कौन दिलों की जाने! - 31 Lajpat Rai Garg द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कौन दिलों की जाने! - 31

कौन दिलों की जाने!

इकतीस

रानी के बठिण्डा जाने के पश्चात्‌ रात को रमेश ने घर आकर रानी का बनाया हुआ खाना खाया। खाना खाने के बाद जब सोने लगा तो उसके मस्तिष्क में तरह—तरह के परस्पर विरोधी विचार कौंधने लगे। उसे लगा, उसके अन्तर्मन में विचारों का भूकम्प—सा आ गया हो जैसे। एक विचार यह आया कि मेरे इतने कठोर रुख व निष्ठुर व्यवहार होने के बावजूद रानी को मेरी कितनी चिंता है। नाश्ता और लंच तो बनाया ही, रात के लिये भी खाना बनाकर रख कर गयी है। उसका इतवार को बठिण्डा आने के लिये कहना तथा वापस इकट्ठे आने तक की बात महज औपचारिकता नहीं मानी जा सकती। तलाक सम्बन्धी बातों के दौरान मैंने तो उसे ताने भी मारे, किन्तु उसने बड़े शान्त मन से न केवल मेरी सारी शर्तें स्वीकार कीं, बल्कि यहाँ तक कहा कि ‘मुझे माफ करना, मैं आपके बारे में गलत सोच भी नहीं सकती सिवाय इसके कि आपको आलोक के साथ मेरी दोस्ती रास नहीं आई। आपने मेरी सुविधा के लिये जो भी निर्णय लिया है, मैं आभारी हूँ।' अभी यह विचार मन में चल ही रहा था कि दूसरे विचार ने इसपर हॉवी होते हुए चोंच मारनी शुरू कर दी। आरम्भ से ही रानी ने आलोक सम्बन्धी जानकारी मुझसे छुपाने, गुप्त रखने की कोशिश की है। ये तो परिस्थितियाँ ऐसी बनती चली गईं कि उसके पास सच्चाई को स्वीकार करने के सिवाय और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। ड्रार्इंग—रूम में लगी पेंटिंग्स की वजह से उसे बताना पड़ा कि आलोक घर पर आया था। उसके रात को घर पर रुकने की बात भी रानी ने मुझे नहीं बताई, बल्कि खन्ना साहब के प्रश्नों के उत्तर देते समय स्वीकार की। और अहम्‌ प्रश्न — जब आलोक घर पर रुका था तो क्या दोनों एक ही बेडरूम में सोये थे या अलग—अलग — तो अभी भी अनुत्तरित है। यदि मेरी दृष्टि ड्रार्इंग—रूम में टेबल पर पड़ी किताब ‘मन्टो की चुनिंदा कहानियाँ' पर न पड़ती तो रानी के पटियाला जाने की खबर भी मुझे नहीं होनी थी। मिस्टर मेहरा न बताते तो क्या उनकी पंचकूला में मुलाकात के बारे में मुझे पता चलता? हरगिज़ नहीं। अगर कहीं रानी ने आलोक द्वारा दी गई अँगुठी उतार कर रख दी होती तो रानी के जन्मदिन पर उनके होटल में इकट्ठे होने की घटना की मुझे कानों—कान खबर नहीं होनी थी। ये तो वे घटनाएँ हैं, जिनकी जानकारी किसी—न—किसी तरीके से मुझे मिल गई है। इनके अतिरिक्त और भी न जाने कितनी बार वे मिले होंगे, इकट्ठे रहे होंगे, जिनकी जानकारी मुझे नहीं है। रानी स्वयं तो बताने से रही। इस तरह विचार करते—करते उसके मन की अतल गहराइयों से अडिग आवाज़ आई — ‘रमेश, सतर्क रहना। रानी तुम्हारी सुविधा का चाहे कितना भी ख्याल रखे, आलोक को लेकर वह कभी भी तुम्हारे प्रति वफादार नहीं हो सकती। उनका गुप्त रूप से मिलना और जहाँ तक हो सके, मुलाकातों को गुप्त रखने का प्रयास ही उनके आपसी सम्बन्धों को सन्देह व शक के घेरे में ले आता है। इसलिये उससे सम्बन्ध—विच्छेद के अपने फैसले पर कायम रहना, विचलित मत होना वरना निरन्तर तनाव में जीना पड़ेगा।' एक अन्य विस्फोटक विचार ने भी दस्तक दी। रानी कहती है कि आलोक और वह बचपन के दोस्त हैं। जैसा उसने खन्ना साहब को बताया था, उसके अनुसार उस समय उनकी उम्र तेरह—चौदह साल की रही होगी। ऐसी कच्ची उम्र में पैर फिसलते देर नहीं लगती। उनके बीच उस वक्त कुछ अवांछनीय भी घटा हो सकता है, जिसकी वजह से विवाह के बाद रानी ने कभी भी उसकी भनक तक मुझे नहीं लगने दी और अब जब इतने सालों बाद आलोक और उसकी मुलाकात हुई है, वह भी तब जब आलोक की पत्नी का देहान्त हो चुका है, तो हो सकता है, उसने रानी को ब्लैकमेल कर अपने चँगुल में फँसा लिया हो। वैसे भी पुरुष का पर—स्त्री के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है। स्त्री—पुरुष के संस्कार ही पैरों की बेड़ियाँ होते हैं। संस्कारों की सीमा होती है, लेकिन कामना सीमाहीन होती है। कामना के वशीभूत हुए स्त्री—पुरुष कुछ भी कर गुज़र सकते हैं। उनके लिये परिवार की मर्यादा, सामाजिक प्रतिश्ठा आदि का कोई अर्थ नहीं रहता। इस तरह के अन्तहीन विचारों के मन्थन में उलझा रमेश सारी रात करवटें बदलता रहा।

जब सुबह हुई तो उसका सारा बदन टूट रहा था, मानो मीलों लम्बी उबड़—खाबड़ पगडण्डियाँ पार करके आया हो। जैसे—तैसे उठा। बाथरूम जाने के बाद एक कप चाय बनाकर पी। तब कहीं जाकर शरीर में थोड़ी—सी जान आई प्रतीत हुई, मन को कुछ चैन मिला। शान्तचित्त होने पर मन ने अन्तिम निर्णय कर दिया, चाहे कुछ भी हो, अब एक छत के नीचे अज़नबियों की भाँति इकट्ठे रहना असम्भव है। रानी के वापस आने तक उसके अलग रहने का प्रबन्ध करना होगा। जैसे वह नींद से जागा हो, उसे एक और समस्या ने आ घेरा। उसके मन ने प्रश्न किया, जब रानी अलग रहने लगेगी तो तुम्हारे खाने—वाने का क्या होगा? आजतक तो तुम पूरी तरह से रानी पर ही निर्भर रहे हो। स्वयं तो तुमने चाय भी एक—आध बार ही बनाई होगी। तुरन्त मन ने समस्या का निदान भी प्रस्तुत कर दिया। ऑफिस में कोई एक ऐसा वर्कर रख लेना जो खाना आदि बनाना जानता हो। उसे घर पर ही रहने की जगह दी जा सकती है। सुबह दस बजे तक नाश्ता—लंच बनवाकर उसे अपने साथ ही ऑफिस ले जाया करना और रात को घर आकर वही खाना बना दिया करेगा। बहुती गयी, थोड़ी रही। इसी तरह ज़िन्दगी गुज़र जायेगी। दिन—प्रतिदिन के मानसिक तनाव से तो मुक्ति मिलेगी। न ऊधो से लेने की फिक्र रहेगी न माधो को देने की।

आठ बजे लच्छमी आई। चाहे रानी उसे सब समझा गई थी कि कैसे क्या—क्या करना है, फिर भी रमेश ने उसे बताया कि नाश्ते और लंच के लिये क्या बनाना है। साथ ही कहा — ‘लच्छमी, सब काम जरा फुर्ती से करना, क्योंकि मुझे दस बजे ऑफिस के लिये जाना है।'

‘साब जी आप नहा—धो कर तैयार होवो, मैं सब काम टायम से कर दूँगी।'

रमेश बाथरूम में घुस गया। उसे शेव आदि करने तथा नहाने में आधा घंटा लग जाता है। जब वह बाथरूम से बाहर आया तो लच्छमी सब्जी वगैरह बना चुकी थी।

‘साब जी आप तैयार हैं तो पराँठे सेंक दूँ?'

‘अभी नहीं। मुझे पन्द्रह—बीस मिनट और लगेंगे, इतने में तुम कुछ और काम कर

लो।'

साढ़े नौ बजे रमेश डाईनिंग टेबल पर आ गया। उसके बैठने के पाँच मिनट में लच्छमी ने नाश्ता टेबल पर लगा दिया। नाश्ता करने के बाद जैसे ही रमेश ऑफिस जाने के लिये तैयार होकर बेडरूम से बाहर आया, उसका टिफिन टेबल पर तैयार रखा था और लच्छमी भी अपना काम निपटा कर जाने को तैयार थी।

ऑफिस जाकर रमेश ने अपने असिस्टैंट नीलकण्ठ को बुलाया और उससे कहा कि पता करे कि क्या स्टाफ में कोई ऐसा वर्कर है जो खाना आदि बनाना जानता हो। यदि नहीं है, तो एक हेल्पर—कम—कुक का विज्ञापन दे दे। साथ ही उसे दो—चार प्रॉपर्टी डीलरों से अच्छी लोकेशन पर टू—रूम सेट किराये पर लेने के लिये बात करने तथा खन्ना वकील से बात करवाने को कहा। वकील साहब ने पाँच बजे के बाद मिलने के लिये कहा। इसके बाद उसने अंजनि तथा संजना से बात की और उन्हें एक—आध दिन में आने के लिये कहा यह कहकर कि उनके साथ बहुत जरूरी बात करनी है, लेकिन यह नहीं बताया कि रानी उनकी नानी का पता लेने गई हुई है। अंजनि ने अगले दिन आने की हामी भर ली तो रमेश ने संजना को भी अगले दिन ही आने के लिये कह दिया।

लंच के समय नीलकण्ठ ने स्टाफ के कुछ लोगों से बात की। रमेश की कार के ड्राईवर ने उसे बताया कि उसने एक कमरा किराये पर लिया हुआ है। वह अपना खाना खुद बनाता है। वह सब्जियाँ वगैरह भी बना लेता है। अगर साहब उसे घर पर रख लेते हैं तो वह उनके लिये भी खाना आदि बना सकता है। लंच के बाद नीलकण्ठ ने जब रमेश को यह बात बताई तो उसने तुरन्त ड्राईवर को बुलाकर ‘कन्फर्म' किया। उसे आने वाले कल से ही अपनी अतिरिक्त डयूटी सँभालने के लिये कह दिया। ड्राईवर ने कहा कि उसने पूरे महीने का किराया दिया हुआ है, इसलिये घर पर तो वह अगले महीने की पहली तारीख से ही रहने लगेगा, लेकिन खाना आदि बनाना कल से ही शुरू कर देगा। एक बड़ी समस्या का हल हो जाने पर रमेश की चिंता का काफी हद तक निदान हो गया।

संध्या समय मिस्टर खन्ना के पास जाकर रमेश ने बताया कि उन्होंने अलग रहने के लिये फैसला कर लिया है तथा रानी ने अपनी सहमति दे दी है। आगे बताया कि रानी के निर्वाह के लिये वह क्या कुछ देना चाहता है। वकील साहब ने पूछा कि क्या मैडम के नाम कोई अचल सम्पत्ति नहीं है, तो रमेश ने जवाब दिया कि अचल सम्पत्ति तो नहीं है, किन्तु बिज़नेस में वह पार्टनर है। तब वकील साहब ने रमेश को समझाया कि एक तो आपको पार्टनरशिप डिज़ोल्व करनी होगी तथा मासिक राशि देने की बजाए मैडम को एकमुश्त रकम देना अधिक उचित होगा, क्योंकि तलाक की अर्जी के साथ मैडम की ओर से लिख कर दिया जायेगा कि अन्तिम सैटलमेंट के रूप में जो नकदी, बैंक बेलेंस अथवा स्त्रीधन उसे मिला है, उसके बाद वह किसी भी तरह के मुआवज़े अथवा गुज़ारा भत्ते के लिये भविष्य में किसी तरह का कोई दावा नहीं करेगी। जब रमेश ने बताया कि रानी ने तो अपनी तरफ से कोई भी माँग नहीं रखी है और न ही किसी तरह का ऐतराज़ उठाया है तो वकील साहब ने कहा कि चाहे मैडम ने कोई ऐतराज़ न किया हो तो भी आपकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए नकद राशि जो आप प्रतिमास देने की बात कर रहे हैं, बहुत कम लगती है। इसपर आप पुनःविचार अवश्य करें। उसके बाद ही आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगाई जा सकेगी, जिसमें इतना ही लिखना होगा कि पिछले एक साल से इकट्ठे रहने के बावजूद उनके बीच पति—पत्नी के सम्बन्ध नहीं रहे हैं तथा आगे भी उनके लिये पति—पत्नी के रूप में रहना सम्भव नहीं है, और फिर छः महीने बाद उनकी तलाक की अर्जी मन्जूर हो सकती है।

रमेश मिस्टर खन्ना की बातों पर विचार करने लगा और उसके मन ने कहा कि रानी अड़ कर तो उससे बहुत कुछ माँग सकती थी। आज जो कुछ मेरे पास है, उसका अधिकांश भाग तो विवाह के बाद ही अर्जित किया है। यह ठीक है कि अचल सम्पत्ति उसके नाम नहीं है, फिर भी सम्पत्ति के आधे हिस्से पर तो अपना दावा जता ही सकती है। यदि उसने कुछ नहीं माँगा है तो मुझे स्वयं उसे नाप—तोलकर आधा नहीं तो भी उचित हिस्सा तो देना ही चाहिये। मैं उसके नाम दस साल के लिये तीस लाख की एफ.डी. करवा देता हूँ, जिसमें नोमिनेशन अंजनि अथवा संजना के नाम हो सकता है। मासिक राशि तीस हज़ार ही रखी जा सकती है। फ्लैट का किराया तो मैं दूँगा ही। पार्टनरशिप तीस सितम्बर से डिज़ोल्व की जा सकती है। यह सारी बातें जब उसने मिस्टर खन्ना को बताईं तो खन्ना साहब ने भी स्वीकृति देते हुए कहा कि रमेश जी फिर तो मैडम को आप कल ही ले आयें ताकि कानूनी लिखा—पढ़ी कर ली जाये। रमेश के बताने पर कि रानी तो मायके गई हुई है, खन्ना साहब ने कहा कि कोई बात नहीं, उनके आने पर आगे की कार्रवाई कर लेंगे।

दूसरे दिन सुबह रमेश के पास अंजनि तथा संजना के फोन आए कि वे शाम तक पहुँच जायेंगी। इसलिये दोपहर बाद वह ऑफिस से घर आ गया तथा ड्राईवर को भी अपने पास रोक लिया। शाम को एक घंटे के अन्तर से अंजनि तथा संजना पहुँच गईं। घर में मम्मी को न पाकर दोनों ने घर आते ही पापा से ‘मम्मी कहाँ गई है' पूछा। जब रमेश ने बताया कि रानी तो उनकी नानी का पता लेने गई है तो दोनों को बहुत अचम्भा लगा कि मम्मी की अनुपस्थिति में पापा ने उन्हें क्योंकर बुलाया है। तब रमेश ने उनको रानी—आलोक प्रसंग की सारी बातें विस्तार से समझाईं और बताया कि रानी आलोक से दोस्ती छोड़ने को तैयार नहीं है। इन हालात के चलते वे आपसी सहमति से तलाक की सोच रहे हैं, तो एकबारगी उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह सब हो क्या रहा है? वे सोचने लगीं कि मम्मी कैसे इस उम्र में बचपन में दोस्त रहे एक व्यक्ति के प्रति इतनी गहराई से समर्पित हो सकती हैं? अगर कहीं तलाक हो जाता है तो मम्मी—पापा अलग—अलग कैसे जीवन बितायेंगे? जैसा पापा ने संकेत दिया है कि मम्मी तलाक के बाद अपने दोस्त के साथ रहने वाली है तो भी पापा अकेले कैसे रहेंगे? लेकिन उन्होंने रमेश को इतना ही कहा — ‘पापा, अच्छा होता यदि आप हमें मम्मी की उपस्थिति में बुलाते! मम्मी से बात किये बिना हम क्या कह सकती हैं? हमारे लिये तो आप और मम्मी बराबर हैं, जैसे आप वैसी मम्मी। दूसरे, पहले आपने मामा जी को विश्वास में लिया था, इसलिये अच्छा होगा कि इस विषय में कोई भी फैसला लेने से पहले उनसे भी विचार—विमर्श कर लें।'

रमेश ने कहा — ‘ठीक समझो तो तुम अपनी मम्मी से फोन पर बात कर लेना।'

‘पापा, ऐसी बातें फोन पर नहीं की जा सकतीं। दूसरे, मम्मी इस समय नानी के पास गई हुई है, अभी से सबको पता चले, यह भी तो अच्छा नहीं होगा।'

उन्हें क्या पता था कि पापा—मम्मी तलाक के लिये पहले से ही निर्णय ले चुके हैं, उन्हें तो केवल सूचना दी जा रही थी। बेटियों की बातें सुनकर रमेश को भी लगा कि रानी की अनुपस्थिति में उन्हें बुलाकर उसने ठीक नहीं किया। अतः इस प्रसंग पर और कोई बात न की। दूसरे दिन नाश्ता करने के उपरान्त अंजनि तथा संजना अपने—अपने घरों के लिये चली गईं।

अगले दिन नीलकण्ठ ने बताया कि अच्छी लोकेशन के दो—तीन फ्लैट रेंट के लिये उपलब्ध हैं। रमेश शाम को जाकर देख आया। दो फ्लैट उसे अच्छे लगे। एक टू बीएचके तथा दूसरा थ्री बीएचके था। रमेश ने टू बीएचके फाइनल कर एडवांस दे दिया और रानी को उस फ्लैट की फोटो तथा लोकेशन व्हॉट्‌सएप्प कर दी।

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