लूसिफ़र Anil Makariya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लूसिफ़र

लुसिफ़र■

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अम्बुश हमेशा की तरह आज रात को फिर शिकार की तलाश में निकल पड़ा ।
धीरे-धीरे मैं उसके निर्दोष दिमाग को अपने काबू में ले चुका था और उसे काबू करने का रास्ता भी उसके ही दिमाग के एक कोने में मुझे दुबका हुआ मिला, जहां उसके बचपन की अच्छी-बुरी यादें कब्जा जमाए बैठी थी ।
ये जरूरी नही था हरबार अम्बुश को शिकार मिल ही जाता क्योंकि उसके हाथों हुई घटनाओं की प्रसिद्धि के बाद अधिकतर स्त्रियों ने रात को अकेले घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था ।
बचपन में हुई क्रूरता किसी के दिमाग पर इस कदर हावी हो जाती है, कि किसी असहाय या कमजोर पर उसे वह भड़ास निकालने के लिए जरूरत होती है तो केवल मेरी ।
आज उसे शिकार मिल ही गया, बचपन में हुई क्रूरता का बदला क्रूरता से निकालने के लिए। मैं खुश था क्योंकि उसके किये गुनाह से भूख तो मेरी ही शांत होने वाली थी ।
शिकार एक पागल औरत थी, जिसे शायद उसके पागलपन की वजह से उसके घरवालों निकाल दिया था।
'यही औरत जात है जिसने तेरा बचपन नरक बना दिया था , निकाल छुरा और इतने घाव कर की इस जात की रूह तक कांप उठे' हर बार की तरह इसबार भी मैंने अम्बुश को उकसाया।
आखिर मेरे इशारों पर चलने वाले कि क्रूरता और उसके शिकार का डर ही तो मेरे वर्चस्व का ईंधन था ।
अम्बुश आंखों में वहशत लिए उस पगली के सामने जा खड़ा हुआ। पगली उसे देख हंसती रही उसकी आँखों मे डर तो कतई नही था ।
मैं खुद को कमजोर महसूस करने लगा। मैंने अम्बुश को आदेश दिया 'छुरा निकाल और मार इसे, देख कैसे हँस रही है तुझपर.. तेरी जात पर'
अम्बुश ने दांये हाथ से कमर पर बंधे कपड़े में छुपा छुरा तेजी से बाहर निकाला लेकिन उसी तेजी की वजह से छुरे की धार उसके बांये हाथ को चीरा मारती गई ।
अम्बुश के चहेरे की वहशत, दर्द में और पगली के चहेरे का हास्य अब करुणा में बदल गया था ।
मैं अब खुद को बेहद कमजोर महसूस कर रहा था अब मुझे गुस्सा आ रहा था। मेरा भोजन , क्रूरता और डर अब मुझसे दूर होता दिख रहा था ।
'यही है तेरा शिकार, खत्म कर इसे जल्दी'
पगली के आंखों की करुणा देख पहली बार अम्बुश ने मुझे अनसुना किया ।
"भैया ..मेरे भैया को लग गया ..लग गया मेरे भैया को ...गंदा छुरा.. गंदा"
पगली ने दो-चार चपत अम्बुश के छुरे पर मारी और खुद की मैली-कुचली साड़ी की किनार फाड़ कर अम्बुश के हाथ पर बांधने लगी ।
अम्बुश की आंख से आंसू निकल पड़े यकीनन वह मेरी विदाई के तो बिल्कुल नही थे ।
अब मुझे फिर ताकतवर होने के लिए किसी और दिमाग की जरूरत थी क्योंकि हर बार किसी पागल की इंसानियत की वजह से ही मेरी हार होती है ।

(स्वरचित एवं मौलिक)
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)