बच्चों को सुनाएँ – 5 रसगुल्ला r k lal द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बच्चों को सुनाएँ – 5 रसगुल्ला

बच्चों को सुनाएँ – 5

“रसगुल्ला”

आर ० के ० लाल

रजनीश ऑफिस से आ कर सोफे पर पसर गया था। उसके चेहरे पर बहुत तनाव था परंतु आंखों की चमक बता रही थी कि जैसे उसने कोई जग जीत लिया हो। उसकी आँखों में कई सपने आ जा रहे थे। उसकी पत्नी सोनल उसे देख कर बोली, “आज दफ्तर में कौन सा तीर मार कर आए हो? रुको, पहले मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर ले आती हूं”।

सोनल से रजनीश से कहा ने कहा, “नहीं डार्लिंग! ऐसा कुछ भी नहीं है, बस आज एक पुराना केस निपट गया है। मेरे साहब भी बहुत खुश हो गए हैं। तुम जल्दी चाय पिला दो और तैयार हो जाओ। दोनों बच्चों को भी तैयार कर लो। आज हम सब फिल्म देखने चलते हैं। डिनर भी हम लोग होटल मानसरोवर में करेंगे”। सोनल बोली, “अरे यार, क्या कह रहे हो? तुम्हें पता है कि मानसरोवर होटल कितना महंगा है। वह एक फाइव स्टार होटल है। वहां के बिल का भुगतान करने के लिए कहां से आएगा इतना पैसा”? रजनीश ने कहा तुम चिंता न करो, सब मेरे ऊपर छोड़ दो। आखिर तुम ही तो कहती रहती हो कि मैं कहीं तुम्हें ले नहीं जाता, बच्चे भी घर में ही पड़े रहते हैं। आज जब कह रहा हूं तो तुम चलने की जगह सी बी आई की तरह पूछ-ताछ कर रही हो”।

मगर सोनल को तो यह बात हजम ही नहीं हो रही थी कि रजनीश के पास फिजूलखर्ची के लिए इतने पैसे हैं। रजनीश सरकारी कार्यालय में एक सेक्शन अफसर ही तो था। उसकी तनख्वाह में घर का खर्च, बच्चों की फीस आदि बड़ी मुश्किल से हो पाता था। हमेशा कुछ न कुछ कमी रह ही जाती थी। सोनल सोचने लगती है कि हमारी शादी को तेरह साल हो चुके हैं लेकिन हम एक बार भी ठीक से अपनी एनिवर्सरी नहीं मना पाए हैं। उस दिन रजनीश हमेशा समोसा का चोगा और छोला भटूरा लाता है। हम लोग हनुमान जी के मंदिर जाते हैं और मिठाई के नाम पर बूंदी के लड्डू लाना कभी नहीं भूलते । उस दिन मैं घर में रसेदार सब्जी और पूड़ी बनाती हूं। रात में हम कोठे वाले कमरे में चले जाते हैं और देर तक मोबाइल पर गाना जरूर सुनते हैं। गिफ्ट के नाम पर हमने एक दूसरे को दो अच्छे बेटे तो दे ही रखे हैं। हम इसी में खुश हैं कि हमारे बच्चे कितने संस्कारी बन रहें हैं। स्कूल में उनकी अच्छी रैंक आती है। सोनल ने फिर रजनीश से कहा कि तुम्हें बताना ही पड़ेगा । क्या तुम्हारा प्रमोशन हो गया है अथवा बोनस मिला है? जब तक तुम नहीं बताओगे तब तक मैं कहीं नहीं जाऊंगी ।

तभी रजनीश के मोबाइल पर किसी की काल आ गयी, तो सोनल ने सुना कि वह कह रहा था कि सर, सब हिसाब हो गया है। आप का भी। अब तो सोनल का शक पक्का हो गया था कि आज रजनीश ने कुछ गलत किया है। सोनल खुश होने के बजाए उदास हो गयी। वह नहीं चाहती थी कि घर में गलत पैसे आयें। उसने सच जानने की ठान ली। रजनीश अब मुसीबत में ही पड़ गया था। अब उसके पास न बताने का कोई बहाना भी नहीं था। उसने सब कुछ बताने का मन बना लिया, तभी उसे अपने दोस्त रामकुमार की बात याद आई कि अगर तुम अपने घर पर शांतिपूर्वक रहना चाहते हो तो अपनी पत्नी को सिर्फ उतना ही बताओ जितना उसकी जरूरत है। अगर थोड़ा भी ज्यादा बताया तो समझो मुसीबत में फंसे और तुम्हारा जीवन नर्क बन सकता है। कई लोग तो अपनी पत्नी के प्यार में पड़कर अपने अतीत की गलतियां भी बता देते है, फिर तो दांपत्य जीवन में कड़वाहट घुल जाती है। रजनीश ने बात बनाई, “तुम बेवजह मुझ पर शक कर रही हो। मैंने धीरे धीरे करके कुछ पैसे इकट्ठे कर लिए थे, इसलिए आज सोचा कि तुम्हें कहीं घुमा दूँ। इसी बहाने बच्चों का भी मनोरंजन हो जाएगा, बस इतनी सी बात थी”। सोनल ने रजनीश का पर्स देखना चाहा कि उसमें कितने रुपये हैं तो उसने मना कर दिया और कहा कि अगर तुम्हारा मूड नहीं है तो हम लोग कहीं नहीं जाते। सोनल ने कहा ठीक है, और प्रोग्राम स्थगित हो गया। सब अपने अपने अपने दैनिक कार्य में लग गए।

रात में सोनल ने फिर रजनीश से पूछा कि तुमने आज का प्रोग्राम क्यों स्थगित कर दिया जबकि बच्चे भी तैयार हो गए थे। अगर तुम मुझे सही बात बता देते तो हम अवश्य चलते। फिर सोनल ने कहा, “देखो! मैं भी पढ़ी लिखी हूँ लेकिन बच्चों को देख- भाल करने की वजह से कहीं जॉब नहीं करती इसलिए खर्च भी अपना हाथ दबाकर ही करती हूं। मैंने सारे शौक त्याग दिए हैं। तुम्हारी तनख्वाह से हम लोगों का खर्च चल जाता है और हम बच्चों के भविष्य के लिए थोड़ी-बहुत बचत भी कर लेते हैं। फिर भी यदि अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारी आमदनी से हमारा गुजारा नहीं हो पा रहा, तो मैं कोई काम ढूंढ सकती हूँ। मगर मैं कभी नहीं चाहती कि मेरे बच्चों की नजर में तुम गिर जाओ। अगर तुम बेईमानी करके बच्चों के लिए कुछ भी ले आओगे तो उन्हें कभी न कभी पता तो चलेगा ही। आजकल बच्चों को सब पता रहता है कि उनके पैरेंट्स कैसे हैं। उसी के अनुसार वे जिद करते हुए अपनी बात मनवाते हैं।

तुम्हारे लिए उनके मन में बड़ी इज्जत है। एक दिन मैंने पड़ोस के श्यामू से अपने बेटे को बात करते हुए सुना था। श्यामू एक नई साइकिल ले आया था और सब पर रोब झाड़ रहा था कि देखो मेरे पापा मेरे लिए कितनी महंगी साइकिल लाए हैं। वे ऐसी जगह नौकरी करते हैं जहां उनकी बहुत कमाई है। मैं सुन पा रही थी कि अपना बड़ा बेटा उससे कह रहा था, “तुम्हारे पापा जरूर गलत कमाई करते होंगे लेकिन मेरे पापा तो बड़ी मेहनत की कमाई का पैसा लाते हैं, कोई फिजूलखर्ची नहीं करते हैं, हमें बहुत प्यार करते हैं। मुझे तो बस एक अच्छा पापा चाहिए न कि महंगे खिलौने”।

सोनाली ने रजनीश से कहा, “मुझे तो तुम्हारी गलत कमाई से अपना शौक पूरा करने से कोई परहेज नहीं है, मगर मैं अपने बच्चों को गलत धन से नहीं पालना चाहती। वे अपने माँ - बाप से ही सीखते हैं। क्या तुम्हें “उपजे पूत पिता के धर्मा”, और “जैसी कमाई वैसी बरक्कत” वाली कहावते नहीं याद हैं। रजनीश चुपचाप सोनल की बात सुन रहा था उससे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था। फिर सोनल ने कहा,“छोड़ो तुम कुछ नहीं बताना चाहते तो न बताओ। बस एक काम करो। जो रसगुल्ले तुम लाए हो उसे अपने बेटों को देकर कहो कि बेटा रसगुल्ला तुम्हारे लिए मैं अपनी काली कमाई से लाया हूं। अगर तुम उससे कह सकते हो तो मुझे सब कुछ स्वीकार है।

रजनीश बहुत देर तक सोचता रहा। उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था। उसने सोनल से कहा, “मैं भटक गया था। मुझे दुख है कि मैंने गलत काम किया। मैं कसम खाता हूं कि अब ऐसा नहीं करूंगा। वह तुरंत घर से निकल गया और पैसे वापस करने के बाद ही लौटा। उसने रसगुल्ले की हांडी भी फेंक दी । अब सब समान्य हो गया था।

उनके दोनों बेटे यह सब सुन और समझ रहे थे। उन्होंने बस इतना कहा, “हम लोगों को आप दोनों पर नाज है क्योंकि हमारे खातिर मम्मी ने कहा और पापा ने अपनी गलती सुधार ली। हम भी वादा करते हैं कि हम कभी कुछ ऐसा नहीं चाहेंगे जिसके लिए आपको गलत काम करना पड़े। हर बच्चे के लिए उसके मम्मी-पापा ही पहले रोल मॉडल होते हैं”।

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