (65) की गोली मारकर हत्या कर दी! कैला भट्टा में उनके घर के बाहर खिड़की से गोली मारकर -- तीसरे सपने की संभावनाओं को मौत की नींद सुला दिया। गोली किसी शार्प शूटर या प्रोफेशनल हत्यारे ने चलार्इ थी। वह जानता था कि कहाँ गोली मारे जाने से मौत निश्चित है, इसलिए गोली उनके सिर में मारी गर्इ थी।

शनिवार सुबह दयारानी के न उठने पर, जब उनकी भतीजी गीता उर्फ बबीता और उनकी चेली शमां ने दया को जगाना चाहा, तो पाया कि वे अपने बिस्तर पर लहुलुहान हालत में मृत पड़ी हैं। कमरे के पीछे की खिड़की को देखने पर पाया गया कि वहाँ पर लगी जाली को काट कर, वहीं से गोली मारी गर्इ थी। न केवल एक किन्नर, बल्कि राजनीतिक रूप से जागरुक एवं सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता होने के कारण भी, पुलिस को किसी अप्रिय घटना की आशंका को देखते हुए क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा।

पुलिस की तहकीकात में जो बात सामने आर्इ थी, वह यह कि दयारानी के घर के पीछ से रेलवे लाइन गुजरती है, जो गाजियाबाद स्टेशन से जुड़ी। संभवतः यहीं से किसी ट्रेन के गुजरने और सीटी बजने के दौरान ही हत्यारे ने गोली चलार्इ थी, जो उनके सिर में लगी। इसी लिए गोली चलने की आवाज उस समय घर में मौजूद उनकी भतीजी गीता (28) और चेली शमां (35) को भी सुनार्इ नहीं दी। किसी अज्ञात हमलावर के खिलाफ गीता ने ही रिपोर्ट दर्ज करवार्इ ही। गीता ने पुलिस को बताया कि शुक्रवार रात नौ बजे के करीब तीनों ने साथ में खाना खाया। इसके बाद गीता अपने पाँच साल के बच्चे के साथ ऊपर की मंजिल पर सोने चली गर्इ। शमां और दयारानी ग्राउंड फ्लोर पर ही अपने-अपने कमरे में सोने चली गर्इं।

भतीजी गीता ने पुलिस को बताया कि जब वे सुबह साढ़े सात बजे तक भी अपने कमरे से बाहर नहीं आर्इं, तो गीता उन्हें जगाने के लिए उनके कमरे में गर्इ थीं। वहाँ बिस्तर पर उनका लहूलुहान शव पड़ा था। तभी उन्होंने चिल्लाकर शमां को पुकारा था और फिर पुलिस तथा अन्य लोगों को सूचना दी गर्इ थी।

पुलिस का अनुमान है कि रात 11 और 12 बजे के आसपास उन्हें गोली मारी गर्इ होगी। इस बीच हत्यारे ने वहाँ से किसी ट्रेन के गुजरने और उसके हॉर्न बजने का इंतजार भी किया होगा। पुलिस को आशंका है कि इस हत्याकाड में जरूर किसी परिचित या मुखबिर का हाथ हो सकता है, जो यह बात जानता था कि दया इस पीछे के कमरे में खिड़की के पास ही सोती हैं... और यह खिड़की रेलवे लाइन की तरफ खुलती है।

एसपी सिटी अजय पाल स्वयं इस मामले की तहकीकात कर रहे हैं। पुलिस ने दयारानी के घर पर लगे सभी सीसीटीवी की फुटेज भी ले ली है। पुलिस गीता एवं शमां सहित सभी नजदीकी लोगों से पूछताछ कर रही है। पुलिस के संज्ञान में आया है कि दयारानी को गहनों और वाहनों का काफी शौक था। उनके पास चार गाड़ियाँ हैं, इनमें स्कॉर्पियो स्विफ्ट डिजायर, एंबेस्डर और वैगनआर हैं। उनकी संपत्ति को देखते हुए किसी लालच या किसी रंजिश के एंगल से भी पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।

पुलिस ने दया के यहाँ काम करने वाले चार कार चालकों को भी हिरासत में लिया है। इनमें से एक को दयारानी ने कुछ समय पहले काम से हटा दिया था और शेष तीन अभी भी काम पर थे। एसपी सिटी अजय पाल ने दावा किया कि वे शीघ्र ही कातिलों तक पहुँच जाएँगे।

खबर पढ़ने के बाद मैं भी दयारानी के घर गया था। वहाँ इनके आंदोलन से जुड़ी साथी रोशनी औऱ एक अन्य चेली अन्नू शर्मा से बातचीत होने पर मैंने भी दुख जताया था। रोशनी ने आंदोलन से जुड़े दयारानी के अनेक संस्मरण बताये थे। गीता और शमां को दूसरे कार्यों और आने-जाने वालों में व्यस्त देख, मैंने उनसे कोर्इ बात नहीं की थीं। यूँ भी मैं दया जी के अतिरिक्त अन्य लोगों से ज्यादा परिचित नहीं था।

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चौथे दिन फिर खबर आर्इ कि पुलिस ने दयारानी हत्याकांड का मामला सुलझा लिया है। इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। तीसरा आरोपी फरार बताया जा रहा है। कोतवाली पुलिस के अनुसार दयारानी की हत्या भतीजी गीता और उसके कथित प्रेमी के बीच संबंधों में बाधा बनने के कारण की गर्इ। गीता के पूर्व प्रेमी ने दया के एक पूर्व ड्राइवर और अपने एक साथी के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया है। हालांकि अभी तक पुलिस इस मामले में गीता को निर्दोष मान कर चल रही है।

एसपी सिटी ने बताया कि कैला भट्टा निवासी वारिस, नदीम और समीर ने मिलकर दयारानी की हत्या की थी। वारिस गीता का प्रेमी व पूर्व पति बताया जा रहा है, जो कैला भट्टा में ही कबाड़ी की दुकान करता है। नदीम के बारे में जानकारी मिली है कि उसकी राजनगर में मीट की दुकान है, जबकि समीर दयारानी का पूर्व ड्राइवर था, जिसे उन्होंने कुछ समय पहले काम से हटा दिया था।

पुलिस सूत्रों से जानकारी मिली कि मुख्य आरोपी वारिस ने करीब एक साल पहले कोर्ट मैरिज कर ली थी। किन्तु दयारानी को इनका मिलना-जुलना पसंद नहीं था। वे कर्इ बार गीता और वारिस को फटकार भी चुकी थीं। तभी कुछ महीने पहले वारिस और गीता दयारानी के घर से लगभग 25 लाख रुपये की ज्वैलरी व नकदी लेकर फरार हो गये थे।... मगर बाद में गीता के माफी माँगने पर दयारानी ने गीता और उसके बच्चे के भविष्य को (यह मैं नहीं जान पाया कि गीता के इस बच्चे का पिता कौन था) देखते हुए, उन्हें माफ कर दिया था। गीता फिर से अपने बच्चे के साथ आकर यहीं रहने लगी थी।

गीता यहाँ आ तो गर्इ थी, मगर दया बुआ ने वारिस से न मिलने की सख्त हिदायत उसे दे रखी थी। इसके बावजूद गीता और वारिस में चोरी-छिपे घंटों मोबाइल पर बात होती रहती थी।... किन्तु दया की हत्या करने की योजना या हत्या कर दिये जाने की सूचना भी वारिस ने गीता को नहीं दी थी। अपनी प्राथमिक जाँच में, इसी कारण पुलिस ने अभी तक गीता को इसमें शामिल नहीं माना है। दयारानी के घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे लगे होने की जानकारी के कारण, ये लोग दीवार से सटकर चलते हुए देखे गये हैं।

पड़ौस में चल रही किराने की एक दुकान के मालिक तथा कुछ अन्य लोगों ने भी सीसीटीवी फुटेज में दिख रहे अपराधियों के वहाँ होने की पुष्टि की है। वारिस के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लेने के बाद पुलिस नदीन और समीर तक पहुँची। वहीं से पता चला कि वारिस हत्या के बाद रूड़की और बुलंदशहर की तरफ अपनी रिश्तेदारी में भागा है। बाद में उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया।

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बात यहीं खत्म नहीं हो गयी थी। इस घटना के लगभग एक साल बाद फिर खबर आर्इ कि एक अन्य दरमियाने अन्नू शर्मा को भी गोली मारकर घायल कर दिया गया। शहर कोतवाली के प्रेमनगर मोहल्ले में रहने वाली अन्नू को किन्हीं बाइक सवार हमलावरों ने शनिवार 14 अगस्त 2016 की सुबह पीछे से गोली मार दी। अन्नू शर्मा विजयनगर के सेक्टर-9 में रहती थी और दयारानी की हत्या से पूर्व वह उन्हीं की चेली हुआ करती थी। दया की हत्या के बाद वह प्रेमनगर में रहने वाली बबली गुरु की चेली हो गर्इ थी। विजय नगर में दयारानी की हत्या के बाद अन्नू शर्मा का कद काफी बढ़ने लगा था।

तत्कालीन एसपी सिटी सलमान ताज पाटिल के हवाले से बताया गया था कि जब सुबह करीब 9.30 बजे अन्नू अपनी गुरु बबली से मिलने जा रही थी तभी दो बार्इक सवार अज्ञात हमलावरों ने उसे गोली मारी। वह पैदल ही जा रही थी।... इसके बाद सैंकड़ो की तादात में दरमियानों ने इस घटना पर रोष जताया। वे सभी एम.एम.जी अस्पताल के बाहर जमा हुए और काफी हंगामा काटा!

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विषय को यहीं समाप्त करते हुए मैं इस बात को लेकर आहत हूँ कि जहाँ एक ओर इनके लिए सरकार, समाज, एनजीओ तथा अनेक लोगों के व्दारा तमाम कार्य किये जा रहे हैं, वहीं वे स्वयं अभी भी अपनी जड़ताओं से मुक्त होने के लिए तैयार नहीं हैं। यह सही है कि इनके हक में अभी एक बहुत बड़े संघर्ष की जरूरत है... मगर एक-संघर्ष स्वयं इन्हें भी अपने भीतर करना ही होगा!

फिर कभी, किसी अन्य संस्करण में एक-दो अध्याय और बढ़ेंगे, मगर उसके लिए समय चाहिए।

कुछ अन्य तो उच्च पदों तक पहुँचने भी लगे हैं, सो अगले कुछ अध्याय सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ!

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