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अधूरे प्रेम के वारिस

तकरीबन छह-सात फुट के दो पत्थर उस गांव के मैदान में सदियों से इस तरह खड़े थे मानो प्रेमी युगल आलिंगन करने को आतुर हों।
पुनिया बचपन से इन पत्थरों के प्रति अपने आकर्षण को महसूस करता रहा था। आज भी उसी आकर्षण को शिद्दत से महसूस करता है, जब वह मजबूत शरीर वाला बांका नौजवान है हालाकिं उन पत्थरों का पूरे गांव या आसपास में कोई धार्मिक या ऐतिहासिक महत्व नही है, जिससे वशीभूत हो लोग उन पत्थरों की ओर खिंचे चले आये या पुनिया जैसा नौजवान उनके प्रति आकर्षण महसूस कर रोज बिना नागा अपनी हाजिरी दर्ज कराए ।
कोई 3-4 साल का रहा होगा पुनिया, जब पहलीबार उसके बाबा ने उन पत्थरों से न केवल रूबरू करवाया बल्कि उन दो पत्थरों के बीच से निकलते, डूबते सूरज के लाल-नारंगी प्रकाश में भविष्य देखना सिखाया था।
तब पुनिया क्या सीख पाया ? पता नही! लेकिन अब पुनिया कितना समझता है ? यह गांववालों के लिए हमेशा उत्सुकता का विषय होता है ।
हर साल की बारिश का पूर्वानुमान हो या किसी की बढ़ती उम्र में न होने वाली शादी का मुहूर्त, गांववालों की आस पुनिया के इन्हीं पत्थरों के बीच से आती डूबते सूरज की रोशनी से बंधती है, जिसे देख पुनिया गोल-मोल शब्दों के जाल से गांववालों को आश्वस्त कर देता है।
इसका कतई यह मतलब नही है कि पुनिया को वह रोशनी गलत राह दिखाती है या राह दिखाती ही नही है असल बात तो यह है कि वह रोशनी केवल और केवल पुनिया से वाबस्ता बातों का ही पूर्वाभास पुनिया को करवाती है ।
इसको सिद्ध करता एक काबिले जिक्र वाक्या पुनिया के दिलो-दिमाग में दर्ज है ।
कोई आठ-दस साल पहले पुनिया के बाबा पास के शहर में खेती का औजार लेने गए तब उनकी गैरहाजिरी में शाम की आहट पाते ही पुनिया उन पत्थरों के पास पंहुच गया । उन पत्थरों के बीच से निकलते, डूबते सूर्य के प्रकाश में एक बुड्ढे आदमी की छाया थी और आसपास की सूर्य की किरणें रक्तिम आभा लिए थी ।पुनिया पहलीबार इसतरह की रोशनी को देख ग़मज़दा हुआ था ।
बाबा का साया दूसरे रोज ही पुनिया के सिर से उठ गया । पुलिस ने बताया कि पुनिया के बाबा शहर में सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे।
पुनिया तब से रोज उन पत्थरों से छनती रोशनी के लिए हाजिरी लगाने लगा ।
पुनिया शायद यह सोचने लगा था कि कोई तो दिन आएगा जब वह इन पत्थरों के पूर्वाभास को घटित होने से पहले ही बदलकर गलत साबित करे देगा ।
"अरे...ओ पुनिया ...क्या पत्थरों से माथापच्ची करता है?
कभी जिंदा इंसानों को भी देख लिया कर"
अधीरा ने आज पहलीबार पुनिया को उन पत्थरों के पास पकड़ ही लिया हालांकि उसे सारे गांव की तरह यह पता था कि रोज शाम को पुनीया इन्हीं युगल पत्थरों के नजदीक होता है ।
"तू यहां क्यों आई ?...तुझे बोला है न मुझसे दूर रहा कर।"
पुनिया अपने दोनों हाथों पर डूबते सूरज का प्रकाश लेकर भविष्य में झांकने का प्रयास करता हुआ बोला ।
"ए मुझे भी दिखा न ..मुझे भी सुना मेरा भविस्य"
अधीरा पुनिया की खीज को अनदेखा करते हुए उसके पास आकर बोली ।
"ले देख ले तेरा भविस्य....और मेरी जान छोड़"
पुनिया ने हथेलियों पर झुका अपना सिर हटाया और अधीरा की ओर मुखातिब हुआ ।
अधीरा टुकुर-टुकुर पुनिया की हथेलियों से फिसलते प्रकाश को देखती रही और फिर दोनों हथेलियों को अपने हाथों का सहारा देकर पुनिया को बोली ।
"इसमें मुझे केवल तू ही दिखता है रे.... गलत हूं तो मुझे गलत साबित कर"
खिलखिलाकर हंसती हुई अधीरा उस युगल पत्थरों के नीचे पुनिया को भविष्य के अंधेरे में छोड़ गांव की ओर भाग गई।
पुनिया की समझ में नही आया कि अधीरा को, हथेलियों पर फैले प्रकाश में उसका अक्स ठीक उसी वक्त कैसे दिखाई दिया?जिस वक्त पुनिया को अधीरा का अक्स उस प्रकाश में दिखाई दे रहा था ।
अधीरा को यकीन था कि वे पत्थर झूठ नही बोलते । उसकी किस्मत पुनिया के साथ बंधी है तो गांववाले भी इस शादी से एतराज नही करेंगे ।

इधर पुनिया इस पूर्वाभास को झुठलाने की तैयारी कर चुका था। वह जानता था कि पत्थरों ने अपना अगला वारिस चुन लिया है अगर वह पूर्वाभास के मुताबिक अधीरा से जुड़ता है तो पत्थरों के पूर्वाभास को बदल नही पायेगा और अगर उसे उस भविष्यवाणी को झुठलाना है तो......।
मन ही मन कुछ ठान कर पुनिया घर से बाहर निकल गया ।
अधीरा बेहद खुश थी कि जल्द ही इस भविष्यवाणी का पता गांववालों को चलेगा और उसकी शादी पुनिया के साथ तय हो जाएगी लेकिन एक बात उसे खटक रही थी, की अगर पत्थर केवल पुनिया को भविष्य का आभास करवाते है तो कल शाम अचानक उसे यह पूर्वाभास कैसे दिखलाई दे गया ?
शाम का धुंधलका छाते ही अधीरा उन युगल पत्थरों की ओर बढ़ चली । आज उसे कहीं भी पुनिया दिखाई नही दिया, यहाँ तक कि पत्थरों के समीप भी नही उसे बेहद आश्चर्य हुआ।
उसने युगल पत्थरों से होकर आनेवाले डूबते हुए सूरज के प्रकाश की ओर अपनी हथेलियां बढ़ाई ।
हथेलियों पर बनते बिगड़ते सायों ने पुनिया का अक्स बनाया और रोशनी ने चारों तरफ रक्तिम आभा बिखेर दी ।
वही हथेलियां अपने चहेरे पर रख अधीरा बिलखकर रो पड़ी ।
प्रेमी युगल पत्थर आज भी आलिंगन को आतुर उसी गांव के मैदान में खड़े है ।

#Anil_Makariya
Maharashtra (Jalgaon)


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