Ek Jindagi - Do chahte - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 9

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-9

तनु उसी समय केंप के पास आयी। कृष्णन ने उसे हादसे के बारे में बताया। सुनकर तनु को भी बहुत बुरा लगा। बिना उसे कुछ पूछे ही कृष्णन ने ईशारा किया कि परम अंदर है और बहुत परेशान है।

तनु धीरे से केंप के अंदर आयी। परम घुटनों में सिर दिये उदास बैठा था। तनु ने धीरे से परम के कंधे पर हाथ रखा। परम ने चौंक कर ऊपर देखा। तनु धीरे से परम के पास बैठ गयी। परम दो क्षण उसके चेहरे को देखता रहा। उसका मन कर रहा था कि तनु के कंधे पर सिर रखकर अपना दु:ख हल्का कर ले। कितना मजबूर होता है पुरुष भी, भावनाएँ होते हुए भी उन्हें व्यक्त नहीं कर सकता हमेशा डरता रहता है कि उसे 'कमजोर' ना समझ लिया जाय और उसी डर में अंदर ही अंदर घुटते हुए और भी ज्यादा कमजोर होता जाता है।

परम ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। तनु ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी हथेली बुरी तरह गरम थी। तनु ने उसका माथा भी छुआ। परम का माथा भी जल रहा था। दो पल के लिये आँखेंं बंद करके परम ने मन ही मन सिसकारी भरी। लड़कियों के लिये सब कितना आसान होता है। दु:ख हो, रो लिया, किसी को छूने का मन किया छू लिया। पर लड़के, तो इस तरह से बेझिझक, कुछ नहीं कर सकते। ना रो सकते हैं और ना ही...।"

''आपने तो उसे बचाने की पूरी कोशिश की थी ना, इसमें आपका कोई दोष नहीं है। यह बस एक हादसा था। भूल जाइये इसे। आपने इतनी जाने बचाई हैं। इस हालत में भी, इतने तपते बुखार में, गिरती बारीश में भी आपने अपनी जान की परवाह ना करते हुए इतनी जाने बचाई है। सच में बहुत बड़ी बात है।" तनु ने परम की हथेली थपथपाते हुए कहा। ''मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ आप को देखकर।"

परम के कानों में जैसे किसी ने मिस्री घोल दी। आज तक वाणी ने कभी नहीं कहा, उसके घरवालों ने कभी नहीं कहा कि 'परम हमें गर्व है तुम पर।'

''ये तो मेरा फर्ज है ही। इसमेें बड़ी बात क्या है।" परम ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।

''वो तो देशवासियों को पता है कि कितनी बड़ी बात है। तभी तो हम सबको अपने देश की फौज पर इतना गर्व है।" तनु ने संजीदा आवाज में कहा।

परम को हैरानी हो रही थी, अपने लोगों ने कभी उसके प्रति ऐसे अहसास नहीं रखे, और उस पर गर्व कर रही है एक पराई लड़की जो उसे सिर्फ ढाई दिन पहले ही मिली है। एक अनजाने अपनेपन और सुकून से भर गया उसका मन। तपती धूप में जैसे किसी घने तरूवर ने उस पर अपनी हरी पत्तियों की ठंडी छाँव कर दी। उसका मन हो रहा था एक बार बस एक बार थोड़ी देर के लिये तनु के कंधे पर सिर रख दे और वो उसके बालों में हाथ फेर दें।

लेकिन परम ऐसा नहीं कर सका।

बस तनु कुछ देर उसका हाथ पकड़कर उसे मौन दिलासा देती रही। कुछ लोग कैसी डोरियाँ बांध लेते हैं कि मन उसकी तरफ खिंचने लगता है। उनका चेहरा कुछ ऐसा होता है कि जन्मों का जाना पहचाना लगता है। कोई उम्र भर साथ रहकर भी अपना नहीं लगता और कोई दो दिन में ही दिल को अपनेपन से लबालब भर देता है।

उस दिन तनु वापस चली गयी थी। और परम भी उसी दिन अपनी पोस्टिंग वाली जगह वापस चला गया था, मन में एक दर्द, एक कसक, एक खालीपन लिये हुए। महीनों उसे तनु याद आती रही। मन में एक अफसोस सालता रहता कि ना उसने तनु का फोन नम्बर लिया और ना ही उसे अपना नम्बर दिया। अब वो प्यारा सा चेहरा कभी भी देखने को नहीं मिलेगा। वो अपनेपन भरी बातें कभी सुनाई नहीें देंगी। राणा और रजनीश कभी उस पर हँसते, कभी उसके दर्द को समझते हुए नेट पर 'तनु देसाई' को सर्च करते रहते।

अक्सर तनु की याद आने पर वह अपने उस हाथ को देखता रहता जिसे तनु ने थामा था और सोचता इस हाथ ने उसका हाथ हमेशा के लिये क्यों नहीं थाम लिया। और धीरे से अपने हाथ को अपने होंठों पर रख लेता। तब उसके मन का खालीपन और गहरा हो जाता।

कई महीनों बाद वह किसी काम से दिल्ली गया और रेल्वे स्टेशन से बाहर आ रहा था तभी अचानक अपना नाम सुनकर चौंक पड़ा।

वह अनूप था।

जो उस हादसे वाली जगह पर तनु के साथ आया था। वह परम से बड़े उत्साह से मिला। बहुत सी बातें की और बताया कि तनु उसे अक्सर याद करती है।

परम के कानों में यह सुनकर घंटियाँ बजने लगीं। ईश्वर क्या कोई संकेत दे रहा है। अबकी बार परम अपनेआप को रोक नहीं पाया उसने अनूप से तनु का फोन नम्बर ले लिया।

उस दिन परम बहुत खुश था। बार-बार अपना फोन देखता, तनु का नम्बर देखता और उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कुराहट आ जाती। दिल खुशी से धड़कने लगता।

तनु उसे याद करती है।

अक्सर याद करती है।

अनूप तो देवदूत बनकर उसके जीवन में आया था। ईश्वर ने स्वयं उसे परम के पास भेजा था। ईश्वर चाहता था परम तनु से बात करेे, तनु से मिले, परम के जीवन में प्यार की जो कमी है तनु के साथ जीकर पूरी कर ले। तनु से मिलने के बाद जब से परम अपनी यूनिट में वापस गया था। काम के बीच चैबीसों घण्टे दिल में एक अजीब सी बेचैनी छायी रहती। परम तब अपने आप पर बुरी तरह खीज जाता था। क्या है यह एक तो सारे समय काम की मारामारी। रात-दिन की हड्डियों का चूरा बना देने वाली मेहनत उस पर यह अव्यक्त बेचैनी। इतनी लड़कियाँ स्कूल कॉलेजों में साथ पढ़ी। बाद में भी कितनी लड़कियाँ जीवन में आयीं, कितनों के साथ घनिष्ठता भी रही, मगर ऐसी बेचेनी, ऐसी विकलता, चैबीसों घण्टे मन में ऐसे किसी का ख्याल नहीं रहा।

किसी के लिए कभी ऐसे मन नहीं तड़पा। परम को कभी चिढ़ भी होती, क्यूं आयी तनु वहाँ पर। नहीं आती तो अच्छा होता। वह अपनी ड्यूटी निभाता और वापस चला जाता। जीवन उसी ढर्रे पर चलता रहता। इस लड़की ने ठहरे हुए पानी में तरंगे उठाकर उसे बेचेन कर दिया है। अपने मन में प्रेम के कोमल अहसासों को परम बहुत पहले ही मारकर अंतर में बहुत गहराई में दफन कर चुका था। तनु ने उसके अंतर की उस अंधेरी गहराई में जाकर ना जाने कौन सी लौ जला दी थी कि वे भावनाएँ, वो सारे अहसास जीवित होकर साँस लेने लगे, धड़कने लगे सीने में।

जिन अहसासों को वाणी विवाह के बाद दो वर्षों में भी जगा नहीं पायी थी, उन्हें एक अजनबी लड़की ने दो दिनों में ही जगा दिया। तब परम को क्या खबर थी कि यह सारे चक्र उनकी नियति रच रही है। भविष्य में उनका साथ रहना लिखा था। अनूप से तनु का फोन नम्बर मिलने के बाद भी परम सही गलत की उधेड़बुन में पड़ा रहा। फोन उठाता, तनु का नम्बर देखता, उससे बातें करने की तीव्र ईच्छा मन में उठती मगर वह बलपूर्वक उसे दबाकर फोन रख देता। सोचता वह एक बंधन में बाँधा जा चुका है तो क्यों किसी मासूम लड़की की भावनाओं से खिलवाड़ करे लेकिन एक दिन उससे रहा नहीं गया और उसने एक दिन दोपहर को तनु का नम्बर डायल कर दिया रिंग जाने लगी तो परम का दिल बड़ी जोरों से धड़कने लगा। क्षण भर में ही दुनिया भर की बातें मन में कौंध गयी। मन किया फोन डिसकनेक्ट कर दूँ। जंग के मैदान में दुश्मनों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाते हुए भी बंदूक पकड़ जो हाथ स्थिर रहते हैं, वो उस दिन फोन पकड़े हुए कपकंपा रहे थे। साँसे बेकाबू होने लगीं थीं। सीना धौकनी की तरह चलने लगा।

''हेलो।"

उधर से तनु की आवाज सुनते ही परम के कानों में घण्टियाँ बजने लगीं वह हैलो कहना भी भूल गया।

''हैलो।" तनु ने दुबारा कहा तो परम को होश आया।

''ह.... हैलो।"

''जी....आप।" तनु को आवाज सुनते ही लगा कि यह शायद परम ही है। मगर तब तक उसे अनूप ने बताया ही नहीं था कि उसने परम को तनु का नम्बर दे दिया है। महीनों तक परम ने फोन नहीं किया तो अनूप को लगा कि शायद परम को ऐसी कोई दिलचस्पी नहीं है तभी उसने तनु को फोन नहीं लगाया। और इसीलिये उसने तनु को कुछ भी नहीं बताया था यह भी नहीं कि परम उसे दिल्ली के स्टेशन पर मिला था। तभी आवाज पहचानकर भी तनु शंकित थी।

''मैं मेजर परम।" परम ने अपने सारे शरीर की उर्जा को अपने गले में एकत्र करके कहा ''कैसी हो?"

''अरे आप?" तनु के स्वर में आश्चर्य मिश्रित खुशी की झंकार थी।

''सॉरी मैं अपने एक दोस्त को फोन लगा रहा था गलती से तुम्हारा नम्बर लग गया।" परम से हड़बड़ी में कुछ कहते नहीं बना तो उसके मुँह से झूठ निकल गया।

''क्या?" तनु ने पूछा ''पर आपको मेरा नम्बर कहाँ से मिला।"

''वो एक दिन दिल्ली स्टेशन पर अनूप मिल गया था उसने गलती से दे दिया" परम अब भी हड़बड़ा रहा था।

''क्या?" तनु हँस पड़ी थी। आज भी तनु परम को प्यार से उलाहना देती है ''हाँ जी मेरा नम्बर तो गलती से मिल गया था और आपने गलती से डायल कर दिया था। आप मुझसे बात थोड़े ही ना करना चाहते थे।"

और परम प्यार से उसे सीने से लगाकर कहता है ''चल हट बुच्ची। फोन तो तुझे ही लगाया था वो तो एकदम से तेरी आवाज सुनकर हड़बड़ा गया था। समझ ही नहीं आया कि क्या कहूँ तो मुँह से निकल गया।

उस दिन औपचारिक तौर पर बाते हुईं।

लेकिन दोनों को ही समझ आ गया था कि उन्हें एक दूसरे से बातें करना अच्छा लग रहा था। फिर तो अक्सर दोनों बातें करते। कभी फुरसत होती तो तनु फोन लगा लेती और नही ंतो परम कॉल कर लेता।

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