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मानो न मानो


हम पढ़े लिखे लोग हर चीज को विज्ञान और तर्क के तराजू पर तोले बिना किसी बात पर विश्वास नहीं करते | यही हाल सुगंधा का था , वह टोने-टोटकों पर विश्वास तो दूर उनका मखौल उड़ाना उसकी आदत में शामिल था। जब उसका विवाह हुआ तो उसकी ननदों और सास से पता लगा कि वो अपनी ताई से अधिक मतलब नहीं रखते क्योंकि वो टोने-टोटके करती है | पहले भी पंजाब में इस-टोनों टोटकों के प्रचलन के बारे सुन रखा था लेकिन विश्वास तो था नहीं ,सो सुगंधा ने उनकी बात को भी अनसुना कर दिया | कुछ समय बाद सुगंधा का जालंधर में उसके पति की ताई जी के घर जाना हुआ| वहाँ उन्होंने बातों के दौरान सुगंधा को आगाह किया कि सम्भल कर रहना तुम्हारा सौरा (ससुर) टोने करता है | सुनकर उसे बड़ी कोफ़्त हुई कि एक दूसरे पर इलज़ाम लगा रहे है, खैर उसे तो विश्वास ही नहीं था |

फिर जब वह एक बार ससुराल की अन्य रिश्तेदारी में गयी तब भी दबे जबान से उसके ससुर के टोने करने के बारे में सुना और तुरंत ही एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल दिया | विवाह के लगभग तीन वर्ष बाद उसे दो बच्चे दे सुगंधा के पति अमेरिका चले गए| इसके बाद सुगंधा के श्वसुर ने उसे काफी परेशान करना प्रारम्भ कर दिया| उसे और उसके बच्चों को सिर्फ उसका बनाया खाना ही मयस्सर था। फल मेवे मक्खन आदि सब ससुर और देवर ही खाते थे। नन्हे बच्चे भी फल तो क्या एक टॉफी के लिए तरसते थे। पति की चिट्ठियां भी धीरे धीरे उस के लिए कम हो रही थी , लेकिन पिता और भाई के नाम आती रहती थी, फोन घर में था नहीं| उसका पति रुपये पैसे भी अपने भाई और पिता को ही भेजता था जो सुगंध को एक पैसा नही देते थे। उसे अपने और अपने बच्चों की जरूरतों के लिए मायके से ही मांगना पड़ता था।सास का देहांत पहले ही हो चुका था |कुछ समय बाद पति की चिट्ठियां और बातचीत बिलकुल बंद हो गयी|

घर में ससुर के अत्याचार और उसपर पति का विछोह और विरक्ति सुगंधा को दिन पर दिन तोड़ रहे थे| मगर आँसुओं के समंदर में डूबी जिंदगी, रिश्तेदारों और मित्रों के - "बच्चों के लिए तो आएगा"-इस कथन की क्षीण सी नैया पर सवार उम्मीद के चप्पू चलाइये जा रही थी | सुगंधा प्राणपण से ससुर ,देवर और ब्याहता ननदों की सेवा सहित सारे कर्तव्य निभा रही थी |

एक दिन सुगंधा पीछे वेड़े में जाने के लिए ससुर के कमरे से गुजरी तो देखा वह उसके पति की जन्मपत्री फैलाये उसपर रोली ,हल्दी और काजल के टीके लगा कर उसपर चावल कपूर आदि रख रहे हैं एक बार तो वे उसे देखकर सकपकाए तुरंत ही सम्भल गए मुख पर वही कुटिल मुस्कान थी | सुगंधा ने पूछा पापा आप ये क्या कर रहे हैं | बोले -"उसे बुलाने के लिए कर रहा हूँ|" सुगंधा ने कहा ,"उसके लिए तो आपका एक बार कहना ही काफी हैं क्योंकि वे तो भगवान की तरह मानते हैं आपको|" जवाब था कि अरे अमेरिका का जादू इतना माढ़ा (कम) नहीं होता |

सुगंधा को यह तो पता ही था कि वे बिलकुल नहीं चाहते उनका बेटा वापिस आये | इसलिए कुछ और ही कर रहे होंगे |अब पति की ताई और अन्य रिश्तेदारों की बात पर तो यकीन हो गया था लेकिन टोनों पर अब भी सुगंधा को यकीन नहीं था |

एक दिन शाम को जब ससुर कहीं बाहर गए हुए थे तब उनके एक मित्र शास्त्री जी आये जो अन्य मित्रों के साथ ताश खेलने आते थे | ताश खेलना ससुर के लिए एक जूनून था | जब उनकी पत्नी यानि कि सुगंधा की सास मृत्यु शैया पर पड़ी थी तब भी वो बाहरला कमरा बंद कर चार पांच दोस्तों के साथ ताश खेलने में व्यस्त होते थे|

सुगंधा ने शास्त्री जी को ससुर के जल्दी वापस आने की सूचना देने के उपरांत उन्हें आदर से बैठने के लिए कहा और पानी ले आयी | तब तक नन्हे-नन्हे बच्चे अपनी आदत के अनुसार अपना नन्हा सा टी-सैट ले आए और झूठमूठ की चाय बना कर पीने का आग्रह करने लगे|

अचानक शास्त्री जी की ऑंखें भर आयी और वे भर्राये स्वर में बोले- बहु, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी | मैं तेरा और तेरे बच्चों का अपराधी हूँ |सुगंधा को कुछ समझ नहीं आया अतः वह उनकी ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगी | शास्त्री जी उठकर दरवाजे की ओर गए और सड़क पर झाँक कर बोले ,- बेटा, मैं ज्योतिषी हूँ और थोड़ी बहुत तंत्र-विद्या जनता हूँ | तेरे ससुर ने मुझसे कहा था कि मेरा बेटा किसी दुश्चरित्र स्त्री को शादी कर उसके दो बच्चों समेत घर ले आया हैं वह तो विदेश चला गया लेकिन इसे हमारे सिर पर छोड़ गया और अपनी सारी कमाई भी इस पर लुटा रहा हैं| अतः मेरे बेटे को उसके चंगुल से छुड़ाने का उपाय करो | वह स्वयं भी कई जादू टोने जनता था फिर भी पूरी तरह आश्वस्त होने के लिए उसने मुझसे भी तांत्रिक क्रियाये करवायीं | बेटा मैं माथा भी पढ़ता हूँ ,अब तेरा माथा देखकर जान गया हूँ कि तू तो सच्चरित्र ,कर्तव्यपरायण स्त्री है| मैंने तेरे पति की फोटो देखी हैं, तेरे बच्चों की शक्ल न केवल उससे तेरे श्वसुर से भी मिल रही हैं | मुझे नहीं पता था कि यह इतना नीच व्यक्ति हैं| सुगंधा की आँखों के सामने पति की उपेक्षा, एक पैसा भी न भेजना, बच्चों तक को कुछ न देना, अपने पिता द्वारा बच्चों को प्रताड़ित करने, बेरहमी से पीटने का भी विरोध न करना- सब घूम गया लेकिन प्रत्यक्ष में उसने यही कहा कि अंकल मैं इन बातों में विश्वास नहीं करती| तब शास्त्री जी बोले बेटी मैं जानता हूँ बहुत से पढ़े लिखे इन बातों पर विश्वास नहीं करते मगर यह भी सच हैं कि इस दुनिया के बहुत से रहस्य हम आज भी नहीं जानते |

तेरा ससुर तेरे विवाह के बाद से ही तुम दोनों पर टोटके करता आ रहा हैं लेकिन पिछले तीन सालों में तो इतने शक्तिशाली टोटके किये हैं कि उसके जीते जी तेरा पति तेरी और तेरे बच्चों की शक्ल चाह कर भी नहीं देख पाएगा| यहीं नहीं उसके मरने के बाद भी उसका आना मुश्किल हैं, आएगा भी तो टिक नहीं पायेगा| तेरे ही क्या वो जीवन में किसी भी स्त्री से विवाह नहीं कर पाएगा, न ही उसकी गृहस्थी बसेगी| इस बात पर जीवनपर्यन्त विछोह की पीड़ा की आशंका मात्र से सिहर जाने के बावजूद सुगंधा ने व्यंग से कहा ,"अगर यह सच भी होता हैं अंकल तो आप इतने बड़े ज्योतिषी हैं, आपके पास इसका तोड़ भी होगा|'

शास्त्री जी सोच में डूब गए और बोले बेटी ये तांत्रिक क्रियाये हैं इनके तोड़ बहुत कठिन होते हैं तू कैसे कर पायेगी ऊपर से यह दुष्ट सारे दिन घर रहता हैं तुझे न कहीं जाने कि आजादी है रात में तो बिलकुल नहीं | ऊपर से इन तंत्र क्रियाओं का इस नन्ही बच्ची पर विपरीत असर हो सकता हैं| इसलिए मैं तुझे एक निरापद उपाय बताता हूँ | सबसे पहले तो पति की एक फोटो पूजाघर में भगवान की फोटो के पीछे रख दे| मैं तुझे एक मंत्र दे जाऊंगा उसे पति की फोटो को पीछे से थोड़ा सा निकाल कर देखते हुए पढ़ना| ध्यान रखना इसे इस बात का पता न चले | यह कहकर वे दुखित मन से वापस चले गए ।

सुगंध ने उनके कहे अनुसार करना आरंभ किया। लेकिन जो व्यक्ति इस विद्या में इतना पारंगत था उसे कैसे न पता चलता | सुगंधा ने लाख कोशिश की, पति की फोटो पूजाघर में छिपाने की| फोटो फ्रेमों के अंदर भी रखी , लेकिन उसका श्वसुर उसे ढूंढ कर निकाल ही देता था | पहले से इन बातों पर अविश्वास के चलते सुगंधा ने यह प्रयत्न छोड़ ही दिया और कुछ समय बाद उसे ससुराल भी छोड़नी पड़ी|

इस बात को अट्ठारह साल बीत चुके थे | बच्चों को कठिनतम संघर्षों से अकेले पाल-पोस कर बड़ा करने वाली सुगंधा इस टोटके वाली बात को भूल चुकी थी |

एक दिन उसके पति फेसबुक पर उन तीनों को ढूंढकर उसके सामने आ खड़े हुए | अपने किये पर शर्मिंदा और माफ़ी मांगते हुए यह बताया कि उसके पिता अभी बीस दिन पहले दिवंगत हुए हैं तब से वह उन्हें ढूंढ रहा हैं |

आज सुगंधा को शास्त्री जी की एक-एक बात पर यकीन हो रहा था । जिस के कारण असह्य दुःख एवं क्षोभ के पलों में पति की शक्ल न देखने का प्रण लेने के बावजूद भी पति को निर्दोष और इस सबको अपनी नियति मान और खलनायक की जीवन से विदा समझते हुए बच्चों सहित पति को स्वीकार करने का निर्णय कर लिया |

लेकिन शास्त्री जी एक बात अभी भी बाकी थी और लो ! वह भी सच हो गयी | कुछ दिन तक अपने बच्चों को जो बड़े हो चुके थे ,अपने साथ अमेरिका ले जाने और उनके लिए सब कुछ करने के प्रलोभन देने के बावजूद सुगंधा का पति फिर गायब हो गया |

अंतिम बात - पत्नी और बच्चों को छोड़ने के 22 वर्ष बाद भी वह घर नहीं बसा सका था |

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