जो घर फूंके अपना - 14 - नं जाने इनमे कौन हैं मेरे लिए Arunendra Nath Verma द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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जो घर फूंके अपना - 14 - नं जाने इनमे कौन हैं मेरे लिए

जो घर फूंके अपना

14

नं जाने इनमे कौन हैं मेरे लिए

कहानी सुना रहा हूँ मैं वायुसेना के विमान चालक की तो उसका पूरा रस ले सकें इसके लिए आवश्यक होगा कि फ़ौजी वैमानिक के पेशेवर जीवन (प्रोफेशनल लाइफ) के विषय में भी कुछ बता दूँ. परिवहन विमान उड़ाने वाले पाईलटों और नेवीगेटरों की हर साल लिखित व मौखिक परीक्षा के अतिरिक्त फ़्लाइंग की प्रैक्टिकल परीक्षा होती है. योग्यतानुसार उन्हें चार श्रेणियों मे वर्गीकृत किया जाता है. बी श्रेणी वाले विशिष्ट व्यक्तियों की उड़ान भर सकते हैं और ए श्रेणी वाले अतिविशिष्ट व्यक्तियों की जैसे राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री आदि. सी श्रेणी वाले साधारण सवारियों जैसे फ़ौजी जवानों आदि को और डी श्रेणी वाले केवल मालवाहक विमान उड़ाते हैं. अतिविशिष्ट व्यक्तियों अर्थात राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री आदि की उड़ानें भरने के किये दिल्ली में एक विशेष यूनिट है. इसमें नियुक्ति पर केवल उन्ही एयरक्र्यू को भेजा जाता है जिन्होंने सेवा के पहले दो तीन साल में बी श्रेणी पा ली हो और पांच साल की सेवा होते होते ए श्रेणी पा चुके हों या शीघ्र ही पाने की संभावना दिखाएँ. इस विशेष यूनिट में तैनाती का अर्थ है प्रोफेशनल योग्यता की ‘हालमार्क’ की मुहर लग जाना.

राजकुमारी विद्योत्तमा ने अपने मूर्ख और उजड्ड पति की भर्त्सना की तो उसने महाकवि कालिदास बनकर दिखा दिया. गोस्वामी सलमान खान को ऐश्वर्या ने नकारा तो वे काले हिरन और फूटपाथ पर सोते लोगों का शिकार करने निकल पड़े. मैं किसी रूपसी द्वारा प्रताड़ित नहीं हुआ, उनके पिता व अभिभावक आउटर सिग्नल पर ही लाल झंडी दिखाकर मेरी गाडी रोक देते थे. एक सजन जो मार्केटिंग के विशेषज्ञ थे कहते सुने गए थे “कौन कहता है सेल्समैन को बेईज्ज़ती सहनी पड़ती है. मुझे लोगों ने मिलने से मना किया है, एकाध ने मिलने के बाद गेट आउट कहा है, एक ने तो दरबान को बुलाकर धक्के मारकर बाहर निकालने को कहा. पर बेईज्ज़ती कभी किसी ने नहीं की. “ पर मेरी खाल इतनी मोटी नहीं थी. जब मुझे कन्याओं के पिताओं- अभिभावकों से नकारे जाने में कुछ अपमान जैसा महसूस हुआ तो मैंने कालिदास आदि की स्वर्णिम परम्परा का निर्वाह करते हुए वैमानिक परीक्षा परिषद् ( एयर क्र्यू एक्सामिनिंग बोर्ड ) को अपनी प्रोफेशनल योग्यता दिखाने का निर्णय लिया. कुछ महीने जम कर पढाई करने व नेवीगेशन में चमक लाने की मेहनत के बाद मुझे बी श्रेणी मिल गयी और आगे ए श्रेणी लेने का संकेत भी. कुछ महीनों के अन्दर ही दिल्ली की वी आई पी स्क्वाड्रन में मेरी नियुक्ति भी हो गयी.

दिल्ली पोस्टिंग का अर्थ था और व्यस्त हो आना. अभी तक मैं डकोटा विमान पर नियुक्त था. अब एच एस 748 और टी यू 124 जेट विमानों पर कनवर्शन ट्रेनिंग प्रारम्भ हो गयी. इन विमानों पर ए श्रेणी पाने के लिए प्रोफेशनल पढ़ाई और ट्रेनिंग उड़ानों की ज़रूरत के आगे ब्याह के चक्कर कौन पड़ता. अतः माँ-पिताजी के आग्रह पर मैं हमेशा कहता ‘अगले साल देखूँगा’ पर जीजा जी ने भी ठान ली कि मेरी शादी करवाए बिना मानेंगे नहीं. दिल्ली से जीजा जी से फोन पर बातें करना सुगम हो गया था. मैंने विस्तार में वस्तुस्थिति समझाई तो उन्होंने पूछा ‘दिल्ली में रहकर शादी के लिए लडकी न देखी और उसके बाद लद्दाख, अंडमान निकोबार आदि की पोस्टिंग आ गयी तो?’ मैं चुप रहा. छह सात महीनों में ट्रेनिंग और सारी परीक्षाएं समाप्त हो गयीं और जीजाजी ने फिर से वैवाहिक विज्ञापन दिया और उत्तरों को मेरे पास अग्रेषित करने लगे.

इस बार जीजा जी ने मुझे पहले ही समझा दिया कि अपनी पसंद की “बार“ मुझे कुछ नीची कर देनी चाहिए वरना अधिकाँश प्रस्ताव इस ऊंची बार से टकराकर नीचे गिरेंगे और धूलधूसरित हो जायेंगे. दूसरी हिदायत थी कि इस बार किसी लडकी को देखने का तय हो तो मैं बिलकुल देर न लगाऊँ. इस बार तो सुदूर असम से आने की असुविधा भी नहीं थी.

तो फिर प्रस्ताव आये. लड़कियों की तस्वीरें आयीं. अब तक सुन्दर लगने और मुझे पसंद आने के लिए उनका सिर्फ लडकी होना ही पर्याप्त हो चुका था. यानी हर फोटो ही बड़ी प्यारी लगती थी पर शादी तो किसी एक से ही हो सकती थी. अतः चुनाव के लिए अपने दो एक मित्रों की मदद लेनी पड गयी. पर पहले जिस दोस्त से मदद माँगी उससे बहुत जल्दी लड़ाई हो गयी. कमबख्त हर फोटो को उठाकर इतनी देर तक निहारता कि मुझे जलन होने लगती थी. मैं एतराज़ करता तो वह कहता “ अबे, अभी तो ठीक से देख लेने दे. शादी कर लेगा तो फिर इतने प्यार से थोड़े ही देख पाऊंगा. ” मैं इस जवाब से झल्लाता तो मनाते हुए कहता “यार, ध्यान से देख रहा हूँ. पहली पसंद तो तेरी ही होगी. दूसरे तीसरे नंबर वालियों को बाद में मैं ट्राई कर लूँगा. ” मुझे दिन दहाड़े दुह्स्वप्न आने लगे. लगा कि ऐसा ही चला तो लडकी देखने जाऊंगा तो उसके ड्राइंग रूम में ये पहले से ही बैठा हुआ मिलेगा. मेरे आने पर नाक पर उंगली रख कर कहेगा “ ट्रिल्ली-ली-ली ! मैं पहले ही आ गया. ” और मैं हें हें करता रह जाऊंगा. मारे डर के इन सजन से अगली खेप में आयी तस्वीरें मैंने छिपा लीं. एक दूसरे दोस्त से जो बत्तीस वर्षीय थे मदद माँगी. सोचा ये सोबर होंगे. पर वे धुर वामपंथी निकले. जितनी शिद्दत से मुझे हर फोटो प्यारी लगती थी उतनी ही शिद्दत से उन्हें हर फोटो बेकार लगती थी. मुझे लगा कि वे केवल ऐसी किसी फोटो को पास करेंगे जिसमे तैंतीस प्रतिशत के अनुपात से मधुबाला, शर्मिला टैगोर और सायरा बानू तीनो छिपी हों. फिर ध्यान आया कि इन तीनो का योग तो निन्न्यानबे प्रतिशत ही होगा, सौवें प्रतिशत की कमी से वे उसे भी बेकार घोषित कर देंगे. उनसे कोई रचनात्मक सुझाव तो मिला नहीं पर बत्तीस वर्षों तक उनके कुंवारे बने रहने का कारण समझ में आ गया. तब का वक्त फर्क था. ‘गे’ नामक प्राणी को क़ानूनी अधिकार नहीं मिले थे वरना उनसे पूछता उनके साथ भी वही बात तो नहीं है.

अंत में मैं इतना कन्फ्यूज्ड हो गया कि पहले वाले दोस्त ने जिन तीन तस्वीरों को सबसे देर तक घूरा था और दूसरे वाले ने जिन तीनों को सबसे बेकार बताया था उन्हें छांट कर अलग रख लिया. सोचा एक गत्ते के डिब्बे में इन छहों को रखकर आँखें बंद करके लकी ड्रा कर लेता हूँ. पर सोचा तो लगा कि यह तो घोर अरोमांटिक तरीका होगा. लोग तो प्यार में अंधे हो जाते हैं मैं बिना प्यार किये अंधा क्यूँ हो जाऊं. क्यूँ न इन पोस्टकार्ड साइज़ तस्वीरों को हवा में उछाल दूं. जो तस्वीर बूमरैंग की तरह उलटा घूमकर मेरे पास वापस आ जायेगी वही मेरे सपनों की रानी होगी. यह तरीका रोमांटिक भी लगा और प्रतीकात्मक भी. दूर फेंकने पर भी जिस की तस्वीर लौट कर वापस आ जाए उसके समर्पित होने का इससे अच्छा शगुन क्या हो सकता था.

इस इरादे को अंजाम देने के लिए उस शाम जब मेरे दोस्त अन्यत्र व्यस्त थे और मैं अकेला था, ऑफिसर्स मेस के अपने कमरे के सामने छोटे से लॉन के किनारे बैठ गया. वे चुनी हुई छः तस्वीरें निकालीं और उन्हें कुछ मोड़कर, हाथ घुमाकर हवा में उन्हें फेंकने लगा कि हवा में तैरते हुए बूमरैंग की तरह पीछे मुड़कर आ जाएँ. पर जल्दी ही समझ में आ गया कि बिना किसी आस्ट्रेलियाई आदिम जाति के व्यक्ति से सीखे यह संभव नहीं होगा. यह भी प्रतीकात्मक ही था कि जब सारा जीवन किसी सुन्दरी ने मुझे पीछे मुड़कर नहीं देखा तो उनकी तस्वीरें पीछे मुड़कर मेरे पास भला क्यूँ आने लगीं. छहों तस्वीरों को बूमरैंग बनाने में असफल रहा तो मन मसोस कर उन्हें उठा लाया. फिर ध्यान आया कि कुछ तस्वीरें तो हवा में तैरती हुई दूर तक निकल गयी थीं और कुछ दो चार क़दम पर ही गश खाकर गिर पडीं थीं. सोचा “यह भी प्रतीकात्मक है. जो तस्वीर दूर भाग गयी वह मेरे लिए नहीं है. जो मेरे सबसे पास पछाड़ खाकर गिर पडी वही मेरे जीवन में भी आना चाहती होगी. यह तरीका बहुत मौलिक नहीं था. बचपन में मेरे स्कूल के एक टीचर की ख्याति थी कि हाई स्कूल परीक्षा की बहुत सारी कापियों के बण्डल आ जाने पर वे पास फेल का निर्णय ज़मीन पर लक्ष्मण रेखा खींचकर उत्तर पुस्तकों को उसके पार फेंक कर करते थे. जो उत्तरपुस्तकें लक्ष्मण रेखा पार कर गयीं वे भव बाधा तर गयीं, बाकी फेल. बहरहाल मैंने अपने क्रिया कलाप पर ध्यान दिया तो याद आया कि बूमरैंग वाले प्रयोग में मैंने जो तस्वीरें फेंकी थीं उनमे देखा ही नहीं कि कौन सी मेरे सबसे पास गिरी थी. कोई बात नहीं. यह तो फिर से किया जा सकता था. सो किया. एक फोटो तो इतनी दूर जाकर गिरी कि मानों ओलम्पिक खेलों में किसी एथलीट ने फेंकी हो. पर दो सुंदरियां मेरे क़दमों के पास ही औंधे मुंह पडी हुई थीं. मैंने इसे ‘बाईगेमी अर्थात दोनों से ब्याह करने का ईश्वरी आदेश मानने से इनकार कर दिया. तय किया कि इन दोनों के बीच निर्णयात्मक मुकाबिला एक बार फिर कर लूँगा. जो एकदम से मेरे क़दमों में गिर पड़ेगी वही होगी मेरी हर बात मानने वाली, मुझे प्यार करने वाली मेरी अनारकली.

इस अंतिम मुकाबिले को अंजाम देने से पहले आवश्यक था कि दूर-दूर गिरी हुई तस्वीरें इकट्ठा कर लूं. मैं सबसे दूर गयी हुई तस्वीर की तरफ जा ही रहा था कि तभी लॉन के किनारे के पीपल के पेड़ से एक बन्दर उतरा और पास गिरी हुई दोनों तस्वीरों को फुर्ती से उठाकर पलक झपकते ही एक ऊंची डाल पर चढ़कर बैठ गया. मैं दूसरी तस्वीरों की चिंता छोड़कर बन्दर को धमकाने के लिए इर्द गिर्द किसी पत्थर की तलाश करने लगा. तभी साथ के कमरे में रहने वाला एक दोस्त आ धमका. मुझे पत्थर उठाते हुए देखकर आश्च्रर्य से बोला “ ये तू क्या कर रहा है भाई?”

मैंने टालते हुए कहा “ देख नहीं रहा है पत्त्थर इकट्ठे कर रहा हूँ“

तभी उसकी नज़र इधर –उधर बिखरी हुई तस्वीरों पर पडीं. अब वह पूरी तरह से हैरत में आ गया. बोला “ यार मजनूँ को लोग दीवाना समझ कर पत्थर मारते थे. तू तो ग़ज़ब का मजनू निकला जो लैला की तस्वीरों पर पत्थर मार रहा है. ”

मैंने कहा “ये लैला की नहीं, फर्क फर्क लडकियों की तस्वीरें हैं “

“ अच्छा ! तू तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला. ” उसने सच्चे आश्चर्य के साथ कहा “हमारे सामने तो हर वख्त प्रिंसिपल ऑफ़ फ्लाईट और एयर नेवीगेशन की किताबें पढता रहता है. इतनी सारी लैलाएं कहाँ से ले आया? “

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ. पूरी कहानी सुनाने लगा तो इसी बीच वह शैतान बन्दर सारी तस्वीरों के चीथड़े कर देगा. अतः डाल पर बैठे बन्दर की ओर इंगित करके कहा “वो बन्दर जो तस्वीरें उठा ले गया है पहले उन्हें वापस छीनने में मदद कर, फिर सब किस्सा बाद में बताऊंगा”

उसने पूछा “ वो भी लड़कियों की ही तस्वीरें हैं?” मैंने हामी भरी तो बोला “फिर बिलकुल चिंता मत कर. बन्दर तो हनुमान जी के सिपाही होते हैं. आदि-ब्रह्मचारी का सैनिक लड़कियों की तस्वीरों का क्या करेगा? धीरज रख कर बैठ. खुद ही फेंक देगा. ”

मैंने बेसब्री से कहा “नहीं फेंकी तो?” वह बोला “ अरे यार, वो सुंदरियां हैं, बेताल थोड़ी हैं कि पेड़ पर चढ़कर उल्टी लटकी रहेंगी. ना ही शिव मंदिर का घंटा हैं कि पीपल पर लटक कर बजता रहेगा. फिर पत्थर वत्थर मारने से ये भी संभव है कि कैच लेकर फिर उसी पत्थर से मारकर हमारी खोपड़ी फोड़ दे. साला रोज़ इसी पेड़ पर बैठकर पीछे मैदान में क्रिकेट का खेल देखता रहता है. “

मैं गुस्से में आकर पत्थर दोस्त के सर पर दे मारने वाला था कि अचानक उसकी भविष्यवाणी सच निकल आयी. बन्दर ने दोनों तस्वीरों को उलट पुलट कर देखा. दोनों पसंद नहीं आयीं तो उन्हें नीचे फेंक दिया और खांव खांव करता हुआ हमें डराने की मुद्रा में पीपल की डाल को हुमच हुमच कर हिलाने लगा. मैंने लपक कर दोनों तस्वीरें उठाईं. अपने दोस्त से दूर वाली तस्वीरें उठाकर लाने को कहा और बड़े प्यार से अपनी किस्मत का परीक्षा फल देखने में लग गया. दो में से एक तस्वीर तो उस दुष्ट बन्दर ने नोच कर फाड़ डाली थी. दूसरी एकदम साबुत थी. बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख रही थी.

यह लडकी इलाहाबाद की थी. पिता ऊंची पोस्ट पर थे. मेरी जाति की थी अर्थात माँ व पिताजी की स्वाभाविक पसंद यद्यपि व्यक्तिगत रूप से जाति से मुझे कुछ लेना देना नहीं था. मेरी ओर से आनन फानन में फैसला हो गया. “यही तो है वो“ पर उसे और उसके घर वालों को तो एक मौक़ा देना ही था कि मुझे देख सकें, भले मैं उसे देखने की कवायद न करना चाहूँ. अब इलाहाबाद का चक्कर लगाना आवश्यक था. तुरंत. इससे पहले कि वहाँ भी चट मंगनी पट ब्याह का विशेषज्ञ कोई एन आर आई आ धमके. संगम पर गंगा यमुना के मिलन के पहले ही धाराएं सूख न जाएँ.

क्रमशः --------