Ek Jindagi - Do chahte - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 2

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-2

तनु के चेहरे पर अब थकान लगने लगी थी। परम ने उसे अब बाकी का काम बाद में करने को कहा।

सूप पीकर और नूडल्स खाकर तनु और परम थोड़ी देर बाते करने ऊपर बालकनी में बैठ गये। दो-चार दिन में ही पूर्णिमा आने वाली होगी। आसमान में चांद चमक रहा था। कतार में खड़े घरों की छतों पर चांदनी छिटकी हुई थी। आसपास किसी घर में रातरानी लगी होगी, हवा के झौकों के साथ-साथ उसकी मंद मधुर सुगंध भी आ जाती थी। तनु ने तय कर लिया अपने बगीचे में वह भी रातरानी का पौधा जरूर लगाएगी। नीचे दो-चार लोग टहल रहे थे। कुछेक परम और तनु के घर के सामने से गुजरते हुए उत्सुकतावश घर की ओर देख लेते थे।

अभी तक उन दोनों ने आसपास किसी से घर पर पहचान नहीं की थी। यूँ ही आते-जाते में अगर सामने कोई दिख जाता, तो आपस में मुस्कुराहटों और नमस्कार का आदान-प्रदान हो जाता था। लेकिन परम के मन में था, यहाँ से वापस जाने के पूर्व वह आसपास के चार-छह परिवारों के साथ अच्छी जान पहचान कर लेगा और हो सका तो थोड़ी घनिष्टता भी बढ़ाने की कोशिश करेगा ताकि बाद में तनु को किसी का सहारा रहे। यूँ तो उसके माता-पिता भी इसी शहर में रहते हैं लेकिन अचानक ही कोई जरूरत आ पडऩे पर सबसे पहले तो पड़ोसी ही काम आते हैं।

तनु को छोड़कर जाना पड़ेगा इस खयाल से ही परम के सीने में दर्द की एक कसक सी उठने लगती है। अभी तो खैर बहुत दिन है। परम ने अपने विचारों की दिशा दूसरी ओर मोड़ ली। दो साल पहले जब यह घर बुक किया था परम ने तब कृष्णा सोसायटी में कई लोग रहने आ चुके थे। इस कालोनी के बारे में परम के एक दोस्त ने उसे बताया था जब वह ड्यूटी पर था। वह दोस्त भी अहमदाबाद का रहने वाला था। तब परम ने तुरंत तनु को फोन लगाया और जाकर कॉलोनी और घर देखकर आने को कहा। तनु को भी घर बहुत पसंद आया। तब परम ने यह घर बुक कर दिया था। 26/10 । परम का घर, तनु का घर, परम और तनु का अपना घर। सच होते हुए भी अभी तक सब कुछ एक सपने जैसा ही प्रतीत हो रहा था। पिछले चार सालों में कितना लडऩा पड़ा है उन्हें हालातों से, समाज से, परिवार से और सबसे ज्यादा शायद अपने आप से। तनु और परम ने बहुत सारे मोर्चों पर लड़ाई लड़ते हुए एक दूसरे को हासिल किया था। और अभी भी यह लड़ाई खत्म नहीं हुई है, अभी सबसे बड़ा मोर्चा फतह करना बाकी है - परम का परिवार।

तनु ने अंगड़ाई लेकर एक लम्बी जम्हाई ली तो परम अपने खयालों में से बाहर आया, वह थक गयी होगी। अब सोना चाहिए।

''चलो गरम पानी का शॉवर ले लो पाँच मिनट, नींद अच्छी आयेगी।" परम ने फूर्ती से उठते हुए कहा। तनु भी उठ गयी। परम ने हल्के गुनगुने पानी पर शॉवर सेट करके तनु को आवाज लगाई। अपना और परम का नाईट सूट लेकर तनु बाथरूम में आयी, कपड़े उतारे और शॉवर केप लगाकर परम के साथ शॉवर के नीचे खड़ी हो गयी। गरम पानी की बूंदों ने शरीर की थकान को काफी हद तक दूर कर दिया।

नाईट सूट पहनकर दोनों बाहर आए। परम एक सिगरेट पीने लगा तब तक तनु कॉफी बना लाई। कॉफी खत्म करके तनु ने मुस्कुराकर परम को देखा-

''ओके गुडनाईट।" कहकर वह पलटकर सोने लगी।

''ओए अभी से कहाँ सो रही है। दोपहर का वादा कौन पूरा करेगा?"

''कौन सा वादा?"

''रिचार्ज का।"

''ठीक है नेट बेलेंस ही ना?"

''वो तो दोपहर के लिये था। अभी तो फुल रिचार्ज करवाना पड़ेगा जी, बैटरी और बेलेंस दोनों ही खत्म है।" परम ने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा।

''ओह तो लाईट तो बंद करो।" तनु ने छूटने का प्रयत्न करते हुए कहा।

''नहीं, छोटी सी एलईडी ही तो जल रही है, जलने दो।"

''बंद कर दो ना प्लीज।"

''नो"

''प्लीज..."

''नो"

तनु और बोलती तब तक मेजर उसका मुँह बंद कर चुका था।

रात के ढाई बज रहे थे। परम एक झपकी लेकर उठ गया। उठ क्या गया उसकी आँख ही खुल गयी। वैसे भी पिछले तेरह सालों में उसकी नींद ही खो गयी थी। कई बार उसे पन्द्रह-पन्द्रह दिन लगातार जागना पड़ता है। नींद, भूख, प्यास सब पर काबू पा चुका था परम। अब तो ड्यूटी पर नहीं होता था तब भी देर तक नींद नहीं आती थी। रात मे झपकी लग भी गयी तब भी जल्दी ही आँख खुल जाती थी। मुश्किल हालातों में रहने वाले मेहनती शरीर को अब ज्यादा आराम भी नहीं सुहाता।

परम ने एक सिगरेट सुलगाई और एक लम्बा कश लिया। बगल में तनु गहरी नींद में सो रही थी। परम की आँखों में ढेर सारा प्यार लहराने लगा। उसको नींद न आने की एक वजह तनु भी है। रात में जब तनु सो जाती, परम को बैठकर उसे निहारते रहना बहुत अच्छा लगता था। परम की जिदंगी की शुरुआत भी तनु है, और जिंदगी का आखरी छोर भी तनु ही है। तनु है तो जिंदगी बहुत आसान लगती है। परम का मन करता है रात भर उसे बाहों में लेकर पड़ा रहे और रात कभी खत्म ना हो।

परम चाहता है तनु को जिंदगी में जितनी खुशियाँ कम मिली हो वो सब परम पूरी करे।

और परम की खुशियाँ...

परम की जिंदगी की जितनी भी खुशियाँ हैं वो तनु से ही शुरू होती है और तनु पर ही खत्म होती हैै।

तनु के गालों पर बिखर गयी बालों की लटों को पीछे सरकाकर परम उसके गालों पर हाथ फेरने लगा। याद आया पहली बार वह बहुत बेकाबू होकर तनु पर टूट पड़ा था। महीनों से शारीरिक, मानसिक रूप से कठोर अनुशासन में रहने को मजबूर परम तनु के साथ एकांत पाते ही अपना धैर्य खो बैठा था। और परम के नीचे छटपटाती तनु हाँफते हुए चिल्लाई थी -

''आय एम नॉट एन आर्मि पर्सन आय एम ए सिविलिएन"

''व्हॉट?" परम हड़बड़ा गया।

''अरे बाबा मैं फौजी नहीं हूँ मैं सिविलिएन हूँ।"

''ओ ऽऽ हो ऽऽ।" परम उसका मतलब समझ कर ठहाका मारकर हँस दिया था।

ये तीन-एक साल पहले की बात है। लेकिन हर बार परम को वो पहली बार तनु का घबराकर चिल्लाना याद आ जाता और वो हँसने लगता। आज भी वह जोर से हँस दिया। आज भी वह तनु को चिढ़ाता ''आए एम ए सिविलिएन, अब डर नहीं लगता मेडम जी को 'और तनु हँस कर कहती' नहीं अब मैं भी फौजी हो गयी ना।"

''अच्छा और तब नहीं थी क्या?"

''तब फिफ्टी परसेंट फौजी थी, अब हंडरेड परसेंट फौजी हो गयी हूँ।"

परम के हँसने की आवाज सुनकर तनु की नींद खुल गयी ''क्या हुआ?" उसने ऊनींदी आवाज में पूछा" सोए नहीं अब तक, क्या कर रहे हो।"

''कुछ नहीं बुच्ची, कुछ नहीं कर रहा। सो जा बहुत रात हो गयी है।" परम तनु का सिर अपने खुले सीने पर रखकर उसे बाहों में जकड़कर सो गया।

किसी कीमती वस्तु का मिलना असंभव लगता हो लेकिन फिर भी भाग्य से वह मिल जाये तो हमेशा उसके खोने का डर कहीं मन के किसी कोने में बना रहता है। उसी तरह का कोई डर, कोई असुरक्षा की भावना परम के मन में तनु को लेकर बनी रहती है और वह हमेशा उसे अपनी मजबूत बाहों के घेरे में अपनी धड़कनों के पास सुरक्षित रखना चाहता है। जब भी तनु और अपने भविष्य को लेकर परम डर कर असुरक्षित सा महसूस कर उदास होने लगता तब तनु ही उसे ढाढ़स बंधाती थी।

''मुझे तुम्हारी जिंदगी से बस एक ही व्यक्ति अलग कर सकता है।"

''कौन" परम कांप कर पूछता।

''वो तुम खुद हो।"

''ये बात सपने में भी नहीं सोचना, ऐसा कभी नहीं हो सकता। तुम तो मेरी सांसे हो।" परम प्यार से कहता।

''तो फिर निश्ंिचत रहो जी मुझे आपसे इस दुनिया में कोई दूर नहीं कर सकता।" तनु हमेशा विश्वास से भरी रहती थी।

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