एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-3
''अरे ये तुम्हारे चेहरे पर लाल-लाल दाने से क्या हो गये हैं?" सुबह-सुबह तनु के गाल और ठोडी पर लाल दाने देखकर परम घबरा कर बोला।
''तीन दिन से आपने शेव नहीं किया है तो और क्या होगा। कहा था ना कल कि शेव बना लो।" तनु नकली गुस्से से उसे देखते हुए बोली।
''ओ तोड्डी! कितनी नाजुक है मेरी बीवी।" परम ठठाकर हँस पड़ा" सही कहा था तुमने ''आई एम ए सिविलिएन।"
''चुप रहो।" तनु ने उसे झिड़का।
''तेरी गलती है तू इतनी ज्यादा गोरी क्यों है?" परम ने एक एन्टीसेप्टिक क्रीम लाकर उसके गालों पर लगा दी।
तनु ने कल खरीद कर लाये हुए नये टी-सेट में चाय छानी और दोनों बाहर बगीचे में आकर बैठ गये। सुबह की गुनगुनी सी धूप नींद से जागकर अंधेरे की काली चादर उतार चुकी थी और अपने सुनहरे पंख फैला रही थी। वैसे ही हँसते हुए पीले सूरजमुखी के फूल कल खरीदे गये नये टी-सेट पर बने थे। मंद-मंद बयार झूम रही थी। ऐसे ही सुनहरे सूरजमुखी परम और तनु के दिलों में भी खिले हुए थे। जब साथ मनचाहा हो तब पूरी दुनिया सुनहरे रंग में रंगी लगती है।
आस-पास के घरों से चार-छ: लोग मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। वे परम और तनु को कौतुहल से देखते हुए गुजरे। परम और तनु ने शिष्टाचारवश उन्हें नमस्ते किया।
''आस-पास के दो-चार घरों में अच्छी पहचान बना लेना तनु। कुछ भी परेशानी हो तो पहले पड़ोसी ही काम आते हैं।" परम ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।
''हाँ एक बार घर का काम खत्म हो जाये फिर दोनों साथ में जाकर ही सबसे मिल आएंगे।" तनु ने परम की बात का समर्थन किया।
चाय पीने के बाद परम तनु के किताबों के बक्से उपर वाले कमरे में चढ़ाने लगा।
''क्या पत्थर चट्टाने भरी हैं यार इसमें कितने भारी हैं।" परम सीढिय़ाँ चढ़ते हुए बोला।
''पत्थर नहीं किताबें हैं जी। ऐसा मत कहो। उन्हीं की वजह से आपसे मिली हूँ मैं।" पीछे से तनु बक्से को सहारा देती हुई बोली ''और आप तो मुझे भी आराम से उठा लेते हो। किताबें तो फिर भी हल्की है।"
''हाँ जी तुमसे तो हल्की ही हैं।" कमरे में आकर परम ने बक्सा जमीन पर रख दिया ''पहले मैं सारे बक्से ऊपर ले आता हूँ तब तक तुम बुक शेल्फ्स साफ कर लो।"
''ठीक है।" कहकर तनु कपड़े से बुक शेल्फ साफ करने लगी।
एक-एक कर परम ने सारे बक्से ऊपर लाकर रख दिये। फिर वह किताबें निकाल-निकाल कर तनु को देता गया और तनु उन्हें करीने से रखती गयी।
''कितनी किताबें हैं बार रे तुम्हारे पास। नॉवेल्स, कोर्स की किताबें जर्नल्स, न्यूज पेपर्स। पूरा भंडार है भंडार।" परम बक्सों की ओर देखकर बोला।
''ये मेरा शौक भी है और प्रोफेशन भी है। और अब तो आपसे दूर होने पर बिरहा के दिन काटने का सहारा भी है।" आखरी वाक्य बोलने तक तनु का स्वर संजीदा हो गया था।
''ऐ तनु मेरी जान! हम एक दूसरे से दूर होते ही कब हैं पगली। हम तो एक दूसरे के दिलों में रहते हैं।" परम ने तनु की ठोढी छू कर कहा। हांलांकि परम के लिये भी यह विचार हमेशा ही तकलीफ दायक होता है।
एक गहरी सांस लेकर तनु वापस शेल्फ में किताबें जमाने लगी। उनमें बहुत सी चीजें उसकी बचपन से भी सहेज कर रखी हुई थीं। परम को हँसी भी आ रही थी। कॉमिक्स, पेंसिल्स का खजाना, पुराने पेन, स्याही की बोतलें, सूख चुके स्केचपेन, पेंसिल बॉक्स, पता नहीं क्या-क्या सहेज कर रखा हुआ था तनु ने।
''अब ये बाबा आदम के जमाने का इंक पेन क्यों संभाल कर रखा हुआ है अभी तक" परम पुराने पेन को हाथ में लेकर हँसते हुए बोला।
''ये वो पेन है जिससे मैंने सबसे पहली न्यूज लिखी थी जी। बारह साल की उमर में।"
''ओहो बारह साल की उमर में क्या लिखा था- आज मैं स्कूल नहीं गयी, क्योंकि मेरे पेट में दर्द था, मम्मी ने तब आजवाईन गरम करके मेरे पेट की सिंकाई कर दी, मैं स्कूल नहीं जा रही यह सुनकर पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली के भी पेट में दर्द होने लग गया और वो भी स्कूल नहीं गयी, यही है आज की ताजा खबर।"
परम ने पेन को माईक की तरह मुँह के सामने पकड़कर इस तरीके से बोला कि तनु खिलखिलाकर हँस दी।
''नहीं मेजर साहब मैंने स्कूल के एनुअल फंक्शन पर रिपोर्ट लिखी थी और सब टीचर्स ने बहुत तारीफ की थी मेरी रिपोर्टिंग की।" तनु ने परम के हाथ से पेन लिया और वापस सहेज कर रख दिया।
''वो तो पता है, हमारी बिवी बचपन से ही बहुत इंटेलिजेन्ट है, इसमें तो कोई शक नहीं है।"
तनु मुस्कुरा दी। दस बजे वह किचन में जाकर दो बॉउल में दूध कॉर्नफ्लेक्स ले आयी और दो कप में चाय। काम बीच में रोककर उन दोनों ने ब्रेकफास्ट किया और चाय पीने लगे।
''तुम्हारी सारी छुट्टियाँ काम की भागदौड़ में ही निकल जायेंगी इन छुट्टियों में भी तुम्हें जरा सा चैन और आराम नहीं मिल पायेगा।" तनु ने परम को देखते हुए कहा।
''नहीं रे ये काम तो दस दिन में पूरा हो ही जायेगा। फिर आराम ही है। इसीलिये तो मैंने इस बार दो महीने की छुट्टी ले ली है। बस आपकी गृहस्थी जम गयी एकबार कि फिर बाकी दिन पूरा आराम।" परम मुस्कुराकर तनु का गाल सहलाते हुए बोला।
जवाब मे तनु भी मुस्कुरा दी।
दोनों चाय पीकर फिर मुस्तैदी से काम में जुट गये। किताबें बक्सों में सब्जेक्ट के अनुसार ही पैक की थी तनु ने इसलिए जमाने में दिक्कत नहीं हुई। ढाई बजे तक सारा काम हो गया। पेट में भूख के मारे चूहे कूद रहे थे। तनु ने हाथ मुँह धोए, बाल ठीक किये और दोनों खाना खाने निकल गये। आज किचन का जरूरी सामान भी लेना था।
होटल से खाना खाकर जब दोनों बाहर निकले तो शाम के चार बज रहे थे। दोनों मार्केट का चक्कर लगाने लगे। फिर परम ने एक दुकान के सामने तनु को उतारा और पार्किंग में कार पार्क करके आ गया। एक-एक कर चीजें देखते, चुनते, खरीदते समय ऐसा बीत गया कि पता ही नहीं चला कब रात हो गयी और दुकानें बंद होने का समय भी आ गया। ढेर सारा सामान लेकर परम और तनु घर लौट आए। दुकानों में खड़े-खड़े तनु के पैर बुरी तरह से दर्द करने लगे थे।
''बाप रे नये सीरे से घर सेट करना कितना मुश्किल काम है।" परम कार की डिग्गी में सामान रखते हुए बोला।
''हाँ जबकि बड़ा-बड़ा सारा सामान और फर्नीचर तो छ: महीने पहले ही ले लिया था। अगर वो भी अभी ही ढूंढने निकलते तब?" तनु की बात पर परम आँखें फैलाकर हँस दिया।
घर आकर उन दोनों ने सारा सामान किचन के प्लेटफॉर्म पर रख दिया अब अलमारियों में जमाने की हिम्मत तो रही नहीं थी। दोनों ने पहले गुनगुने पानी का शॉवर लिया और फिर नीचे आ गये। तनु कॉफी बनाने लगी। एक ओर परम ने ब्रेड सेंकी और बीच में चीज स्लाईस रखकर सेण्डविच बनाकर तनु को दिया और खुद भी खाने लगा।
''अब ये सामान तो कल सुबह ही जमाएंगे।" परम ने प्लेटफॉर्म पर रखे सामान के ढ़ेर को देखते हुए कहा।
''मैं तो सोच रही थी किराना लाने के बाद ही इक_ा रखें वरना दाल-चावल मसाले रखते समय दुबारा मेहनत हो जायेगी।" तनु ने राय दी।
''हाँ ये भी ठीक है। साढ़े दस बजे तक सुपर मार्केट खुल जायेगा तो कल सबसे पहले जाकर सामान ही ले आएंगे। फिर तुम सुबह जल्दी मत उठना। आराम करना।" परम ने कहा।
''तुम उठ जाते हो तो मुझे भी सोते रहना अच्छा नहीं लगता तो मैं भी उठ ही जाती हूँ।"
''मुझे तो आदत है जागते रहने की, मेरा शरीर अब इन सबका आदी हो गया है, पर तुम अपना ध्यान रखो। कल सुबह उठने की जल्दी मत करना। आठ दिन हो गये हैं तुम्हें रात-दिन मेहनत करते, तो कल सुबह आप रेस्ट करेंगी। इट्स एन ऑर्डर।" परम उसकी कमर में अपनी बाहें लपेटता हुआ बोला।
''ओ.के. मेजर साहब!" तनु उसे सेल्यूट करते हुए बोली।
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परम के सीने पर सिर रखकर लेटी तनु उसके सीने पर हाथ फेर रही थी।
''सो जा बुच्ची। बहुत रात हो गयी है।" परम उसके बालों को सहलाता हुआ बोला।
''नींद नहीं आ रही है।" तनु ने जवाब दिया।
''आँख बंद कर, अपनेआप नींद आ जायेगी।"
''अच्छा लग रहा है करने दो ना।" तनु उससे लिपटती हुई बोली।
''नहीं थोड़ा आराम भी जरूरी है। चलो अच्छी बच्ची की तरह सो जाओ।" कहकर परम उसके बालों में थपकियाँ देने लगा।
दस-पन्द्रह मिनट बाद ही तनु सो गयी। अपने सीने पर उसका सिर रखे परम अब भी धीरे-धीरे उसके बाल सहला रहा था। रात के ये निश्चिंत पल परम को सबसे अच्छे लगते थे। जब न किसी काम की भागदौड़ होती थी और ना ही किसी बात का तनाव। बस वो और उसकी जान 'तनु'। बीच में और कोई नहीं।
अपने दिल के बहुत करीब परम तनु के दिल की धड़कनों को महसूस कर रहा था। उसकी साँसों में तनु की साँसों की खुशबू घुल रही थी। परम का मन कर रहा था वह अनंत काल तक यूँ ही तनु की साँसों के घूंट भरता रहे। कभी कोई इनसान इतना अपना भी लग सकता है, किसी से कोई इतना प्यार भी कर सकता है, कोई दिल के इतने करीब आ सकता है कि आप उसके बिना अपने वजूद के बारे में सोच ही नहीं सकते, परम ने कभी भी नहीं सोचा था। कैसे अचानक से अजीब हालातों में तनु उसके जीवन में आयी और देखते-देखते उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी। अब तो वह तनु के बिना अपने जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकता।
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