एक जिंदगी - दो चाहतें - 44 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 44

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-44

उस दिन यूनिट में वापस आकर सभी लोग थोड़े बहुत स्नैक्स और व्हिस्की के ग्लास के साथ अपने पेट की भूख और दिल की जलन को शांत करने की कोशिश में बैठे बातें कर रहे थे।

''कुछ नहीं सर ये लोग हमसे चिढ़ते हैं इसलिये खुद ही हमे फोन करते हैं और पेरशान करते हैं।" विक्रम बोला।

''विक्रम सही कह रहा है सर। कोई नहीं है। गाँव वाले ही झूठी खबरें दे-दे कर हमें परेशान कर रहे हैं और कुछ नहीं।" शमशेर ने भी विक्रम का समर्थन किया।

''नहीं ये गाँव वाले नहीं हैं जो हमें खबरे दे रहे हैं। मेरे हिसाब से ये वही लोग हैं जो सीमा पार से घुस आए हैं ये लोग अपने होने की जगह से दूर की जगह के बारे में झूठी खबर फेैलाते हैं।" अर्जुन ने कहा।

''लेकिन ऐसा क्यों करेंगे वो लोग।" अनिल ने पूछा।

''ताकि हम ब्लैंक केसेस में अपनी उर्जा और इच्छाशक्ति खो दें और फिर हर खबर को अफवाह मानने लगें और एक्शन लेना छोड़कर थोड़ा निश्चिंत या लापरवाह हो जाये तब ये लोग कोई बड़ा धमाका करेंगे। ऐसा कि स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाये। हम सबने बचपन में 'भेडिय़ा-आया' कहानी तो सुनी ही है। बस समझ लो आज हमारे साथ वही खेल-खेला जा रहा है। रोज भेडिय़े के आने की झूठी अफवाह फैलाई जाती है और हम दौड़कर जाते हैं और खाली हाथ वापस आते हैं। हमें रोज दौड़ाया जाता है ताकि जिस दिन सचमुच में ही भेडिय़ा आये हम लापरवाही से बैठे रहें ये सोचकर कि आज भी यह अफवाह ही है।" अर्जुन ने एक ही साँस में अपने गले से सारी व्हिस्की नीचे उतार ली। उसका चेहरा भेडिय़े के बारे में सोचकर नफरत से तमतमा रहा था।

''अर्जुन का अनुमान एकदम सही है। ये किसी बड़े तुफान के पहले की खामोशी है। क्योंंकि ये लोग अपनी हरकतों से बाज आकर चुप बैठने वालों में से तो नहीं हैं। किसी दिन अचानक ही एकदम से ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देंगे कि जो हमारे नियंत्रण से बाहर हो जायेगी। इसलिए हमें हर समय चौकन्ना रहना ही पड़ेगा और हर खबर को गंभीरता से लेना पड़ेगा।" परम ने अर्जुन की बात का समर्थन किया।

''हम तैयार हैं सर आपके लिए तो जान भी हाजिर है।" अनिल, विक्रम, शमशर सबने एक साथ खड़े होकर परम को सेल्यूट किया।

''मेरे लिये नहीं दोस्तों अपने देश और देशवासियों के लिए।" परम हँसकर बोला।

''वो तो हमेशा है सर। जय हिंद।"

''जय हिंद।"

अगले चार दिनों में फिर एक खबर आयी और सारी मेहनत के बाद भी सर्च खाली गया। इस बार टारगेटेड एरिया इतनी दुर्गम पहाड़ी पर था कि जवानों की हालत खराब हो गयी वहाँ तक पहुँचने में। एक तरफ पहाड़ और दूसरी ओर सुरसा की तरह मुँह फाड़कर पूरे वेग से बहती पहाड़ी नदी। पूरे पहाड़ पर चीड़ के नुकीले पत्तों और पहाड़ों की नमी ने मिलकर रास्ते को फिसलन भरा बनाकर एक कदम चलना भी मुश्किल बना रखा था। हर अगला कदम रखते हुए लगता था कि अब फिसलकर खाई में गिरे। ऐसे पहाड़ पर पूरे एक दिन और रात वे लोग एक-एक पेड़ को छानते रहे। ऊपर चार छ: मकान बने थे जिनकी छते टीन की थी पूरी सुरक्षा और घेराबंदी करके उनकी जांच की गयी लेकिन सब बेकार।

परम और अर्जुन का शक अब यकीन में बदलता जा रहा था। भेडिय़ा कहीं बहुत ही पास में है और घात लगाकर बैठा है। कभी भी पीठ पीछे से ही हमला करेगा।

अब हाईअलर्ट रहने का समय आ गया है।

तूफान कभी भी आ सकता है।

और दूसरे ही दिन रात के डेढ़ बजे अचानक सीमा पार से गोलीबारी प्रारंभ हो गयी और बीच-बीच में बम फटने लगे। अर्जुन और परम समझ गये। भेडिय़ा आ चुका है।

सीमा पर गोलीबारी और विस्फोट करवाकर भारतीय सेना का ध्यान भटकाया जायेगा और उसी का फायदा उठाकर सीमा पार से मिलिटेंट्स को भारत की सीमा में प्रवेश करवा दिया जाता है।

''हरामजादे भेडिय़ों को यह पता नही है कि वो शेर की मांद में धुस रहे हैं।" अर्जुन अपने बुलेटप्रुफ और हथियारों से लैस होता हुआ बोला। उसकी रगें फड़क रहीं थी।

भारत माता की जयजयकार करती हुई फौज के आधे सिपाहीयों को परम ने चौकियों की सुरक्षा और जवाबी हमले के लिये तैनात किया और खुद आधे जवानों और अर्जुन को लेकर आगे के सीमा से सटे इलाके की निगरानी के लिए निकल पड़ा। गोलीबारी में भारतीय फौज को उलझाकर दूसरी तरफ से मिलिटेंट्स को भारतीय सीमा में प्रवेश कराने का यह पड़ोसी देश का एक पुराना हथियार था। ऐसी स्थिति में जवानों को दोनों मोर्चों पर चौकस रहना पड़ता था। चौकी और देश की सुरक्षा भी करनी पड़ती है और इधर मिलिटेंट्स को भी घुसने से रोकना पड़ता है। सीमा पार से लगातार गोलीबारी हो रही थी। एक के बाद एक बम फट रहे थे। जमीन थर्रा रही थी। कान के परदे फटने लगे थे। परम अपने आठ आदमियों के साथ इलाके के सर्च पर चल दिया। रात भी धुप्प अंधेरी थी। इनफिल्ट्रेशन की जगह भी पता करना बहुत ही मुश्किल था। ना टार्च जला सकते हैं ना उजाले के लिऐ कोई दूसरा उपाय ही किया जा सकता था। सीमा के साथ-साथ अंदाजे से ही आठों लोग थोड़े-थोड़े अंतर पर अपने हथियार संभाले चौकस-चौकन्ने होकर आगे बढ़ रहे थे। पैर भी बहुत सोच समझकर रखना पड़ रहा था कि किसी तरह की कोई आवाज न हो जाये जिससे कि दुश्मन चौकन्ना हो जाये।

हर कुछ कदमों के बाद वे लोग आपस में एक दूसरे को देख लेते थे क्योंकि बात तो की नहीं जा सकती थी। अंधेरी रात में और वो भी कॉम्बेट यूनीफॉर्म में एक दूसरे को देखना भी मुश्किल हो रहा था। पर अंदाजे से हिलती डुलती आकृतियों को देखकर अनुमान लगा लिया जाता।

परम के हाथ में कम्पास था (रेडियो डिटेक्टर) जिससे वह दिशा का अनुमान लगा रहा था कि कितनेे डिग्री नार्थ है कितने डिग्री साउथ है। इससे उन्हे हल्का सा अनुमान हो जाता था कि वे लोग सही दिशा में जा रहे हैं और इनफिल्टे्रशन (घुसपेठ) की संभावित जगह कहाँ-कहाँ हो सकती है।

सीमा पार से अभी भी जमकर गोलीबारी और बमबारी हो रही थी और साथ ही भारतीय जवान भी बराबरी से जवाबी कार्यवाही कर रहे थे। धमाकों से इलाका थरथरा रहा था।

परम को चौकियों की चिंता हुई। भगवान करे सब ठीक ठाक रहे।

अंधेरे में बकरीवालों के चलने से बनी पगडंडियाँ कहीं पर चमक रहीं थी और कहीं पर बरसात के बाद उगी झाडिय़ों में गुम हो गयी थीं। कही ंपर बहते पानी के निशान भी पगडंडी होने का भ्रम पैदा कर रहे थे। दिन के समय यह ईलाका कई बार परम और उसकी यूनीट का देखा-भाला था इसलिए अंधेरे में भी वो लोग अपने अनुमान के सहारे आगे बढ़ते जा रहे थे।

परम सबसे आगे था उसकी कुछ दूरी पर अर्जुन, अर्जुन की दायीं ओर विक्रम था। बाकी लोग भी एक दूसरे से एक निश्चित और सुरक्षित दूरी बनाकर चल रहे थे। एक जगह परम पगडंडी पर चलता हुआ ठिठक गया। बरसाती धाराओं से कई सारे रास्ते निकल आये थे। परम आस-पास की टोह लेता हुआ एक ओर बढऩे लगा।

अर्जुन के दायीं ओर चल रहे विक्रम को कुछ अंदेशा हुआ। वह परम को देखने लगा। विक्रम को खटका हुआ कि परम बरसाती पगडंडी से भ्रम में पड़कर गलत रास्ते पर जा रहा है। जहाँ तक विक्रम को पता था परम नो मैन्स लैण्ड की ओर बढ़ रहा था। विक्रम का सारा शरीर पसीने से नहा गया। परम मौत से चंद कदमों के फासले पर है। नो मेन्स लैण्ड में माईन्स बिछी रहती है। एक भी पैर अगर बारूदी सुरंग पर पड़ गया तो सुरंग ब्लास्ट हो जायेगी और आदमी खत्म!

इस स्थिति में विक्रम परम को आवाज देकर सचेत भी नहीं कर सकता था, वरना अगर आस-पास मिलिटेंट्स होंगे तो उन्हे इन लोगों का पता चल जायेगा। विक्रम ने भगवान का नाम लिया और दौड़ लगा दी। परम नो मेन्स लैण्ड से बामुश्किल पाँच-छ: कदम की दूरी पर ही था जब विक्रम ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा। परम चौंककर पीछे मुड़ा। विक्रम ने उसे ईशारे से बताया कि वह कहाँ जा रहा था बेध्यानी में। परम के माथे पर पसीना छलछला आया।

अभी विक्रम का ध्यान नहीं होता तो परम के शायद चिथड़े उड़ चुके होते। और अगर विक्रम के हाथ रखते ही परम फायर खोल देता तो....।

लेकिन परम जानता था मिलिटेंट्स दोस्ताना तरीके से कंधे पर हाथ नहीं रखता पीठ में छुरा उतार देता। यह कोई अपना ही बंदा है। विक्रम का कंधा थपथपाकर परम ने उसके प्रति अपना आभार प्रकट किया और ऊपर की ओर चलने लग गया। अब विक्रम परम के समानांतर ही चल रहा था। पन्द्रह मिनट बाद ही अंधेरे में उन्हें कुछ हलचल दिखाई दी। कुछ साए सीमा पर लगी फेन्स के पास लहराते लगे।

इनफिल्ट्रेशन!

घुसपैठ!

परम और विक्रम ने एक साथ अपनी बंदूकों से फायर खोला और बिना आवाज किये ही दो साए ढेर हो गये और अंधेरे में तीन चोगे उन्हे दूसरी सीमा में अंदर की ओर भागते दिखे। अगले मिनट ही अर्जुन की गोलियों से वे तीनों भी अलग-अलग जगहों पर ढेर हो गये। आगे और भी जगहों से घुसपैठ जारी होगी। पता नहीं कितने अंदर घुसने में कामयाब भी हो गये होंगे।

वे लोग और आगे बढ़े। कई जगहों पर फेन्स के साथ छेडख़ानी की गयी थी। और एक जगह फेन्स की ओर बढ़ते काले साए दिखाई दिये। तीनों ने उस ओर ओपन फायर खोल दिया लेकिन जगह-जगह लगी हुई झाडिय़ों का फायदा उठाकर वे लोग भाग खड़े हुए।

अर्जुन के नथुने फूल गये। वह मन ही मन ढेर सारी गालियाँ दे रहा था। आखिर में उसकी रायफल की रेंज में जितनी झाडिय़ाँ थी उसने सबको गोलियों से भून दिया।

सारी रात जंगलों की खाक छानते बीती। सुबह को जाकर भी सीमा पार से फायरिंग बंद नही हुई। दिन का उजाला होते ही परम को तनु की याद आयी। आते हुए वह मोबाईल स्विच ऑफ करके अलमारी में रख आया था। अब तनु उसे फोन लगा रही होगी। अब पता नहीं वो कब यूनिट में पहुँच पायेगा और उससे बात कर पायेगा। वो पूरा दिन भी गोलियों और बमों के धमाकों से थर्राता रहा। दिन भर परम और उसकी यूनिट के जवान इलाके को छानते रहे। पहाड़ों पर कई जगह चीड़ के पत्तों पर पैरों के हाल ही में बने निशान थे। जो फेन्स के पास से अंदर पहाड़ों तक आये थे। फायरिंग का फायदा उठाकर कल रात में कई अवांछित मेहमान घर में घुस चुके हैं।

रात के सर्च से पहले परम ने मोटोरोला सेट पर दूसरी यूनीट को सर्च पर भेजा और अपने जवानों को लेकर रूम में आ गया। आते ही सबसे पहले उसने अपना फोन ऑन किया और तनु को फोन लगाया।

''क्या बात है जी सारे दिन आपका फोन स्विच ऑफ क्यूँ था?" उधर से तनु का घबराया हुआ स्वर आया।

''घबराना नहीं अरे रात में ही ऑर्डर आया कि कुछ जरूरी कागज पूरी सिक्योरिटी में हेटक्वार्टर पहुँचाने हैं। जल्दी में फोन भी नहीं लगा पाया और रास्ते से ही नेटवर्क चला गया। वहाँ ऊपर नेटवर्क नहीं होता ना तो दिन भर तुझे फोन लगाने का ट्राय करता रहा लेकिन कनेक्ट ही नहीं हुआ।" परम ने उसे दिलासा दिया।

''आप ठीक तो हो ना?" तनु के स्वर में चिंता की झलक थी।

''नहीं सोना परेशान नहीं होना। तेरे से बात कर रहा हूँ ना तो ठीकठाक ही हूँ। बस कभी-कभी जरूरी काम आ जाते हैं तो जाना पड़ जाता है। मुझे पता था कि तू परेशान होगी इसलिये आते ही सबसे पहले तुझे फोन लगाया। अभी तक मैंने यूनीफॉर्म तो क्या जूते तक नहीं उतारे हैं। चल अब मैं नहाकर आता हूँ फिर बात करता हू। ओ.के.। लव यू मेरा सोना।" परम ने कहा और फोन रख कर झटपट नहाकर दूसरी यूनीफॉर्म पहनी और दुबारा रेडी हो गया। अर्जुन वगैरह भी रेडी होकर आते ही होंगे। परम ने फिर से तनु को फोन लगाया।

''तबियत कैसी है?"

''ठीक है जी।"

''दवाईयाँ ली?"

''जी ले ली थीं।"

''खाना खाया ठीक से?"

''हाँ जी खा लिया। आपने खाया कि नहीं?"

''हाँ मैंने भी ऊपर हेडक्वार्टर में खा लिया था।" तनु का मन रखने के लिए, उसे तनावमुक्त रखने के लिये परम को अक्सर ऐसे झूठ बोलने पड़ते थे।

''अच्छा देख तनु मैं फिर ऊपर हेडक्वार्टर में जा रहा हूँ तो मेरा फोन फिर से बंद रहेगा ओके घबराना नहीं चिंता नहीं करना। हो सकता हेै दो दिन लग जायें। नेटवर्क मिलता है तो तुरंत फोन करूँगा।"

''आप अभी तो आए हो अब तुरंत ही वापस क्यों जा रहे हो।" तनु ने पूछा।

''कुछ बहुत ही जरूरी और कॉन्फिडेन्शियल डॉक्यूमेन्ट्स हैं। किसी और के हाथ नहीं भेज सकता मुझे ही जाना पड़ेगा।" परम लाड भरे स्वर में बोला।

''लेकिन आपको ही क्यों जी?" तनु विचलित स्वर मे बोली।

''इसलिये कि मेरे ऊपर कुछ जिम्मेदारियाँ है। ये मेरी ड्यूटी है और ड्यूटी तो निभानी पड़ेगी ना। तुम फालतू की चिंता मत करो और बस अपना ध्यान रखो। ओके? इट्स एन ऑर्डर फॉर मेजर मिसेस तनु परम गोस्वामी।" परम तनु के मन को हल्का करने के उद्देश्य से बोला।

''ओके जी।" तनु हँस दी तो परम के मन को शांति मिली।

''चल बुच्ची रख अब, देर हो रही है।"

''ठीक है जी अपना ध्यान रखना।"

जैसे ही परम ने फोन रखा दरवाजे से अर्जुन, विक्रम और शमशेर अंदर आए। परम समझ गया कि ये लोग पहले के आकर खड़े होंगे लेकिन वो तनु से बातें कर रहा था इसलिये सब बाहर ही ठिठक गये।

''अनुमान सही निकला सर। भेडिय़ा नहीं यहाँ तो बहुत से भेडिय़े आ गये उस पार से।" विक्रम बोला।

''और जिस तरह से फायरिंग अभी तक बंद नहीं हुई है, आज रात और मेहमानों का भी आगमन होना निश्चित है।" शमशेर बोला।

''हाँ है तो सही क्योंकि दूसरे सेक्टर्स में भी गोलीबारी हो रही है तो बाकी जगहों से भी घुसपैठ हो ही रही होगी। ऐसे तो अभी ना जाने कितने घुस गये होंगे।" परम ने कहा।

''तो चिंता किस बात की उनका सर है और हमारी रायफल।" अर्जुन ने कहा।

सबने इस बात पर हामी भरी। परम ने अपने सोर्सेस को कहा कि वे इलाके की सख्त निगरानी करें। गाँवों की, खास तौर पर ऐसे घरों की जो पहाड़ों पर बाकी घरों से दूर अकेले में अलग-थलग बने हो उन पर खास नजर रखें।

पाँच मिनट में ही सारा काम निपटाकर बुलेट प्रूफ और हथियारों से लैस होकर सब तैयार हो गये। सबने अपनी जेबें चेक की कि कहीं कोई पॉलीथीन या रैपर या ऐसी कोई चीज तो नहीं है जिससे चलते समय जरा भी आवाज हो। किसी ने डियो परफ्यूम भी नहीं लगाया था क्योंकि उससे भी खुशबू की दिशा का अनुमान करके कोई आप तक पहुँच सकता है।

सब लोग आज फिर रात भर के लिए ड्यूटी पर निकल गये। थकान के मारे बुरा हाल हो रहा था। पीठ पर ड्राय राशन और पानी के साथ ही गोलाबारूद का भी ढेर सारा बोझा था।

आज परम को पता था कल जहाँ से घुसपैठ की कोशिशें नाकामयाब कर दी गयीं थी आज वहाँ से घुसने का तो कोई प्रयत्न नहीं करेगा लेकिन उसके आगे से कोशिशें हो सकती हैं। परम और उसके साथी एक बार पुरानी जगहों को चौकसी से देखते हुए आगे ऊपर की ओर बढ़ गये। अंधेरे और घने जंगलों में उनके उतरने की संभावना सबसेे ज्यादा थी। उस रात भर में भी जमकर गोलीबारी होती रही।

तीन जगह चोरी से घुसपैठ को नाकाम किया रात भर में और एक जगह दो और एक जगह तीन लोग मार गिराए। बाकी लोग झाडिय़ों की आड़ लेकर भाग गये। विक्रम ने मन ही मन गाली दी (मादर...) ने इसीलिये फेन्स के आसपास झाडिय़ाँ लगा रखी हैं। ताकि हरामजादे आसानी से छुपकर बच जायें।

रात भर में वे लोग अपनी यूनीट से काफी दूर निकल आये। दोपहर तक कोई नहीं मिला। सब लोग एक खुली जगह बैठ कर सुस्ताने लगे। साथ में जो ड्राय राशन था वो थोड़ा बहुत खाया, पानी पिया और एक गिरे हुए पेड़ के तने से टिककर सब लोग हाथ-पैर तान कर बैठ गये। दो रात के जगे हुए थे। सबलोग पीठ टिकते ही सबकी आँखेंं मुंदने लगीं पाँच मिनट बाद ही सबको झपकी लग गयी।

करीब आधा घण्टा ही हुआ होगा कि शमशेर की नींद खुल गयी। उसे आस-पास कुछ आहट सी लगी। वह थोड़ी देर अपने कान खुले करके आस-पास की आहट लेने की कोशिश करता रहा लेकिन कुछ भी आवाज नहीं आयी। दो मिनट बाद वह फिर पेड़ के तने से टिक गया। अभी उसने पलकें झपकी ही थी कि दुबारा कुछ खटका सा हुआ।

'नहीं कोई तो है।' शमशेर ने सोचा। कोई कुत्ता या अन्य जानवर होता तो उसके दूर तक भागने की आवाजें आती लेकिन यह कहीं लकड़ी के फट्टे जैसी खटके की आवाज थी। शमशेर ने अपने हथियार संभाल लिये। वह उठ कर खड़ा हो गया और उसने नजरें घुमाकर चारों ओर देखा। आस-पास कोई भी नजर नहीं आया लेकिन शमशेर की इंद्रियों ने भांप लिया कि आस-पास कुछ तो गड़बड़ है। कोई है उसने अभी आवाज सुनी। उसने तुरंत अपने साथियों को उठाया और इशारों में बताया कि यहाँ कुछ गड़बड़ है।

सब लोगों ने कान लगाकर सुना लेकिन कोई आवाज नहीं आयी। अरुण और अनिल आस-पास देख आये लेकिन कोई नहीं दिखा। एक कुत्ता तक नहीं था।

''कुछ भी नहीं है सर। जहाँ तक नजर जाती है वहाँ तक तो कुत्ता भी नहीं है।" अरुण ने आकर बताया।

''नहीं यहाँ कोई तो है सर मैंने साफ आवाज सुनी है।" शमशेर बोला।

''अबे तुझे तो पता नहीं क्या होता रहता है। कभी रात में टॉर्च ले जाकर कोई बंकर में घुसता हुआ दिखता है कभी दिन में आवाजें सुनाई देती हैं।" अनिल ने कहा।

''सर आप इसकी बातों में मत आईये। यहाँ परिंदा भी नहीं है।" अरुण बोला।

''तुमने किस तरह की आवाज सुनी?" अर्जुन ने शमशेर से पूछा।

''सर मैंने दो-तीन बार लकड़ी के फट्टे गिरने जैसी आवाज सुनी।" शमशेर ने बताया।

''सब लोग अपनी पोजीशन ले लो।" अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा" सर यहाँ हाइड आउट हो सकता है। पिछले दो-तीन महीने से जो शांति चल रही थी हो सकता है इसी कारण हो।

हाइड आउट सुनते ही सब हरकत मे आ गये। सबने मुस्तैदी से अपने हथियार संभाल लिये।

***