मर्द Anil Makariya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मर्द

मर्द★
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आज हमेशा के मुकाबले ट्रेन में कम भीड़ थी । सुरेखा ने खाली जगह पर अपना ऑफिस बैग रखा और खुद बाजू में बैठ गई ।

पुरे डिब्बे में कुछ मर्दों के अलावा सिर्फ सुरेखा थी। रात का समय था सब उनींदे से सीट पर टेक लगाये शायद बतिया रहे थे या ऊँघ रहे थे ।

अचानक डिब्बे में तीन-चार तृतीय पंथी तालियाँ बजाते हुए पंहुचे और मर्दों से पांच-दस रूपये वसूलने लगे ।
कुछ ने चुपचाप दे दिए कुछ उनींदे से बड़बड़ाने लगे ।
"क्या मौसी रात को तो छोड़ दिया करो हफ्ता वसूली "
वे सुरेखा की तरफ रुख न करते हुए सीधा आगे बढ गए।

फिर ट्रेन कुछ देर रुकी कुछ लडके चढ़े फिर दौड़ ली आगे की ओर ,सुरेखा की मंजिल अभी 1 घंटे के फासले पर थी ।
वे चार-पांच लड़के सुरेखा के नजदीक खड़े हो गए और उनमे से एक ने नीचे से उपर तक सुरेखा को ललचाई नजरों से देखा और बोला
"मैडम अपना ये बैग तो उठा लो सीट बैठने के लिए हैसामान रखने के लिए नहीं है ।"
साथी लडकों ने विभस्त हंसी से उसका साथ दिया ।

सुरेखा अपना बैग उठाकर सीट पर सिमट कर बैठ गई ।
वे सारे लड़के सुरेखा के बाजू में बैठ गए ।
सुरेखा ने कातर नजरों से सामने बैठे दो-तीन पुरषों की ओर देखा पर वे ऐसा जाहिर करने लगे मानो सुरेखा का कोई अस्तित्व ही ना हो ।

पास बैठे लड़के ने सुरेखा की बांह पर अपनी ऊँगली फेरी बाकि लडको ने फिर उसी विभस्त हंसी से उसका उत्साहवर्धन किया ।
"ओ ...मिस्टर थोडा तमीज में रहिये"
सुरेखा सीट से उठ खड़ी हुई और ऊँची आवाज में बोली ।
डिब्बे के पुरुष अब भी एलिस के वंडरलैंड में विचरण कर रहे थे ।
"अरे..अरे मैडम तो गुस्सा हो गई ,अरे बैठ जाइये मैडम आपकी और हमारी मंजिल अभी दूर है तब तक हम आपका मनोरंजन करेंगे " कत्थई दांतों वाला लड़का सुरेखा का हाथ पकड़कर बोला।
डिब्बे की सारी सीटों पर मानो पत्थर की मूर्तियाँ विराजमान थी ।

"अरे तू क्या मनोरंजन करेगा हम करते है तेरा मनोरंजन"
"शबाना उठा रे लहंगा ले इस चिकने को लहंगे में बड़ी जवानी चढ़ी है इसे "
"आय ...हाय मुंह तो देखो सुवरों का कुतिया भी ना चाटे"
"बड़ी बदन में मस्ती चढ़ी है इनके जुली उतारो इनके कपडे , पूरी मस्ती निकालते है इनकी "
जुली नाम का भयंकर डीलडौल वाला तृतीय पंथी जब उन लडकों की तरफ बढ़ा तो लड़के डिब्बे के दरवाजे की ओर भाग निकले और धीमे चलती ट्रेन से बाहर कूद पड़े ।
सुरेखा की भीगी आँखे डिब्बे के कथित मर्दों की तरफ पड़ी जो अपनी आंखें झुकाए अपने मोबाइल में व्यस्त थे
और असली मर्द तालियाँ बजाते हुए किसी और डिब्बे की ओर बढ़ चुके थे ।

#Anil_Makariya

Jalgaon (Maharashtra)

(मौलिक रचना , सर्वाधिकार सुरक्षित )

कभी -कभी कुछ घटनाएं जिंदगी में गहरा असर छोड़ जाती है और सोचने पर मजबूर कर देती है कि हमने महिला सुरक्षा के एक बेहतर विकल्प को कैसी जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया है ?

क्या आपको नही लगता कि महिलाओं के सुरक्षाकर्मी ,ड्राइवर या फिर हेल्पर पुरुषों की अपेक्षा तृतीयपंथी ज्यादा बेहतर हो सकते है ?