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वह कोई और थी.....

वह कोई और थी.....

सुधा ओम ढींगरा

क्रैब ट्री लेक पार्क में प्रातः सैर करने जाती हूँ। कुछेक दिन पहले वाकिंग ट्रेल (सैर करने वाली सड़क) पर सैर करते हुए, हल्की -हल्की हवा, जो उस दिन सबेरे से ही चल रही थी; जहाँ शरीर को स्फूर्ति दे रही थी वहीं क़दमों को भी तैनात किए हुए थी। जुलाई की कड़कती गर्मीं में हवा का धीरे -धीरे बहना, पत्तों का हिलना, झाड़ियों की सरसराहट एक ध्वनी उत्पन कर रही थी शायद गर्मीं से बौखलाई प्रकृति को भी हवा सकून दे रही थी। मैं उस ध्वनी से कदम मिलाती, प्रकृति के सान्निध्य का सुख लेती अपने गंतव्य स्थान की ओर बढ़ कर रही थी। अचानक हवा तेज़ हो गई और कई काग़ज़, ऐसा लगा कि मेरे पीछे छूट गई झाड़ी से निकल कर मेरे आगे -आगे मेरा रास्ता रोकते हुए उड़ने लगे। बिल्कुल पाँव के पास आकर जो काग़ज़ अटका उस पर हिन्दी में कुछ लिखा था। जिज्ञासा की लहर शरीर में लहरा गई। हिन्दी में लिखा काग़ज़ और वह भी सैर करने वाली सड़क पर ! काग़ज़ों के पीछे भागने लगी और कौतूहलता ने उन्हें पकड़ने पर मजबूर कर दिया। सब को समेटने के बाद लगा कि देखूँ ये आए कहाँ से हैं और अंदाज़ से वहाँ की झाड़ियाँ देखने लगी जहाँ से वे उड़ते हुए मेरी तरफ़ आए थे। वहीं एक झाड़ी के पास नीचे काफ़ी सारे काग़ज़ इक्कट्ठे हुए पड़े थे, गुच्छ -मुच्छ हुए। जैसे किसी ने अपनी डायरी फाड़ कर फैंकी हो। जिज्ञासा चरम सीमा पर पहुँच गई। उन पन्नों को हाथ में लेने के बाद स्पष्ट हुआ कि वह तो पूरी डायरी ही थी। हाँ अपनी जिल्द से अलग कर दी गई थी और पन्नों को भी एक दूसरे से अलग करने की कोशिश में उन्हें बुरी तरह से तोड़ा -मरोड़ा गया था; पर वे पन्ने जुड़वां बच्चों से आपस में जुड़े हुए थे। उन्हें पढ़े बिना रह नहीं सकी और बस बैठ गई उन्हें बाचने।

डायरी के बहाने किसी ने अपने जीवन का एक पूरा अध्याय फाड़ कर फैंका था। शायद सोचा होगा कि इसे कौन पढ़ पायेगा। सुबह सफ़ाई वाले इन काग़ज़ों को उठा ले जाएँगे। संयोग ही कहेंगे कि वे पृष्ठ मेरे सामने स्वयं ही आ गए और उन पर बिखरी वेदना ने मुझे बेचैन कर दिया। कई दिन उन पन्नों पर लिखे कटु सत्य को कड़वी दवाई की तरह निगलने की कोशिश करती रही।

विदेश को सपने साकार करने और सुअवसरों की भूमि कहा जाता है। बहुत से युवक-युवतियाँ यहाँ उच्च शिक्षा के लिए आते हैं और लौट कर अपने देश जाने की इच्छा रखते हुए भी लौट नहीं पाते और यहीं के होकर रह जाते हैं। उनमें से कुछेक ही खुशकिस्मत होते हैं जो अपने देश वापिस जाते हैं। कई शादी करके अपना सब कुछ छोड़ कर विदेश में बसने चले आते हैं। स्थापित होने का संघर्ष, ग्रीन कार्ड लेने की रुकावटें और प्रताड़ना के क़िस्से - कहानियों से हिन्दी साहित्य के पन्ने भरे पड़े हैं। जितनी बड़ी संख्या में युवावर्ग को उनकी महत्त्वाकांक्षाएँ विदेशों की तरफ धकेलती हैं, उतनी ही त्रासदी से भरपूर कई नई कहानियाँ, नई पीड़ा, नए दर्द , नई कसक, विभिन्न कारणों और भिन्न -भिन्न परिस्थितिओं के साथ जन्म लेती हैं। सड़क पर मिले पन्नों और उन पर काली स्याही से उकेरित यथार्थ ने मेरी इस कहानी को जन्म दिया …

सतलुज और व्यास के मध्य की धरती से, एक सीधा सादा सरल युवक अभिनन्दन वत्स विदेश में रहने की औपचारिकता से बेख़बर एक ऐसी लड़की से प्यार करने लगता है, जो स्वतंत्र विचारों वाली स्वेच्छाचारिणी है। वह उसे सुसंस्कृत और शिष्ट होने का अभिनय कर प्रभावित करती है ......

सही कहा आप ने..... तूफ़ान और दिए की कहानी तथा परी और गडरिये की कहानी की तरह..... यह क्या सुना रही हूँ, अरे ऐसी कहानियों तो बचपन से सुनते आए हैं, कौन सी नई बात कर रही हूँ। ऐसी बात नहीं, कुछ तो बांकपन है इस कहानी में जो यह मेरी कलम पर आ बैठी है, दबंग है और ज़िद्दी भी। कठिनाई यह है कि आरंभ और अंत भी अपनी मर्ज़ी से करना चाहती है। ख़ैर अभी तो अभिनन्दन वत्स के साथ रसोई में घुस गई है यह देखने कि सपना को चाय मिली है या नहीं....क्योंकि सपना जाग गई है और उसने आवाज़ दी है......

'' नंदू तुमने अभी तक चाय नहीं बनाई। किन ख़यालों में खोए हुए हो। '' सपना की आवाज़ सुन कर वह चाय प्यालों में डालने लगा।

'' रात तुम्हारी माँ के फ़ोन ने गहरी नींद से जगा दिया और तुम्हें तो पता है कि एक बार मेरी नींद टूट जाए, फिर मैं सो नहीं पाती। काम पर मैं ख़ाक ध्यान दे पाऊँगी। कब से मैं चाय का इंतज़ार कर रही हूँ। देख रही हूँ आजकल तुम हर काम को टालने लगे हो।''सपना ने बेडरूम से निकल कर रसोई में प्रवेश करते ही धारा प्रवाह बोल कर शब्दों का तूफ़ान ला दिया।

सपना के शाब्दिक तूफ़ान का वह चुप्पी की घास बन कर मुकाबला करता है, अक्सर ख़ामोश रहता है और बेकसूर होते हुए भी झुक जाता है....चुप्पी को उसने अपनी ढाल बना लिया है .....उसने चुपचाप चाय का प्याला सपना की तरफ बढ़ा दिया।

अभिनन्दन वत्स को सपना ने नंदू बना दिया है। सपना को भ्रम है कि अपने पुरुष को पप्पी (छोटा कुत्ता) बना कर रखो, तलवे चाटेगा। उसकी कई सहेलियों ने उसे समझाया भी है कि किसी भी चीज़ को अधिक कसो तो टूट जाती है, बिखर जाती है और पति तो इन्सान है, ज़्यादा बंधन में रखोगी तो उसे खो दोगी। पर सपना की सोच को कोई बदल नहीं सकता। अभिनन्दन को यह संबोधन बहुत खटकता है। सपना यह जानती है और जानबूझ कर उसे नंदू कहती है..... इस संबोधन को वह रोज़ बेस्वाद भोजन सा निगल लेता है .....विरोध एक विकल्प है, पर उसका परिणाम है झगड़ा ; जिसे वह पिछले अढ़ाई वर्षों से टाल रहा है।

कल रात माँ ने फ़ोन पर समाचार ही ऐसा दिया था, वह भी सारी रात सो नहीं पाया और यादों के पालने में झूलता रहा। उसके चाचा और ताऊ की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उसका दिल नहीं कर रहा था कि वह चाय बनाए। पर उसके दिल की किसे परवाह है...शादी के बाद वह एक नौकर बन कर रह गया है। और नौकर को अपनी भावनाएँ दर्शाने का कोई अधिकार नहीं होता। संस्कारों में बंधा वह शादी को बेहतर बनाने की कोशिश में लगा हुआ है ; हालाँकि वह जानता है कि इसकी नींव धोखे और बेईमानी पर पड़ी हुई बहुत ही कमज़ोर है।

दस वर्ष पहले उसके बाबू जी के आकाश में तारा बन चमकने के तेरह दिन बाद ही रिश्तेदारों और शरीकों की बेवफ़ाई तथा बेईमानी देख कर उसकी रोती- बिलखती माँ ने अपनी फटी ओढ़नी में छह बेटियों और उसे सीने से लगा कर ढांप लिया था।

'' इतने दिनों में तुम्हारी माँ को यहाँ के टाइम डिफरेंस का पता नहीं चला। आधी रात को फ़ोन कर देती हैं।'' चाय की चुस्कियां लेती सपना ने कहा।

'' सपना माँ को टाइम डिफरेंस का पता है और उन्हें यह भी पता है कि तुम्हारी नींद टूट जाए तो फिर तुम्हें नींद नहीं आती पर चाचा और ताऊ जी का कार दुर्घटना में निधन हो गया है इसलिए उन्होंने रात में कॉल किया।''

'' नंदू स्टॉप डिफेंडिंग युअर मदर। पहले भी रात को ही फ़ोन आता है। यह कोई नई बात नहीं। ''
'' पिछली बार जब तुम नाराज़ हुई थी तब से आज तक माँ ने रात को कभी फ़ोन नहीं किया।'' उसने शान्त स्वर में कहा।
माँ से वायदा किया है इसलिए वह शाँत महासागर हो गया है। भीतर से कितनी ही लहरें उठे पर ऊपर से धीर, गम्भीर बना रहता है।

'' अच्छा याद दिलाया, फ़ोन बिल में एक भी इंडिया की कॉल नहीं है। इस का मतलब है कि तुम घर के फ़ोन से इंडिया कॉल नहीं करते। बाहर से करते हो। ज़रूर मेरी चुगलियाँ होती होंगी। अगर तुम्हारी माँ- बहनें तुम्हें फ़ोन करती हैं तो उनके पास पैसा कहाँ से आया। मुझे बताते तो मैं मना कर देती, यही सोच कर उन्हें चोरी पैसा भेज दिया होगा।'' सपना लड़ने के लिए बीज डाल रही है ....वह अक्सर उसकी माँ -बहनों को बातचीत में ज़रूर घसीट लाती है जानते हुए भी कि बेवजह उनको अपने झगड़ों में लाना उसे पसन्द नहीं।

उसने बात टाल दी-'' सपना एक अरसे से मेरी उनसे बात नहीं हुई।'' वह अक्सर विवाद खड़ा होने से पहले ही समाप्त कर देता है। सपना लड़ने पर उतारू है, वह समझ गया और झगड़ा रोकने की पूरी कोशिश कर रहा है।

'' नंदू तुम झूट भी बोलने लगे हो...मम्मी बता रही थीं कि तुम आज कल सारा- सारा दिन घर से बाहर रहते हो। कॉलेज में तो चार घंटे की नौकरी है। ज़रूर कहीं और नौकरी करने लगे हो। मुझे पक्का यकीन हो गया है ... वही पैसा तुम घर भेजते हो।
यह कह कर सपना उसकी ओर देखते ही सकपका गई। अभिनन्दन की आँखों में कड़वा तीखापन है। वह उसकी ओर देख नहीं सकी।
सपना ने पैंतरा बदला '' नंदू आई ऍम सॉरी। दो -दो नौकरियाँ मत करो। तुम्हें इतना काम करते देख कर, मुझे तकलीफ़ होती है और मम्मी-डैडी का ध्यान भी तुम्हें ही रखना होता है। मेरी जॉब बहुत डिमांडिंग हैं। ज़रूरत थी तो मुझ से क्यों नहीं माँग लिया पैसा। तुम से पाँच गुणा कमाती हूँ और तुम्हारी माँ -बहनों की इच्छाओं को पूरा कर सकती हूँ। हाँ क्यों मांगोगे..? मर्द हो न, आत्मसम्मान पर चोट लगती है। स्त्री से पैसा लेने में शर्म आती है। स्त्री पुरुष से पैसा माँगे तो जायज़ , पुरुष माँगे .....'' उसने बात अधूरी छोड़ दी।

मन में उथल -पुथल और उकसाहट हुई-- कह दो..गरीबों की इच्छाएँ नहीं ज़रूरतें होती हैं...... पर वह कुछ नहीं बोला...... बस उसकी ओर देखता रहा....सपना सामने वाले के भीतर बैठे दुर्योधन को उत्तेजित करने में माहिर है। पहले- पहल वह उसकी इस आदत का शिकार बन कर भड़क उठता था और छोटी सी लड़ाई बड़े युद्ध में परिवर्तित हो जाती थी। अहम् हार जीत में अटक जाता। वह नया -नया इस देश में आया था, शादी के बाद वर्क परमिट के लिए हर तरह से सपना और उसके परिवार पर निर्भर था। बेकसूर होते हुए भी क्षमा उसे ही मांगनी पड़ती। सपना उसे हारा हुआ महसूस करवाती और उसकी इच्छा विरुद्ध सहवास करती। पराये देश में वह किससे अपनी पीड़ा साझी करे......बस भोर में घर के पिछवाड़े वाले आँगन में दूर पड़े बैंच पर बैठ कर उसकी भावनाओं की चाँदनी सपना के व्यवहार की तपश से पिघल कर आँखों के रास्ते, कभी ग्लानी और कभी शर्मिंदगी बन बहने लगती। पिछवाड़े से ही सटे साथ वाले घर की खिड़की से मैरी ऐलन कई बार उसकी आँखों में उमड़ते सैलाब को देखती। उस दिन वह उसके पास आई --'' सन, डोंट क्राई..(बेटा रोओ मत), कम विद मीं (मेरे साथ आओ)।

मैरी ऐलन में उसे अपनी माँ नज़र आई और वह उसके पीछे, उसके घर की ओर चल पड़ा।
एक दिन मैरी ऐलन को यार्ड में काम करते देख सपना ने उसे बताया था कि वह अपने भव्य घर में अकेली रहती है। वह उसके घर के भीतरी भाग की कला और वहाँ पड़ी कलाकृतियाँ देखता ही रह गया। इतने बड़े घर में भारत के कई परिवार समा सकते हैं, जिसमें वह अकेली रहती है।
'' कॉफ़ी '' मैरी ऐलन के पूछने पर उसने 'हाँ' में सिर हिला दिया।

''बेटा मैं जानती हूँ कि ये लोग तुम्हें भारत से लाए हैं और अभी तुम्हारे पास काम करने के लिए वर्क परमिट नहीं है। आदमी सुबह उठ कर जब अकेले में रोता है, इसका मतलब होता है कि औरत ने पिछली रात बिस्तर में उसे बेबस किया है।'' वह मैरी ऐलन को हिन्दी बोलते देख कर हैरान रह गया।

उसकी हैरानी देख कर वह मुस्करा पड़ी --''मेरी माँ भारतीय थी और डैड अमेरिकन। डैड की नौकरी भोपाल में थी और मेरे हाई स्कूल पूरा होने तक हम भारत में रहे। मेरे नाना -नानी बहुत अच्छी हिन्दी बोलते थे। उन्हीं से हिन्दी सीखी। हर वर्ष भारत जाती हूँ। बहुत बड़ा परिवार है वहाँ। ''
''मैं इमिग्रेशन एटर्नी हूँ।'' उसने कॉफ़ी का मग पकड़ कर कहना शुरु किया। बाहर की भीनीं -भीनीं रौशनी दोनों के चेहरे पर पड़ रही थी।

''बस इतना कहूँगी कि ग्रीनकार्ड के बिना तुम इस देश में कुछ नहीं कर सकते। सपना जैसी लड़कियाँ इस ताकत का नाजायज़ फायदा उठाती हैं और लड़कों के साथ मनमानी करती हैं। ऐसी लड़कियों से तंग आकर कई लड़के हरे रंग का कार्ड मिलने के फ़ौरन बाद तलाक दे देते हैं और इसे रोकने के लिए नए -नए सख्त कानून लड़कियों के हक़ में बना दिए गए हैं। वे तलाक क्यों देते हैं ....इसके कारणों को कोई नहीं जानना चाहता। अभी कुछ नए कानून बने हैं ताकि लड़कियों पर हो रहे शोषण को रोका जा सके।''

''लड़कों का जो शोषण होता है उसके लिए यहाँ कोई कानून नहीं। '' इस पर मैरी ऐलन गम्भीर हो गई ''लड़के कभी शोषण के ठोस प्रूफ नहीं जुटा पाते और कानून प्रूफ चाहता है। तुम्हें पहले दो साल का ग्रीन कार्ड मिलेगा। अगर गृहस्थी ठीक-ठाक चली, फिर तुम्हें दस साल का पक्का कार्ड मिलेगा और इस अवधि में कभी भी इस देश की नागरिकता ले सकते हो। दो साल में तुम्हारी पत्नी या तुम्हारी वजह से गृहस्थी टूट जाती है, तो वापिस भेज दिए जाओगे और कभी वापिस नहीं आ पाओगे। सारा संघर्ष, सारी कुर्बानी बेकार जाएगी। भावुकता से नहीं, विवेक से काम लेना, सब सह जाना।''

''मैम, मैं तो सपना की चाहत में चला आया। इन तकनीकी और क़ानूनी पहलुओं से बेख़बर हूँ। हमारे घरों में शादी का मतलब सीरियस कमिटमेंट होता है।''
''तुम सरल हृदय हो। पर सामने वाला ....'' मैरी ने आगे कुछ नहीं कहा।

''बेटा दो तरह के लोग होते हैं , एक वाईज़ और दूसरे इंटेलेक्चुअल। जब इंसान दोनों पक्षों को साथ लेकर चलता है तो कठिन से कठिन परिस्थितियों को पलट सकता है। बुद्धिमता से काम करना ही समझदारी है। कायदे कानून समझो और सोच -समझ कर चलो। कोरी भावुकता से ज़िन्दगी नहीं चलती। मिलते रहना ....। ''

''जी मैम '' कह कर वह उठने लगा तो मैरी ने कहा -मैम नहीं माँ कहो ... अभि को लगा कि तपती दुपहर में रेतीले टीले पर कहीं से झरना फूट पड़ा। माँ शब्द ने उसे भावुक कर दिया। बेगाने देश में किसी अपने के एहसास की बदली सावन की झड़ी सी बरस कर उसके पूरे बदन को भिगो गई। जिन्हें अपना समझ कर, जिनके लिए सब कुछ छोड़- छाड़ कर, वह अमेरिका चला आया था। वे तो पराए निकले। माँ हमेशा कहती है अभि मन सच्चा तो रब पक्का, मन खोटा तो रब झूठा। अपने मन को पाक़-साफ़ रखो तो भगवान् स्वयं रास्ते बना देता है। माँ उसे अभि बुलाती और वह माँ को भाग्यवादी मान कर हमेशा मुस्करा देता था। पर उस दिन मुस्करा नहीं पाया।

पहली बार उसे ग्रीन कार्ड के महत्त्व का पता चला और कनौजिया परिवार की चालाकी। मैरी ऐलन की बातों को उसने अपने पल्ले बाँध लिया था।

वर्क परमिट और दो वर्ष का ग्रीन कार्ड मिल जाने के बाद भी वह सपना की ज़्यादतियाँ बर्दाश्त कर रहा है .....सपना की हर बेहूदगी सहने का कारण उसकी माँ है जो फ़ोन पर बार -बार उसे समझाती रहती हैं -''अभि गृहस्थी में धैर्य की बहुत ज़रूरत होती है। ख़ासकर अरेंज्ड मैरिज में। दो अलग परिवारों के दो भिन्न व्यक्तित्व; जो पहले एक दूसरे को जानते नहीं, आपस में मिलते हैं। एक दूसरे के साथ ढलने -चलने में समय तो लगता है। जो बातें अनर्गल लगें, उन्हें भी झेल लेना, दो तीन साल में सब कुछ ठीक हो जायेगा।''

फ़ोन रख अभि सोचता...काश ! माँ को बता सकता कि वह सपना का क्या -क्या झेल रहा है। अढ़ाई साल से ऊपर हो चुके हैं, पक्के कार्ड के लिए अब वह कभी भी एप्लाई कर सकता है। उसने उसके लिए कोशिश नहीं की। गृहस्थी को संवारने के लिए संघर्षरत है। सपना और उसके स्वभाव में आकाश -पाताल सा अन्तर है। माँ को यह भी नहीं बता सकता कि वह सपना की ओर से बहुत निराश हो चुका है। बस अन्दर ही अन्दर घुटता रहता है। उसकी कल्पना की गृहस्थी के मोती इधर -उधर बिखर गए हैं और उसके पाँव के नीचे आ कर उसे ही पीड़ित करते हैं और वह कराह भी नहीं सकता।
उसे चुप देख कर सपना फिर बोली ---''मम्मी को डॉक्टर के पास ले जाना, तीन बजे की एपोआइनटमेंट है।''
''तुम्हारे मम्मी को तुम्हारे डैडी ले जाएँ। मैं उस समय काम से निकल नहीं सकता।''अभिनन्दन के मुँह से यह बात कैसे निकल गई वह स्वयं भी चौंक गया।
''हाउ डेयर यू से... तुम्हारे मम्मी ....तुम्हारे डैडी ...वे तुम्हारे मम्मी डैडी भी हैं ....और कभी नहीं भूलना कि तुम उनके घर में रहते हो।''
''तुम यहाँ रहना चाहती हो, मैं तो तुम्हारा अनुसरण कर रहा हूँ और यहाँ मुफ़्त में नहीं रहता; अपना हिस्सा देता हूँ। मेरी माँ तुम्हारी माँ नहीं हो सकती, हर समय तुम उन्हें तेरी माँ -तेरी माँ कहती रहती हो, तो तुम्हारे पेरेंट्स भी सिर्फ तुम्हारे हुए, मेरे नहीं। मैं पूरी दुनिया के माँ - बाप को अपना समझता था और समझता रहता पर तुम्हारे द्वारा पैदा किए गए भेद -भाव को मिटाने के लिए वही भाषा बोलने पर मजबूर हुआ हूँ, जो तुम समझती हो। "
''अच्छा तो पंछी के पंख निकल आए हैं ...देखती हूँ दो साल के ग्रीन कार्ड पर कितना उड़ते हो। दस साल के कार्ड के लिए यहीं आओगे इसी पिंजरे में, अन्यथा भारत लौटना पड़ेगा। ग्रीन कार्ड लेने के लिए ही तुमनें मुझे से शादी की है। वह नहीं मिलेगा तो तेरी माँ-बहनों का क्या होगा।''
ग्रीन कार्ड और घर के ताने - तंज अभिनन्दन के स्वाभिमान को हमेशा तार -तार कर जाते हैं ....वह कसमसा कर रह जाता है। छीजे हुए स्वाभिमान की पीड़ा उसके रोम -रोम को बींध जाती है। हर समय मुस्कराने वाले चेहरे पर अजीब सा तनाव रहता है। अभिनन्दन हँसता था तो उसकी चमकती दन्त पंक्तियाँ, उसके हँसते चेहरे को और दमका देती थीं। अब तो किसी ने उसके दाँत ही नहीं देखे। जबड़े कसे रहते हैं। हँसी और मुस्कराहट ने उससे कुट्टी कर ली है, रूठ गई है उससे। बात - बात पर खीजने लगा है। बाहर से शान्त दिखाई देता है, भीतर शादी के अपने निर्णय पर रोष और गुस्से के लावे से भरा हुआ है; जो कभी भी ज्वालामुखी सा फट पड़ने के लिए तैयार है। अपनी चिड़चिडाहट मिटाने के लिए व्यस्त रहना चाहता है। दिन भर तो वह कॉलेज में पढ़ाता है। तीन साल के कांट्रेक्ट पर है, सेंट मैरी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर है। शाम को वह एक कम्युनिटी कॉलेज में भी पढ़ाने लगा है, ताकि दिमाग़ को एक पल के लिए भी कुछ और सोचने का समय न मिले और सपना की तीखी बातों पर उसकी तरफ से विस्फोट की सम्भावना कम हो जाए। पर आज वह पूरी तरह से खीज चुका है।
''कई बार कह चुका हूँ कि ग्रीन कार्ड के लिए मैंने तुमसे शादी नहीं की, हृदय और भावनाओं की गहराइयों के साथ की है, दिल दे बैठा था तुम्हें। ग्रीन कार्ड मेरे लिए सिर्फ एक परमिट है अमेरिका में रहने और काम करने के लिए। उसे पाने के लिए मैंने तुम्हें सीढ़ी नहीं बनाया। ग्रीनकार्ड की ताकत को तुम और तुम्हारे मम्मी -डैडी जानते थे, हम नहीं। तभी तो एक साधारण से परिवार के संघर्षरत युवक को यहाँ अपने जाल में फँसा कर ले आए। मैं तो सीधी- सादी सोच वाला, संस्कारों से लाबालब शादी की संस्था में विश्वास रखने और उसे निभाने वाला युवक हूँ।''
''तुमने अपनी माँ और बहनों के लिए मुझ से शादी की। अपनी ग़रीबी दूर करने के लिए। कभी तो सच बोलो ..?''
जिस लड़की से मैंने शादी की वह शायद कोई और थी .... तुम नहीं...चाहते हुए भी वह कह नहीं पाया। अब अभि सपना को जीतने नहीं देता, वह उसे उकसा नहीं सकती और अभि अपने भीतर की कौरव सेना को सिर नहीं उठाने देता। थोड़ी सी बात कह कर स्वयं को रोक लेता है।
माँ ने उसे साड़ी में लिपटी हुई एक सुन्दर लड़की की तस्वीर दिखाते हुए कहा था--''बेटा यह तेरे बड़े मामा जी के दोस्त श्याम कनौजिया की बेटी है...... कई वर्ष पहले श्याम जी अमेरिका चले गए थे। अब वह अपनी लड़की के लिए लड़का ढूँढ़ रहे हैं। लड़की संस्कारी है और ह्युलार्ड कम्पनी में कम्प्यूटर इंजीनियर है। तुम्हारे लिए बात चलाई है तुम्हारे मामा जी ने।'' और उसने यह कह कर माँ को चुप करा दिया था कि वह अपना देश और घर छोड़ कर कहीं नहीं जायेगा। इस बात पर माँ ख़ामोश हो गई थी।
पास बैठे बड़े मामा जी ने माँ को चुप होता देख बोलना शुरु कर दिया था-''अभि बेटा देश ने क्या दिया है तुम्हें ...कैमिस्ट्री में एमएससी करने के बाद भी अभी तक ढंग की नौकरी नहीं मिली। हर जगह कोटा सिस्टम से मार खा जाते हो। माँ के पास जो था, वह तेरी तीन बहनों की शादी पर खर्च हो चुका है। जितना तू कमाता है, उसमें तीन बहनों की शादी कैसे करेगा ....माँ के सिर पर छत नहीं बनाएगा।''मामाजी की बात सुन कर वह अचंभित रह गया था। मामा जी जैसा देश प्रेमी उसे देश छोड़ कर जाने के लिए तर्क दे रहे हैं ; जो आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए कई बार जेल गए थे।
''मामा जी देश छोड़ कर विदेश जाना तो समस्याओं का हल नहीं। मेरी बहनें पढ़ी लिखी हैं उनकी शादी की चिंता मुझे नहीं है। कई अच्छे लड़के मिल जाएँगे। माँ के सिर पर छत भी बन जाएगी।'' वह भी हार मानने वाला नहीं था। विदेश जाने के वह कभी हक़ में नहीं रहा। अपने दोस्त सिमर से अक्सर उलझ जाता था, जब वह भारतीय मूल की विदेशी लड़कियों के वैवाहिक विज्ञापन देखा करता। सिमर उसे तथ्य बताता कि अगर २०मिलियन भारतीय जो विदेशों में बसे हुए हैं, भारत में होते तो भारत की अर्थ व्यवस्था और बेरोज़गारी का क्या हाल होता। भारतवासियों को प्रवासियों का धन्यवाद करना चाहिए कि २० मिलियन लोग उनके लिए स्थान ख़ाली कर गए हैं। उनसे जुड़े कितने परिवार खुशहाल हुए हैं। विदेशी मुद्रा से भारत को आर्थिक सुदृढ़ता मिली है। इससे पहले कि सिमर उसे कायल करने के लिए और बिन्दुओं पर बात करता वह सब को पलायनवादी कह कर विषय बंद कर देता।
विदेश जाने के बारे में उसके विचार बड़े स्पष्ट और कड़े थे। मामा जी उसके विचारों से भली भांति परिचित थे फिर भी बोले--''कोरा आदर्शवाद तुम्हारी उम्र की देन है। युवा अवस्था में मैं भी ऐसा ही था। आज जो देश के हालात हैं, ऐसे देश की कल्पना मैंने नहीं की थी, इस व्यवस्था के लिए मैंने जेलें नहीं काटी थीं। यथार्थ से, तुम पलायन कर रहे हो, बड़ी बहनें भी तो पढ़ी- लिखी थीं, दहेज के बिना शादी हो पाई उनकी ? मौका मिल रहा है चले जाओ ''
''नहीं मामा जी, मैं शादी को अपनी मजबूरियों से परे रखना चाहता हूँ...शादी में किसी तरह का स्वार्थ नहीं होना चाहिए ...मेरी माँ, मेरी बहनें, मेरी ज़िम्मेदारी है, इसके लिए विदेश नहीं जाऊँगा।'' अब माँ ने बातचीत का मोर्चा सम्भाला --''अभि मैं तुम्हारी भावनाओं की कद्र करती हूँ। शादी तो तुमने करवानी है फिर आज हो या कल। एक बार लड़की देखने में हर्ज़ क्या है ..? नहीं पसन्द आएगी तो बात यहीं पर ख़त्म।'' माँ की आँखों और भाव- भंगिमाओं से अभि को माँ का विनम्र निवेदन लगा। माँ जब भी इस तरह से अनुनय करती, वह उसे इन्कार नहीं कर पाता।
क्लार्क होटल में वह सपना से मिला। उसकी सुन्दरता, शिष्टता, सौम्यता और व्यवहार कुशलता ने उसे बेहद प्रभावित किया और उसके परिवार को भी सम्मोहित कर लिया। इन्कार का कोई कारण नहीं था। आनन -फ़ानन में दोनों की मँगनी हो गई। सपना की छुट्टियाँ समाप्त हो गई थीं और वह मँगनी के फ़ौरन बाद अपने माँ -बाप के साथ अमेरिका लौट आई। पासपोर्ट बनवाने और मंगेतर के तौर पर वीसा लेने में समय लग गया और दो महीने के भीतर अभि भी सपना के पास नए देश -परिवेश और भविष्य के सपने ले कर पहुँच गया।
दूसरे दिन कोर्ट और उसके बाद मंदिर में उनकी शादी हो गई। उसे ऐसा लगा कि सपना भी उसे बहुत चाहने लगी है, जो जल्दी-जल्दी सब तैयारियाँ कर रही है। सभ्य, सुसंस्कृत लड़की के लिए देश-परिवार छोड़ना उसे तकलीफ़ तो दे रहा था ; पर एक अच्छी सहयात्री, जीवन संगिनी मिल जाने की संतुष्टि और तृप्ति भी थी।
उसके आने और शादी की ख़ुशी में घर की बार में वोद्का, जिन की बोतलें खुल गईं और रात्रि भोजन तक सपना और श्याम कनौजिया पर शराब हावी हो गई। विभा जी ने बस एक ही पेग पिया था और उसका साथ दिया था। वह तो शराब पीता नहीं। उसके सुन्दर स्वप्न एक भयानक सपना बन गए। सपना की सुन्दरता, शिष्टता, सौम्यता और व्यवहार कुशलता सब रफू चक्कर हो गई। कृत्रिमता का मुखौटा उतर गया। नशे में धुत सपना ने सच बोलना शुरु कर दिया--''डैड हिंदुस्तान के लोग भावनात्मक बेवकूफ होते हैं। दिमाग़ से काम लेना जानते ही नहीं। दिल हथेली पर लिए घुमते रहते हैं। पाँव छू कर, मीठा बोल कर, बड़ों को आदर देकर कुछ भी करवा लो इनसे। हर समय संस्कारों की दुहाई देते हैं... क्या है संस्कार। '' फिर अभिन्दन की ओर देख कर बोली--''स्टुपिड, मैं और ज़्यादा एक्टिंग नहीं कर सकती थी, इसलिए जल्दी शादी कर ली। प्यार -व्यार मैं किसी से नहीं कर सकती।'' श्याम बाबू के पास जाकर उनसे लिपटते हुए बोली --''डैड आप हमेशा से एक नौकर चाहते थे, जो आपके इशारों पर नाच सके। भारत के नौकरों को मिस कर रहे थे। ले आई हूँ आप के लिए एक पढ़ा -लिखा सीधा -सादा नौकर....मिलिए अभिनन्दन वत्स उर्फ़ नंदू से।'' अभिनन्दन की ओर इशारा कर वह विद्रूपता से हँसने लगी। उस दिन से अभिनन्दन नंदू बन गया।
''तुम भी अब गोरी- चिट्टी चमड़ी के पीछे भागना बंद कर दो। इस हट्टे -कट्टे नौजवान के साथ टिक जाओ।'' श्याम बाबू ने नशे में झूमते हुए लड़खड़ाती ज़ुबान से कहा।
''डैड डिपेण्ड करता है यह मुझे कितना झेल पाता है। अमेरिकन लड़के सेक्स में लड़की को बहुत छूट देते हैं ...।''
वह यह सब सुन नहीं पाया था। बाप -बेटी की लज्जा हीन बातें उसके बदन को कम्पित कर गईं और उसकी आँखें धुँधली हो गईं। उसे लगा उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। चारों ओर गहन अन्धकार है और उस अन्धकार से निकलने के लिए कोई रास्ता नहीं है.....सपना वह डरावना सपना है जो कभी समाप्त नहीं होगा और वह उस डरावने सपने और अँधेरे में भटकता रहेगा। यह माहौल उसके लिए अजीब और कल्पना से बाहर का था। वह वहाँ से उठ गया।
विभा जी ने श्याम बाबू को डांटा--''शर्म घोट कर पी ली है ..पहले ही दिन दामाद से इस तरह की बातें कर रहे हो। कनौजिया परिवार क्या इस तरह अपने दामाद का स्वागत करता है ..।"
''मम्मी, वही ओल्ड भाषण। आप के लिए ही तो इंडिया से लड़का लाई हूँ। अब तो खुश हो जाएँ और मुझे मेरी शादी का जश्न मनाने दें।'' उसने वोद्का का एक बड़ा सा घूँट भरते हुए कहा।
विभा जी ने अपने पति की तरफ़ मुड़ कर कहा --''देखा... अँधाधुंध अमेरिकनों की नक़ल करने का नतीजा। अमेरिकन बनने चले थे। हिन्दुस्तानी भी नहीं रहे ..। तुमने कभी मेरी बात नहीं सुनी। रो -रो कर आँखें गल गई मेरी। अमेरिकन क्या ऐसे होते हैं ? उनके घरों में भी ऐसी बातें नहीं होतीं। इंडिया से लड़का ले कर आए हो तो उसे संभालना भी सिखाओ अपनी बेटी को। ''
''मम्मी, अमेरिका के कल्चर को आप कब एक्सेप्ट करेंगे.. हमेशा आप का कोसना चलता रहता है।''
''सपना अमेरिकी कल्चर मैंने तुमसे ज़्यादा अपनाया हुआ है। तीस वर्षों से यहाँ रहती हूँ। तुम दोनों की तरह बुरी आदतें अपना कर कल्चर को जानने का दावा नहीं करती।'' गुस्से से विभा जी वहाँ से उठ गईं और अभिनन्दन को ढूँढने लगीं।
श्याम कनौजिया खिल- खिला कर हँस पड़े -''सपना, तुम्हारी मम्मी ठीक कहती है। लड़का शरीफ़ है। पहले ही दिन इससे ऐसी बातें करोगी तो डर जायेगा। भाग जायेगा।''
''भाग कर जायेगा कहाँ ...? यहाँ रहने के लिए ग्रीन कार्ड और काम करने के लिए वर्क परमिट चाहिए। वह तो मैं ही दिला सकती हूँ। डैडी मैंने सोच- समझ कर इतना बड़ा नाटक किया था। तीन बहनों की शादी करनी है नंदू को। बूढ़ी माँ है। जुड़ा रहेगा मेरे साथ। इसके संस्कार और इसकी मजबूरियाँ इसे मेरे साथ बाँधे रखेंगे।''
उस दिन सच कहा था सपना ने। वह भाग नहीं पाया अब तक। रिश्ते चुने नहीं जाते निभाए जाते हैं अच्छे हों या बुरे। जो बुरा करता है, उसका धर्म उसके साथ और इंसान को अपने कर्म किसी के लिए भी ग़लत नहीं करने चाहिए। बचपन से वह यही सुनता और देखता आया है। इसी जीवन दर्शन और मीमांसा के साथ वह सपना का साथ निभा रहा है। यह जानते हुए भी कि सपना और उसके परिवार ने उसके साथ ग़लत किया है।
और.....प्रथम रात्रि वह कहाँ भुला पाया है। लड़खड़ाती सपना ने अपने अंगों पर शहद लगाया हुआ था और उसे कहा था, मुझसे प्यार करो और साथ ही उल्टियाँ करनी शुरु कर दीं थीं और थोड़ी देर बाद बेहोश हो कर गिर गई थी। उसे घिन बहुत आई थी पर अगले ही पल सपना को उठा कर उसने बिस्तर पर लेटाया और भाग कर विभा जी को उनके कमरे से बुला लाया था और दोनों ने गीले तौलियों से सपना का बदन साफ़ किया था।
दूसरे दिन विभा जी ने सपना के व्यवहार के लिए उससे कई बार माफ़ी मांगी थी। सपना भी उससे आँख नहीं मिला पाई थी। उसका पश्चाताप कुछेक दिनों के लिए ही था। उसके बाद से तो वह रोज़ ही उसकी उल्टियाँ साफ़ करता है।
विभा जी ने संवेगों से भरपूर आँखों से उसे देख कर, अपने नर्म -नर्म हाथों से उसके सिर को सहलाते हुए कहा था--''बेटा तुम्हें देखते ही मैं समझ गई थी कि तुम एक अच्छे इंसान हो। हमारे परिवार के लिए ऐंजल बन कर आए हो। अभिनन्दन जैसे भारत में दो भारत बसते हैं, एक वे जो भारतीयता से सराबोर हैं और दूसरे वे जिन्हें अंग्रेज़ अपने पीछे छोड़ गए हैं। उसी तरह यहाँ भी दो तरह के भारतीय हैं, एक वे जो भारत को अपने साथ लाए हैं और अपने बच्चों में संस्कृति और संस्कारों की शिडोरी (पोटली)बाँट रहे हैं; दूसरे वे जो भारत को पीछे छोड़ आए हैं और अमेरिकन बनने के चक्कर में अपना आप भी खो चुके हैं। श्याम जी उन्हीं में से एक हैं। सपना के उच्छ्रखंल, उद्दंड स्वभाव और उसकी इस सोच के ज़िम्मेदार हम हैं। बच्चों को कौन सही रास्ता दिखाए, अगर माँ -बाप ही रास्ता भटक जाएँ। पतंग की डोर हमनें तब खिंची जब वह हाथ से झूट चुकी थी। सपना ने अमरीका के कल्चर को भी ग़लत तरीक़े से लिया। मुझे अफ़सोस है कि मैं सशक्त माँ बन कुछ वर्ष पहले खड़ी होती; जो मैं आज हूँ, तो सपना ऐसी न होती। बस श्याम जी धीमा सुनते नहीं थे और मैं ऊँचा बोल नहीं पाई।'' उसके बाद उनके शब्द आँखों से बह निकले थे। वे बोल नहीं पाई थीं। और...अभिनन्दन भी उस दिन से चुप हो गया।
''बेटा प्यार एक दिन सपना को पिघला देगा। वह बदल जाएगी।'' बार -बार उसकी माँ भी उसे हिम्मत बंधाती। दो वर्ष से ऊपर हो चुके हैं उसे सपना के साथ रहते हुए, वह जान चुका है कि वह बदलेगी नहीं। मूल भूत प्रवृत्ति कभी बदली नहीं जा सकती। अगर व्यक्ति बदलना चाहे तो....सपना जैसी लड़कियाँ बदलना नहीं चाहतीं, उन्हें कुछ भी ग़लत नहीं लगता ....ऐसी मानसिकता के लोग प्यार -मुहब्बत के अर्थ अपनी सोच के अनुसार निकालते हैं। जन्म से मिली मूल भूत बुरी प्रवृत्ति को भी सही परिवेश सुधार देता है और सपना को परिवेश ने गर्म तवे पर रोटी सा फुला दिया। वह ज़्यादा बिगड़ गई।
स्टील का एक गिलास उसके पास से गुज़र कर लकड़ी के फर्श पर जा गिरा। उसकी तन्द्रा टूटी। अतीत का खंगालना रुक गया...बर्तन गिरने की आवाज़ सुन, विभा जी और श्याम जी तेज़ी से अपने कमरे से निकल आए। सामने के दृश्य को देख वे आगे नहीं बढ़े, कमरे की दहलीज़ पर खड़े रहे।
''कब से बुत बने खड़े हो। मेरी बात का जवाब तक नहीं देते।'' सपना ने गुस्से में कई बर्तन उस पर पटकने चाहे। वह सचेत हो गया था। उसने आकर उसके हाथ पकड़ लिए। सपना यह क्या पागलपन है। अगर मैं बोलता हूँ तो तुम लड़ती हो, अगर नहीं बोलता तब भी तुम झगड़ती हो। चीज़े उठा -उठा कर पटकने लगती हो। रोज़ के इस पागलपन से मैं तंग आ चुका हूँ।'' अभि की सहनशीलता बाँध तोड़ उफ़ान ला चुकी थी।
''मैं तुम्हें इस देश में ले कर आई। मेरी और मेरे माँ -बाप की कोई इज़्ज़त नहीं तुम्हारी नज़रों में। पक्का ग्रीन कार्ड मैं तुम्हें लेने नहीं दूँगी। अभी इमिग्रेशन के दफ़्तर में रिपोर्ट करती हूँ।'' कह कर सपना भिनभिनाती वहाँ से जाने लगी तो अभिनन्दन ने उसकी बाजू पकड़ ली।
''यह धौंस किसी और को देना। अपना ग्रीन कार्ड भी किसी और लड़के के लिए सुरक्षित रखना। मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए...मैंने तुमसे इसके लिए शादी नहीं की थी। हाँ जिस लड़की को मैंने पसन्द किया था वह कोई और थी .....तुम नहीं....
अभिनन्दन अपने कमरे में गया, पासपोर्ट उठाया और मुख्य दरवाज़े से बाहर हो गया। विभा जी उसके पीछे गईं पर देर हो चुकी थी... वह सड़क पार कर चुका था.....

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