Kaun Dilon Ki Jaane - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन दिलों की जाने! - 28

कौन दिलों की जाने!

अठाईस

दो—तीन दिन तक रमेश विचार करता रहा कि आपसी सहमति के लिये रानी ने तो स्वीकृति दे दी है और साथ ही आश्वासन भी दिया है कि मैं जो भी करने को कहूँगा, वह बिना किसी शिकवे—शिकायत के मानने को तैयार है। चाहे मुझे विश्वास है कि कानूनी कार्रवाई पूरी होने के पश्चात्‌ रानी आलोक के साथ ही रहेगी, फिर भी एकबार उससे भी पूछ लेना बेहतर होगा कि उसकी भविष्य को लेकर क्या योजना है। साथ ही तय करना होगा कि क्या कोर्ट में आपसी सहमति की अर्जी देने तक अथवा कानूनी कार्रवाई पूरी होने तक एक ही छत के नीचे रहें अथवा रानी के रहने की अलग व्यवस्था की जाये। आखिरी बिन्दु पर पहुँच कर उसके मन ने निर्णय दिया कि कुछ भी हो, अब एक छत के नीचे रहना तो असम्भव है। इन्हीं विचारों के चलते कुछ दिन बाद रात का भोजन करने के बाद रमेश ने रानी को अपने पास बिठाया और कहा — ‘अब जब तुमने फैसला कर ही लिया है कि तुम आलोक से दोस्ती छोड़ने को तैयार नहीं हो और आपसी सहमति से अलग होने के लिये भी मन बना चुकी हो, इतना और बता दो कि कोर्ट द्वारा हमारी तलाक की अर्जी स्वीकार कर लेने के बाद क्या तुम आलोक के साथ रहोगी?'

‘रमेश जी, पहली बात तो यह है कि अलग होने का फैसला आपका है, मेरा नहीं। इतना जरूर है कि यदि आप मुझे अलग करना चाहते हैं तो मैं कोई बाधा उत्पन्न नहीं करूँगी। यह भी ठीक है कि मैं आलोक के साथ अपनी दोस्ती छोड़ने को तैयार नहीं हूँ। लेकिन तलाक के बाद मैं क्या करूँगी, इस विषय में मैंने अभी तक सोचा नहीं है।'

‘यदि मैं कहूँ कि हम जिन हालात में से गुज़र रहे हैं, उनके चलते हमारा एक छत के नीचे रहना सम्भव नहीं तो तुम क्या करोगी?'

‘मैंने कहा न कि इस विषय में अभी तक सोचा नहीं है। मैं तो भगवान्‌ भरोसे ही हूँ। जिस हालत में रखेगा, अच्छा ही रखेगा।'

‘भगवान्‌ भरोसे या आलोक भरोसे?' रमेश ने ताना कसा।

रमेश के ताने से बिना विचलित हुए रानी ने कहा — ‘आप जैसा चाहें, सोच सकते हैं, परन्तु मैंने आलोक से इस विषय में अभी कोई बात नहीं की है।'

रमेश का ताना सुनकर रानी मन में सोचने लगी, क्या आलोक से इस विषय पर खुलकर उसके विचार जानने जरूरी हैं जबकि बातों—बातों में वे कई बार संकेत दे चुके हैं तथा कह चुके हैं कि वे हर हाल में मेरे साथ खड़े हागे। उसे लगा कि आलोक जिस शिद्दत से उस से प्यार करते हैं, उसके चलते सीधे तौर पर पूछने पर कहीं वे अपमानित महसूस न करें। यही सब सोचकर रानी ने इस विषय में आलोक से कोई भी बात न करने का निश्चय किया।

रमेश — ‘यह ठीक है कि कुछ समय से एक छत के नीचे रहते हुए भी हमारे बीच के सम्बन्ध बिखर चुके हैं। जैसा खन्ना साहब ने बताया है, आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगाकर भी तलाक होने तक हम एक छत के नीचे रह सकते हैं, लेकिन मैं इस तरह की स्थिति में रहने को तैयार नहीं। तुम्हारा रोज़—रोज़ मेरे सामने रहना मेरे तनाव को बढ़ायेगा ही, इसलिये मैंने सोचा है कि तुम्हारे लिये किसी सोसाइटी में एक फ्लैट किराये पर ले दूँ। तुम्हें अपने गुज़ारे के लिये कितने खर्चे की जरूरत होगी?'

‘मैं पहले भी कह चुकी हूँ, आज फिर दोहराती हूँ कि आप जो भी करेंगे, मैं बिना किसी गिले—शिकवे के मान लूँगी। अलग से मेरी कोई माँग नहीं है।'

‘तुम्हारी चाहे कोई माँग नहीं और तुम जैसी भी हो, तलाक होने तक मुझे तो तुम्हारी जरूरतों का कानूनी तौर पर भी ख्याल रखना पड़ेगा। इसलिये मैंने तय किया है कि फ्लैट के किराये के अतिरिक्त तीस हज़ार रुपये प्रति मास तुम्हें दिया करूँगा जब तक तुम अकेली रहोगी। कार तुम्हारे नाम है, तुम्हारी रहेगी। तुम्हारे बैंक अकाऊँट में जो पैसा पड़ा है व लॉकर में जो गहने पड़े हैं, उनमें से मैं कुछ भी लेने वाला नहीं। रोज़़मर्रा की जरूरतों की जो भी चीज़ें घर से ले जाना चाहो, ले जा सकती हो।'

‘मुझे माफ करना, मैं आपके बारे में गलत सोच भी नहीं सकती सिवाय इसके कि आपको आलोक के साथ मेरी दोस्ती रास नहीं आई। आपने मेरी सुविधा के लिये जो भी निर्णय लिया है, मैं आभारी हूँ।'

‘एक बात और। क्या हमें कोर्ट में जाने से पहले अपने बच्चों को अपने फैसले से अवगत नहीं करवाना चाहिये?'

‘जरूर करवाना चाहिये। उन्हें सूचित ही करना होगा, होगा तो वही जो आप चाहते हैं।'

‘ठीक है। बहुत रात हो गयी। अब सोया जाये।'

रमेश के कथन के बाद रानी ने ‘गुड नाईट' कहा और अपने कमरे की ओर चल दी। उपरोक्त बातचीत के बाद दोनों ही अन्दर—ही—अन्दर काफी राहत अनुभव कर रहे थे, क्योंकि सारी समस्या बिना किसी मनमुटाव तथा विघ्न—बाधा के हल होती नज़र आने लगी थी। मन हल्का हो गया था, इसलिये बहुत दिनों के बाद दोनों ने गहरी नींद का आनन्द लिया।

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