Kaun Dilon Ki Jaane - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन दिलों की जाने! - 16

कौन दिलों की जाने!

सोलह

नव संवत्सर की पूर्व संध्या तक रानी की ओर से कोई कॉल नहीं आई। यह संकेत था कि स्थिति पूर्ववत्‌ थी अथवा और नहीं बिगड़ी थी। इंग्लिश में कहावत है — नो न्यूज़ इज गुड न्यूज़। अतः आलोक ने नव संवत्सर की सुबह उठते ही रानी को नव संवत्सर की शुभ कामनाएँ तथा बधाई का एस.एम.एस. करते हुए सूचित किया कि दिन में जब वह फुर्सत में होगी तो फोन पर बातें करेंगे।

दोपहर दो बजे के लगभग जब रानी ड्रार्इंगरूम में बैठी ‘फेमिना' पढ़ रही थी तो मोबाइल की घंटी बजी। फोन के स्क्रीन पर आलोक का नाम देखकर उसका दिल बाँसों उछलने लगा। फोन ऑन किया तो आलोक बोल रहा था — ‘नव संवत्सर की तुम्हें बहुत—बहुत बधाई व शुभ कामनाएँ। आने वाले समय में तुम्हारा जीवन उसी तरह के उल्लास व स्फूर्ति से परिपूर्ण रहे जैसी कि आज प्रातः सैर करते समय मुझे अनुभव हुई। मैं जिस पार्क में प्रातः सैर करने जाता हूँ, वहाँ आमों के अनगिनत वृक्ष हैं। ये वृक्ष आजकल आमों से लदे हुए हैं। वृक्षों से झरती मीठी—मीठी सुगन्ध मन—मस्तिष्क को तरो—ताजा कर रही थी। वृक्षों पर बैठी किन्तु दृष्टि से ओझल कोयल की कर्ण—प्रिय सुरीली कूह—तान, नन्हीं—नन्हीं चिड़ियों की चूँ—चूँ, मन्द—मन्द हवा के झोंके समन्वित रूप से अलौकिक वातावरण का निर्माण कर रहे थेे। ऐसे अलौकिक वातावरण के बीच सैर करते हुए मुझे स्मरण हो आई ये काव्य—पंक्तियाँः

अमियाँ पेड़ों पर टंगी, जैसे बंदनवार

ताज़ा हवा बसन्त की, मानो हो त्यौहार

रिश्तों के आलस भरे, बीत गये इस मास

सूखे मन के खेत में, बौराया उल्लास

‘आज चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि है और इसी दिन से आरम्भ होता है हमारा नववर्ष। ऐसी मान्यता है कि भगवान्‌ ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी। इसलिये यह सृष्टि के निर्माण का उत्सवपर्व भी है। सतयुग का आरम्भ भी इसी दिन हुआ। यह तो तुम्हें पता ही है कि माँ भगवती की आराधना (नवरात्र की पूजा) भी इसी दिन आरम्भ होती है। कन्या—पूजन से प्रारम्भ होने वाला संवत्सर भारतीय संस्कृति में नारी—शक्ति की महत्ता को भी प्रकट करता है। इसीलिये हमारे शास्त्रों में कहा गया है — यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। आज के दिन ही चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त कर ‘विक्रमी सम्वत्‌' का श्रीगणेश किया था। काल—निर्धारण हमारे ऋषि—मुनियों की अद्‌भुत गणितीय दृष्टि का द्योतक है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से प्रारम्भ होने वाले संवत्सर से हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं का भी निवर्हन होता है। यह नव—संवत्‌ ऋतु परिवर्तन लेकर आता है। शरद्‌ ऋतु के प्रस्थान व ग्रीष्म ऋतु के आगमन से पूर्व वसन्त अपने चरम पर होता है। ऋतु परिवर्तन के साथ—साथ नई उमंग, नई ऊर्जा और स्फूर्ति लेकर आता है। केवल चेतन जगत्‌ ही नहीं, अपितु जड़ जगत्‌ में भी सब ओर परम सत्ता के स्वागत की उमंगभरी स्फूर्ति परिलक्षित होती है। पुराने पत्ते झड़ जाते हैं, सारे पेड़—पौधे नये और हरे—भरे हो जाते हैं। गेहूँ की फसल पक कर तैयार होने लगती है, किसान को उसकी मेहनत का फल मिलने का समय आने वाला होता है। जबकि पाश्चात्य नववर्ष (प्रथम जनवरी) को ऋतु में किसी भी तरह का परिवर्तन दिखाई नहीं देता। व्यक्ति, पशु—पक्षी यहाँ तक कि पेड़—पौधे भी ठंड की ठिठुरन में सिकुड़े रहते हैं। यह पर्व हमारे जीवन को न केवल भौतिक उल्लास से अपितु आध्यात्मिक—शक्ति से भी ओत—प्रोत कर देता है।'

रानी बड़े मनोयोग से आलोक को सुन रही थी। जब आलोक अपनी बात पूरी कर चुका तो रानी बोली — ‘बहुत—बहुत धन्यवाद तुम्हारी शुभ कामनाओं व बधाई के लिये। इस पावन अवसर पर आपने जो हृदयोदगार व्यक्त किये हैं, परमात्मा उन्हें अवश्य पूर्ण करेगा। मेरी तो प्रभु से यही प्रार्थना है कि आज के बाद हमारे जीवन में किसी तरह के विषाद के लिये कोई स्थान न हो। हमारा प्रेम निर्विघ्न, निष्कंटक हो, दुनिया की नज़रों से बचा रहे।'

‘मेरी भी हार्दिक इच्छा यही है कि प्रभु तुम्हारी प्रार्थना अक्षरशः स्वीकार करे। इस प्रार्थना के पश्चात्‌ आज मैं अपनी बातों को यहीं विराम देना चाहूँगा।'

इसी के साथ रानी ने अपना मोबाइल बन्द कर दिया।

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