एक जिंदगी - दो चाहतें - 45 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 45

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-45

''तुमने आवाज किस दिशा से सुनी थी?" अर्जुन ने शमशेर से सवाल किया। शमशेर ने एक ओर इशारा किया। हांलाकी जंगल में आप ठीक अंदाजा नहीं लगा सकते कि आवाज इसी निश्चित दिशा से आ रही है लेकिन एहतियात के तौर पर अर्जुन ने उस दिशा की ओर लक्ष्य करते हुए सबको पेड़ों की आड़ में छुपकर अलर्ट रहने को कहा और उसी दिशा में निशाना साधकर ओपन फायर खोलने को तैयार रहने को कहकर खुद परम के साथ और शमशेर के साथ उस दिशा में आगे बढऩे लगा। थोड़ी ही दूरी पर तीन-चार पेड़ नीचे गिरे हुए थे। उनके बीच चीड़ की नुकीली पत्तियों का ढेर पड़ा था। यहाँ के कानून के मुताबिक जंगलों में अपने आप गिरने वाले पेड़ों को उठाना या उनकी लकड़ी का इस्तेमाल करना या प्रकृति में किसी भी तरह की छेड़छाड़ करना अपराध था। सिर्फ अगर सड़कों पर कोई पेड़ गिर कर रास्ता रोक देता था तो उसे हटाकर एक तरफ कर दिया जाता था। बाकी प्रकृति में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करना वर्जित था।

अर्जुन तीक्ष्ण नजरों से पेड़ों के गिरे हुए तनों के चारों ओर की जमीन को देखने लगा। जमीन पर घसीटे जाने के स्पष्ट चिह्न थे। अर्जुन ने परम और शमशेर को इशारों में बताया कि इन पेड़ों को आस-पास से घसीटकर एक दूसरे के पास जमाया गया है ताकि यहाँ की जमीन पर कोई पाँव न रख सके ओर दूर से ही निकल जाये। लम्बे चीड़ों के पाँच-छ: लठ्ठे एक दूसरे पर इस तरह से रखे हुए थे कि उनके बीच में एक सुरक्षित तीकोना स्थान बन गया था। उसी तिकोने स्थान के बीच में एक जगह चीड़ के पत्तों और अन्य जंगली पत्तों और टहनियों का ढेर लगा था।

अर्जुन ने इशारा किया-

''हाइड आउट सर।"

तीनों उस ढेर पर तीन तरफ से निशाना तान कर खड़े हो गये। उन्हे ज्यादा देर राह नहीं देखनी पड़ी। दो-चार मिनट बाद ही अचानक ढेर हिला और एक दाढ़ीवाला, लम्बा चोगा पहनकर ढेर के पीछे से प्रकट हुआ जैसे कि उसे धरती ने बाहर उगला हो। उसके हाथ में लोडेड एके 47 रायफल थी। उसकी नजर ठीक सामने खड़े अर्जुन पर पड़ी। लेकिन इससे पहले कि वह अर्जुन को मार पाता अर्जुन की गोली उसके सिर के पार थी।

ढेर के पीछे से और भी दाढ़ीवाली आकृतियाँ प्रकट होने लगीं। अर्जुन, परम और शमशेर ने ओपन फायर खोल दिया। वे तुरंत लठ्ठों की आड़ लेकर छुप गये और फायर करने लगे दोनों और से अंधाधुंध ओपन फायरिंग हो रही थी। अर्जुन फायर करते हुए किसी ऊँची जगह की तलाश में था ताकि लठ्ठों के भीतर देख सके वह फायर करते हुए पहाड़ पर धीरे-धीरे ऊपर सरकने लगा। एक ऊँचाईं पर पहुँचने के बाद उसे एक आदमी का चौगा दिखाई दिया जो शमशेर पर फायरिंग कर रहा था। अर्जुन ने उस पर गोली चला दी। गोली उसके कंधे के ठीक नीचे से पार हो गयी। उसकी पीठ पर खून का फव्वारा छूटा और वह आदमी वहीं ढेर हो गया।

अरुण और अनिल पेड़ों की आड़ लेते हुए ऊपर की ओर बढऩे लगे ताकि पीछे की ओर से भी उन लोगों को घेर सकें। लेकिन चलती हुई गोलियों की बौछार के बीच से यह काम बहुत ही ज्यादा मुश्किल था। तब भी दोनों एक-एक इंच आगे बढ़ते जा रहे थे। चीड़ के लठ्ठों की आड़ होने के कारण उन मिलिटेन्ट्स को छुपने में आसानी हो रही थी। लेकिन अर्जुन ने ठान लिया था कि इन लोगो को यहीं खत्म करना है। उसने और ऊँचाई पर चढ़कर एक और आदमी को ढेर किया। मिलिटेंट्स बौखला गये। उन्होंने फायरिंग और तेज कर दी। पेड़ की आड़ से आगे बढऩे की कोशिश में एक गोली अरुण के कंधे में धंस गयी। उसके हाथ से रायफल छूट गयी वो अपना कंधा पकड़ कर दर्द से दोहरा हो गया। परम ने गोलियों की बौछार करते हुए गुस्से से भरकर लठ्ठो की ओर दौड़ा लगा दी। उसे कवर देते हुए विक्रम ने भी उसके पीछे दौड़ लगा दी। अर्जुन ने यह सोच कर की कहीं मिलिटेंट्स परम और विक्रम को अपना निशाना न बना ले, पीछे से उन पर अपना हमला तेज कर दिया। तीन तरफ हमले से मिलिटेंट्स की हिम्मत टूट गयी और अगले पाँच मिनट में ही सारे ढेर हो गये।

सब लोग अरुण की ओर भागे। उसके कंधे से खून बह रहा था। शमशेर के पैर से गोली रगड़कर निकल गयी थी। उसके पैर पर भी जख्म था। अनिल गोलियों से बचने के लिए तेजी से जमीन पर गिर गया था उसके चेहरे पर पत्थर से चोट आ गयी थी। सब लोग धूल पसीने से लथपथ भूख और थकान के मारे बेहाल हो रहे थे। लेकिन मिशन कामयाब हो जाने से सब खुश थे।

अर्जुन अब भी हाइड आउड के पास ही खड़ा था थोड़ी देर बाद वह लठ्ठों को पार कर अंदर चला गया। वहाँ छ: लाशें पड़ी थी। वह वहीं खड़ा था किसी का ध्यान नहीं गया कि उसके ठीक पीछे एक दानवाकार आकृति उभरी। इससे पहले की वह आकृति अपनी एके 47 से अर्जुन को मार पाती विक्रम का ध्यान चला गया उस पर और विक्रम ने उस पर गोलियाँ चला दीं। लेकिन बीच में लठ्ठों के होनेे और अर्जुन को बचाते हुए फायर करने से विक्रम का निशाना चूक गया और गोली उसे लगने की बजाए उसकी रायफल को लगी। उसकी रायफल उड़कर दूर जा गिरी। अर्जुन को संभलने का मौका मिल गया। उसने अपनी गन उठाकर उस पर फायर खोला लेकिन उसकी गन खाली हो चुकी थी। उस साढ़े छ: फुट के भीमकाय दाढ़ीवाले ने अर्जुन को दबोच लिया। अब कोई उसेे गोली भी नहीं मार सकता था क्योंकि अर्जुन को लगने की संभावना थी। परम और विक्रम ने अर्जुन को बचाने के लिए दौड़़ लगाई। लेकिन तभी अर्जुन ने एक झटके से अपने आप को दानव के शिकंजे से छुड़ाया और...

परम देखकर हैरान हो गया। अर्जुन के सारे जिस्म की ताकत मानो उसकी दोनों भुजाओं में आकर इकठ्ठा हो गयी थी। उसके भुज दण्डों की गोलाईयाँ इतनी बढ़ गयी कि लगा उसकी युनीफार्म फट जायेगी। वह अपने पैरों पर उछलकर उस साढ़े छ: फुट के दानव के सिर के ऊपर तक पहुँचा और अपनी रायफल का एक जोरदार वार उसकी कनपटी पर कर दिया। परम ने देखा कि उसके कानों से खून के फव्वारे छूट गये। और अगले ही क्षण वह जमीन पर धाराशायी हो गया।

जब तक परम और विक्रम वहाँ पहुँचे वह मर चुका था। विक्रम को उसके सिर की हालत देखकर उल्टी आ गयी। और परम आश्चर्य चकित हो रहा था यह देखकर कि कैसे अर्जुन ने एक ही वार में इस पहाड़ को धाराशायी कर दिया था। क्योंकि वह आदमी डीलडौल में अर्जुन से डेढ़ गुना लग रहा था। और बहुत ताकतवर भी। यह शायद इस टुकडी का सरगना होगा। परम ने मुस्कुराकर अर्जुन को देखा। अब उसकी भुजाओं की गोलाइयाँ कम हो रही थीं। परम ने बहुत पहले कहीं सुना था कि चाइना में ऐसी गुप्त विद्या आती है कुछ रहस्यमय लोगों को, जिसमें वे अपने पूरे शरीर की ताकत को अपने किसी भी भाग में एकत्र कर सकते हैं। जैसे हाथ या पैर में। तब उस हाथ या पैर की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। आज परम ने अर्जुन के रूप में उस विद्या का प्रत्यक्ष प्रमाण देख लिया था।

विक्रम अब भी मुँह फाड़े उस पहाड़ जैसे व्यक्ति को देख रहा था। अरुण को अनिल और एक दूसरा जवान यूनीट की ओर वापस ले गये थे। परम ने उनसे इसी लेाकेशन पर तीन अन्य जवानों को तुरंत ही वापस भेजने को कहा।

सबने शमशेर को धन्यवाद दिया। आज अगर वह इतनी बारीकी से आवाजों को सुन नहीं लेता तो इन मिलिटेंट्स ने बाहर आकर बड़ी आसानी से उन लोगों को खत्म कर दिया होता। आज सिर्फ शमशेर की सजगता से ना केवल वे खूंखार लोग मारे गये बल्की देश भी एक बहुत बड़े नुकसान से बच गया।

परम ने सबको दूर जाकर जमीन पर लेट जाने को कहा। सब लोग चले गये तो परम चीड़ के पत्तों के ढेर के पीछे गया वहाँ अंदर एक सुरंग बनी हुई थी। परम ने एक हेण्ड गे्रनेड हाथ में लिया उसकी पिन खींची, लॉक फ्री किया और उसे सुरंग के अंदर फेंक कर जितनी जल्दी हो सकता था वहाँ से दूर भागकर जमीन पर लेट गया।

ठीक तीस सेकण्ड बाद ग्रेनेड फट गया। परम की छाती के नीचे जमीन थर्रा गयी। और तीस सेकेण्ड तक सब लोग वैसे ही लेटे रहे लेकिन सुरंग में से फिर कोई बाहर नहीं आया। सब लोग उठे और सुरंग की ओर चल दिये। विक्रम शमशेर और एक अन्य जवान बाहर खड़े रहे, परम और अर्जुन सुरंग में चले गये। परम ने टॉर्च जला ली। अंदर बाकायदा कमरा सा बना हुआ था। ढेर सारी एके 47 रायफल्स 20-25 मेगजीन्स काजू, अखरोठ, ड्राय राशन, पाकिस्तानी करेंसी, मोटोरोला के सेट और एक ओर जमीन में जगह-जगह दबाकर रखे गये हैण्ड गे्रनेड थे।

''(मादर....) ने पूरा खजाना भरकर रखा है। यही से हरामजादे आगे हथियार सप्लाई करते होंगे।" अर्जुन ने चारों ओर देखते हुए कहा।

''हाँ इनका छिपने का प्रमुख स्थान आज तहस-नहस हो गया अच्छा हुआ। यहाँ से सारा सामान बाहर निकलवाकर इस जगह को पूरा खत्म करवाना पड़ेगा जिससे कि आगे कोई यहाँ छिप ना पाये।" परम ने कहा।

दोनों बाहर आ गये। परम ने फिर उस साढ़े छ: फुट के दैत्य पर नजर डाली और अर्जुन की बहादुरी को याद करके उसे रोमांच हो आया। अंधेरा घिरने लगा था। सब लोग यूनीट की ओर वापस लौटने लगे। डेढ़ घण्टे बाद जब वे लोग रूम में पहुँचे तो परम ने इलाके के थाना इंचार्ज के पास सामान और लाशों की जानकारी भिजवाई।

परम को रूम में छोड़कर सब इधर-उधर हो गये। परम समझ गया। वो लोग जानते हैं कि अब वो तनु को फोन लगाएगा इसलिये सब लोग यहाँ-वहाँ हो गये। परम ने अलमारी में से फोन निकालकर ऑन किया। बैटरी बहुत कम बची थी। परम ने फोन चार्जिंग पर लगाया और जूते खोलने लगा। जूते एक ओर सरकाकर फिर वह कपड़े लेकर नहाने चला गया। शॉवर खोलकर उसने सीधे अपने सिर को पानी के नीचे कर दिया। दस मिनट के शॉवर ने शरीर पर लगी धूल, गंदगी के साथ ही कुछ हद तक थकान को भी धो दिया था। परम कपड़े पहन कर बाहर आया। फोन थोड़ा बहुत चार्ज हो चुका था तनु से बात की जा सकती थी। परम ने उसे फोन लगाया।

''क्या बात है आज भी दिन भर से आपका फोन बंद ही था।" तनु ने पूछा।

''हाँ बाबा बताया ना जरूरी काम से हेडक्वार्टर आया हूँ। यहाँ नेटवर्क नहीं मिलता। अभी जाकर एक जगह पर नेटवर्क मिला है तो तुरंत तुझे फोन किया।" परम ने कहा।

''ऐसा भी क्या काम आ गया है। ठीक तो हो ना मेरा दिल घबरा रहा है।"

''आवाज सुन रही हो ना मेरी बस इसका मतबल है ठीकठाक हूँ। चलो अपना ध्यान रखना बाद में बात करूँगा।" परम ने जवाब दिया।

''अरे दो मिनट तो बात कर लो। ऐसा भी क्या काम है।" तनु झल्लाई।

''देख सोना यहाँ फोन रखने की सख्त मनाही है सिर्फ तेरी खातीर मैं चोरी से जेब में मोबाईल लिये घूमता हूँ। पकड़ा गया तो जबरदस्ती पंगा हो जायेगा। इसलिये थोड़ी मेरी प्रॉब्लम समझने की कोशिश करो। तुम चिंता कर रही होगी बस इसिलिये मैं नेटवर्क की रेंज ढूंढता हुआ यहाँ आ पहुँचा और तुम्हे फोन लगा दिया। देखो दो एक दिन अगर यहाँ नेटवर्क न मिले और फोन न लग पाये तो टेंशन नहीं लेना। मैं ऊपर हेडक्वार्टर में हूँ और बिलकुल ठीक हूँ। ओके? अब रखूं जी ज्यादा देर यहाँ खड़ा नहीं रह सकता। जैसे ही मौका मिलेगा फोन लगाऊंगा। अपना ध्यान रखना, दवाईयाँ समय पर लेती रहना। बाय मेरी जान।" परम ने तनु से कहा।

''ठीक है जी आप भी अपना ध्यान रखना।"

परम ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

सीमा पर गोलीबारी पिछले एक घण्टे से थमी हुई थी। चार-पाँच मिनट बाद ही परम की यूनिट के सब लोग रूम में आ गये।

''अरुण को अस्पताल में भेज दिया गया है सर। तीन-चार दिन उसे वहाँ एडमिट रहना होगा। उसे सात टांके लगे हैं। अस्पताल पहुँचने तक खून भी काफी बह गया था।" अनिल ने बताया। शमशेर भी अपनी पैर की ड्रेसिंग करवाकर आया था।

''गोलीबारी तो थम गयी सर।" विक्रम बोला।

''इसका मतलब है कमीनों को जितने घुसपैठिये अंदर करने थे कर दिये हैं। अब दुश्मन सीमापार नहीं हमारे अपने घर के अन्दर हैं।" अर्जुन ने कहा।

''सही है अब हमें हमारे ही घर का कोना-कोना छानना पड़ेगा कि भेडिय़े कहाँ और किस घर में छुपकर बैठे हैं।" विक्रम बोला।

परम ने सीमा पर आज दूसरी यूनिट को निगरानी के लिए रवाना किया। गोलीबारी बिलकुल बंद थी इसलिए इस बात की बहुत ही कम संभावना थी कि आज की रात किसी प्रकार की कोई घुसपैठ होगी। आज केवल गश्त लगाने भर से काम चल जायेगा। इसके बाद सब लोग खाना खाने मेस में गये। दो दिन हो गये थे सबको खाना खाए हुए। खाना खाकर वापस वे लोग रूम में बैठकर आगे की स्ट्रेटेजी प्लान करने लगे। डेढ़ घण्टे तक वे लोग आगे की योजना बनाते रहे। फिर नींद और थकान के मारे सबकी आँखें झपकने लगीं सब लोग अपने-अपने बिस्तरों पर बेसुध होकर लुढ़क गये।

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