एबॉन्डेण्ड - 11 - अंतिम भाग Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एबॉन्डेण्ड - 11 - अंतिम भाग

एबॉन्डेण्ड

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 11

मोबाइल लेकर युवक उसकी बैट्री निकाल रहा है। कह रहा है, ‘इसकी बैट्री निकाल कर रखता हूं। ऑन रहेगा तो वो हमारी लोकेशन पता कर लेंगे। और हम तक पहुंच जाएंगे। टीवी में सुनती ही हो, बताते हैं कि मोबाइल से लोकेशन पता कर ली और वहां तक पुलिस पहुंच गई। अब यह दोनों मोबाइल कभी ऑन ही नहीं करूंगा।’

‘फिर कैसे काम चलेगा आगे।’

‘देखा जाएगा। अब तो पहला काम यह करना है कि अगले स्टेशन पर ही इस बस से उतर लेना है।’

‘क्यों?’

‘क्योंकि इस मोबाइल से वह यहां तक की लोकेशन पा चुके होंगे या जब पुलिस में जाएंगे तो वह पता कर लेगी। इस बस से उतर लेंगे और फिर कोई दूसरी पकड़ेंगे, उससे आगे बढ़ेंगे।’

हैरान परेशान दोनों आधे घंटे बाद ही अगले बस स्टॉप पर उतर गए हैं। युवक कह रहा है।

‘चलो इस बस से तो पीछा छूटा।’

‘हां, देखो अगर यहां दिल्ली के लिए ही बस मिल जाए तो बस से ही दिल्ली चला जाए।’

‘नहीं बहुत दूर है। बस में बहुत परेशान हो जाएंगे। इसलिए ट्रेन से चलेंगे।’

दोनों को संयोग से एक ट्रेन मिल गई। जो तीन घंटे लेट होने के कारण उसी समय स्टेशन पहुंचे जब वो स्टेशन पहुंचे । इसी ट्रेन से दोनों लखनऊ पहुंच गए हैं। वहां दिल्ली के लिए उन्हें चार घंटे बाद ट्रेन मिलनी है। दोनों यहां कुछ राहत महसूस कर रहे हैं और जरूरत भर का सामान लेने के लिए निकल रहे हैं। युवक बोल रहा है, ‘चलो पहले एक बैग लेते हैं और जरूरत भर का सामान भी। ऐसे दोनों खाली हाथ चलते रहेंगे तो ट्रेन में टीटी, सिक्योरिटी वाले कुछ शक कर सकते हैं। पीछे पड़ सकते हैं। सामान रहेगा तो ज़्यादा शक नहीं करेंगे। बाहर से जल्दी ही आ जाएंगे। टिकट लेकर यहीं कहीं आराम करते हैं। बाहर होटल या गेस्ट हाउस चलता हूं तो बेवजह अच्छा खासा पैसा चला जाएगा और वहां सबकी नज़र भी हम पर रहेगी। उतने पैसों में कुछ सामान ले लूंगा और तत्काल टिकट में बर्थ मिल जाए तो ट्रेन में आराम से सोते हुए चलेंगे।;

भाग्य दोनों के साथ है। सामान लेकर जल्दी ही लौट आए हैं। उन्हें रिज़र्वेशन में बर्थ भी मिल गई और आराम से वे चल दिए हैं। सुबह ट्रेन दिल्ली पहुँचने को हुई तो युवक बोला, ‘दस बजने वाले हैं। थोड़ी ही देर में स्टेशन पर होंगे। तीन-चार घंटे सो लेने से बहुत आराम मिल गया। अब हम निश्चिंत होकर कहीं भी आ जा सकते हैं। अब हमें पकड़े जाने का कोई डर नहीं है। हम पति-पत्नी की तरह आराम से रह सकेंगे।’

‘जरूर, अगर कभी कोई मिल भी गया तो हमारे पास कागज तो हैं ही। बालिग हैं। अपने हिसाब से जहां चाहें वहां रह सकते हैं। हमें यहां कोई रोक-टोक नहीं सकेगा।’

स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर युवती कह रही है, ‘कितना बड़ा है यह स्टेशन।’

‘हां, बहुत बड़ा। आखिर अपने देश की राजधानी है।’

‘यहां कोई किसी को पकड़ता नहीं क्या?’

‘ऐसा नहीं है, जो गड़बड़ करता है वह पकड़ा जाता है। हम लोग अगर अपने गांव में पकड़े जाते तो जो हाल वहां होता, वह यहां पर नहीं हो पाएगा। बस इतना अंतर है। आओ निकलते हैं। बाहर अभी और कई लड़ाई लड़नी है। एक घर की लड़ाई। नौकरी की लड़ाई। यहां की भीड़ में कुचलने से अपने को बचाने की लड़ाई। यहां के लोगों से अपने को बचा लेने के बाद अपने भविष्य को संवारने की लड़ाई। अपने सपने को सच कर लेने की लड़ाई। बस लड़ाई ही लड़ाई है। आओ चलें।’

‘हां चलो। लड़ाईयां चाहे जितनी ढेर सारी हों लेकिन हम दोनों मिलकर सब जीत लेंगे। सच बताऊं। हमें तो उम्मीद नहीं थी कि अपने गांव से निकलकर हम सुरक्षित यहां तक पहुँच पाएंगे। तुम्हारी हिम्मत देखती थी तो हमें यह जरूर लगता था कि तुम्हारी यह हिम्मत हमारे सपने को पूरा जरूर करेगी। तुम हमें जरूर, जरूर, जरूर मिलोगे।’

‘तुम्हारी हिम्मत भी तो काम आई ना। तुम अगर हार जाती तो मैं क्या करता। इसलिए हम दोनों ने मिलकर जो हिम्मत जुटाई वह काम आई और दोनों यहां तक पहुंचे। अब अपनी दुनिया भी मिलकर बना लेंगे। मैं भगवान को सारा का सारा धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे इतनी हिम्मत दी। मुझे इतना दिमाग दिया कि हम सारे काम निपटा सके। बहुत-बहुत धन्यवाद हे! मेरे भगवान।’

इन दोनों ने अपने को सफल मानकर भगवान को सारा का सारा धन्यवाद दे तो दिया है। लेकिन गांव में अभी बहुत कुछ हो रहा है। जब ये आधे रास्ते पर थे तभी वहां यह बात साफ हो गई कि दोनों मिलकर निकल गए। मामला दोनों समुदायों की इज्ज़त का बनकर उठ खड़ा हुआ। हालात इतने बिगड़े कि समय पर भारी फोर्स ना पहुँचती तो बड़ा खून-खराबा हो जाता। वास्तव में यह दोनों तो बहाना मात्र थे। इस तूफ़ान के पीछे मुख्य कारण तो वही है कि वह संख्या बढ़ाकर अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहे हैं। हमारे लिए यह वर्जित है तो यह नहीं हो सकता। इसे वर्चस्व का ही संघर्ष कहिए। यह अभी ठहरा जरूर है, समाप्त नहीं हुआ है।

फोर्स की ताकत से चक्रवाती तूफ़ान से होने वाली तबाही तो जरूर रोक दी गई है। लेकिन पूरे विश्वास से कहता हूं कि ऐसे तूफ़ान स्थायी रूप से ऐसे युवक-युवती ही रोक पाएंगे जो अपना संसार अपने हिसाब से बसाने संवारने में लगे हुए हैं। जिनका उनके परिवार वालों ने उनका जीते जी अन्तिम संस्कार कर परित्याग कर दिया है। ये त्यागे हुए लोग, पीढ़ी ही सही मायने में भविष्य हैं हमारी दुनिया के। फिलहाल आप चाहें तो इनके मां-बाप की तरह मानते रहिए इन्हें एबॉन्डेण्ड।

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