एबॉन्डेण्ड - 2 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एबॉन्डेण्ड - 2

एबॉन्डेण्ड

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 2

युवती थोड़ा जल्दी में है क्योंकि गोधुलि बेला बस खत्म ही होने वाली है। मगर युवक जल्दी में नहीं है। वह इत्मीनान से कह रहा है।

‘सुनो, यहां जो स्टेशन है, रेलवे स्टेशन।’

‘हां, हां, बोलो तो, आगे बोलो, तुम्हारी बड़ी खराब आदत है एक ही बात को बार-बार दोहराने की।’

‘अच्छा! तुम भी तो बेवजह बीच में कूद पड़ती हो। ये भी नहीं सोचती, देखती कि बात पूरी हुई कि नहीं।’

‘अच्छा अब नहीं कूदूंगी। चलो, अब तो बताओ ना।’

‘देखो स्टेशन से आगे जाकर एक केबिन बना हुआ है। वहां बगल में एक लाइन बनी है। जिसकी ठोकर पर एक पुराना रेल का डिब्बा बहुत सालों से खड़ा है।’

बात को लम्बा खिंचता देख युवती थोड़ा उत्तेजित हो उठी है। कह रही है, ‘हां, तो उसका हम क्या करेंगे?’

‘सुनो तो पहले, तुम तो पहले ही गुस्सा हो जाती हो।’

‘अरे गुस्सा नहीं हो रही हूं। बताओ जल्दी, अंधेरा होने जा रहा है। इसलिए मैं बार-बार जल्दी करने को कह रही हूं। घर पर इंतजार हो रहा होगा। ज़्यादा देर हुई तो हज़ार गालियां मिलेंगी। मार पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं।’

‘देखो, मैंने बहुत सोचा, बहुत इधर-उधर दिमाग दौड़ाया। लेकिन कोई रास्ता नहीं मिला। सोचा किसी दोस्त की मोटरसाइकिल ले लूं। उस पर तुम्हें बैठाकर चुपचाप चल दूं। मगर तब दोस्त को बताना पड़ेगा। इससे बात इधर-उधर फैल सकती है। यह सोचकर मोटरसाइकिल की बात दिमाग से निकाल दी। फिर सोचा कि दोस्त को बताऊं ही ना। झूठ बोलकर चल दूं। लेकिन यह सोचकर हिम्मत नहीं हुई कि दोस्त क्या कहेगा। चोरी की एफ.आई.आर. करा दी तो और मुसीबत। सच बताऊं यदि मेरे पास मोटरसाइकिल होती तो मैं दो-तीन साल पहले ही तुम्हें कहीं इतनी दूर लेकर चला गया होता कि यहां किसी को भनक तक ना लगती। अब तक तो हमारा एक बच्चा भी हो गया होता।’

‘चल हट। इतनी जल्दी बच्चा-वच्चा नहीं। पहले यह बताओ कि मोटरसाइकिल नहीं मिली तो फिर क्या जो पुराना रेल डिब्बा खड़ा है मुझे उसमें बैठाकर ले जाओगे? क्या बिना इंजन के गाड़ी चलाओगे?’ यह कह कर युवती खिलखिला कर हंस पड़ी है।

युवक उसके सिर पर चपत लगाकर कह रह रहा है। ‘चुप कर पगली, पूरी बात सुनती नहीं। बस चिल्लाने लगती है बीच में। यह भी नहीं सोचती कि आसपास कोई सुन लेगा।’

‘तो बताओ ना। बार-बार तो कह रही हूं बोलो, जल्दी बोलो ना।’

युवती ने दोनों हाथों से युवक को पकड़ कर हिला दिया है। युवक कह रहा है, ‘देखो ट्रेन रात में साढ़े तीन बजे आती है। हम लोग शाम को ही घर नहीं पहुंचेंगे तो घरवाले ढूंढ़ना शुरू कर देंगे। वह इधर-उधर जाएंगे, बस स्टेशन जाएंगे, रेलवे स्टेशन जाएंगे। कोई जगह वो नहीं छोड़ेंगे। हर जगह जाएंगे। ऐसी हालत में बचने का एक ही रास्ता है कि हम लोग चुपचाप अंधेरा होते ही उसी डिब्बे में जाकर छुप जाएं। हम उस डिब्बे में होंगे, वह लोग ऐसा सोच भी नहीं पाएंगे। फिर यह सब रात होते-होते ढूंढ़-ढ़ांढ़ कर चले जाएंगे। जब रात को ट्रेन आएगी तो हम उसमें आराम से बैठकर अपनी दुनिया में पहुँच जाएंगे। अब बोल, इस प्लान से बढ़िया कोई प्लान हो सकता है क्या?’

‘सच में इससे अच्छा प्लान तो कुछ और हो ही नहीं सकता। और मेरे हीरो के अलावा और कोई बना भी नहीं सकता।’

युवती मारे खुशी के युवक के हाथ को अपने हाथों में लिए हुए है और पूछ रही है, ‘लेकिन यह बताओ, इतने बरसों से ट्रेन का डिब्बा वहां खड़ा है। अंदर ना जाने कितने सांप-बिच्छू, कीड़े-मकोड़े और पता नहीं क्या-क्या होंगे। कहीं सांप वगैरह ने काट लिया तो लोगों को भनक भी नहीं लगेगी और हम वहीं मरे पड़े रहेंगे। कोई कभी देख भी नहीं पाएगा।’

‘अरे, मेरी मोटी अक्ल, बीच में मत बोल। इतनी तो अक्ल होनी चाहिए कि अगर हम वहां मरे पड़े रहेंगे तो हमारी बॉडी सड़ेगी। उसकी बदबू अपने आप ही सबको बुला ही लेगी।’

‘चुप, चुप। इतनी डरावनी बात क्यों कर रहे हो।‘

‘मैं नहीं, तुम्हीं उल्टा-सीधा बोल रही हो। जब मैं कह रहा हूं कि तीन-चार दिन से इंतजाम में लगा हूं तो इन सारी बातों का भी ध्यान रखा ही होगा, यह तो तुम्हें समझना ही चाहिए ना। कॉमनसेन्स की बात है। सुनो, मैं चुपचाप डिब्बे के अंदर जाता था और वहां पर काम भर की जगह बनाता था। नौ-दस घंटे बैठने के लिए वहां पर काम भर का कुछ सामान भी रख दिया है। कई बोतल पानी और खाने का भी सामान है। कल घर से निकलने के बाद सबसे पहले हम यहीं मिलेंगे। इस नाले के अन्दर वह हमारी आख़िरी मुलाकात होगी। यहां से निकलने के बाद हम डिब्बे में जाकर छिप जाएंगे। एक बात बताऊं, ये नाला हमारा सबसे अच्छा दोस्त है। हमें सबकी आंखों से बचाकर कितने दिनों से मिलाता चला आ रहा है। इसे हम हमेशा याद रखेंगे।’

युवती युवक की बातें सुनते-सुनते उसकी जांघों पर सिर रखकर आराम से ऐसे लेट गई है जैसे कि घर जाना ही नहीं है। युवक के हाथ की उंगलियों से खेलती हुई कह रही है, ‘सच में ये नाला हमारा सबसे अच्छा दोस्त है। हमें सबकी नज़रों से बचाए रखता है। मगर यह बताओ अंधेरा होने के बाद डिब्बे में कुछ दिखाई तो देगा नहीं कि तुम हमारे साथ हो कि कोई और? वहां तो कुछ पता ही नहीं चलेगा कि तुम किधर हो, हम किधर हैं। पूरे डिब्बे में इधर-उधर भटकते टकराते रहेंगे। ऐसा ना हो कि हमें जाना कहीं है और अंधेरा हमें पहुंचा दे कहीं और।’

‘रहोगी एकदम ढक्कन ही। कितना कहता हूं कि थोड़ी अक्ल बढ़ाओ। तुम अपना मोबाइल लेकर आना। मैं भी अपना ले आऊंगा।’

‘लाने से फायदा भी क्या? मेरा मोबाइल चाहे जितना भी चार्ज कर लो, आधे घंटे में ही उसकी बैट्री खत्म हो जाती है।

‘तुम बैट्री की चिंता नहीं करो। मैंने एक पावर बैंक लेकर फुल चार्ज करके रख लिया है।’

‘और टिकट?’

‘टिकट, मैं दिन में ही आकर ले लूंगा और फिर शाम को ही डिब्बे में जाकर बैठे जाएंगे। ट्रेन के आने का टाइम होगा तो स्टेशन पर अनाउंसमेंट होगा। कुछ देर बाद ट्रेन की सीटी सुनाई देगी। तभी हम डिब्बे से निकल कर प्लेटफॉर्म के शुरूआती हिस्से में पहुंच जाएंगे। इसके बाद जो भी पहली बोगी मिलेगी, उसी में चढ़ लेंगे।’

‘तुम भी क्या बात करते हो। इतना सेकेंड-सेकेंड भर जोड़-गांठ कर टाइम सेट कर रहे हो। गाड़ी दो मिनट से ज़्यादा तो रूकती नहीं। मान लो प्लेटफॉर्म तक पहुंचने में मिनट भर की भी देरी हो गई तो ट्रेन तो चल देगी। हम प्लेटफॉर्म के शुरूआती हिस्से में होंगे तो दौड़कर चढ़ने का भी मौका नहीं मिलेगा और यदि ट्रेन तक पहुँच भी गए और तब तक स्पीड ज़्यादा हो गई तो कैसे चढ़ेंगे? कहीं तुम या मैं कोई स्टेशन पर ही छूट गया तो?’

‘ऐसा सोचकर डरो नहीं। डर गई तो अपने घर से ही नहीं निकल पाओगी। हमें थोड़ा तो खतरा मोल लेना ही पड़ेगा। ऐसा करेंगे कि जहां प्लेटफॉर्म खत्म होने वाला होता है वहीं कोने में थोड़ा पहले चल कर कहीं छिपे रहेंगे। जैसे ही ट्रेन उधर से निकलने लगेगी वैसे ही हम लोग इंजन के बाद वाली ही बोगी पर चढ़ लेंगे। उस समय तक ट्रेन की स्पीड इतनी ज़्यादा नहीं होती कि हम लोग चढ़ ना सकें।’

‘चलो, जैसे भी हो चलना तो हर हाल में है। जैसा कहोगे वैसा करूंगी। मुझे ठीक से समझाते रहो बस। तुम जानते ही हो कि मैं ढक्कन हूं। लेकिन ये बताओ आओगे कब?

युवती ने उसे कुछ देर पहले ढक्कन कहे जाने पर तंज़ करते हुए पूछा तो युवक के चेहरे पर हल्की मुस्कान उभर आई है। वह कह रहा है, ‘कल इसी टाइम। तुम यहीं मिलना। यहीं से निकल चलेंगे दोनों लोग।’

‘यह बताओ कि मान लो ट्रेन लेट हो गई तो?’

‘ओफ्फो, शुभ-शुभ बोलो ना। हर बार तुम गंदा ही काहे बोलती हो। उल्टा ही क्यों बोलती हो। सीधा नहीं बोल पाती क्या?’

‘नहीं मान लो अगर ऐसा हो गया, ट्रेन लेट हो गई। दो घंटा, तीन घंटा और सवेरा हो गया, तब क्या करेंगे?’

‘तब, तब हम लोग डिब्बे में ही बैठे रहेंगे। अगला फिर पूरा दिन वहीं बिताएंगे और जब फिर अगली रात को ट्रेन आएगी, तब जाएंगे।’

‘और टिकट, पहले वाला टिकट तो बेकार हो चुका होगा।’

‘अरे यार भेजा को एकदम उबाल काहे देती हो। सीधी सी बात है फिर दूसरा टिकट ले लेंगे।’

‘इसके लिए तो स्टेशन पर जाना ही पड़ेगा ना।’

‘देखो, अगर फिर टिकट लेने के लिए जाने में खतरा दिखेगा तो बिना टिकट ही चल देंगे।’

‘और टी.टी. ने पकड़ लिया तो।’

‘वहां पकड़े जाने पर इतनी दिक्कत नहीं आएगी। उससे रिक्वेस्ट कर लेंगे कि अर्जेंसी थी, टिकट नहीं ले पाए। टेªन छूट रही थी। जो जुर्माना हो वह दे देंगे, और सुनो अब जो भी बोलना अच्छा बोलना। कुछ उल्टा-सीधा मत बोलना कि यह हो गया तो, वह हो गया तो, अरे अच्छा बोलना कब सिखोगी? इतनी पकाऊ क्यों बनती जा रही हो।’

‘ढक्कन हूं, इसलिए।’

युवती यह कह कर हंसने लगी है। युवक उसके सिर पर प्यार भरी एक टीप मारकर कह रहा है, ‘चुप, अब किन्तु-परन्तु, लेकिन-वेकिन कुछ भी नहीं कहना। वरना बता देता हूं।’

‘देखो सावधानी तो बरतनी चाहिए ना। खाली अच्छा बोलने से तो अच्छा नहीं होने लगता ना। अच्छा यह बताओ घर से कुछ सामान भी लेकर चलना है क्या? जो-जो लेना है, वह तो बता दो ना।’

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