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प्यासे दिलों की दास्तां






उसका रमेश से लिपट जाना रमेश के लिए सुखद आश्चर्य था । रमेश उसे चाहता था पर अपनी हद समझता था, क्योंकि प्रिया एक शादी शुदा स्त्री थी । लेकिन जब आज उसकी ओर से प्यार का इजहार हुआ तो रमेश के लिए खुद को रोकना मुश्किल हो गया ।

वे दोनों देर तक एक दूसरे से लिपटे रहे और एक दूसरे के चुम्बनों की बौछार लग गई ।
प्यास मन, प्यासा तन कितने बरसों से ऐसे पल के इंतजार में था ,अब तक वक्त ने जख्म ही दिए थे । आज एक दूसरे के गले लगकर उन्हें बेहद सुकून मिल रहा था।

दोनो गम के मारे थे । आदमी दुनिया भर की सुख सुविधा पा ले, लेकिन यदि प्यार का मोहताज है तो उसकी दुनिया बड़ी गरीब है। आज दोनो मानो एक दूसरे में समा जाना चाहते थे , पर उत्तेजना और मदहोश करनेवाले इस दौर में भी रमेश ने खुद को सम्हाल लिया। उसने प्यार तो भरपूर किया पर हद पार नही की । न जाने क्या सोचकर उसने खुद को रोक लिया और उसे भी समझाने में कामयाब रहा ।
पर अब ये आग उन दोनों के दिलों में लग चुकी थी, और उनके बीच अब किसी तरह का पर्दा नही रह गया था । यानि अवसर मिला तो दोनों प्यार का भरपूर सुख लेंगे उनके बीच अब कोई नही आ सकता ।

ये सिलसिला चलता रहा और इधर किसी को इस बात की खबर न लगी । यूं भी शहरों में किसी को किसी की जाति जिंदगी से बहुत कम वास्ता होता है । सुबह को निकले तो रात को घर की चौखट दिखती है , फिर जैसे तैसे खाना खाया, दूसरे दिन की तैयारी और फिर नींद के आगोश में,,, क्योकि कल सुबह की लोकल ट्रेन फिर जो पकड़नी है ।

इस लोकल ट्रेन में प्यार की कहानी है रमेश की, जब प्रिया ने अपनी नोकरी के वास्ते इस लोकल में आना जाना शुरू किया, तो रमेश से उसकी पहली दोस्ती हुई ।
प्रिया का पति एक दुकान चलाता है ,इसलिए वो वहीं घर से कुछ दूर एक बाजार में अपनी दुकान पर बैठता है ,पर उसकी संगत खराब है । गांजा और भांग वाले दोस्तों के साथ अक्सर उसकी शाम गुजरती ओर वो रात को नशे में चूर होता । वो प्रिया से झगड़ा करता । उसने शादी से पहले ही अपनी सेहत खराब कर ली थी फिर नशे की लत ने उसे नपुंसक बना दिया था । और वो प्रिया से दूर रहता ,लेकिन उससे समय समय पर झगड़ कर उससे मारपीट कर अपनी मर्दानगी दिखाना चाहता था । प्रिया की हालत एक प्यासी मछली की तरह थी ।देह का सुख तो नसीब नही था ऊपर से आए दिन नशेड़ी और सनकी पति के कारण कलह और मारपीट ।

उसका पति जहां बैठता, वहाँ दूसरी औरतें भी आतीं ओर उनमें से उसका संबंध भी था । अपनी मर्दाना कमजोरी दूर करने के लिए वो न जाने कितने नीम हकीम की दवा लेता और उसी के दम पर कुछ ताकत आजमा लेता । लेकिन प्रिया से उसकी पटरी नही बैठती । उसे खरी खोटी सुनाकर ही उसे नींद आती।

जब प्रिया ने देखा कि उसके पति का हाल बेहाल है और उसके भरोसे पर रहना मानो गरीबी,अपमान और तिरस्कार ही मिलना है ,तो वह अपने लिए एक नोकरी ढूंढ ली । अब वह भी रोज काम पर निकल जाती । इससे उसका मन बहलता, और दो पैसे पास में जमा होने लगे ।

रोज का आना जाना और फिर बातचीत से होने वाली करीबी प्रिया और रमेश के प्यार की दास्तां है । यह लोकल ट्रेन प्रिया और रमेश के प्यार की कहानी की गवाह भी है ।

उनके बीच प्यार की कहानी कुछ इस तरह शुरू हुई।

एक शाम ट्रेन से लौटते वक्त बहुत तेज बारिश होने लगी ,जब ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर रुकी तो दोनों एक साथ बाहर आये। बाहर एकमात्र रिक्शा खड़ा था, वह भी जाने की जल्दी में था, क्योंकि बारिश तेज थी और रुकने का नाम नहीं ले रही थी। ऐसी हालत में दोनो का उसी एक रिक्शे में साथ होकर घर जाने के अलावा कोई दूसरा उपाय न था ,तब रास्ते में उनके बीच बहुत सारी बातें हुईं। और फिर उनकी बातचीत दोस्ती में बदल गई । अब वे अक्सर साथ साथ होटल में काफी पीने जाया करते।
वे जब भी बैठते अपनी अपनी दुःख भरी कहानी सुनने सुनाने का सिलसिला चलता जो देर तक चलता । इन्ही मुलाकातों ने और लोकल ट्रेन की भीड़ ने उन्हें काफी करीब ला दिया ।
ट्रेन का सफर उनकी हसीन यादों में शामिल हो गया। भीड़ और भागमभाग उनके लिए मजे की बात हो गई । एक दूसरे की फिक्र और साथ चलने की कोशिश ।

रमेश इश्क का मारा था और प्रिया गृहस्थ की ।
रमेश जिसे दिलोजान से चाहता था ,वो उसकी जिंदगी से दूर हो गई थी, सिर्फ इसलिए कि उसका सपना जो था, उसे पूरा करना रमेश के बस में नही था । उसकी दुनिया पैसा थी वो अक्सर उसे दौलत की महिमा बताती और रमेश उसकी तरह का व्यापारी नही बन सकता था । उसने किनारा कर लिया। रमेश आहत दिल लिए अपनी नोकरी के साथ जीने लगा था और तभी शादी शुदा प्रिया उसके करीब आ गई थी ।

"मैं खूबसूरत थी मुझपर बहुतों ने डोरे डालने की कोशिश की , पर मैंने अपने माँ बाप की मर्जी से अपनी गृहस्थी बसाने का फैसला किया और मैंने उसे जानने की कोशिश भी नही की, जो मेरे जीवन मे पति बनकर आ रहा था, वो आखिर किस तरह का इंसान था1और इसी भूल के कारण आज मुझे भुगतना पड़ रहा है ।"

"हम दोनों अपनी अपनी किस्मत के मारे हैं प्रिया ,, तुमने बिना जाने उसे अपनी जिंदगी सौप दी और उसने मुझे आजमा कर अपना रास्ता बदल लिया।मैं उसकी मनमानी ख्वाहिश तो पूरी नही कर सकता था, पर उसे प्यार से, सुकून भरी जिंदगी दे सकता था लेकिन उसे सुकून ढेर सारी दौलत में दिखा"

" मैं अपनी गृहस्थी से त्रस्त हो गई रमेश ,मेरा पति मेरे लिए एक नासूर बन गया है । और मैंने अपने लिए जिस तरह के पुरुष की कल्पना की थी वो मुझे तुममें दिखाई दे रहा है । मर्द मर्द में कितना फर्क होता है, ये तुम्हारे पास आकर मैने जाना । अपने पति की हरकतों को देखकर मुझे मर्द जात से नफरत हो गयी थी, पर तुम्हारे करीब आकर लगा कि तुम्हारे पास कितना सुकून है ,कितना सुख है ।"

"हम दोनों मजबूर हैं प्रिया,जब तक तुम उसकी सुहागन रहोगी मैं तुम्हारे ज्यादा करीब नही आ सकता । "

प्रिया ने मनही मन ठान लिया कि यदि रमेश को पाना है यानी जिंदगी में सुकून चाहिए तो,अब मुझे ही इसका हल निकालना होगा , यदि अब मैने ऐसा नही किया तो मेरी सारी जिंदगी नर्क बन जाएगी ।

प्रिया ने आखिर उसका घर छोड़ दिया । एक लंपट और नशेड़ी मर्द के चंगुल से उसने खुद को आजाद कर दिया ।
लोकल ट्रेन वही है लेकिन अब उसमे एक पति और पत्नी भी रोज सफर करते हैं ,,,,
अब एक शादी शुदा जोड़ा रोज साथ साथ काम पर जाता है और साथ साथ लौटता है उनके बीच बहुत प्यार और सुकून है । दौलत का ढेर न सही पर जो कुछ है वह जिंदगी आसान करने के लिए काफी है।

,,,,और इसके अलावा आदमी को चाहिए भी क्या ? बहुत थोड़ा वक्त मिलता है जिंदगी को जीने का, इसे भी दूसरों के कारण और साहस न कर पाने के कारण हम नर्क बना देते हैं ,,,


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