अधूरी लोककथा  Anil Makariya द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी लोककथा 

अधूरी लोककथा

हिमालय की तराई के किसी गाँव में इवाद्नम नाम का एक लोककथा गायक रहता था ।
जितना अच्छा वह गायक था, उतनी ही अच्छी उसकी लोककथा बयान करने की काबिलियित थी ।
आसपास के गाँव वाले हमेशा उसे त्यौहार या सर्दियों के मौसम में जब काम ठण्ड की वजह से ठप्प पड़ जाते तो उसे बुला लाते, कहीं दूर की या पास की ही लोककथा इवाद्नम के अंदाज में सुनने के लिए ।
वो एक शाप था या वरदान था ? कहते है की इवाद्नम जो भी लोककथा एक बार सुनाना शुरू करता उसे समाप्त करते ही भूल जाता था।
एक बार उसकी कही हुई लोककथा फिर दुबारा कभी सुनी नहीं गई थी।
"इतनी लोककथाएँ आती कहाँ से है तुम्हारे पास ?"
आज तो लिन ने उससे पूछ ही लिया ।
लिन उसका बाँसुरी वादक भाई था जो उसकी गगननुमा लोककथा में अपनी बाँसुरी की तान से किसी कुशल दर्जी के मानिंद शशांक और सितारे टाँकता था ।
इवाद्नम ने अपना सिर ऊँचा कर डूबते हुए सूर्य की रौशनी में चमकते बर्फ के ताज से सजे पर्वत की ओर देखा और खो गया किसी नई लोककथा की तरंग महसूस करने के लिए ।
"उधर ..उस ओर दूर कहीं कैलाश पर्वत है ,जहाँ शिव और पार्वती बैठे होते है बातें करते"
ऊँगली पर्वत की ओर उठी हुई, इवाद्नम अपनी रौ में बोलता जा रहा था ।
"वहीं से आती है ये कहानियाँ ।"
लिन ने अपनी बाँसुरी उठाई ,आँखे बंद की और छेड़ दी तान ।
लिन जानता था ये लोककथा फिर कभी इवाद्नम के मुख से सुनने को नहीं मिलेगी ।
"दुनिया की कोई भी कहानी ऐसी नहीं है जो शिव ने हिमालय पुत्री को सुनाई न हो , हर वो कहानी जो बच्चा गढ़ता या इंसानी जीवन में घटित होती है या जो मैं सुनाता हूँ या ये जानवर जो भी करते है उसका कथा रूपी विवरण या किसी आशिक की प्रेमकथा ,ये सब शिव सुना चुके होते है अपनी अर्धांगिनी को "
थम गया इवाद्नम जैसे कोई पंख फडफडा कर उड़ता पक्षी पंख फैलाकर हवा में तरंगित होता है।
लिन की तान मानो धीरे-धीरे दबे पाँव आती रात-सी वातावरण में छाती जा रही थी ।
पक्षियों का किल्लोल इवाद्नम की लोककथा सुनने के लिए शांत हो गया था ।
"ये पक्षी ही लाते है कैलाश पर्वत से ये कहानियाँ और
वहाँ से आये पक्षी इस गाँव में आकर ही विश्राम करते है और अपनी कहानियाँ एक-दुसरे से साझा करते है फिर निकल पड़ते है इन कहानियों को दुनिया भर में फ़ैलाने अपनी आवाज की तरंगो से ।
एक बार जो पक्षी इस गाँव से विश्राम करके चला जाता है फिर वापस नहीं आता ,बिलकुल मेरी लोककथाओं की तरह जो एक बार बोल दी जाती है फिर वो उस पक्षी की तरह स्मृति से लोप हो जाती है ।"
लिन की तान भी लोककथा के साथ ही थम गई पर दोनों की गूंज कहीं दूर पर्वत पर अब भी सुनाई दे रही थी मानो श्रोता पर्वत ब्रह्मांड को वह लोककथा अभी भी सुना रहा हो।
पौ फटते ही पास के गाँव का हरकारा मुखिया का बुलावा इवाद्नम को सुनाता है ।
दोनों भाई हरकारे के साथ हो लेते है ।
शाम की ठण्ड में अलाव की गर्मी और इवाद्नम की लोककथा गाँव के लोगो को चौपाल की तरफ खींच लाती है ।
इवाद्नम अपनी आँखें बंद किये पूर्वोतर से आती तरंगो को महसूस कर रहा है ।लिन की बाँसुरी उसके होंठो से प्राणवायु निकलने का इन्तजार कर रही है ।
कई पल बीत गए । लिन के हिसाब से अब तक कभी भी इवाद्नम ने कथा सुनाने के लिए इतना वक्त नहीं लिया था ।
लोगो की उत्कंठा देख लिन ने तान छेड़ दी ।
पर्वत ने सरसराती हवा के बहाव को रोक दिया , पेडों ने अपने पत्तो को समेट लिया ताकि वे खडखडाहट न कर सके, पक्षियों के स्वर धीरे-धीरे मंद होने लगे ,लोगो को विश्वास हो गया की बस जल्द ही इवाद्नम अपनी जादुई लोककथा का गायन करेगा ।
"नहीं ....अब मुझे कुछ महसूस नहीं हो रहा , मैं किसी लोककथा की तरंग को महसूस नहीं कर पा रहा हूं"
आँखें खुलते ही दो छोटे से पानी के गोले लुढके और चहेरे के काले जंगलो में विलुप्त हो गए ।
"अब मैं मै ...मैं शायद कभी लोककथा नहीं गा पाउँगा ..."
गठा हुआ मजबूत शरीर किसी बच्चों के मानिंद रो रहा था ।
"हे ईश्वर ...." लिन के होंठो से बाँसुरी हटते ही प्रस्फुटित हुआ ।

इवाद्नम ने खुद को घर में कैद कर लिया था।अब वो किसी से बात नहीं करता था यहाँ तक की अपने प्यारे भाई लिन से भी नहीं , लिन की बाँसुरी भी अब होंठो से लगकर केवल शोर ही उगलती थी ।
इवाद्नम के गाँव में अब प्रवासी पक्षी नहीं आते थे ।
पर्वत किसी भयावह दैत्य-सा लगने लगा था जहाँ से केवल चमगादड़ ही गाँव की तरफ आते थे ।
लिन समझ चूका था हर गाँव की आत्मा उसकी प्रचलित लोककथा होती है ओर बिना लोककथा का गाँव केवल आत्मा विहीन शरीर ही है जिससे केवल बदबू आ सकती है ।
उसे अपने गाँव की लोककथा वापस लानी थी और अपने भाई की लोककथाओं को पुनर्जीवन देना था ।
इवाद्नम को गाँव के हवाले कर उसने जरुरी सामान की गठरी बाँधी और एक सुबह निकल पड़ा पूर्वोतर की ओर ,जहाँ लोककथाओं की जन्मस्थली थी जहाँ से सारे प्रवासी पक्षी आते थे ,उस रहस्यमयी ध्यान में लीन अधखुले नेत्रों वाले शिव के कैलाश पर्वत की ओर ,जो शायद हिमालय पुत्री को अधूरी कहानी सुनाकर खुद निद्रा के अधीन हो चूका था ।
अब उस गाँव की अपनी प्रचलित लोककथा है ,इवाद्नम और लिन की 'अधूरी लोककथा' ।

#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)