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“सब्जी वाला लड़का”

आर 0 के 0 लाल

बाबूजी सब्जियां ले लीजिए, सस्ती और हरी सब्जियां ले लीजिए। मोहल्ले की गली में एक लड़का काफी देर से आवाज लगा रहा था । एकांशी किचेन में अपने पति और बेटे के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी और साथ ही समाचार भी सुन रही थी । कोरोना के समय केवल सब जगह उसी की बातें हो रही थी, एकांशी के पति कुछ बता रहा थ परंतु सब्जी बेचने वाले की तेज आवाज के कारण उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद सब्जी बेचने वाला घर के दरवाजे को खटखटा कर भी सब्जी लेने की हांक लगाने लगा। अब तो एकांशी से रहा नहीं गया। कहा कि इस तरह कोई सब्जी बेचता है? उसने अंदर से आवाज लगाई, “भई! मुझे कुछ नहीं चाहिए, सब्जियां अभी घर में हैं”। एक – दो मिनट तक तो सन्नाटा रहा लेकिन फिर दरवाजे पर खटखट की आवाज होने लगी तो एकांशी नाश्ता बनाना छोड़ कर दरवाजे पर आ गयी । देखा कि आवाज लगाने वाला कोई नौ - दस साल का एक मासूम लड़का था जिसके साथ एक छोटी लड़की भी थी। दोनों एक बड़े ठेले पर बहुत थोड़ी सी सब्जियां रखे हुये थे। दोनों नंगे पैर थे और मास्क भी नहीं लगाए थे। एकांशी ने उन्हें डांटते हुये कहा, यह क्या बदतमीजी है? अगर मुझे कुछ चाहिए होगा तो मैं तुम्हें बुला कर ले लूंगी। तुम गलियों में आवाज लगा करके घूम तो रहे हो फिर दरवाजा खटखटाने की क्या जरूरत है”? तुम्हारे घर वाले कहाँ हैं, तुम इस छोटी सी लड़की को भी लेकर ऐसे घूम रहे हो तुम लोगों का कोरोना को डर नहीं लगता क्या”? वह छोटा लड़का चुप-चाप डांट खाता रहा पर एकांशी की बात का बुरा नहीं माना। वह बोला, “माताजी सुबह से अभी तक बोहनी भी नहीं हुई है। कोई खरीदने वाला नहीं मिला , आप ही कुछ सब्जियाँ ले लो”।

एकांशी ने कहा, क्या लूँ, तुम्हारे पास तो बहुत कम सब्जिया हैं । थोड़े से आलू, भिंडी, करेला के अलावा कुछ भी नहीं है। क्या तुमने बची हुई सब्जियां बेचने का काम शुरू किया है, तुम्हारे पास शिमला मिर्च, परवल आदि होता तो मैं शायद ले लेती। फिर उससे पूछा, “ तुम किसका ठेला ले कर आ गए हो, अभी तुम्हारी उम्र ठेला लगाने की तो नहीं लगती”। वह लड़का कुछ बोल नहीं रहा था सिर्फ कातर भाव से एकांशी को घूरे जा रहा था। फिर उसने कहा, “आप आलू ही ले लीजिए। आलू खराब नहीं होती है, रखी रहेगी, बाद में काम आ जाएगी। एकांशी ने उससे कहा कि क्या कोई जबरदस्ती सब्जी लेता है? वह लड़का गिड़गिड़ाने लगा, “माताजी अगर आप कुछ सब्जी ले लेंगी तो मैं अपनी इस छोटी बहन को कुछ खाने का सामान खरीद लूँगा । बेचारी कल से ही भूखी है। कल से इसने कुछ नहीं खाया है । कहते कहते उसकी आंखों में आंसू आ गए। यह देख कर एकांशी द्रवित हो गई। उसे उन पर थोड़ी सी दया आने लगी , बोली, “अच्छा रुको मैं अभी आती हूं”।

एकांशी वापस रसोई में गई और वहां से कुछ रोटियां और सब्जी लेकर एक थैली में रखकर अपनी बेटी को उन बच्चों को देने के लिए बोली। उन बच्चों को मास्क भी देने को कहा । अपनी बेटी से यह भी कहा कि तुम जाकर देखो कि दो बच्चे कैसे अपनी मेहनत से कमाई कर रहे हैं। एकांशी जानती थी कि बच्चे अक्‍सर अपने बड़ों का ही अनुसरण करते हैं। बड़े जैसा करेगें बच्‍चे वैसा ही सीखेगें। इसलिए अपने बच्चे को कमजोर और जरूरतमंदों के प्रति दया भाव रखना सीखाने के उद्देश्य से वह अपनी बेटी को यह सब बता रही थी ।

लेकिन उस लड़के ने मुफ्त में खाने का समान लेने से मना कर दिया और कहा, “माताजी मुझे कुछ मत दीजिए । सब्जी बेचने के बाद जो भी पैसे मिलेंगे, मैं उससे कुछ खाने-पीने का सामान खरीद लूंगा। एकांशी को समझ में नहीं आ रहा था कि यह लड़का किस किस्म का है जो इतने गुरूर के साथ अपनी मेहनत की कमाई का ही खाने की सोच रहा था। एकांशी ने ज़ोर दे कर उन दोनों बच्चों को ठेले पर ही बैठ जाने को कहा और जिद की कि कोई बात नहीं, तुम दोनों इसे खाकर नाश्ता कर लो। मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आती हूं। मैं तुम्हारी सब्जी भी खरीद लूंगी लेकिन तुम बताओगे कि तुम्हारे साथ क्या दिक्कत है? तुम्हारे पापा क्यों नहीं ठेला चला रहे हैं।

एकांशी की बेटी भी जानना चाहती थी कि इन बच्चों की क्या मजबूरी है। उसने अपने मोबाइल में उन बच्चों की फोटो भी खींची । एकांशी के बहुत समझाने पर उस लड़के ने अपनी बहन को ठेले पर उठा कर बैठा दिया और खाने का समान उसे दिया जो खुश होकर खाने लगी ।

उस लड़के ने एकांशी को बताया, “मेरे पास खरीदने के लिए ज्यादा पैसे नहीं थे इसलिए इतनी ही सब्जियां बेच रहा हूं। यह लड़की ठेला धकेलने के लिए मेरे साथ निकल पड़ी है। इसी बीच लड़की बोली मेरे पापा तो मर गए हैं और मम्मी घर में बीमार पड़ी है। लड़के ने बताया कि पापा के जाने के बाद मेरी मम्मी सड़क पर एक छोटी सी दुकान लगती हैं और कई घरों में बर्तन साफ करने का कम करती हैं। मगर आजकल कोरोना - महामारी में सबने काम छुड़ा दिया है। कई दिनों से वह बीमार है इसलिए घर में कुछ खाने को नहीं है। मेरे घर के बगल वाला पप्पू कभी कभी खाने को कुछ दे जाता था तो हम खा लेते थे मगर उससे हम लोग का पूरा पेट नहीं भरता था, इसलिए हमने सोचा कि कोई काम करना चाहिए। मुफ्त में तो कोई कुछ देने वाला नहीं ।

पापा ठेला चलाते थे और सब्जी बेचने का काम करते थे। मैंने भी सोचा कि मैं भी यह काम कर लूँगा। मैंने मम्मी को बताया तो उसने कहा मेरे पास तो कुल बीस रुपए ही है, तुम उसे ले लो । इतने में तो कुछ नहीं हो सकता था। मैं कोई दूसरा काम तलाश करने लगा परंतु लॉक डाउन में सब कुछ बंद हो गया है। चाय की दूकान भी बंद है। मजदूरों के पलायन हुये मजदूर लोग भी यहाँ पहुँच गए हैं। उनकी हालत भी खराब है। अब आप ही बताइए माता जी मैं क्या काम करूं मुझे कौन काम देगा । इतने छोटे बच्चे को कोई नहीं पूंछता शायद इसीलिए बच्चे भीख मांगने लग जाते हैं। एक बार तो मेरे मन में आया कि घर से भाग कर किसी साधू के मठ में चला जाऊ और वहाँ आराम से जिंदगी जिया जाय , पर मम्मी के कारण ऐसा नहीं कर सकता था। मेरे मन में आया कि कर्तव्य पालन जीवन की सर्वोपरि सम्पदा है । मेरे पापा कहा करते थे कि मुसीबत किसी पर भी आ सकती है। जिसने मुसीबत का सामना किया वही विजयी होते हैं। वे यह भी कहते थे कि यदि आपका समय ठीक नहीं चल रहा तो कोई जल्दी मदद नहीं करता। मुसीबत थोड़े समय के लिए होती है और किसी की लगन और मेहनत बुरे समय को भी अच्छे समय में बदलने की क्षमता रखती है।

माताजी! ठेला लगाना तो मेरे घर का काम है, मेरे पापा भी ठेला लगाते थे इसमें बहुत ज्यादा सीखने की कोई जरूरत नहीं पड़ती है बस केवल इसमें कुछ सामान रख कर थोड़ा मुनाफा लेकर बेच दो तो ईमानदारी से भी पैसा मिल जाएगा और इज्जत भी होगी । कहीं चोरी चमारी तो मैं कर नहीं रहा हूं। यही सब सोच कर होकर हम सब्जी लगाने का काम करना चाहते हैं । मेरे पापा जैसा करते थे हम जानते हैं । हम दोनों ने अपनी चाची से कुछ पैसे मांगे। दो दिन तक मिन्नतें करने के बाद उसने कुल बीस रुपये दिए थे। दस-दस रुपये पप्पू और मेरे दोस्त ने दिये। हमने पप्पू की मम्मी के सामने हाथ पैर जोड़े तो उन्होंने भी बीस रुपये यह कहते हुये दिये कि शाम को वापस कर देना नहीं तो मैं तुम्हारी तराजू ले लूँगी। अब हमारे पास जीतने रुपए हो गए थे उससे केवल इतनी ही सब्जी मिल पायी। दुकानदार ने हरी धनिया और मिर्ची तो फ्री में दे दी । हम ठेले पर उसे रखकर बेचने निकल पड़े। दो घंटे से हम चक्कर लगा रहे हैं मगर हुमसे कोई कुछ ले ही नहीं रहा है। हमें समझ में नहीं आता कि हम क्या करें। इसीलिए हमने साहस करके आप का दरवाजा खटखटाया था। ईश्वर ने हमारी सुन ली और आप बाहर आ गईं। हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि कुछ ले लीजिए ताकि हम आज का खाना खरीद सकें। यही मेरी कहानी है। मैं मेहनत करके जीना चाहता हूं किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े तभी अच्छा है। मगर अब लग रहा है कि मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा।

एकांशी को लगा जैसे वह कि बड़े व्यक्ति से बात कर रही हो ,यह छोटा बच्चा कितना समझदार हो गया है। एकांशी उसकी मदद करना चाहती थी । वह चाहती तो उसे दो चार सौ रुपए वैसे ही दे सकती थी परंतु उससे उस लड़के का उभरता व्यक्तित्व मर जाता और वह अपने सिद्धांतों कि रक्षा नहीं कर पाता, इसलिए एकांशी ने केवल उससे रोज सब्जियाँ लेने का वादा किया। साथ ही एकांशी ने एक अन्य सब्जी वाले को पाँच सौ रुपए एडवांस देकर कहा, “इसे रोज दिन भर बेचने की सब्जियां दे देना और शाम को उससे पैसे ले लेना । यह बात उस लड़के को मत बताना”। कुछ ही दिनों में वह लड़का लगभग सौ रुपए रोज़ कमाने लगा । उसकी मम्मी भी ठीक हो गयी है। इस प्रकार लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो रहा है।

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