उसकी खुशबू Sudha Om Dhingra द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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उसकी खुशबू

उसकी खुशबू

सुधा ओम ढींगरा

ऑफ़िस की लॉबी के कोने में पड़े कॉफ़ी पॉट से हर दो घंटे बाद कॉफ़ी लेने जाना और उससे बतियाना उसे बहुत अच्छा लगता....

वह ऐसा नहीं था। लड़कियों से बात करने में झिझकता था। शायद उसकी शर्मीली प्रवृत्ति हमेशा आड़े आती थी। अब उसे क्या हो गया है.....वह स्वयं हैरान है। वह हर समय बेचैन रहने लगा है। उससे बात करने के बहाने ढूँढ़ता है.......।

अमेरिकंज़ के गोरे रंग का वह अक्सर उपहास उड़ाता हुए कहता-'गोरा रंग इनके भद्दे नैन-नक़्श छुपा जाता है। पता नहीं लोग गोरी लड़कियों पर क्यों मरते हैं, असली सुन्दरता तो साँवले रंग में है।' उसे साँवले रंग की तीखे नैन-नक़्शों वाली लड़कियाँ बेहद पसंद थीं। वह उन्हीं की ओर आकर्षित होता था। पर उससे मिलने के बाद उसकी पसंद बदल गई। गोरे रंग के प्रति उसकी सोच और पसंद में परिवर्तन आ गया है। वह स्वयं अपने बदले हुए स्वभाव से हैरान है। अब वह रंग और सुन्दरता पर अपनी प्रतिक्रिया देने से बचता है और अक्सर चुप्पी का दामन थाम लेता है।

जबसे मानवी जीवन में प्रौद्योगिकी और औद्योगिकी संसाधनों ने प्रवेश किया है और बाज़ारवाद से मानव जीवन का परिचय हुआ है, देशों की संस्कृतियों और मानवी आचार-व्यवहार, जीवन मूल्यों तथा सिद्धांतों पर इन सबका बहुत असर पड़ा है। भूमण्डलीकरण ने तो देशों की व्यवसायिक संस्कृतियों का भी वैश्वीकरण कर दिया है। देश-विदेश की कम्पनियाँ मिलकर कई प्रोजेक्ट्स करने लगी हैं। पेशेवर देश-विदेश की कम्पनियों में आने-जाने लगे हैं।

वह भारत में जिस कम्पनी के लिए काम करता है, उसका एक प्रोजेक्ट यहाँ सिन्टेल कम्पनी के साथ है। उसी प्रोजेक्ट पर काम करने बैंगलूर से वह अमेरिका आया है। यहाँ आने के बाद वह दो संस्कृतियों के टकराव में ऐसा उलझा कि अपनी मानसिक शांति ही खो बैठा है, हालाँकि भारत में वह खुद को पश्चिमी संस्कृति और आधुनिक सभ्यता का अग्रणी समझता था। पर इस देश ने उसका उस सच से सामना करवाया; जिसे देशवासी तो जानना-समझाना ही नहीं चाहते। उसने महसूस किया कि इस देश की अच्छी बातें भारत में अपनाई हुई संस्कृति से गायब हैं। यथार्थ और ओढ़े हुए यथार्थ का अंतर वह बखूबी समझ गया और अब वह सिटपिटा रहा है। कदम-कदम पर उसे लग रहा है, वह कितना कृत्रिम जीवन जी रहा था। अंतर्द्वंद्व से घिरा, सोच और ओढ़े हुए लबादे में लिपटा वह स्वयं को तलाश रहा है। ऐसी अस्थिर मनःस्थिति में वह उसे मिली....

पहली बार उससे हाथ मिलाते समय उसकी आँखें चुँधिया गईं थीं, एक-एक अंग, नक़्श तराशा हुआ, सुनहरी बाल और गहरी नीली आँखें। ऐसे सौन्दर्य की कल्पना करना भी अकल्पनीय है। उससे आ रही कलियों के इत्र की तीखी खुशबू उसे मदहोश कर गई थी, जब मृदु स्वर में उसने कहा --आई ऍम जूली। उसे लगा, बचपन में सुनी परी कथाओं में से निकल कर सामने आ खड़ी हुई किसी परी से हाथ मिला रहा है। वह उसी मंज़िल पर ग्राहक सहायतार्थ विभाग में रात की शिफ्ट में काम करती है; जहाँ के एक विभाग में वह रात के प्रोजेक्ट को देखने भारत से यहाँ आया हुआ है।

मुलाकात वाले दिन के बाद ज्योंही वह कॉफ़ी लेने लॉबी में आता, सफ़ेद कपड़ों में सुसज्जित जूली उससे पहले ही वहाँ खड़ी होती। रात की ख़ामोशी और उस ख़ामोशी की गोद तथा जूली का साथ, उसे कल्पना लोक में झूला-झुलाने लगते। वे दोनों वहीं सोफ़े पर बैठ कर कॉफ़ी की चुस्कियाँ लेते। वह बोलता, जूली बस उसे सुनती और मुस्कराती रहती।

कभी वह साँवली- सलोनी लड़कियों में अपने लिए पत्नी ढूँढ़ता था, और अब जूली से मिलने के बाद सोचने लगा..... वह ऐसी पत्नी ही तो चाहता है, जो उसके हर दुःख-दर्द को सुने, समझे और मुस्करा कर उसे ऊर्जा दे।

जूली हर समय सफ़ेद कपड़े पहनती है और वह कल्पना की दुनिया में उसे लेकर तरह-तरह के रंगीन सपने बुनता रहता। एक दिन उसने अपनी दुनिया से निकल कर जूली से पूछ ही लिया कि वह हर समय सफ़ेद कपड़े क्यों पहनती है? जूली कुछ नहीं बोली, बस आँखों के समन्दर में एक लहर उठी और वह उसकी आँखों में देख नहीं पाया। उस लहर ने उसका बदन भिगो दिया। वह चाह कर भी उसे कह नहीं पाया कि उसके सफ़ेद कैनवस को वह रंगों से भर देगा और जूली की ख़ामोशी कब्रिस्तान के सन्नाटे सी उनके मध्य पसर गई और उस सन्नाटे को तोड़ने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाया।

जूली उसके भीतर चल रहे संस्कृतियों के टकराव से पैदा हुए अंतर्द्वंद्व पर छा गई। अब वह उसी के बारे में सोचता रहता। जूली के जीवन में कोई दुर्घटना हुई है, जिसने उसे सफ़ेद प्रतिमा बना दिया है, यह वह समझ गया था।

मध्य रात्रि में लॉबी के बल्बों की रौशनी धीमी हो जाती है। वह उस समय अक्सर कॉफ़ी लेने आता तो बल्बों की मध्यम लौ में वह सोफे पर बैठी सफ़ेद प्रतिमा ही लगती। उसे इस हालत में देखकर उसके दिल में हूक सी उठती। उसके दर्द को वह महसूस करता। उसे तो यह भी पता नहीं कि वह इतना संवेदनशील है। परिवार वाले तो हमेशा उसे असंवेदनशील ही कहते हैं; जिसे किसी से मोह नहीं, लगाव नहीं। जो किसी का दर्द महसूस नहीं करता। कठोर, लापरवाह और न जाने क्या कुछ उसे कहते हैं ....परिवार तो यहाँ तक कह देता है, जो भी उसकी पत्नी होगी, वह उसकी लापरवाही पर रोएगी।

जिसने जूली की यह हालत कर दी, उस दुर्घटना के बारे में उसने जूली को तरह-तरह से पूछा, पर जूली ने उसे कुछ नहीं बताया।

वह कम्पनी में नया था, अपने सहकर्मियों से जूली के बारे में जानकारी लेने से कतराता था। कम्पनी में अफवाहें जंगल में आग की तरह फैलती हैं।

कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। जूली उसके लिए रहस्यमयी पहेली बन गई। वह उसके साथ रात्रि भोज पर जाती। मुस्कराते हुए बहुत से विषयों पर बातें करती पर जब वह उसके बारे में कोई प्रश्न करता, अपने बारे में किए गए उसके हर प्रश्न को टाल जाती। वह उसकी नीली आँखों में झाँकता तो भी कुछ ढूँढ़ न पाता सिवाय शून्य और मौन की ठंडी धुँध के।

कभी-कभी वह उसे अपना भ्रम समझता। उसे तिलस्मी दुनिया से आई हुई परी समझता, जो इस लोक में अपनी अधूरी इच्छाएँ पूरी करने आई है.... जूली सच नहीं है.....उसके प्रति आकर्षित होना ठीक नहीं.....उसके इत्र की खुशबू भी उसे अस्वाभाविक लगने लगी। उसने कहीं पढ़ा था कि तिलस्मी दुनिया के लोगों से इत्र की तेज़ खुशबू आती है, जो सामने वाले को सम्मोहित कर लेती है। फिर वे सामने वाले से अपनी इच्छानुसार कार्य करवा लेते हैं। पर ऑफ़िस आते ही भ्रम, डर और अपनी सोच को परे कर वह फिर लॉबी में काफ़ी लेने पहुँच जाता। वह स्वयं भी महसूस कर रहा था कि वह उसके मोहपाश में बँध चुका है। उसके बारे में सोच कर ही उसका अपने पर कोई वश नहीं रहता। वह उसके बारे में सब कुछ जानना चाहता। पर कैसे जाने वह उसके बारे में? समझ नहीं पा रहा और उसे कोई रास्ता भी तो नज़र नहीं आता।

उसके बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा ने उसे बेचैन और परेशान कर दिया। उसे लगने लगा कि वह अवसाद में जा रहा है, जिसे बेइंतिहा चाहता है, वह उसे समुद्र के दूसरे छोर पर खड़ी नज़र आती है और उसे पाने के लिए वह जिस किश्ती पर सवार है, वह किश्ती भंवर में फंस कर डूबती हुई महसूस होती है।

कम्पनी की डायरेक्टरी में काम की जानकारी के अतिरिक्त व्यक्तिगत जानकारी निजता के अंतर्गत सुरक्षित थी। गूगल सर्च में भी वह उसके बारे में वही जान पाया जो कम्पनी की डायरेक्टरी में था। उसके भीतर जूली को लेकर हर समय हलचल मची रहती। शायद यही प्यार है, अगर यही प्यार है तो उसका मन इतना अस्थिर क्यों है? वह उस लड़की को क्यों इतना चाहता है, जो उससे दूरी बनाए हुए है। कभी सोचता शायद वह उसे सिर्फ़ दोस्त ही समझती है। पर जूली की शारीरिक भाषा उसे कुछ और कहती महसूस होती। जूली का आकर्षण उसे तड़पाता। पहली बार उसे महसूस हुआ कि प्रेम अभिव्यक्ति चाहता है। उसे अभिव्यक्त ना कर पाना कितना पीड़ादायक है, इसका एहसास उसे हो रहा है। उस पीड़ा की कसक रह-रह कर उठती।

कहते हैं समय हर दर्द का इलाज है। समय ने उसके दर्द को पहचान लिया और उसे मौका दिया। उस दिन जूली का काम जल्दी समाप्त हो गया और वह भी घर जाने के लिए अपना डेस्क समेट रहा था।

वह हिरणी सी चाल चलती उसके विभाग में आई। वह उसे वहाँ देख कर हैरान हो गया। फिर भी उसने बड़े प्यार से पूछा-'व्हाट कैन आई डू फॉर यू ?'

'कैन यू गिव मी राइड।'

'येस, ऑफ़ कोर्स। आई एम आल्सो गोइंग होम।'

उसे साथ ले जाने के लिए वह सहर्ष तैयार हो गया। उसका मन बल्लियों उछलने लगा। अकेले में वह अपने मन की बात उसे बेझिझक कह पाएगा। उसके बारे में जानने की उसकी उत्सुकता और बढ़ गई। मुस्कराकर उसने अपने भावों को छुपा लिया।

बाहर हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी। लगातार की बारिश ने चारों ओर उदासी का कोहरा जमा दिया था। वातावरण में घुटन थी, अलसुबह अभी रात ही लग रही थी। ऑफिस का माहौल भी अजीब सा सन्नाटा दे रहा था।

उसने जूली के लिए कार का दरवाज़ा खोला। बैठते समय जूली ने उसकी बाज़ू को पकड़ लिया और उसका बदन उससे टकराया। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा।

धड़कते दिल से उसने स्टीयरिंग व्हील सँभाला..... जूली उसके पास सरक गई। अब वह उसके बदन की तपश और उससे आ रही इत्र की खुशबू बहुत करीब से महसूस कर रहा था।

''मेरा घर आपके रास्ते में है'' जूली के कहने पर उसने कार हाइवे 85 पर मोड़ ली। लता की स्वर लहरी उभरी--''आप की नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे।'' उसने कार का सीडी प्लेयर बंद करने के लिए हाथ बढ़ाया। जूली ने उसके हाथ पर हाथ रख कर रोक दिया - ''यह लता मंगेशकर है। मुझे इसके गाने बहुत अच्छे लगते हैं।'' वह उसके मुँह से हिन्दी सुन कर हैरान रह गया।

''हैरान मत हों, भारतीय कल्चर समझने के लिए ही मैंने हिन्दी सीखी।'' यह सुनकर वह भीतर ही भीतर विभोर हो उठा और उसके माँ-बाबूजी जी के ख़ुशी से प्रफुल्लित चेहरे उसकी आँखों के सामने घूमने लगे।

वह बड़ी जल्दी भविष्य की कल्पनाओं में खो जाता है, यह उसकी बहुत बुरी आदत है और इस समय तो उसका प्यार उसके इतने करीब है तो वह कैसे भविष्य की कल्पनाओं से छूट सकता है!

''जूली मैं तुम्हें पसन्द करता हूँ और अपने परिवार से मिलवाना चाहता हूँ। आई होप तुम भी मेरे लिए वही महसूस करती हो, जो मैं तुम्हारे लिए करता हूँ।''

''सुमित सक्सेना कल की मत सोचो, अभी इस पल का एन्जॉय करो। मैंने क्षणों में जीवन की धारा उलटी बहती देखी है। क्या से क्या हो जाता है? समय ने मेरे साथ कई खेल खेले हैं। अब मैं समय के साथ खेल रही हूँ।''

''तुम क्या कह रही हो, मैं कुछ समझा नहीं।''

जूली के चेहरे पर विकृत-सी मुस्कराहट आई। सुमित की आँखें विंड शील्ड से बाहर सड़क पर टपकती वर्षा की बूंदों को देख रही थीं और कार की हेडलाईट्स में अँधेरी सड़क पर रास्ता तलाश रही थीं। वह उसकी विकृत मुस्कराहट देख नहीं पाया।

''क्या वह भारतीय था?'' सुमित स्टीयरिंग व्हील को सँभाले, सड़क पर आँखें टिकाए बोला।

''हाँ, साँवला, लम्बा-ऊँचा तुम्हारी तरह।''

''धोखा दे गया।''

जूली सिर झुकाए खामोश रही और थोड़ा सा उसकी तरफ और सरक गई। इत्र की खुशबू और जूली के सामीप्य ने सुमित के शरीर को संवेगों से भिगो दिया।

लगातार बारिश ने सड़क पर फ़िसलन पैदा कर दी थी। जूली के सामीप्य से सुमित सड़क की फ़िसलन से बेपरवाह हो गया। दो तीन बार कार फ़िसली। पर सुमित ने कार सँभाल ली। वह अपने घर की तरफ जाने वाले मोड़ वाली सड़क पर आ गया।

''हाँ यही, बाईं तरफ़ चर्च के सामने रोक दो, मैं यहीं रहती हूँ और यहाँ के पादरी की बेटी हूँ।'' जूली ने सुमित से परे होते हुए कहा।

''यहाँ से तो मैं रोज़ निकलता हूँ।''

''मुझे मालूम है।'' जूली ने मुस्कराते हुए कहा और सुमित को कार से बाहर निकलने का इशारा किया।

रिमझिम बारिश जूली को भिगो रही थी और वह भी भीगने लगा तो जूली ने उसे कस कर अलिंगनबद्ध किया और उसके चेहरे पर ताबड़तोड़ चुम्बन दाग दिए। फिर वह उसे बिना देखे चर्च की ओर बढ़ गई।

सुमित जूली के इस आकस्मिक व्यवहार से स्वयं को सँभालता कार में आ बैठा। भावनाओं से भीगा और इत्र की खुशबू में लिपटा उसका बदन सरूर में आ गया। अपने घर की तरफ जाने वाले मोड़ की ओर बढ़ते हुए उसे चक्कर आने लगे। इससे पहले कि वह कार सड़क के किनारे की ओर ले जाता, ज़ोर का एक झटका उसे लगा और उसकी आँखें हस्पताल के कमरे में खुलीं।

''सुमित तुम बहुत खुशकिस्मत हो, जो इस भयंकर दुर्घटना से बच गए।'' डॉ.शाह ने बड़े प्यार से कहा।

''चार भारतीय नौजवानों की मौतें मैं इसी मोड़ पर देख चुका हूँ, जहाँ तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ। इसीलिए इसे 'ख़तरनाक मोड़' कहते हैं।'' उसकी आँखों के सामने वह एग्ज़िट घूम गया, जिस पर फूलों के गुच्छे पड़े होते हैं। पहली बार उन गुच्छों को देखकर उसने अपने एक सहयोगी कमल से पूछा था कि इस देश में सड़कों के कोनों या किनारों पर फूलों के गुच्छे क्यों पड़े होते हैं? कमल ने उसे बताया था कि जब यहाँ कोई व्यक्ति सड़क दुर्धटना में मारा जाता है तो उसके घर वाले प्रार्थना करके फूल वहाँ रख जाते हैं।

''पर वे फूल तो हमेशा ताज़ा दिखते हैं।'' उसने हैरान होते हुए कहा था ''इसका मतलब है कि अभी किसी की दुर्घटना हुई है या लोग रोज़ ताज़ा फूल रख कर जाते हैं।''

''सुमित कई लोग आर्टिफीशिअल फूल वहाँ ज़मीन में गाड़ जाते हैं। दूर से वे ताज़े नज़र आते हैं और लम्बे समय तक उस स्थान पर लगे रहते हैं; जहाँ परिवार के किसी प्रिय ने दम तोड़ा होता है। दिन त्योहारों में कई बार इन्हीं फूलों के साथ मोमबत्तियाँ जलती भी तुम देखोगे। यह यहाँ के परिवारों का अपने प्रियजन का सड़क दुर्घटना में मारे जाने पर श्रद्धांजलि देना होता है।'' कमल ने बड़े विस्तार से उसे समझाया था।

तभी पुलिस ऑफ़िसर ने जूली की तस्वीर दिखाते हुए अपने पुलिस लहजे में पूछा,''इस लड़की को पहचानते हो।''

वह जूली की तस्वीर की ओर देखता रहा........

''आठ साल पहले इसकी शादी मनोज देशमुख नाम के लड़के से उसी चर्च में होने वाली थी, जिसके एग्ज़िट वाले मोड़ पर तुम्हारी कार वृक्ष से टकराई थी। शायद तुम पहले से ही ब्रेक लगाने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए बच गए।'' अब पुलिस ऑफ़िसर का लहजा थोड़ा नरम हुआ।

सुमित कुछ समझ नहीं पा रहा..... वह बोले भी तो क्या बोले.... बस कभी जूली की तस्वीर और कभी पुलिस ऑफ़िसर की ओर देखता रहा.....

शादी वाले दिन मंडप में मनोज ने जूली से शादी करने से इंकार कर दिया।

''चर्च में इस लड़की की शादी तो नहीं हुई, पर उसके कुछ दिनों बाद पहली मौत मनोज देशमुख की और उसके बाद आठ वर्षों में तीन लम्बे-साँवले, हृष्ट-पुष्ट भारतीय लड़के उसी एग्ज़िट पर कार दुर्घटना के शिकार हुए।'' पुलिस ऑफ़िसर अपने अन्दाज़ और गति में बोलता गया।

डर की सिहरन उसके शरीर में दौड़ गई। उसे खुद की आवाज़ कूएँ से आती महसूस हुई-''वह वहाँ के पादरी की बेटी है।''

''झूठ कहा उसने। वहाँ के पादरी की कोई बेटी नहीं।'' पुलिस ऑफ़िसर ने तपाक से कहा।

''जो लड़के कार दुर्घटना में मारे गए, सिवाय टूटी कारों के पुर्ज़ों के हमें कोई और सबूत नहीं मिला, खून और ऑटोप्सी की रिपोर्ट में भी कुछ नहीं निकला कि शक की सुई जूली की तरफ जाती। मिस्टर सुमित, यह कोई संयोग नहीं कि जूली के हर बॉय फ्रेंड की मौत एक ही तरह से, एक ही स्थान पर हो।''

''आपको कैसे पता कि हरेक मरने वाले की गर्लफ्रेंड जूली थी।''

''मिस्टर सक्सेना, सबके फ़ोन में जूली की तस्वीर मिली। यहाँ तक कि तुम्हारे फ़ोन में भी।'' पुलिस ऑफ़िसर उसकी तरफ़ देखते हुए गंभीर स्वर में बोला -''वह अपने अपमान का प्रतिशोध साँवले, लम्बे, पुष्ट भारतीय लड़कों से ले रही है। तुम बच गए हो तो ज़रा खुलकर एक्सीडेंट से पहले की, उससे कब मिले और क्या बातें हुईं, सब विस्तार से बताओ ताकि हमें जूली का कोई ऐसा सूत्र मिल सके; जिससे हम जूली के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर सकें। शी किल्ड फोर जेंटलमेन। वी कैन नॉट लैट हर रोम फ़्री।''

उसे पुलिस ऑफ़िसर की आवाज़ कहीं दूर से आती प्रतीत होने लगी....... और अपने बदन से उसे इत्र की तीखी खुशबू आने लगी........

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