एबॉन्डेण्ड
- प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 5
‘कोई मालगाड़ी होगी। पैसेंजर गाड़ी तो साढ़े तीन बजे है, जो हम दोनों को यहां से दूर, बहुत दूर तक ले जाएगी।’
‘पैसेंजर है तो हर जगह रुकते-रुकते जाएगी।’
‘नहीं अब पहले की तरह पैसेंजर ट्रेन्स भी नहीं चलतीं कि रुकते-रुकते रेंगती हुई बढ़ें। समझ लो कि पहले वाली एक्सप्रेस गाड़ी हैं जो पैसेंजर के नाम पर चल रही हैं। यहां से चलेगी तो तीन स्टेशन के बाद ही इसका पहला स्टॉपेज है।’
‘सुनो, तुम सही कह रहे थे। देखो मालगाड़ी ही जा रही है।’
‘हां।’
‘लेकिन तुम इतना दूर क्यों खिसक गए हो। मेरे और पास आओ ना। मुझे पकड़ कर बैठो।’
‘पकड़े तो हूं। और कितने पास आ जाऊं? अब तो बीच में से हवा भी नहीं निकल सकती।’
‘नहीं। हम दोनों के मुंह के बीच से हवा निकल रही है। इसलिए और पास आ जाओ। इतना पास आ जाओ कि मुंह के बीच में से भी हवा ना निकल पाए।’
‘लो, आ गया। अब कहने को भी बीच से हवा नहीं निकल पाएगी।’
‘बस ऐसे ही ज़िंदगी भर साथ रहना।’
‘ये भी कोई कहने की बात है।’
‘पता नहीं कहने की बात है या नहीं लेकिन टाइम क्या हो रहा है?’
‘अरे, कितनी बार टाइम पूछोगी?’
‘टाइम ही तो पूछा है, इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो।’
‘गुस्सा नहीं हो रहा हूं। जानती हो एक घंटे में तुम यह आठवीं बार टाइम पूछ रही हो।‘
‘पता नहीं। मैं तुम्हारी तरह गिनतीबाज़ नहीं हूं। मुझे डर लग रहा है, इसलिए बार-बार सोच रही हूं कि कितनी जल्दी ट्रेन आ जाए और हम लोग यहां से निकल चलें।’
‘टेªन अपने टाइम से ही आएगी। हमारे टाइम या सोचने से नहीं।’
‘फिर भी बताओ ना।’
‘अभी साढ़े आठ बजे हैं, ठीक है। अब टाइम पूछ-पूछ कर शोर न करो। कोई आसपास सुन भी सकता है। समझती क्यों नहीं।’
‘इतना धीरे बोल रही हूं बाहर कोई नहीं सुन पाएगा।’
‘फिर भी क्या ठिकाना।’
‘लो, इतनी बात कह डाली मगर टाइम नहीं बताया।’
‘हद कर दी, अभी बताया तो कि साढ़े आठ बजे हैं। सुनना भी भूल गई हो क्या?’
‘इतना अंधेरा है, ऊपर से जब गाड़ी का टाइम कम ही नहीं हो रहा है तो क्या करूं।’
‘तुम चुपचाप बैठी रहो बस और कुछ ना करो। सब ठीक हो जाएगा। मैं हूं ना, मुझ पर भरोसा रखो। तुमको परेशान होने, डरने की जरूरत नहीं है।’
‘परेशान नहीं हूं। तुम पर भरोसा करती हूं, तभी तो सब छोड़-छाड़ कर तुम्हारे साथ हूं।’
युवक युवती की व्याकुलता, तकलीफों से परेशान हो उठा है। उसे उस पर बड़ी दया आ रही है कि कैसे उसे आराम दे। यह सोचते हुए उसने कहा, ‘ऐसा करो तुम सो जाओ, अभी बहुत टाइम बाकी है।’
‘कहां सो जाऊं? यहां क्या बिस्तर लगा है जो मैं सो जाऊं।’
‘बिस्तर तो नहीं है लेकिन इस पर लेट कर आराम कर सकती हो। इसलिए इसी पर लेट जाओ। टाइम होने पर मैं तुम्हें उठा दूंगा।’
युवक की बातों से युवती बहुत भावुक हो रही है। कुछ देर चुप रहने के बाद कह रही है। ‘मैं सो जाऊं, आराम करूं और तुम जागते रहो।’
‘और क्या, एक आदमी को तो जागना ही पड़ेगा। नहीं तो गाड़ी आकर निकल जाएगी और पता भी नहीं चलेगा।’
‘ठीक है तो दोनों जागेंगे।’
यह लीजिए। यह कहते हुए युवती युवक से लिपट गई है। उसे बांहों में भर लिया है। दोनों अब अंधेरे में अभ्यस्त हो गए हैं। एक मोबाइल बहुत कम ब्राइटनेस के साथ ऑन करके युवक ने जमीन पर उल्टा करके रखा हुआ है। उसके एक सिरे पर नीचे कागज़ मोड़कर रख दिया है जिससे मोबाइल एक तरफ हल्का सा उठा हुआ है और आसपास कहने को कुछ लाइट हो रही है। युवक बड़े प्यार से युवती की पीठ सहलाते हुए कह रहा है, ‘जिद क्यों कर रही हो। अभी बहुत टाइम है। तुम्हारा साढ़े तीन बजे तक बैठे रहना अच्छा नहीं है। थक जाओगी फिर आगे चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा।’
‘ऐसा करते हैं ना, पहले मैं सो लेती हूं, उसके बाद तुम सो लेना। थोड़ी-थोड़ी देर दोनों सो लेते हैं।’
‘तुम्हें ये क्या हो गया है कि सोने के ही पीछे पड़ी हो।’
‘तुम अकेले बहुत ज़्यादा थक जाओगे इसीलिए कह रही हूं।’
‘ऐसा है तुम लेट जाओ। चलो इधर आओ। अपने पैर सीधे करो और सिर मेरे पैर पर रख लो। ऐसे ही लेटी रहो।’
युवती की जिद से खीझे युवक ने एक तरह से उसे खींचते हुए जबरदस्ती लिटा लिया है। वह लेटती हुई कह रही है, ‘देखो जागते रहना, तुम भी सो मत जाना।’
‘मेरी चिंता मत करो। मैं तभी सोऊंगा जब यहां से सही-सलामत निकलकर दिल्ली पहुंच जांऊगा।’
‘ये बताओ दिल्ली ही क्यों चल रहे हो?’
‘क्योंकि वहां पर बहुत सारे लोग हैं। इसलिए वहां हमें कोई ढ़ूंढ़ नहीं पाएगा।’
‘पहले कभी गए हो वहां, जानते हो वहां के बारे में।’
‘पहले कभी नहीं गया। थोड़ा बहुत जो जानता हूं वह यू-ट्यूब, गूगल, पेपर वगैरह में जो भी पढ़ा-लिखा, देखा, बस वही जानता हूं।’
‘कहां रुकेंगे और क्या करेंगे?’
‘पहले यहां से निकलने की चिंता करो। वहां पहुंचकर देख लेंगे।’
‘हां, सही कह रहे हो।’
यह दोनों भी गजब के हैं। एक-दूसरे को बार-बार चुप रहने को कहते हैं, लेकिन बातें अनवरत करते जा रहे हैं। इसी समय फिर बोगी के आसपास कुछ आहट हुई है। सजग युवक उसे चुप कराते हुए कह रहा है ‘एकदम शांत रहना, लगता है कोई इधर से निकल रहा है।’
‘तुम्हें कैसे पता चला, हमें तो कोई आवाज़़ सुनाई नहीं दे रही।’ युवती फुसफुसाती हुई कह रही है।
‘झाड़ियों की सरसराहट नहीं सुन रही हो। अभी तुम चुप रहो, बाद में बताएंगे।’
इस समय दोनों एकदम सांस रोके हुए पड़े हैं। हिल-डुल भी नहीं रहे हैं। सच में भयभीत कर देने वाला दृश्य है। झाड़ियों से सरसराहट की ऐसी आवाज़़ आ रही है मानो कोई बड़ा जानवर उनके बीच से निकल रहा है। बोगी के एकदम करीब आकर सरसराहट की आवाज़ रुक गई है। मगर किसी जानवर की बहुत हल्की गुर्राहट, साथ ही नथुने से तेज़ सूंघने जैसी आवाज़ आ रही है। जैसे वह सूंघ कर आसपास क्या है यह जानना चाह रहा है।
भय से संज्ञा-शून्य कर देने वाला माहौल बना हुआ है। करीब तीन-चार मिनट बाद सरसराहट फिर शुरू हुई है और अब दूर जाती हुई गायब हो गई है। अब तक दोनों सांस रोके हुए बैठे हैं। युवती डर के मारे पसीने से तर हो रही है। उसकी सांसें इतनी तेज़ चल रही हैं कि जैसे वह कई किलोमीटर लगातार दौड़कर आई है। उसकी धड़कन की धुक-धुक साफ सुनाई दे रही है। झाड़ियों में हलचल खत्म होने के बाद वह कह रही है।
‘तुम सही कह रहे थे, झाड़ियों में से कुछ लोग निकले तो जरूर हैं।’
‘जिस तरह से तेज़ आवाज़़ हो रही थी झाड़ियों में उससे एक बात तो पक्की है कि कोई जानवर था। बड़ा जानवर। कुछ आदमियों के निकलने से ऐसी आवाज़ नहीं आती।’
‘तो हम लोग यहां पर सुरक्षित हैं ना।’
‘हां, हम सुरक्षित हैं। लेकिन खतरा तो बना ही हुआ है।’
‘खतरा ना होता तो हम यहां...।’
इसी समय बाहर फिर आवाज़ होने पर युवक बड़ी फुर्ती से युवती को चुप करा रहा है, ‘चुप चुप, सुन, मेरा मन कह रहा है की झाड़ियों में अब जो आवाज़ हुई है वह किसी जानवर की नहीं है। मुझे लगता है कि कई लोग हमें एक साथ ढूंढ रहे हैं। नौ बज गया है। हमारे घर वाले ही होंगे। कई लोग एक साथ निकले होंगे।’ यह सुनकर युवती हड़बड़ा कर उठ बैठी है। थोड़ा झुँझलाया हुआ युवक कह रहा है, ‘इस तरफ से ज़्यादा आवाज़ आई है। इसलिए चुपचाप लेटी रहो। बैठ क्यों गई?’
‘क्योंकि अब मुझसे और नहीं लेटा जाता।’
‘ठीक है, बैठी रहो, लेकिन इतना डर क्यों रही हो? मुझे इतना जकड़े जा रही हो, लगता है जैसे मेरी हड्डी-पसली तोड़ने की कोशिश कर रही हो।’
‘मुझे ऐसे ही पकड़े रहने दो। मुझे बहुत ज़्यादा डर लग रहा है। छोड़ दूंगी तो मेरी तो सांस ही ýक जाएगी।’
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