जो घर फूंके अपना
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टेलर तो टेलर, बार्बर भी सुभान अल्लाह !
पालम वाले टेलर मास्टर जी का तो धंधा ही फिटिंग का था. लगे हाथ मुझे भी फिट कर गए. पर गनीमत थी कि फिटिंग अकेले में की, किसी के सामने नहीं. इतनी शराफत मुझे फौजी अफसरों को विभिन्न सेवाएँ देनेवाले सभी लोगों में दिखती थी. कोयम्बतूर में, जब मैं बाद में एयर फ़ोर्स प्रशासनिक कालेज में नियुक्त था, वहाँ की एक महान विभूति से परिचय हुआ था. इस कालेज में वायुसेना की हर ब्रांच के अफसर ‘जूनियर कमांडर्स कोर्स’ नामक एक कोर्स करने के लिए आते थे. वैसे तो कोर्स के लिए आनेवाले अफसर आठ से बारह साल की सेवा सीनियारिटी के होते थे पर उनकी अफसरी और सीनियारिटी दोनों का दंभ वहाँ आते ही एक सज्जन दूर करते थे. इनका शुभनाम था जांसन. कोर्स करने वाले अफसर वहां दो महीनों के लिए आते थे, कोर्स कराने वाले लगभग तीन साल के लिए, पर जांसन महाशय उस संस्था की स्थायी पहचान थे. जैसे पालम में टेलर मास्टरजी का वर्चस्व दशकों से बना हुआ था वैसे ही कोयम्बत्तूर में इन सज्जन के रूप में इनके वंश की दूसरी पीढी का राज चल रहा था. अपनी ख्याति उन्होंने भारतीय वायु सेना के प्राचीनतम नापित्वर अर्थात बार्बर के रूप में फैला रखी थी. कोर्स करने के लिए अफसर देश की सुदूरतम वायुसेना इकाइयों से आते थे अतः जांसन की ख्याति भी अखिलभारतीय स्तर की थी. इस दो महीने के कोर्स में हर अफसर की मुलाक़ात उनसे होती थी पर ऐसे शेरदिल अफसर कम होते थे जो जांसन से दूसरी मुलाक़ात करने का दम रखते. अधिकाँश अपने दूसरे हेयरकट के लिए शहर की ओर रूख करते थे.
पहली मुलाक़ात में ही जांसन अपना वंश परिचय विस्तार में देते थे जिसकी निकटतम कड़ी उनके पिताश्री लारेंस थे जिन्होंने हैदराबाद डेक्कन में ‘डेक्कन हार्स’ नामक यूनिट में सेवारत ब्रिटिश भारतीय सेना के सेकण्ड लेफ्टिनेंट विंस्टन चर्चिल को हेयरकट दिया था. हाँ, वही सर विंस्टन चर्चिल जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री के रूप में अपना लोहा हिटलर और मुसोलिनी से मनवाया था. जांसन को इस बात पर बहुत गर्व था कि स्थल सेना की यह यूनिट अब अपने मौलिक स्वरुप कैवेलरी अर्थात घुड़सवारों की टुकड़ी से बहुत आगे तरक्की कर चुकी थी और फिलहाल आर्मर्ड कोर की एक यूनिट के रूप में टैंकों से सुसज्जित थी. इस बात को वे कुछ इस तर्ज़ से कहते थे कि सुनने वाले को साफ़ शब्दों में कहे बिना ही ये विश्वास हो जाता था कि जांसन के पिताश्री लारेंस ने विंस्टन चर्चिल को भारतीयों के कौशल से इतना अधिक प्रभावित नहीं किया होता तो डेक्कन हार्स आज भी टैंकों के बजाय घोड़ों पर आरूढ़ होती. क्या पता, अगर सर विंस्टन अपने हेयरकट से असंतुष्ट हुए होते तो शायद डेक्कन हार्स से घोड़े छीनकर खच्चर या गधे पकड़ा दिए गए होते. ये जांसन का दुर्भाग्य था कि लगभग सभी अफसर हेयर कट के लिए इतना कम समय निकाल पाते थे कि उनकी वंशावली गाथा इस पिछली पीढी के और पीछे नहीं जा पाती थी. यदि फुर्सत से हेयरकट लेने की तमीज लोगों में होती तो उन्हें इस वंश के उन पुरखों का परिचय भी मिलता जो ब्रिटेन से अमेरिका गए होंगे और जिन्होंने एब्राहम लिंकन की दाढी की करीने से काट छांट की होगी. पर ऐसा कोई मिलता न था जो हेयर कट समाप्त हो जाने के बाद सिर्फ उनकी वंशावली सुनने के लिए कुर्सी में बैठा रहता. जांसन की बातें जितनी लम्बी होती थीं उनका हेयरकट उतना ही छोटा होता था समय और सर पर बच जाने वाले बालों की लम्बाई, दोनों के हिसाब से.
जांसन को इस बात का बड़ा अफ़सोस था कि स्वतंत्र भारत की सेनाओं में ऐसे अफसर आगये हैं जो फौजी रंगरूट के बालों से ज्यादा लम्बे बाल रखना चाहते हैं जबकि फौजी अफसर की वास्तविक शान तो इसमें थी कि वह कितना चुस्त दुरुस्त और छोटे हेयरकट वाला है. जांसन खानदानी फ़ौजी बार्बर थे अतः उनके कट्टर वसूलों को फ़ौजी ही झेल सकते थे. इनमे पहला वसूल ये था कि जो व्यक्ति बाल कटाते हुए दर्पण में अपनी शकल देखना चाहता है वह कुछ स्त्रैण प्रवृत्ति का होता है और ऐसा करना फौजी अफसरों को शोभा नहीं देता है. तभी उनकी फौजी बार्बरशॉप दर्पणविहीन थी. इसी अंदाज़ को कायम रखते हुए हेयरकट देने के बाद सर की चम्पी करने वाले अपने बिरादरों को जांसन बड़ी हेय दृष्टि से देखते थे और मालिश चम्पी की फरमाइश करने वाले अफसरों को फौज के नाम पर एक धब्बा समझते थे. उन्हें ये निहायत देशी किस्म का शौक लगता था जबकि अपने खालिस हिन्दुस्तानी रंगरूप के बावजूद मानसिक रूप से जांसन विशुद्ध अँगरेज़ थे. इसलिए बातें भी वे उसी भाषा में करना चाहते थे जिससे उनका आत्मीय लगाव था. दुर्भाग्यवश अंग्रेजी बोलने में उन्हें विशेष महारत हासिल नहीं हो पाई थी आत्मपरिचय और पितापरिचय तो उन्होंने अंग्रेज़ी में बताने का अभ्यास कर रखा था और ऐसे कि जितनी देर में विंस्टन चर्चिल की चर्चा समाप्त हो उतनी ही देर में हेयर कट भी समाप्त हो अतः अधिकाँश लोगों को ग़लतफहमी थी कि वह अंग्रेज़ी धाराप्रवाह बोलते हैं. अगर कभी टाइमिंग गलत हो गयी और पैत्रिक परिचय समाप्त होने के बाद हेयरकट के दो एक मिनट बचे रह गए तो विषय बदल कर अपने जजमान के पैत्रिक स्थान और खानदान के विषय में वे तहकीकात शुरू कर देते थे.
मैं कोयम्बतूर में तींन साल से भी अधिक नियुक्त रहा अतः मुझे उनकी वंशावली इतनी बार सुननी पडी थी कि मुग़ल बादशाहों की वंशावली जो स्कूल में रटी थी से भी बेहतर ढंग से मुझे जांसन की वंशावली याद है. पर मुझे इतिहास रटना और जांसन से हेयरकट लेना दोनों एक टक्कर की यंत्रणाएं लगती थीं. चार बार सुना चुकने के बाद जब पांचवीं बार उन्होंने विंस्टन चर्चिल से अपने खानदानी सम्बंधों का ज़िक्र किया तो तंग आकर मैंने उन्हें बताया कि ये मैं पहले भी उन्ही से सुन चुका हूँ. जांसन के चेहरे पर आये भाव तो मैं उनके सामने सर झुका कर बैठे होने के कारण पढ नहीं पाया पर इसके बाद से मुझे देखकर उनके अभिवादन में गर्मजोशी कम हो गयी. रही सही कमी मेरे अगले कुकृत्यों ने पूरी कर दी. मैं कई बार शहर में जाकर किसी अच्छे सैलून में हेयरकट ले लेता था जहाँ कटिंग के बाद देर तक चम्पी का आनंद भी ले सकूं. दिल में छुपा हुआ प्यार और मुह में रखा हुआ पान जैसे जगजाहिर हो जाता है, हेयरकट भी जैसे ही लो तुरंत दिखता है. हेयरकट उनके अतिरिक्त किसी और से लिया यह जांसन को पता चलेगा तो उन्हें कष्ट होगा ये मुझे मालूम था और इतने मासूम और वसूलों के पक्के आदमी को दुःख पहुंचाने में मुझे बहुत अपराध बोध होता था. पर हेयरकट न हुआ मीराबाई के कृष्णप्रेम जैसा कुछ हो गया. हर बार “अब तो बात फैल गयी जानत सब कोई” हो जाता था. प्यार तो अक्सर इकतरफा होता है पर तिरस्कार हमेशा अपना प्रतिदान पा जाता है. जांसन को भी मेरा व्यवहार ठीक नहीं लगता था. अपने पिता की गाथा को आठ दस बार सुनने में एतराज़ करने को वे अपने पिता का अपमान समझते थे. अफ़सोस कि अंत में अपने पिताजी के तिरस्कार का बदला उन्होंने मेरे पिताजी से निकाला.
हुआ यह कि मेरे बहुत आग्रह के बाद मेरे पिताजी और माँ कुछ दिन मेरे साथ बिताने के लिए कोयम्बतूर आये. पिताजी डाक्टर थे, निजी प्रैक्टिस से बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर आ पाए थे. कोयम्बतूर प्रवास के दौरान एक दिन उन्होंने हेयरकट लेने की इच्छा प्रकट की और मैंने जांसन के हाथों में पिताजी को सौंपने की गलती कर दी. पिताजी के सर पर बहुत अच्छे घने रुपहले बाल थे जो उनके ऊपर बहुत फबते थे. उन्हें मैंने सावधान तो कर दिया था कि उन्हें विंस्टन चर्चिल से जांसन के खानदानी संबंधों की चर्चा सुननी होगी, पर यह बताना भूल गया कि हेयरकट की पूरी प्रक्रिया दो तीन मिनटों में समाप्त हो जायेगी. ऊपर से दर्पण भी न होने के कारण हेयरकट इतनी जल्दी समाप्त हो गया है ये वे भांप न सके. चर्चिलप्रसंग और हेयरकट दोनों साथ समाप्त होने के बाद भी जब पिताजी ने कुर्सी से उठने में कोई जल्दबाजी नहीं की तो जांसन ने पिताजी से अपना वार्तालाप जारी रखा. जो अंग्रेज़ी,तमिल और हिन्दी के मिश्र्राग में चलता रहा. जांसन ने आदत के मुताबिक पिताजी से पूछा कि वे क्या करते हैं और जब उन्होंने बताया कि वे डाक्टर हैं तो इसपर बहुत संतोष भरी प्रतिक्रया देते हुए जांसन ने सविस्तार विवेचना की कि कैसे नाई और डाक्टर दोनों अमीर-गरीब, छोटे -बड़े की चिंता किये बगैर सबकी सेवा करते हैं. कैसे दोनों के बिना मनुष्य का जीवन दूभर हो जाएगा. कैसे हर अच्छा डाक्टर अपने बेटे को डाक्टर और हर कुशल नाई अपने बेटे को अच्छा नाई बनाना चाहता है. इस सारी समीक्षा के अंत में जांसन ने निष्कर्ष में कहा “सार, वेरी फ्यू नोबुल प्रोफेशन लाइक डाक्टर एंड बार्बर“
फिर जांसन ने बेहद दुःख के साथ बताया कि इस गौरवमंडित खानदानी पेशे को ठुकराकर और पिता के दिल को गहरी ठेस लगाकर कैसे उनके बेटे ने पोलीटेक्नीक से इलेक्ट्रीशियन का कोर्स करके अपनी दूकान लगा ली थी. एक दुखी पिता के दिल के दर्द को एक दूसरा दुखी पिता बिना बताये समझ सकता था. पिताजी ने तो मेरे एयर फ़ोर्स में आने पर कोई आपत्ति नहीं की थी पर जांसन ने पिताजी के शिकायत किये बगैर उनसे बेहद हमदर्दी दिखाई कि उनका बेटा बजाय डाक्टर बनने के एयर फ़ोर्स अफसर बनकर अपना जीवन बर्बाद कर रहा था. पिताजी ने मुझे इस वार्तालाप की रिपोर्ट बहुत हंसते हुए दी थी कि जांसन मजेदार बातूनी आदमी था पर जब घर पर उन्होंने शीशा देखा तो उनकी हंसी गायब हो गयी. जांसन ने शायद जानकर ऐसा न किया हो पर ये तो उसकी आदत में शुमार था कि जबतक उसकी जुबांन चलती थी तबतक उसके हाथों में कैंची भी चलती थी. अतः जबतक सारा वार्तालाप समाप्त हुआ तबतक पिताजी के सर पर थोड़ी देर पहले ही जो सुन्दर घने रुपहले बाल थे उनकी धूमिल सी परछाईं भर भी नहीं बची थी और वे थलसेना के ताज़े-ताज़े रंगरूट दीख रहे थे.
क्रमशः ---------