कर्मफल Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कर्मफल

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डा. श्याम शुक्ल 75 वर्ष, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे है। वे अभी भी भारतीय बाल कल्याण परिषद, नई दिल्ली एवं मध्यप्रदेश बाल कल्याण परिषद में भी विभिन्न पदों पर सक्रिय रूप से कार्यरत है। जीवन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जीव में चेतना का संचार ही जीवन है और चेतना का तिरोहण मृत्यु। चेतना की तीन श्रेणियाँ मानी गई हैं। भौतिक चेतना, शुद्ध चेतना और दिव्य चेतना।

भौतिक चेतना वह होती है जहाँ व्यक्ति केवल देह की सीमा तक स्थित होता है, शुद्ध चेतना व्यक्ति को बुद्धि और विवेक के साथ केवल आत्मा के आदेश पर आचरण और व्यवहार करवाती है और दिव्य चेतना व्यक्ति को विष्णुत्व और शिवत्व प्रदान करती है। मनुष्य भौतिक चेतना में रहकर अपना जीवन जीना चाहता है अथवा वह उसका विकास कर शुद्ध चेतना तक जाना चाहता है। यह उसके बुद्धि और विवेक पर निर्भर करता है।

वे कहते है कि मैं अपने परिजनों के व्यवहार से संतुष्ट हूँ क्योंकि मैंने उनसे हमेशा सुसंस्कृत, मर्यादित एवं अनुकूल व्यवहार किया है। यह उसी का प्रतिफल है। वे अपने शेष जीवन का सदुपयोग पीड़ित मानवता की सेवा तथा बुराइयों के प्रति सामाजिक जागरण एवं स्वाध्याय में व्यस्त रहते हुए करना चाहते है।

जीवन और मृत्यु अपनी सोच और जीवन दर्शन से समाज को मार्गदर्शन के संबंध में उन्होंने कहा कि जीवन और मृत्यु के विषय में मेरी स्पष्ट धारणा है यह सनातन सत्य है कि यहाँ कोई अमर होकर नही आता। संसार में प्रतिदिन अनेकों जीवधारी मृत्यु को प्राप्त होते है लेकिन इनके लिए विलाप करने वाला कोई नही होता। केवल कुछ विरले ही ऐसे होते है जिनके अवसान से न केवल मन विचलित हो जाता है वरन् करूण हृदय आंसुओं के सागर में डूब जाता है। मेरा मानना है कि ऐसे ही लोग वास्तव में जीवन जीते है शेष अर्धमृत समान रहते है।

जीवन के अविस्मरणीय संस्मरण को बताते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 1974 में वे विश्वविद्यालय के मुद्रणालय अधीक्षक थे। उस समय वे एक प्रतिभावान विद्यार्थी के माध्यम से एक स्वामी जी के संपर्क में आये। स्वामी जी अनेक भाषाएँ धारा प्रवाह बोलते थे। स्वामी जी ने बतलाया कि वे फिल्म अभिनेता शिवकुमार के पिता है और उस युग के प्रसिद्ध अभिनेता प्रेमनाथ के आध्यात्मिक गुरू है। उन्होंने अपने तप के बल पर 19 वर्ष बाद प्रेमनाथ की फिल्मों में वापिसी कराई है। उनके सामने अनेक पत्रिकाएँ रखी थी जिनमें वे अनेक बडें अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को आशीर्वाद देते हुए दिखलाए गये थे। उनको लगा कि वे स्वामी जी के माध्यम से फिल्मी दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं।

एक दिन स्वामी जी ने मनोकामना व्यक्त की कि वे अतंर्राष्ट्रीय योग एवं आध्यात्मिक संस्थान जबलपुर में बनाना चाहते है। इस हेतु नर्मदा नदी के किनारे जिलहरी घाट में प्रेमनाथ जी की कुटी से लगी ढाई एकड जमीन पसंद की गई और इस कार्य को आगे बढाने के लिए म.प्र. के पाँच प्रमुख शहरों में फिल्म स्टार नाइट का आयोजन कर समुचित धन एकत्र कर लिया जाएगा। इस कार्य को आगे बढाने के लिए एक बैठक प्रेमनाथ जी के घर प्रेमबीना में स्वामी ओंकारानंद जी की अध्यक्षता में आयोजित की गई जिसमें सर्वसम्मति से संस्थान का नाम प्रेम विश्व आध्यात्मिक शांति संस्थान रखा गया। अभिनेता प्रेमनाथ, गायक किशोर कुमार की पत्नी रोमा गुहा ठाकुर एवं अभिनेत्री शमा दत्त संरक्षक बनाए गए। महारानी रीवा प्रवीण कुमारी की अध्यक्षता में एक कार्यकारिणी का गठन किया गया जिसमें शहर के गणमान्य जनो को शामिल किया गया। महारानी रीवा ने सहमति प्रदान की थी कि वे पचास हजार रूपये की राशि ऋण स्वरूप देंगी जो कि आयोजन बाद प्राप्त राशि में से उन्हें वापिस कर दी जायेगी। उन्होंने तत्कालीन शासकीय अधिकारियों से सहयोग प्राप्त करने का जिम्मा भी अपने ऊपर ले लिया।

श्याम शुक्ल जी प्रतिदिन आयोजन के सिलसिले में स्वामी जी से मिलने जाते थे। एक सप्ताह बाद स्वामी जी ने कहा कि वे फिल्मस्टार नाइट के आयोजन के संबंध में मुम्बई जाना चाहते है ताकि वे सिनेमा के बडे कलाकारों से संपर्क स्थापित करके उनकी सहमति प्राप्त कर सकें। उनकी आने जाने और ठहरने की सारी व्यवस्था मुझे करना थी। अभी धन एकत्र नही हुआ था और स्वामी जी ने बडा खर्चा बता दिया था। मैंने किसी तरह उनके ठहरने की व्यवस्था मुंबई स्थित महारानी रीवा की कोठी में उनकी सहमति से कर दी ताकि गाडी टेलीफोन आदि की सुविधा उपलब्ध रहे।

आयोजन के सिलसिले में मेरा आना जाना महारानी जी के पास होता रहता था। एक दिन जब मैं उनसे वार्तालाप कर रहा था तभी टेलीफोन पर किसी से हुई वार्तालाप के बाद उनका चेहरा क्रोध से तमतमाया हुआ था और उन्होंने बताया कि वह धूर्त साधु वहाँ कोठी में अर्मादित तथा असहज आचरण कर रहा है। वह वहाँ कुछ लोगों के साथ जिनमें महिलाएँ भी है शराबखोरी कर रहा हैं। यह सुनकर मैं हतप्रभ रह गया और यह कहकर कि उसे तत्काल कोठी से बाहर कर दें। मैं उनके निवास से आ गया और इस घटना के बाद से मैंने महारानी के पास जाना बंद कर दिया था।

एक दिन रात को 12 बजे महारानी जी का फोन आया। वे काफी क्रोध में थी। उन्होंने बतलाया कि हिन्दी ब्लिट्ज में एक समाचार छापा गया है जिससे उन सब की बदनामी हो रही है। दूसरे दिन मेरे मित्रों ने मुझे फोन पर तंज करना शुरू कर दिया कि क्यों भइया यह क्या करने लगे हो। मुझे अखबार दिखाया जिसके 15 वें पृष्ठ पर छपा था “जबलपुर में लड़कियों के व्यापार का रैकिट सक्रिय“। शमा दत्त के एक बडे फोटो के साथ आरोपियों में वे सभी नाम लिखे गये थे जो संस्थान हेतु गठित समिति में थे। उन दिनों मेरे विवाह की बात चल रही थी, जो टूट गयी। मैं आसमान से जमीन पर आ गिरा। निराशा और बदनामी से बाहर आने में मुझे काफी समय लगा। कुछ समय बाद हिन्दी ब्लिट्ज में हमारा स्पष्टीकरण प्रकाशित हुआ तब बडी मुश्किल इस मामले का पटाक्षेप हुआ।

उन्होंने कहा कि हमने भी कुछ ऐसे प्रसंग देखे है जिनमें एक बालक अपनी पूर्व जन्म की यादों को न केवल प्रस्तुत करता है वरन साक्ष्य के रूप में उन संबंधों तथा स्थानों का साक्षात्कार कराता है। इससे पुनर्जन्म की अवधारणा सम्पुष्ट होती है। समाज और शासन से उनकी अपेक्षाएं है कि संस्कारशील, प्रबुद्ध, समाज के निर्माण का प्रयास हर व्यक्ति को अपने स्तर पर करना चाहिए। समाज अपने आप अच्छा बनेगा।