कौन दिलों की जाने!
उनतालीस
कँपकँपाने वाली ठंड चाहे नहीं रही थी, फिर भी सुबह की चाय रजाई में बैठकर ही पीने को मन करता था। चाय पीते हुए रानी ने आलोक से कहा — ‘अब क्योंकि मैरिज़ रजिस्ट्रेशन के लिये एप्लीकेशन लग चुकी है, हमें अपने बच्चों को भी सूचित कर देना चाहिये। साथ ही उनसे रजिस्ट्रेशन वाले दिन आने के लिये भी अनुरोध करना चाहिये। क्या विनय को भी सूचित करना चाहिये? दफ्तरी कार्रवाई पूरी होने के बाद उस दिन शाम को लिमिटिड सी गैदरग करके सेलिब्रेट कर सकते हैं।'
‘तुम्हें लगता है कि अंजनि और संजना आयेंगी? आस्ट्रेलिया से सौरभ और पूर्णिमा के आने की तो बहुत कम सम्भावना है, फिर भी मैं उन्हें सूचित कर दूँगा। विनय को सूचित तो जरूर कर दो, आना न—आना उनकी मर्जी।। रही लिमिटिड गैदरग की बात, वह तो हम जरूर करेंगे। मेरे कुछ खास मित्र हैं, जिन्हें हम निमन्त्रित कर सकते हैं। तुम्हारी कोई फ्रैंड्स अगर आ सकती हों तो उन्हें भी बुला लेना।'
‘अंजनि और संजना आयें या ना आयें, वैसे आने के चाँस न के बराबर हैं। फिर भी मैं फोन कर दूँगी। विनय को भी सूचना दे दूँगी, वह आ भी सकता है। रही मेरी फ्रैंड्स की बात, आलोक जी, यह बात तो आप भी जानते हैं कि स्त्रियों का मित्रता निभाना उनके पतियों की पसन्द ना—पसन्द पर निर्भर करता है। मेरी ऐसी कोई फ्रैंड नहीं जिसका पति उसे मुझसे मिलाने के लिये ले आये या उसे यहाँ आने की आज्ञा दे दे। इसलिये यह चैप्टर तो बन्द ही समझो। लेकिन एक बात मेरे दिमाग में आ रही है।'
‘क्या?'
‘आपने किताबों का इतना सुन्दर संग्रह किया हुआ है। हम अपने गेस्टरूम को पब्लिक लाइब्रेरी बनाकर इस अमूल्य निधि का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। कई पत्रिकाएँ और हिन्दी और इंग्लिश के समाचार पत्र तो आते ही हैं। पंजाबी का एक दैनिक पत्र और मँगवाना शुरू कर देंगे। मोहल्ले के कम—से—कम बुजुर्ग तो इस सुविधा का लाभ उठा ही लेंगे।'
‘बड़े उत्तम विचार हैं। वैसे भी आजकल रीडिंग हैविट खत्म होती जा रही है। मोहल्ले में ही सुविधा उपलब्ध होगी तो शाम को बच्चे भी आकर्षित हो सकते हैं। हमारे लिये भी फायदा रहेगा। सुबह—शाम पढ़ने आने वाले लोगों से रौनक लगी रहा करेगी, अकेलापन भी महसूस नहीं होगा।'
‘गैदरग वाले दिन ही इसकी घोषणा की जा सकती है।'
‘फिर तो रेजिडेंट्स वेल्पफेयर एसोसियेशन के पदाधिकारियों को भी बुलाया जा सकता है। एक और नेक काम उस दिन कर सकते हैं, यदि तुम्हारी सहमति हो तो?'
‘आलोक जी, नेक काम के लिये आपको मेरी सहमति लेने की जरूरत है! लेकिन नेक काम कौन—सा?'
‘इस अवसर पर हम नेत्र—दान करने की शपथ भी ले सकते हैं।'
‘आलोक जी, नेत्रदान के विषय में विज्ञापन तो बहुत देखे हैं, किन्तु पूरी विधि का मुझे पता नहीं है। आपको पता हो तो थोड़ा—सा मुझे भी समझा दो।'
‘कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से नेत्र—दान का संकल्प ले सकता है। शरीर से प्राण निकल जाने के बाद भी मनुष्य की आँखें छः—सात घंटे तक सुरक्षित (जीवित) रहती हैं। इस अवधि में नेत्रदान—कर्त्ता के मित्र—सम्बन्धी यदि टेलीफोन द्वारा नेत्र—कोष (म्ल्म् ठ।छज्ञ) में सूचना दे देते हैं तो नेत्र—कोष का कोई डॉक्टर या प्रशिक्षित टेक्नीशियन घर आकर मृत व्यक्ति की आँख का कॉर्निया निकालकर ले जाता है। नेत्रदान करने वाले मृत व्यक्ति का चेहरा विकृत न दिखे, इसलिये उसकी आँख में कॉर्निया की खाली जगह पर आर्टिफिशियल कॉन्टेक्ट लैंस लगा देते हैं। यह सारी कार्रवाई दसेक मिनट में हो जाती है, अधिक समय नहीं लगता। एक मृत व्यक्ति की आँखें (कॉर्निया) दो नेत्रहीन व्यक्तियों को लगाई जा सकती हैं। उसी व्यक्ति के इस प्रकार कॉर्निया प्रत्यारोपण हो सकता है, जिसका कॉर्निया पारदर्शिता खो चुका है, लेकिन उसकी आँख में रोशनी को देखने की शक्ति है।'
‘आलोक जी, एक शंका मन में उठ रही है। क्या किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की आँखें भी उसकी मृत्यु उपरान्त प्रत्यारोपित की जा सकती हैं।'
‘रानी, ब्लड प्रैशर, डायबिटिज़, अस्थमा, हृदय—रोग, पक्षाघात आदि बीमारियों से मरे या आकस्मिक दुर्घटना से मरने वाले व्यक्तियों की आँखें प्रत्यारोपित की जा सकती हैं, किन्तु ज़हर खाकर, जलकर, सिफलिस, टीबी, एड्स आदि के कारण मरे व्यक्ति की आँखें प्रत्यारोपित नहीं की जा सकती।'
‘आलोक जी, सारी बातें समझने के बाद मैं आपके प्रस्ताव से पूरी तरह सहमत हूँ। गैदरिंग वाले दिन हम नेत्र—दान की घोषणा अवश्य करेंगे। इस प्रकार हमारे इस संसार को छोड़ जाने के बाद चार ऐसे व्यक्ति जो सतरंगी दुनिया के रंगों को देखने से वंचित हैं, इसकी विभिन्नताओं को साक्षात् देखने में समर्थ हो सकेंगे।'
जसवन्ती ने रानी को इससे पहले केवल एक बार देखा था। अब उसे घर में एक मेहमान की हैसियत से अधिक अधिकार के साथ रहते हुए देखकर भी दो—तीन दिन तक तो उसने अपनी जिज्ञासा दबाये रखी। आखिर एक दिन आलोक को अकेले पाकर पूछ ही बैठी — ‘साब जी, एक बात पूछूँ, अगर बुरा ना मानो तो?'
जसवन्ती आलोक के पास रश्मि की मृत्यु के पहले से काम कर रही थी। अतः वह उस के साथ घर की सदस्य की तरह ही व्यवहार करता था। उसे लगा, जसवन्ती रानी के बारे में पूछने में हिचकिचा रही है। अतः कहा —‘पूछो, तुम्हें डर काहे का!'
‘साब जी, मैडम आपकी रिश्ते में कौन हैं?'
आलोक ने उसके प्रश्न को सहजता से लेते हुए बताया — ‘जसवन्ती, ये अब इस घर की मालकिन हैंं।'
‘साब जी, ये तो आपने बहुत अच्छा किया। बीबी जी की मौत के बाद घर खाली—खाली और सूना—सूना लगता था। अब रौनक लौट आयेगी। मैडम जी का सुभाव बिल्कुल बीबी जी जैसा ही लगता है।'
‘जसवन्ती, इन्हें मैडम नहीं, बीबी जी ही कहकर बुलाया कर।'
‘ठीक है साब जी।'
रानी रसोई में नाश्ता बनाने में लगी हुई थी कि रेहड़ी वाले की आवाज़़ सुनाई दी — ‘सब्जीवाला आया, सब्जी ले लो।'
रानी ने गैस का बर्नर सिम पर किया और गली में आई। रेहड़ी पर पड़ोस की दो—तीन स्त्रियाँ पहले से ही सब्जी ले रही थीं। उनमें से एक ने रानी से पूछा — ‘बहिन जी, आप प्रोफेसर साहब की क्या लगती हैं? पहले कभी आपको देखा नहीं।'
‘प्रोफेसर साहब मेरे हस्बैंड हैं। दो—तीन दिन ही हुए हैं मुझे आए हुए। आप कौन से घर में रहती हैं?'
पूछने वाली ने अपने घर की ओर संकेत कर दिया, लेकिन उसकी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई, वरन् और बढ़ गई। दूसरी स्त्रियाँ भी और जानकारी के लिये उत्सुक थी। पूछने वाली महिला ने अगला सवाल किया — ‘पहले आप कहाँ रहती थी?'
‘मैं मोहाली में रहती थी। पहले पति से तलाक के बाद प्रोफेसर साहब से विवाह किया है', रानी ने अपनी ओर से सारी सूचना एकबार में ही दे दी ताकि और प्रश्न न हों और सब्जी लेने लग गई।
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