रामराज★ (लघुकथा-1)
"15 साल से निर्विरोध चुनकर आ रहा हूँ, इसबार कौन आ गया बे मेरे खिलाफ पर्चा भरने?"
बाहुबली नेता अपने चमचों के बीच विदेशी सोफे पर अपना पहलू बदलते हुए बोले।
"सरकार! स्वर्गीय जानकीप्रसाद की मेहरारू है, सामाजिक कार्यों से जुड़ी है।"
मेघू ने शीश नवाकर उत्तर दिया ।
"हरामखोरों तो डरा काहे रहे हो ? ज्योतिष ने बोला था न मेरे राज का अंत 'राम' ही कर सकते है।
अब भगवान कब से औरत का अवतार लेने लगे? हा... हा.. हा!"
नेता का अट्टहास उसके राजदरबार रूपी घर में गूंजने लगा ।
"लेने लग गए है नेता जी! क्योंकि अब रावण नपुसंको के रूप में आने लगे है।
जानकी प्रसाद की मेहरारु का नाम है 'रामदेवी जानकीप्रसाद' इस बार आपके घर का वोट भी राम को ही जायेगा।"
नेता की पत्नी सुपारी काटते हुए जोर से बोली।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)
अनुराग★ (लघुकथा-2)
मेरे शरीर पर किसीने दिल का आकार बनाकर उसमें तीर घुसेड़ दिया और दिल के बीचोंबीच लिख दिया 'P' ।
जब मैं छोटा था तो पास के बड़े शरीरों पर की गई यह क्रिया देखना मेरे लिए बड़ा कष्टदायी होता था लेकिन अब जबकि यह क्रिया मेरे ऊपर की गई तो मुझे उतना कष्ट नही हुआ जितना कष्ट मुझे कल हुआ था जब आरा, कुल्हाड़ी लिए हुए कुछ लोगों ने मेरे शरीर पर सफेद रंग से निशान लगा दिया था ।
यह सफेद रंग का निशान मानो मेरे लिए रिसता हुआ घाव बन गया है क्योंकि सालों पहले ऐसे ही सफेद निशान लगे हुए मेरे साथी काट दिए गए ।
रुको!
वह वापस मेरी ओर ही आ रहा है जिसने मेरे शरीर पर अपनी महबूबा के नाम का पहला अक्षर गोद दिया था।
अब वह उस अक्षर को अपने सीने से लगाये मुझे अपनी बाहों में भर रहा है ।
म..मु..मुझे बड़ा अजीब-सा लग रहा है और मैं भी चाहने लगा हूं कि मैं इसे गले लगा लूं लेकिन इससे पहले मैं ऐसा कुछ करूँ, कल वाले इंसान अपने आरे और कुल्हाड़ी के साथ प्रकट हुए ।
"चल ..ए ..रोमियो बाजू हट! "
कुल्हाड़ी वाले ने धमकाने वाले अंदाज में कहा ।
"चिपको आंदोलन ...जिंदाबाद" रोमियो के साथ-साथ ही आस-पास उसकी तरह पेड़ों से चिपके हुए कई युवाओं की आवाजें एक साथ गुंजायमान हुई ।
मेरे शरीर से निकला गोंद रोमियो के दिल और उसकी महबूबा के नाम के पहले अक्षर को भिगोने लगा ।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)
कुन फाया कुन★ (लघुकथा-3)
उसे सिर्फ इतना याद है कि वह छह दिन में अपनी रचना मुक़म्मल करने के बाद आराम करने चला गया था और उस दिन के बाद वह आज नींद से जागा है।
वह कुछ उनींदा-सा अपनी आँखें मलता हुआ हजारों साल पहले बनाई अपनी रचना को ढूँढ रहा है ।
चाँद, तारे और सूरज सब उसे अपनी जगह पर यथावत मिल गए लेकिन उसकी बनाई धरती कुछ अलग दिख रही थी।
जिसके लिए उसने धरती बनाई थी, वही इंसान उस वसुंधरा को नष्ट करने पर आमादा था इसलिए जब बाढ़, भूकम्प और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के रूप में भेजी चेतावनी से भी बात न बनी तो धरती का प्रतिक्रिया तंत्र, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना का अस्तित्व धरती से खत्म करने के लिए मजबूर हो गया था।
ऐसी ही किसी भयंकर प्राकृतिक आपदा से उजड़े घर में बैठा एक पिता अपने नवजात शिशु को संभालता हुआ अपनी पत्नी से बोला, "इंसान के इस धरती पर पैदा होने से अब तक, ईश्वर ने ही तो हमारी रक्षा की है और अब भी वही रक्षा करेंगे।"
नवजात की नज़रें, आँखें मलते हुए उनींदे से ईश्वर की ओर उठी और वह शिशु खिलखिलाकर हँस दिया ।
ईश्वर ने उँगली अपने होंठों पर रखी और शिशु से कहा "श..श्श्श्श"
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