Vish-bij books and stories free download online pdf in Hindi

विष-बीज

विष-बीज

सुधा ओम ढींगरा

देखिये जनाब! मुझे लिखने-विखने का कोई शऊर नहीं। लेखन प्रतिभा से कोसों दूर हूँ। जो भी कहना चाहता हूँ, लिख कर नहीं कह सकता। वाचक हूँ। बस बोल कर कहता हूँ, अक्सर बहुत बोल जाता हूँ। प्रकृति मेरी मित्र है। हवा से, तितलियों से, पक्षियों से, पत्तों से, फूलों से, चाँद-तारों से बातें करता हूँ। वे चुपचाप मुझे सुनते हैं। बड़े अच्छे श्रोता हैं। कभी -कभी हवा लहराकर, तितलियाँ फरफराकर, पंछी चहचहाकर, पत्ते सरसराकर, फूल खिलकर, चाँद और तारे चमककर मेरा साथ देते हैं। कई बार जी करता है तो अपने-आप से बातें करता हूँ। कुछ लोग सोचते हैं मैं पागल हूँ। पागलखाने वाले सोचते हैं कि मैं दार्शनिक हूँ। बहुत बड़ी-बड़ी और ऊँची-ऊँची बातें करता हूँ। पागलखाने में पागल और पागलखाने से बाहर लोग मुझे घेर लेते हैं। मेरी बातें बड़े ध्यान से सुनते हैं। कई समाचार पत्रों ने मेरे दर्शन का ज़िक्र किया है। पर असल में मैं क्या हूँ? मेरे अलावा मेरे बारे में कोई नहीं जानता! यह भी अच्छी बात है मैंने स्वयं को पहचान लिया अन्यथा लोग उम्र भर स्वयं को खोज नहीं पाते। मरणासन पड़े हैं और सोच रहे हैं कि मैं कौन हूँ!

इस का भी अंदेशा हो गया है; अब मैं अपने बारे में कुछ भी छुपा नहीं पाऊँगा। आपकी दृष्टि मुझे देखने लगी है। मेरे हर हाव-भाव को पकड़ने लगी है। छुपाना चाहता भी नहीं, थक गया हूँ यह दोहरी ज़िन्दगी जीते हुए। चाहता हूँ कि आप भी देख लें, ऐसी मानसिकता को ....पहचान लें। मेरा सही परिचय मिलने के बाद; अगर आपके भाव बदल जाएँ, दार्शनिक सुनकर जो आपके चेहरों पर उभरे थे। मैं बुरा नहीं मानूँगा। अगर आपका हाथ उठ जाए…! वह भी स्वाभाविक होगा।

अभी तो मैं हैरान हूँ, इस महिला को होश क्यों नहीं आया? अब तक तो इसकी आँखें खुल जानी चाहिए थीं।

चिंता है कि इसे देख कर मुझे क्या हो रहा है। मेरी उत्तेजना मर क्यों गई! मेरा उत्साह खत्म क्यों हो गया! मेरी ऊर्जा कहाँ चली गई! ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ।

शायद यह गिड़गिड़ा नहीं रही। महिला को गिड़गिड़ाते देखकर मैं आक्रमक हो जाता हूँ फिर वह चाहे बूढ़ी हो, जवान हो, अधेड़ हो या बच्ची; किसी की माँ हो, बेटी हो, या पत्नी। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।

मुझे बस उसे नोचना होता है। उसके अस्तित्व पर चोट पहुँचानी होती है। जिसे वह अपनी अस्मिता कहती है; उसे लूटना होता है। वह जब रोती है, सुबकती है, रिहाई की भीख मांगती है तो मुझे आंतरिक ख़ुशी मिलती है। मेरे भीतर के ज़ख्मों पर मरहम लगती है; वे ज़ख्म जो बचपन में कई औरतों ने मुझे दिए। तब सत्ता उनके हाथ में थी, उन्होंने मेरा शोषण किया। मेरा शोषण होने दिया। अब सत्ता मेरे हाथ में है। स्त्री वर्ग से नफ़रत है।

यह नफ़रत बेहद मज़बूत है। इसने मेरे अन्दर छुपे जानवर को बहुत ताकतवर बना दिया है। शिकार देखते ही झपट पड़ता है। मेरे भीतर का डीमन (शैतान) नफ़रत का भोजन खा-खा कर इतना शक्तिशाली हो गया है कि उसने मेरे ऐंजल (फ़रिश्ता) को दबोच लिया है।

पर आज मेरा डीमन कहाँ गया। मेरे सामने पड़ी इस स्त्री का चेहरा देखकर वह कहाँ छुप गया। मेरा ऐंजल सिर उठा रहा है। मेरे हाथ काँप रहे हैं, मैं इस नारी को निवस्त्र नहीं कर पा रहा। यह तो मेरा शिकार थी। इसे मैं ही पार्क से उठाकर लाया था। कई दिन मैंने इसका पीछा किया था। यह पार्क में कब आती है, कब जाती है, कितनी देर जॉगिंग करती है। यह सब देखता रहा था। जॉगिंग करते हुए इसकी पिंडलियाँ ही तो मुझे उत्तेजित कर गई थीं।

मैंने पार्क का वह कोना देख लिया था, जिसमें बहुत कम लोग होते हैं और कभी-कभी वहाँ कोई भी नहीं होता। वह जॉगिंग करती हुई उस कोने के पास से निकलती थी। वहीं मैंने अपना निशाना साधने की सोची। दो दिन इस महिला के साथ-साथ भागा। भागते हुए हाय, हेलो हुई। एक सौम्य, सभ्य, सुसंस्कृत महिला लगी वह। यह भी सोचने का समय नहीं मिला कि उसने मुझे 'हाय सन' कहा था। इसका मतलब है कि यह अधेड़ उम्र की महिला है, इसके बच्चे मेरी उम्र के या मुझ से छोटे-बड़े होंगे। दिखने में युवा लगती है। मैंने तो बस तय कर लिया था कि यही मेरे जानवर की तलब पूरी करेगी। और एक बार जब मैं कुछ ठान लेता हूँ तो फिर मेरी सोच अपने दरवाज़े बंद कर लेती है। सुना है, हर इंसान के पास विवेक होता है, अंतर्मन नाम की शै भी है, पर मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं। अँधेरों में गुम हुई मेरी सोच इन सबको भी निगल चुकी है।

आज जॉगिंग करते हुए इस महिला के साथ-साथ मैं भागने लगा। ज्योंही यह महिला उस कोने में पहुँची; जहाँ कम लोग होते हैं और आज तो वहाँ कोई भी नहीं था। मैंने सोचा मेरा काम हो गया और उसके पैर में अपना पैर अड़ा कर मैंने उसे गिरा दिया। वह गिरते ही बोली-'सन, आई एम वैरी सॉरी। आई वाज़ इन योउर वे।''

लोग इतने अच्छे क्यों होते हैं! यही मुझे समझ नहीं आता। अच्छाई, शर्म, डर, आदर मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं। मैं बेशर्म, क्रूर और घटिया प्रकृति का व्यक्ति हूँ। मैंने अपनी जेब से क्लोरोफार्म में लिपटा रुमाल निकाला और उसके नाक पर रख दिया और उसे चीखने का समय भी नहीं दिया। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों ने मुझे कुछ कहा था। उसे समझने का समय ही मेरे पास कहाँ था। बड़ी मुश्किल से उसकी आँखें मुंदी। फिर मैं उसे अपने साथ सटा कर कार तक ले आया था।

पार्क में घूम रहे, जॉगिंग कर रहे तथा वहाँ बैठे लोगों ने सोचा कि उस महिला को चक्कर आया है और मैं उसे थामकर उसकी कार तक लेकर जा रहा हूँ।

'हाउ स्मार्ट आई एम। आई मेक एवरी वन फ़ूल' मैं खुश होता हुआ वहाँ से निकल गया।

अब मैं परेशान क्यों हूँ ? अभी तक बेहोश है यह महिला। इसका शांत, मुस्कराता हुआ चेहरा मुझे भीरु बना रहा है। मैं कमज़ोर पड़ रहा हूँ।

अफ़गानिस्तान में इसी तरह शांत सोई किशोरी पर तो मैं टूट पड़ा था और गश्त करते हुए एक स्थान पर टूटी दीवारों के बीच बनी एक खोह में, एक माँ अपनी तीन बेटियाँ के साथ छुपी बैठी थी। कौन सा शहर था? अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाल कर भी शहर का नाम याद नहीं कर पा रहा। ख़ैर छोड़ो नाम में क्या रखा है, इतना ज़रूर याद है कि हम कुछ फौजी मानवी गंध सूँघते वहाँ पहुँचे थे और उस खोह में हमें डरी, सहमी नारी देहें मिल गई थीं। वे देहें ही थीं। न जाने कितने दिनों से वहाँ छुपी बैठी थीं। सिमटी, सिकुड़ी, भूख -प्यास से रूखी देहें।

स्त्री गोश्त के भूखे भेड़िये उन पर झपट पड़े थे। उनकी चीख -पुकार चहुँ दिशाओं में गूँज उठी थी पर सुनने वाला कोई नहीं था? आधी रात को अल्लाह, जीसिस, ईश्वर सब सो रहे थे। किसी ने उनकी फ़रियाद नहीं सुनी और वे लुटती रहीं। भूख शांत कर सारे भेड़िये आगे बढ़ गए पर मैं वहीं रहा। रोती, बिलखती, तड़पती बालाओं और उनकी माँ को देखता रहा। फिर उन पर गोलियाँ दाग कर उन्हें चुप करा दिया। अंदर शांति मिली। ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने अपनी सौतेली माँ और उन औरतों को गोली मारी; जिन्होंने मेरा बचपन तबाह कर दिया। मेरा शारीरिक शोषण किया और दूसरों से करवाया।

मुझे नहीं पता मेरी जन्म दात्री कैसी थी? डैड के पास मेरी माँ का कोई चित्र नहीं था, हाँ उसके प्रति उदासीनता ज़रूर थी उनके पास। मेरी सौतेली माँ बहुत ज़ालिम थी। मुझ से नौकरों की तरह काम करवाती और खाने को बहुत कम देती। मैं डैडी को शिकायत करता तो वह झूठ बोल देतीं, मुझे ही मार पड़ती। तब मैं स्कूल भी नहीं जाता था।

एक दिन ड्राइवे पर बैठा रो रहा था। मेरी सौतेली माँ कहीं बाहर गई थी। साथ वाली पड़ोसन ने, जिसका नाम पैटी था, मुझे अपने पास बुला कर बहुत प्यार किया और मुझे बताया कि मेरी माँ उसकी सहेली थी और मेरी माँ बहुत अच्छी थी। मैंने उससे पूछा कि क्या उसके पास मेरी माँ की कोई तस्वीर है। उसके पास भी तस्वीर नहीं थी। पर उसने जैसे मेरी माँ का वर्णन किया, उसी वर्णन की कल्पना में मैंने माँ का एक चित्र बना लिया था; जो हर समय मेरे साथ रहता है। चित्र कला का शौक शुरू से था। काल्पनिक माँ के कई चित्र बना कर मैंने दीवारों पर टाँगे हुए हैं।

पैटी, पड़ोसन, माँ की सहेली से ही यह राज़ मुझे पता चला कि सौतेली माँ की वजह से ही मेरे मम्मी-डैडी का तलाक हुआ था और डैड ने मम्मी को बहुत तंग किया था। वकील थे और चालाकी से कोर्ट केस जीत गए थे। अब उसे भी पता नहीं मेरी माँ कहाँ है? उसी ने मुझे बताया था कि मुझे छोड़ते समय मेरी माँ बहुत रोई थी। उसने जज से फ़रियाद भी की थी। उसे मेरे डैड से कुछ नहीं चाहिए बस उसका बच्चा यानी मैं उसे दे दिया जाए। डैड ने मेरी माँ पर इतने झूठे दोष लगाए कि कोर्ट ने यह फैसला सुना दिया कि मेरी माँ मुझे कभी नहीं मिल सकती। पैटी ने मुझे समझाया अगर मेरी सौतेली माँ मुझे मारे-पीटे तो मैं 911 डायल कर दूँ। पुलिस आकर सब ठीक कर देगी।

एक दिन मैं भूखा था और सौतेली माँ का कहीं अता-पता नहीं था। 911 डायल कर दिया। पुलिस आ गई पर ठीक कुछ भी नहीं हुआ।

चाइल्ड वेल्फेयर के सामाजिक कार्यकर्त्ता मुझे मेरे घर से ले गए और एक पोषक गृह में मुझे पहुँचा दिया गया। वहाँ मेरे जैसे कई बच्चे थे। उन्होंने मेरा स्वागत किया। वहाँ मुझे भरपेट खाने को मिला और दूसरे दिन से मैं स्कूल जाने लगा। कुछ महीने ठीक-ठाक गुज़रे। दो और लड़के वहाँ रहने आ गए। वे बड़े थे। किशरावस्था पार कर चुके थे।

मैंने देखा, एक रात वे दोनों एक छोटे बच्चे को अपने साथ सोने का लालच देकर ले गए। हम सब बच्चे प्यार और सहानुभूति के भूखे थे। मैं उम्र भर मम्मी और डैडी के साथ सोने का मोह पाले रहा।

दूसरे दिन वह लड़का डरा, सहमा रोता रहा और वे लड़के पोषक गृह की गृह स्वामिनी रौनी के इर्द-गिर्द घूमते रहते। इससे वह बच्चा और भी डर गया। उसके बाद वे हर रात एक बच्चे को अपने कमरे में ले जाते।

रौनी रात को शराब में धुत हो कर सोती और उसे पता भी नहीं रहता था कि बच्चे क्या करते हैं ? उसका पति डैनियल रात होते ही कहीं चला जाता और सुबह आता। उसके जाते ही बड़े लड़के किसी एक छोटे बच्चे को ले जाते। कभी प्यार से और कभी ज़बरदस्ती से।

मैं वहाँ सबसे छोटा था, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता था। पर इतना ज़रूर समझ गया था कि कुछ ग़लत होता है वहाँ, तभी तो लड़के डरे, सहमे रहते हैं। वहाँ सिर्फ़ लड़के ही थे। उस पोषक गृह केंद्र में लड़कियाँ नहीं थीं।

जिस दिन मुझे वे लड़के लेने आए, मैंने इंकार कर दिया। उन्होंने अपना हाथ मेरे मुँह पर रख कर ज़ोर से उसे दबा दिया। मैं आवाज़ ही नहीं निकाल पाया। उसके बाद वे मुझे घसीटते हुए अपने कमरे में ले गए। बाकी सब लड़कों ने लिहाफ़ों से अपने मुँह ढक लिए।

उस रात जिस नकारात्मकता से मेरा परिचय हुआ, आज तक उससे छूट नहीं पाया। गले पर चाकू रखकर उन्होंने डराया कि अगर इस रात के बारे में मैंने किसी को भी बताया तो वे मुझे मार डालेंगे।

मेरे गुप्तांगों में दर्द हो रहा था। मैं बहुत दुखी था। सुबह उठते ही मैंने रौनी को सब बता दिया। रौनी ने मेरा दर्द समझने की बजाए, मेरी गालों पर कई थप्पड़ जड़ दिए। 'नो चाइल्ड कम्प्लेंट्स टू मीं। यू आर द ओनली वन, सेइंग दीज़ नैस्टी थिंग्स। डू यू थिंक आई विल बिलीव यू? दे आर नाइस बुयाज़। इफ यू विल टेल्ल् दिस टू एनी बॉडी, आई विल किल यू।''

मैं बहुत तकलीफ़ में था। किसी को बताना चाहता था। निडर हो गया था। मरने का तो मुझे पता नहीं था पर छोटी उम्र में विपरीत परिस्थितियों में जीना सीख गया था। मैं अपने डैड को फ़ोन भी नहीं कर सकता था। उनका फ़ोन डिस्कनेक्ट था।

स्कूल की मेरी टीचर बहुत अच्छी थी और मुझे प्यार भी बहुत करती थी। उसमें मुझे मेरी माँ नज़र आती थी। उसे बताना मैंने उचित समझा। मेरी कथा सुनते ही उसने मुझे सीने से लगा लिया। पहली बार पता चला माँ कैसी होती है! ऐसा लगा उसने मेरी सारी पीड़ा हर ली। तुरंत प्रिंसिपल के पास ले गईं और स्कूल की काउन्सलर को भी बुला लिया और उसके साथ मुझे मेडिकल चैकअप के लिए भेज दिया। पुलिस के आने पर मुझे दोनों बाज़ुओं से थामे रही और पुलिस को हिदायत देती रही-'दिस स्मॉल किड इज़ इन पेन एण्ड ही इज़ इन शॉक। प्लीज़ टॉक टू हिम सॉफ्टली।'

पुलिस को मैंने अपने और दोस्तों के बारे में सब कुछ बता दिया। सब बच्चों का मेडिकल चैकअप हुआ। अगले कुछ दिन कठिन थे, तनाव भरे। हम सब फिर से बेघर हो गए थे। हमें अलग -अलग केन्द्रों में भेज दिया गया।

रौनी और डैनियल तथा दोनों लड़के माईक और रॉबी को पकड़ लिया गया था। वह पोषक गृह केन्द्र बंद कर दिया गया। मुझे बाद में पता चला था कि रौनी और डैनियल बेरोज़गार, शराबी, आलसी और लापरवाह थे। पैसा कमाने के लिए फॉस्टर पेरेंट बने थे और फॉस्टर होम सेण्टर खोला था। ताकि हर बच्चे की परवरिश का सरकार से पैसा ले सकें। सरकार बेघर बच्चों की परवरिश करने वालों को पैसा देती है। यह केंद्र नया ही खुला था और जब तक सरकारी इन्स्पेक्टर की नज़र उन पर रही, वे बच्चों की बहुत अच्छी तरह से देख-रेख करते रहे; ज्योंही उसने केंद्र को स्वीकृति दी और इंस्पेक्टर निश्चिन्त हो गया कि इस केंद्र में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है तो रौनी और डैनियल अपने असली रंग-रूप में आ गये। बच्चों के पालन-पोषण में उनकी कोई रूचि नहीं थी। उन्हें सिर्फ़ अपने चैक से मतलब था, जो हर माह उन्हें मिल जाता था।

अठारह वर्ष तक मैं भिन्न-भिन्न पोषक गृहों में भटकता रहा। विद्रोही हो गया था अतः तन और मन सज़ा भुगतते रहे। सज़ा देने वालीं महिलाएँ थीं। भीतर रोष, आक्रोश, गुस्सा भर चुका था। पूरी तरह नकारात्मकता की लपेट में आ चुका था। नारी जाति के प्रति अपनी सच्ची भावनाओं का तब तक एहसास नहीं हुआ था।

एक दोस्त ने सलाह दी और मैं मिलिट्री में चला गया। मिलिट्री ट्रेनिंग ने मुझे बहुत सभ्य, सुसंस्कृत और अनुशासित बना दिया। मुझ में आत्मविश्वास जगाया और इसी आत्मविश्वास ने मुझे जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टि दी। मैं बहुत संतोषजनक जीवन जीने लगा और अतीत की कड़वी यादें धुंधलाने लगी थीं। मेरी गर्ल फ्रेंड भी थी, सुज़न। आसमान की बुलन्दियाँ छू रहा था तभी एक दिन धरती पर आ गिरा।

बिना फ़ोन किए सुज़न के घर गया तो उसे किसी और के साथ हम बिस्तर हुए देखा। 'चीटर', इतना बड़ा धोखा दिया उसने। बस टूट गया। गुस्से में अपने घर चला गया। सोचा था उसे गोली मार कर खुद मर जाऊँगा। उसी दिन अफ़गानिस्तान जाने का आदेश मिल गया। निराश, हताश, टूटा दिल लिए वहाँ चला गया। इस हादसे ने अतीत का रोष, आक्रोश और गुस्सा भीतर-बाहर फैला दिया; जिसे मिलिट्री ट्रेनिंग ने मिटा दिया था। शायद वह मिटा नहीं था, दब गया था कहीं। पागल हो गया था मैं वहाँ। तब महसूस हुआ, आधी आबादी से मैं कितना चिढ़ता हूँ।

मेरे पागलपन को देखकर मुझे वापिस बुला लिया गया। मनोविशेषज्ञों ने मेरा मनोविश्लेषण किया। पागलखाने में भर्ती कर दिया गया। कई वर्ष इलाज चला। बिजली के झटके दिए गए। एक दिन उन्हें लगा कि मैं ठीक हो गया हूँ और मुझे छोड़ दिया गया। क्या मैं सच में ठीक हुआ था? मेरी सोच, मेरी प्रवृत्ति ठीक हुई थी।

पागलखाने में मैंने मनोचकित्सकों के साथ बहुत बैठकें कीं तो एक बात मेरी समझ में आई; कुछ मनोवृत्तियाँ बच्चा साथ लेकर पैदा होता है। इसे पूर्व जन्म के संस्कार कहें या पूर्व जन्म के संचित अच्छे -बुरे कर्म। सोचिए, एक परिवार में सभी बहन-भाई अच्छे होते हैं, एक बच्चा कैसे अपराधिक प्रवृत्ति का हो जाता है? परवरिश तो सबको एक जैसी मिली होती है। यह विमर्श का विषय है। विचारों के गम्भीर समंदर में डुबकी लगाने का। इसमें उलझ कर मेरी सोच कुंद हो रही थी। मैंने जब डॉ. एबेन ऑलेक्सेंडर की पुस्तक 'प्रूफ ऑफ़ हेवन' (एक न्यूरोसर्जन की जीवन के बाद की यात्रा) पढ़ी; तो यह बात पुख्ता हो गई। आप सोच रहे होंगे, मैं यह क्या कह रहा हूँ! स्पष्ट करता हूँ, मेरे साथ और लड़कों ने भी मेरी तरह जीवन के थपेड़े सहे। वे तो बलात्कारी नहीं हुए, मैं ही क्यों बना? जो वृत्तियाँ मैं लेकर जन्मा यह उसी का परिणाम है। विपरीत परिस्थितियाँ और सही परवरिश की कमी, मेरे जैसी सोचवालों के लिए आग में घी का काम करती हैं। हर बीते पल ने मेरी सोच की दृष्टि को भरमाया। पुरुषत्व और सत्ता के अहं में उलझा रहा।

मैं जानता हूँ कि मेरा दोहरा व्यक्तित्व है। दार्शनिक और रेपिस्ट का। पागलखाने में मैं एक दार्शनिक मशहूर था। अपना दर्शन प्रकृति के सारे तत्त्वों को सुनाता रहता था -'हे तत्त्वों सुनो। पूरे विश्व के पुरुष अपने पुरुषत्व के मद में हैं। तभी तो नारी को सिर्फ भोग की वस्तु माना जाता है। इतिहास के पन्ने पलटिये.... आदिकाल से अब तक सभी युगों और सभी सभ्यताओं में, प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, वियतनाम, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान युद्धों में औरतों के बलात्कार हुए; उन्हें तरह-तरह से पीड़ित किया गया। कितने बलात्कारी पकड़े गए! कभी पकड़े भी नहीं जाएँगे ? पितृसत्ता जानती है कि नारी पुरुष से मज़बूत है और नारी कभी गुटों की, गिरोहों की, सभ्यताओं की मुखिया हुआ करती थी और समाज का सञ्चालन करती थी। बड़े षड्यंत्रों और प्रयासों के बाद पुरुष ने सत्ता संभाली और पितृसत्ता का वर्चस्व हुआ है। 'बलात्कार' ही ऐसा शस्त्र है , जिसके भय से समस्त नारी जगत् को दबा कर रखा जा सकता है।'

अरे मैं भी किन बातों में उलझ गया। जिस वर्ग से बदला ले रहा हूँ, उसी से सहानुभूति। तभी तो आज तक पकड़ा नहीं गया। लोग मेरा दर्शन सुनते हैं। मेरे असली रूप को पहचान नहीं पाते। मेरे दार्शनिक रूप के आकर्षण में मोह ग्रस्त रहते हैं।

यह लेडी अभी तक सचेत क्यों नहीं हुई? मेरी सोचने-समझने की शक्ति जवाब दे रही है। मुझे शराब की ज़रूरत है। मैं बेसमेंट से शराब लेकर आता हूँ। फिर शरीर और दिमाग़ काम करेगा।

शराब ले आया हूँ और हैरान खड़ा हूँ; इसे अभी तक होश नहीं आया। शायद ग़लती से आज रुमाल पर अधिक क्लोरोफॉर्म डाल दिया होगा और यह उसे बर्दाश्त नहीं कर पाई। मैं इसके सचेत होने का क्यों इंतज़ार कर रहा हूँ। पहले मैंने कब किसी के सचेत होने का इंतज़ार किया था।

'पुलिस' बाहर से आवाज़ आई और साथ ही दरवाज़े पर किसी ने थपथपाया। उस महिला ने आँखें खोल लीं और वह तेज़ी से उठने की कोशिश करने लगी। मैं बौखला गया।

'धोखा' मैं चिल्लाया। तब तक पुलिस दरवाज़ा तोड़कर, हाथों में रिवॉल्वर थामे, भीतर आ गई। मैंने हाथ खड़े कर दिए। मेरे हाथों पर हथकड़ी लगा दी गई।

एक महिला पुलिसकर्मी ने उस महिला को पूछा-'आप ठीक हैं ? इसने आपको हर्ट तो नहीं किया।' पुिलस के साथ उस महिला की बेटी और पति भी हैं। दोनों ने उस महिला को आलिंगन में ले लिया।

'नहीं मैम, यह मुझे हर्ट नहीं कर सका। दीवारों पर इसके बनाए चित्र देखें। इसकी माँ के साथ मेरी शक्ल मिलती है।' मैं स्तब्ध रह गया। 'तो यह कारण था कि इस महिला को देखकर मैं कमज़ोर पड़ गया। घटिया हूँ मैं। बेहद लचर। जिन महिलाओं पर मैंने अत्याचार किए वे भी किसी की माँ थीं?' छीं अपने से घिन आ गई।

हकलाते हुए उस महिला से पूछा-'पुलिस को फ़ोन कैसे किया? फ़ोन तो मेरे पास था।'

'तुम मेरा मोबाइल फ़ोन मेरी जेब से निकालना भूल गए। मेरी चेतना लौट आई थी और मैंने आँखें खोलीं तो तुम सिर झुकाये बैठे अपने आप से बातें कर रहे थे। मैंने एकदम आँखें बंद कर लीं। मुझे बहुत कुछ समझ में आ गया था और मैं तुम्हारे वार का इंतज़ार कर रही थी और स्वयं को तैयार कर रही थी कि मुझे अपने-आप को कैसे बचाना है! तभी तुम बेसमेंट में गए तो मैंने अपनी बेटी और पति को एसऍमएस कर दिया। मेरे फ़ोन की लोकेशन से तुम्हारा घर ढूँढ़ लिया गया।' मैं ठगा सा महसूस कर रहा हूँ। मेरी सतर्कता, मेरी चालाकी मेरे पर हँस रही हैं। इस छरहरी महिला ने मुझे पछाड़ दिया। पुलिस के पीछे घिसटता उनकी गाड़ी में आ कर बैठ गया।

वह महिला मेरे पास आई और मेरी ओर देखकर बोली -'आर यू डेविड कूपरज़ सन?' मैं एकटक उसे देखता हूँ, गरिमामय चेहरा -'तो यह मेरी माँ है।' इसने शायद चित्रों को देखकर अंदाज़ा लगा लिया है। कुछ देर मौन उसकी ओर देखता रहता हूँ। जिसे ढूँढ़ता मैं दर-दर भटका हूँ; आज वह सामने है और मेरे भीतर कोई भाव नहीं; कोई उल्लास, कोई उमंग नहीं। ग्लानि, अपराधबोध और शर्मिंदगी का बोझ क्या होता है, पहली बार ढोह रहा हूँ। आँखें झुक गईं। कैसे कहूँ! माँ तुम्हारी जात का विरोधी हूँ, और इस वहशीपन का कारण डैड हैं; जिन्होंने मेरे कोमल हृदय में नफ़रत का बीज बोया। गुनहगार हूँ, अपमान किया है मैंने पूरे स्त्री समाज का। एक शालीन औरत को माँ के रूप में देखकर आज डैड को थप्पड़ मारने का दिल करता है। वह जानते थे, मेरा पालन-पोषण नहीं कर सकते और माँ से भी मुझे छीन लिया। माँ के पास रहता तो उन्हें मेरा खर्चा देना पड़ता। किस कमीनगी से उन्होंने अपना खर्चा बचा कर, मुझसे भी छुटकारा पा लिया। माँ को कुछ भी नहीं बता सका! हिम्मत जुटा कर 'नो' कहते हुए मैंने अपना सिर घुमा लिया। बता देता तो वह ज़िंदा ही मर जातीं और मरते दम तक अपनी कोख को कोसतीं।

'मैंने आप से इतनी बातें कीं, क्या आप मेरा नाम नहीं जानना चाहेंगे? सही कहा। बलात्कारियों और अपराधियों का कोई नाम नहीं होता। यह विकृत मानसिकता है; जो हर देश, हर शहर, हर गाँव, हर घर, हर गली, हर कूचे में मिलेगी। इस मानसिकता के शिकार कई बार बहुत अपने भी होते हैं, बाप, भाई, चाचा, ताऊ, दूर-क़रीब के रिश्तेदार, कोई भी हो सकता है; जिन्हें पहचानना मुश्किल होता है। पराये तो भीड़ का हिस्सा हैं। इस बीमार, निडर सोच का अंत होना चाहिए। यह प्रवृत्ति महामारी सी पूरे विश्व में फ़ैल रही है और अब तो शिकार होने लगी हैं अबोध बच्चियाँ।'

'बुद्धिजीवियों की तरह मैंने बहुत बड़ी-बड़ी बातें की हैं। आपको यह क्यों लगा कि मैं बलात्कारियों के हक़ में बोल रहा हूँ; नहीं मैं इस मानसिकता से निपटने का आपको हल दे रहा हूँ। आपको यकीन नहीं हो रहा। आपने मेरा जो रूप देखा है; उसके बाद कोई भी मेरा विश्वास नहीं करेगा। फिर भी आपको इसका समाधान बताऊँगा ज़रूर। कोई भी प्रवृत्ति लेकर बच्चा जन्में, किन्हीं भी हालत परिस्थितियों में वह पले, बलात्कार करना घिनौना जुर्म है। उसे सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए।'

'जानता हूँ, मुझे सात से चौदह वर्ष का कारावास मिलेगा। किडनैपिंग और बलात्कार की मंशा तथा कई और छोटी-मोटी धाराएँ लगा कर जेल में डाल दिया जाऊँगा। पर इससे क्या होगा! एक बलात्कारी को सही सज़ा मिलेगी। यह बीमारी इतनी फ़ैल चुकी है, इसका कठोर इलाज किया जाना चाहिए। बच्चे को छुटपन से सिखाया जाता है, ग़लत काम करोगे तो परिणाम भुगतने पड़ेंगे। बलात्कारी को क्या परिणाम भुगतना पड़ता है? कुछ वर्षों की जेल। उसका डर नहीं होता घिनौनी सोच वालों को। फिर इस मानसिकता को समाप्त कैसे किया जाए। मैं बलात्कारी हूँ और अपने कृत्य पर शर्मिंदा हूँ। चाहता हूँ, कड़ी सज़ा मिले और सज़ा में मेरा लिंग काट दिया जाए। एक लिंग कटेगा, सौ लिंग सतर्क हो जाएँगे। यह ज़रूरी है। ज़हर का बीज वृक्ष बनने से पहले ही दब जाएगा।'

'आपको भी इसी बात का डर है; जो मुझे है। पितृसत्ता इस निर्णय पर अपनी मोहर नहीं लगाएगी? और फिर मानवाधिकार वाले अपना अलग झंडाफहराएँगे। मानवीय अधिकारों के हनन की बात करेंगे। इसका मतलब बलात्कारी छूटते रहेंगे।' ज़ोर-ज़ोर से ज़ार-ज़ार रोना आ गया है। घृणित कृत्यों के बोध से पीड़ित हूँ और मुझे इस पीड़ा में जीना नहीं।

'क्रेज़ी मैन' पुलिस वाले ने कहा।

'मैं पागल नहीं हूँ; मुझे पता है मैंने क्या-क्या किया! हाँ, वकील बलात्कारी को, अपराधी को, पागल घोषित कर बचा लेते हैं। मुझे अपने किये का दंड चाहिए, अंग-भंग दंड।' लगता है कोई नहीं सुन रहा मेरी बात। इस सदी के समाज की यही समस्या है। सही और सच्ची बात कभी नहीं सुनी जाती।

वैन पुलिस स्टेशन के आगे रुकी और मुझे पुलिस की कोठरी में डाल दिया गया है। अब कानूनी कार्यवाही चलेगी।

आप सब मेरी ओर इस तरह क्यों देख रहे हैं। मैंने अपनी सच्चाई और स्वयं की सज़ा आपको बता दी। एक बलात्कारी की सज़ा; जो उसे मिलनी चाहिए। घिनौने कृत्यों को रोकने की सज़ा। इसे लागू करवाना आपका काम है। इसके लिए स्त्री समाज को आगे आना पड़ेगा। पितृसत्ता तो इसके आड़े आएगी; उसके पुरुषत्व का प्रश्न है। अहं और अस्तित्व का सवाल है। महिलाओं को सुदृढ़ता से इसके लिए लड़ना पड़ेगा।

आपकी नफ़रत की तरंगे मेरे तक पहुँच गई हैं। सहानुभूति और क्षमा के लिए यह सब नहीं कह रहा... जो समाधान मैंने सुझाया है, उसकी ओर ध्यान ज़रूर दें …शायद भावी पीढ़ी की नव कोंपलें फूटने से पहले कुचले जाने से बच जाएँ…।

-000-

संपर्क:101 Guymon Ct. Morrisville, NC-27560, USA

ईमेल:sudhadrishti@gmail.com

मोबाइल : +919-801-0672

***

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED