बच्चों को सुनाएँ – 6 समय की कमी r k lal द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बच्चों को सुनाएँ – 6 समय की कमी

कृष्णा के पड़ोस में केशवजी अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे। उनके एक ही बेटी थी जिसकी शादी उन्होंने दूर के शहर में कर दिया था। अचानक एक दिन हार्ट की बीमारी के कारण केशवजी की तबीयत खराब हो गयी। दोपहर का समय था। वह बेचैन पसीने से भीगे हुए बिस्तर पर पड़े थे। उनकी पत्नी किसी तरीके से उन्हें अस्पताल ले गईं । डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें कम से कम पंद्रह दिन अस्पताल में रहना पड़ेगा। अकेली होने के कारण उनकी पत्नी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह किसकी मदद लें । उनकी बेटी भी इतनी जल्दी घर नहीं आ सकती थी क्योंकि वह भी प्रेग्नेंट थी। हालांकि केशवजी को प्राइवेट वार्ड में एड्मिट किया गया था फिर भी उनकी पत्नी को एक मददगार चाहिए था जो सुबह-शाम दवा और घर से खाना अस्पताल पहुंचा दे। उन्होंने मोहल्ले के कई सज्जनों से अनुरोध किया परंतु कोई तैयार नहीं हुआ। मोहल्ले के सभी लोग संपन्न एवं धनाढ्य थे परंतु सबके पास समय की बहुत कमी थी। वे मोबाइल पर व्हाट्सएप के जरिए ही “गेट वेल सून” के मैसेज भेज कर अपना फर्ज़ निभा देते थे। जब उनकी पत्नी ने अस्पताल पहुंचे एक रिश्तेदार से कहा कि कल इन्हें जांच के लिए किसी दूसरे अस्पताल ले जाना है, “आप थोड़ा सा समय दे देते तो अच्छा होता” तो उन्होंने कहा, “कल तो मेरी बेटी के ससुराल वाले आ रहे हैं किसी और दिन आप कहें तो मैं समय निकाल सकता हूं”। फिर वे जल्दी ही वहाँ से निकल गए।

शाम को ऑफिस से आने पर कृष्णा की पत्नी संध्या ने उन्हें केशवजी के बारे में बताया और कहा कि उनकी पत्नी बहुत परेशान हैं । कोई मदद करने वाला नहीं है। मैं भी नहीं जा सकती क्योंकि घर का बहुत ढेर सारा है। बेटी श्रद्धा भी तो कई दिनों से बुखार में पड़ी है । कृष्णा ने कहा, “तुम चिंता मत करो, मैं कुछ करता हूं”। संध्या ने पूछा, “मगर इस समय तो तुम्हारे यहां ऑडिट चल रहा है और तुम अकाउंट अफसर हो इसलिए तुम्हें कहां समय मिलेगा” । उसने कहा, “मैं कोई व्यवस्था करके उनकी मदद करूंगा”। कृष्णा ने तुरंत केशवजी की पत्नी को फोन किया कि भाभी जी आप परेशान न हों। मैं अस्पताल आ रहा हूं, साथ में इस समय का खाना भी ला रहा हूं।

कृष्णा ने अस्पताल जाकर केशवजी का हालचाल पूछा और आवश्यक दवाइयों की व्यवस्था कर दी। उन्होंने उनकी पत्नी से कहा मैं प्रतिदिन इनके लिए खाना और दवा ला दूँगा आपको किसी से कहने की जरूरत नहीं है। उसके बाद समय निकालकर कृष्णा रोज सुबह और दोपहर को अस्पताल जाता। वह अस्पताल में ज्यादा नहीं रुकता था फिर भी उसे लगभग डेढ़ घंटे प्रतिदिन लगता था । इस समय को निकालने के लिए कृष्णा प्रतिदिन आधे घंटे पहले उठ जाता, अस्पताल जाते-आते ग्रोसरी और सब्जी खरीद लेता। उसने अपने बैडमिंटन खेलने और स्क्रीन टाइम को थोड़ा कट किया जिससे उसका समय बच सके।

पंद्रह दिन बाद केशवजी ठीक होकर अस्पताल से घर पहुंच गए। संध्या उनसे मिलने गयी तो उनकी पत्नी ने उनका बहुत आभार व्यक्त किया और बोली कि मैं मोहल्ले में लगभग सभी से प्रार्थना कर चुकी थी, मगर सभी समय की कमी की दुहाई देते रहे। कृष्णा भाई साहब से मैंने कहा भी नहीं था फिर भी उन्होंने अपने व्यस्त समय में से हमारे लिए समय निकाला। मैं जिंदगी भर उनका एहसान नहीं भूलूंगी। मुझे पता चला कि आपकी बेटी बीमार थी और उनके ऑफिस में इन्सपेक्शन हो रहा था , समझ में नहीं आता कि किस तरह सब मैनेज किया”। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया ।

संध्या ने कहा कि मेरे पति पर मुझे गर्व है। वे वास्तव में मानवता की मिसाल हैं । धन से कोई व्यक्ति महान नहीं होता बल्कि जो दूसरों की मदद करें वही महान है। उनके पास भी ढेरों काम हैं, वे घर का काम करते हैं, अपनी बेटी को पढ़ाते हैं, ऑफिस का काम करते हैं, रिश्तेदारी निबाहते हैं तथा साथ ही दूसरों की मदद करने में भी अपना समय देते हैं। फिर संध्या ने बताया कि पहले वे भी सभी की तरह ही आलसी थे परंतु एक घटना से उनकी पूरी जिंदगी ही बदल गयी । लगभग दस साल पहले एक दिन मेरे पति कृष्णा शाम को अपने किसी दोस्त के यहाँ स्कूटी से जा रहे थे । पास वाले ओवेरब्रिज पर पहुँचते ही अचानक वे सड़क पर गिर पड़े और चिल्लाने लगे । उनके गले से काफी खून निकाल रहा था। लोगों ने देखा कि उनकी गर्दन में पतंग उड़ाने वाला मँझा फंसा था । उसकी गर्दन काफी कट गयी थी। कृष्णा काफी डरे हुये काँप रहे थे। उधर से तमाम राहगीर, स्कूटर वाले जा रहे थे, वे कृष्णा को देखते और पतंग उड़ाने वालों को गाली देते हुये आगे बढ़ जाते । कोई कृष्णा की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था। तभी एक साइकिल वाला रुका । लोगों ने उसे बताया कि कृष्णा की गर्दन से बहुत खून बह रहा है, इसलिए कोई उन्हें उठा नहीं रहा है। कुछ लोग पुलिस को फोन कर रहें हैं। देर होने पर जान जाने का डर है।

उस व्यक्ति ने अपनी साइकिल वहीं खड़ी कर दी और वहां से गुजरते लोगों से उन्हें अस्पताल पहुंचाने का अनुरोध किया। ज्यादातर लोगों ने उत्तर दिया कि वे जल्दी में हैं वरना चलते । किसी ने भी अस्पताल जाने की जहमत नहीं उठाई । फिर उस व्यक्ति ने स्वयं कृष्णा को उन्हीं की स्कूटी पर बैठाकर पास के नर्सिंग होम ले गया। वहां उसने उसे डॉक्टर को दिखा कर पट्टी कराई। कई टांके उन्हें लगे थे। डॉक्टर पैसा मांग रहा था इसलिए वह व्यक्ति स्कूटी लेकर मेरे घर आया और हम सबको पूरा किस्सा सुनाया। कृष्णा के पापा तुरंत पैसे लेकर अस्पताल पहुंचे। वह व्यक्ति काफी देर तक वहां रहा । उसे अपनी साइकिल की भी चिंता नहीं थी। उसने कहा मैं रात की ड्यूटी पर जा रहा था । देर हो जाने के कारण आज मेरी ड्यूटी नहीं लगेगी, आप चाहे तो मैं यहां रह सकता हूं। मगर पापाजी ने उसे धन्यवाद देकर भेज दिया । बाद में पता चला कि उसे उस दिन की तनख्वाह भी गंवानी पड़ी थी । कृष्णा ने सोचा कि जब एक अंजान व्यक्ति मेरे लिए इतना कर सकता है तो मैं क्यों नहीं”? उसी दिन इन्होंने लोगों की मदद करने का प्रण कर लिया था और कहा था कि इसके लिए मेरे पास कभी समय की कमी नहीं होगी। वे समय निकालने के लिए अपना समय मैनेज कर लेते हैं”।

केशवजी की पत्नी ने कहा, “आजकल जिसे देखो वही कहता रहता है कि उसके पास समय नहीं है जबकि समय बचाने के लिए वह आज अनेकों मशीनों का उपयोग करने लगा है । समय की कमी के कारण हर व्यक्ति हर पल जल्दबाजी में रहता है जिससे तनाव, आपसी लड़ाई होती रहती है और लोगों के संबंध बिगड़ जाते हैं। समय की कमी का रोना रोते रहते से लोग अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाते फिर वे दूसरों के लिए क्या समय निकालेंगे”।

संध्या ने बताया कि कृष्णा हमें समझाते हैं कि सबसे पहले तो हमें अपनी सोच बदलनी होगी, समय की कमी के बहानों से बचना होगा । अगर हम समय न बर्बाद करें तो हमारे पास बहुत समय है, एक दिन में छियासी हजार चार सौ सेकंड। समय स्थिर तो है मगर बहुत फ्लैक्सिबल भी है जिसका निर्धारित समय पर अभीष्टम प्रयोग करके बहुत समय बचाया जा सकता है। पहले से पता कामों के साथ ही अप्रत्याशित कामों के लिए भी समय निकालने की कला हमें आनी ही चाहिए। हर वक्त समय की कमी महसूस करना हमारे आलसी दिमाग की उपज होती है। हमारा ज़्यादातर समय हमारे हाथ में होता है जिसे सतत प्लान और रिप्लान करके मैनेज किया जा सकता है।