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बच्चों को सुनाएँ - 4 मल्टीमीडिया का कमाल

बच्चों को सुनाएँ – 4

मल्टीमीडिया का कमाल

आर० के० लाल

दो सगे भाइयों में देवांश बड़ा और हिमांशु छोटा था । वैसे तो दोनों की उम्र में केवल एक साल का अंतर था परंतु दोनों एक ही स्कूल में एक ही क्लास में पढ़ाई कर रहे थे। दोनों की इंटर की परीक्षा खत्म हो चुकी थी । दोनों बच्चे पढ़ने में अति निपुण थे, सदैव अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते थे। उसके पिता चाहते थे कि उनके दोनों बेटे अपनी रुचि के हिसाब से अपना प्रोफेशन चुने जिसके लिए वे उनकी पूरी मदद करना चाहते थे। उन्होंने उनकी रूचि पूछी तो दोनों ने बताया कि वे इंजीनियर ही बनना चाहते थे। उसके लिए वे दोनों “आईआईटी-जी” की तैयारी करने के लिए कोटा शहर जाकर एक कोर्स करना चाहते थे ताकि आसानी से उनका चयन हो सके।

उसके पिता ने सभी आवश्यक जानकारियाँ इकट्ठी की और हिसाब लगाया कि एक समय में वे एक ही लड़के को कोचिंग के लिए कोटा शहर भेज सकते थे क्योंकि वहाँ की फीस, रहने का खर्च आदि बहुत ज्यादा था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था की वे क्या करें। कोई उधार देने वाला भी नहीं था। घर वालों से राय सलाह के बाद यह निश्चित किया गया कि पहले बड़े लड़के को ही पढ़ने भेजा जाए। इस बात से हिमांशु और देवांश दोनों दुखी थे, दोनों साथ साथ पढ़ाई करना चाहते थे। मगर वे अपने पिता की परेशानियाँ भी समझ रहे थे। हिमांशु ने कहा, “ भैया तुम फिकर मत करो। पहले तुम इंजीनियर बन जाओ फिर मेरे लिए कोशिश करना वैसे भी मैं तुमसे एक साल छोटा हूँ। अगले साथ पढ़ लूँगा” ।

देवांश ने कहा, “लेकिन हमारे सपनों का क्या होगा और हम इंजीनियर बन कर डिफेंस में साथ साथ कैसे जाएंगे”? हिमांशु ने समझदारी से जवाब दिया, “तुम तो जानते हो कि मैं स्वयं अपने आप परीक्षा की तैयारी करने योग्य हूं, बस तुम हमें वहां से गाइड करते रहना फिर देखना हम दोनों कैसे आईआईटी निकालते हैं। मैं जानता हूं कि मेरे पिता एक ईमानदार व्यक्ति हैं । मुझे उन पर नाज है कि इस महंगाई के जमाने में भी वह हमें इतने महंगे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं और हमारे लिए समस्त आधुनिक सुख सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं। उन्होंने मुझे कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी आदि सब कुछ तो लाकर दिए हैं। हमें उन पर कोई ऐसा दबाव नहीं डालना चाहिए जिससे वह परेशान हों और हमारे लिए कोई बेईमानी का काम करने का प्रयास करें”।

देवांश मान गया और कुछ दिनों बाद कोटा चला गया। वहाँ से देवांश ने बताया, “उसे बहुत ही सुनियोजित ढंग से पढ़ाया जा रहा था जो अपने जिले में संभव नहीं था। हर एक प्रश्न को एक अलग नजरिए से प्रस्तुत किया जाता है और उसका हल वैज्ञानिक तरीके से समझाया जाता है। उसने कहा, “हिमांशु अगर तुम यहाँ होते तो तुम मुझसे अच्छा परिणाम लाते। काश हम लोग साथ-साथ पढ़ पाते”। हिमांशु ने उसे समझाया, “भैया तुम दुखी मत हो और मेरी चिंता भी मत करो, केवल तुम मन लगाकर पढ़ो। मैं यहाँ पढ़ तो रहा हूँ” ।

देवांश ने यह बात सुन तो ली मगर उसके मन में हमेशा अपने छोटे भाई के लिए चिंता बनी रहती थी वह चाहता था कि भले ही मैं इंजीनियर ना बन पाऊँ लेकिन मेरा छोटा भाई जो मुझे बहुत प्यारा है आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में अच्छे अंको से सफल हो जाए। देवांश को जो भी नोट्स मिलता, उनकी फोटो कॉपी करा कर वह उसे हिमांशु को पोस्ट कर देता जिससे हिमांश भी पढ़ाई कर लेता। मगर इसमें बहुत समय लगता था । दोनों के लिए समय बहुत कीमती था।

एक दिन की बात है देवांश के मोबाइल पर व्हाट्सएप में कई मैसेज आए। किसी ने गुड मॉर्निंग लिखा था तो किसी ने अपना हाल-चाल लिखा था। देवांश भी सबको जवाब दे रहा था, तभी उसने सोचा कि क्यों न व्हाट्सएप के सहारे मैं और हिमांशु पढ़ाई करें। उसने अपने छोटे भाई से भी पूछा यह कैसा रहेगा जिसके पास भी एक स्मार्ट मोबाइल था। देवांश का प्रस्ताव सुनकर हिमांशु उछल ही गया उसने कहा भैया क्या हम दोनों साथ-साथ पढ़ सकते हैं? फिर बोला कि मुझे तो यह ठीक लगता है परंतु सभी लोग कहते हैं कि पढ़ने वाले बच्चों में स्मार्ट फोन के इस्तेमाल और सोशल मीडिया की लत दिनों दिन बढ़ती जा रही है फल स्वरुप वे बिगड़ रहें हैं। उनको इस से बचाने के लिए और स्क्रीन टाइम फिक्स करने के लिए सलाह दी जाती है। सर्वेश मेहतानी जिन्होंने आईआईटी जेजेई टॉप किया था, ने भी बताया था कि उन्होंने दो साल तक स्मार्टफोन छोड़ दिया था और सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरी बना ली थी क्योंकि उससे उनकी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता था।

देवांश ने समझाया कि यदि इन चीजों का इस्तेमाल सही तरीके से किया जाए तो उससे फायदा हो सकता है क्योंकि बच्चों की लड़ाई फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे मल्टीमीडिया से नहीं है बल्कि इस बात से है कि वे उसका दुरप्रयोग करके कैसे बर्बाद हो रहें हैं । उनको आज सीखना चाहिए कि वे उनका सदुपयोग कैसे करें। आज इस माध्यम से हर एक स्तर पर पढ़ाई के लिए विभिन्न प्रकार से सुविधाएं उपलब्ध हैं । पहले घंटो घंटो बैठकर स्टूडेंट्स को परीक्षा के लिए नोट्स तैयार करना पड़ता था लेकिन अब समय के साथ तरीका भी बदल चुका है। मैं तो मानता हूँ कि अगर सोशल मीडिया की उपयोगिता को लेकर बच्चों को सही प्रयोग करने की बात बताई जाये तो उनका भविष्य उज्जवल बन सकता है। पढ़ने वाले बच्चे अपना स्वयं ग्रुप तैयार कर सकते हैं । किसी प्रकार की मदद हेतु इससे अन्य सहपाठियों या अध्यापक से ऑनलाइन से तेज और बढ़िया कनेक्शन संभव है। सूचनाओं और स्टडी मेटेरियल का आदान प्रदान सुविधाजनक होता है। फीडबैक भी तुरंत मिल जाता है। कहने का मतलब है कि व्यर्थ की गपशप करने के बजाय सार्थक रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से विद्यार्थी भरपूर सफलता हासिल कर सकते हैं।

फिर दोनों ने तय किया कि चलो हम ही पहल करते हैं । देखते हैं कि क्या होता है। हम किसी को कुछ नहीं बताएगे और साथ साथ पढ़ेगे। दोनों ने एक अच्छे नेट सर्विस प्रोवाइडर से एक सस्ता पर ज्यादा तेज डाटा प्रदान करने वाला पैकेज ले लिया। अब देवांश दिनभर कोचिंग क्लास में पढ़ता और शाम को होम असाइनमेंट करता। जिन कागज में वह यह सब लिखता उसकी फोटो खींचकर तुरंत हिमांशु को व्हाट्स अप्प द्वारा भेज देता। वह रात भर जाग कर उन्हें पढ़ डालता और उस पर नए नए प्रश्न भी उठाता। देवांश ने अपने कमरे में एक रोलिंग ब्लैक बोर्ड लगा लिया था। वह प्रश्नों को उन पर इस प्रकार करता कि सामने रखा कैमरा पूरा वीडियो बना सकें। वह उन वीडियो को भी तुरंत हिमांशु को भेजता और हिमांश उसे देख कर अपनी पढ़ाई पूरा कर लेता। इतना नहीं ही नहीं कभी-कभी व्हाट्सएप के जरिए वीडियो कॉलिंग भी करते और आपस में बात करते। यू ट्यूब पर अनेकों तरह की उपलब्ध शिक्षण सामग्री का भी वे उपयोग करते थे हाँ उनकी प्रामाणिकता की परख जरूर कर लेते थे। नेट चलते समय आने वाले अवांछित पॉप अप्स को वे दूर करते रहते, साथ ही अपने पर भी पूरी तरह नियंत्रण रखते थे।

कोचिंग क्लास में किसी प्रकार की रिकॉर्डिंग की मनाही थी इसलिए देवांश अपने क्लास रूम से इन सब नहीं कर सकता था परंतु वह घर पर तो कर सकता था। वे विडियो काल द्वारा डिस्कशन करते। हिमांशु कभी-कभी बहुत अच्छे प्रश्न करता, देवांश उन प्रश्नों को कोचिंग क्लास में अपने टीचर से पूछता। टीचर कहते कि तुम्हारा दिमाग तो बहुत तेज चलता है तुम इस तरह के प्रश्न कहां से लाते हो। देवांश को पता था कि यह सब हिमांशु का इंटेलिजेंस है ।

साल के अंत में दोनों इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गए तथा आईआईटी में प्रवेश ले लिया । स्कूल वालों ने उन दोनों का और उनके माता-पिता का सम्मान एक समारोह में किया। जब देवांश और हिमांशु से पूछा गया है कि यह कैसे संभव हो सका तो उन्होंने अपना रहस्य खोलते हुये बताया यह सब मल्टीमीडिया का, खासतौर से व्हाट्सएप के कमाल से संभव हुआ है। देवांश और हिमांशु के माता-पिता ने उन पर गर्व व्यक्त किया कि एक खर्चे में दोनों बच्चे किस तरह समझदारी से सफलता प्राप्त कर ली है। बच्चे कहते हैं जहां चाह वहां राह है।

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