सबरीना - 28 Dr Shushil Upadhyay द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सबरीना - 28

सबरीना

(28)

दानिकोव की लार टपकाती निगाह

दानिकोव बार-बार सबरीना की ओर देख रहा था। सुशांत ने एक बार दानिकोव और फिर सबरीना को देखा। सबरीना ने पहले सुशंात और फिर दानिकोव को देखा। इस सिलसिले को सबरीना ने तोड़ा ‘ चलें, आॅफिसर, रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट से वैट करा लें। दानिकोव तुरंत उठ खड़ा हुआ और डाॅ. मिर्जाएव भी उनके साथ हो लिए। जाते-जाते सबरीना ने सुशांत के कान के पास आकर कहा, ‘मुझे अच्छी तरह पता है, दानिकोव जैसे लोगों से कब और किस तरह काम लेना है, चिंता न करो।’ सुशांत ने तीनांे की ओर औपचारिक मुस्कान बिखेरी और वे बाहर निकल गए। जारीना अब भी लड़कियों और विदेशियों पर निगाह रख रही थी।

जारीना को देखते हुए सुशांत अपने मन के चोर को भी देख रहा था। उसे जारीना अच्छी लगती है, लेकिन क्या सबरीना से उसकी कोई तुलना हो सकती है?

उसने खुद को ही जवाब दिया, ‘ नहीं, कोई तुलना नहीं हो सकती। दोनों अलग दुनिया से आई हुई लगती हैं। दोनों का वजूद एक-दूसरे से पूरी तरह अलग है। इनमें से कोई भी एक-दूसरे का विकल्प नहीं है।’ सुशांत ने अपने आप से पूछा, ‘ उसे किसकी जरूरत है ? लेकिन अंदरसे कोई जवाब नहीं मिला। शायद, ये तात्कालिक आकर्षण है। वापस चला जाएगा तो ये दोनों धुंधली स्मृति की तरह रह जाएंगी।’ उसे लगता है कि सबरीना का मानस बहुत विस्तृत है, उसकी चेतना का धरातल गहरा है। जबकि, जारीना का निर्णय-कौशल और चुनौंतियांे का मुकाबला करने की हिम्मत सबरीना से ज्यादा है। जारीना जिंदगी को उम्मीदों की तरह देखती है और सबरीना उसे आज के यथार्थ के तौर पर ग्रहण करती है। जारीना आने वाले कल को नियंत्रित करने का माद्दा रखती और सबरीना खुद को आने वाले कल का पूरक बना लेती है। उसने फिर खुद को जवाब दिया, ‘ नहीं, दोनों की कोई तुलना नहीं। उसकी निजी दुनिया में इन दोनों में से किसी के भी लायक स्पेस नहीं हैं, इनके अस्तित्व के विस्तार के सामने उसके मन के कोनों में मौजूद जगह बहुत छोटी हैं।’

अगले ही पल में सुशंात ने महसूस किया कि उसके मन में सबरीना ठिठकी हुई है, जारीना नहीं। फिर, सुशांत ने अपने उलझे हुए ख्यालों को झटक दिया। उसकी निगाह सामने की ओर गई तो जारीना उसी की ओर देख रही थी, वो बोली, ‘ सर, आज यूनिवर्सिटी में आपके व्याख्यान का टाॅपिक क्या है ?’ सुशांत हंस पड़ा, ऐसे मौके पर ये सवाल बहुत अनापेक्षित था। उसने हवा में उंगली से गोल घेरा बनाया, ‘ शून्य, कोई टाॅपिक नहीं है।’

‘ अच्छा, तो फिर इन लड़कियों को ही लेक्चर दे दीजिए.....’ उसने मजाक के अंदाज में कहा।

‘ तीन दिन में जितनी घटनाएं हो चुकी हैं, क्या उन सबको देखने के बाद लेक्चर देने की हिम्मत बचती है जारीना। सुशांत ने जारीना के नाम का उच्चारण काफी लंबा खींचा। जवाब में जारीना ने ‘ जी सरररररररर....’ को लंबा खींचकर अपनी बात पूरी की। सबरीना, डाॅ. मिर्जाएव और दानिकेाव लौट आए, उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा। काम हो गया था। यूएई के ग्रुप और विदेशी लड़कियों को पुलिस अपने साथ ले गई। दानिकोव ने जाते-जाते एक बार फिर सबरीना को लार-टपकाती निगाहों से देखा। सबरीना ने उसे घूरती निगाहों से जवाब दिया।

सुशांत, जारीना और डाॅ. मिर्जाएव ने राहत की सांस ली। अब, चारों माइनर लड़कियां उनके साथ थीं-लंबी पतली अलीदुन्ना, सुनहरे चमकीले बालों वाली दुख्तरोवा, ठिगने कद की लंबोतरे चेहरे वाली हसीनोवा और उनके पीछे दुबकी खड़ी ओमाया। चारों परेशान और भौचक्की थीं। वे आने वाले कल के बारे में सोचकर परेशान दिख रही थीं। वे कभी सुशांत और कभी डाॅ. मिर्जाएव को देख रही थीं। पुरुषों को देखने का का उनका ढंग एकदम अलग था। सुशांत ने अपने चेहरे पर उन लड़कियों की चुभती हुई निगाहों को महसूस किया। उसने सबरीना की ओर देखा, ’ हिन्दुस्तान में भी ऐसे मामले खूब होते हैं, लड़कियां पकड़ी जाती हैं, दलाल पकड़े जाते हैं, पुलिस कार्रवाई करती है और कुछ वक्त बाद ये लड़कियां फिर उसी नर्क में पहुंच जाती हैं। कुछ नहीं बदलता, सब कुछ दिखावटी होता है, टोटके-जैसा।‘ सुशंात के स्वर की निराशा को सबरीना ने सहजता से पकड़ लिया। ‘ कुछ नहीं बदलता! पर, मुझे देखकर बताओ प्रोफेसर, क्या सच में कुछ नहीं बदलता ?

सबरीना के जवाब ने सुशांत के निरुरत्तर कर दिया। सबरीना फिर बोलने लगी, ‘ ठीक है, सब कुछ नहीं बदलता, पर कुछ न कुछ तो बदलता है प्रोफेसर। क्या सब कुछ बदलने की उम्मीद में इन छोटी कोशिशों को भी छोड़े दें!’

‘ हां, तुम ठीक कह रही हो। कुछ न होने से बेहतर है......’ अपनी बात पूरी करने से पहले कुछ पल के लिए सुशांत चुप हो गया। फिर बोला, ‘ असल में, तुम जिन हालात से निकलकर आई हो सबरीना, उसने तुम्हें इतना मजबूत कर दिया है कि तुम सही को सही और गलत को गलत की तरह देख सको। जबकि, मैं तुम्हारी तरह नहीं देख पाता। कई बार अपनी सुविधा से देखने लगता हूं।’

‘ नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। जब आप तुलना करके देखते हो तो तब दिक्कत होती है। मैं, दो दिन से देख रही हूं कि कई बार आप मेरी तुलना जारीना से करते हैं। ये सही तरीका नहीं है। तुलना से आप न मुझे समझ सकेंगे और न जारीना को। किसी को भी नहीं, आप प्रोफेसर तारीकबी कोे समझ पाए क्योंकि उनसे किसी की तुलना नहीं कर रहे थे। आप दानिश को समझ पाए क्योंकि कोई तुलना नहीं की गई। आप, डाॅ. मिर्जाएव को नहीं समझ पाए क्यांेकि उन्हें डाॅ. तारीकबी की तुलना में देख रहे थे। कभी किसी को उसकी पूर्णता में देखिए-अच्छाइयों और बुराइयों, दोनों के साथ।’ सबरीना की बातें सुशांत को सीने में चुभती हुई महसूस हुई। पर, सबरीना किसी को खुश करने के लिए ठकुर-सुहाती नहीं कहती, ये बात सुशांत को भी अच्छी तरह पता है।

‘ प्रोफेसर, जब हम तुलना करके देखते हैं तो फिर विकल्पों की तलाश में भी रहते हैं। और विकल्पों की तलाश तो अंतहीन है। मैं जब पाकिस्तान में थी, मैंने कभी उस आदमी का भी विकल्प नहीं सोचा था। अक्सर आपके बारे में प्रोफेसर तारीकबी से बात होती थी। आप मिले तो पहली नजर में भा गए। पर, किसी विकल्प की तरह नहीं। किसी तुलना से मैंने आपको महसूस नहीं किया।‘ सबरीना बोलती रही और सुशांत सब कुछ सुनता हुआ शून्य में देखता रहा।

‘ मेरे अतीत के बारे में अब आपको थोड़ा-सा अंदाज है, पर आपको सही-सही नहीं पता। आपको नहीं पता, मैंने नाइट क्लबों और बीबीखानम जैसे होटलों में न जाने कितने पुरुषों के साथ रातें बिताई हैं। सोचकर देखिये, मेरी स्थिति वेश्या जैसी थी। मेरे कल और आज के बीच में क्या तुलना करेंगे ? किसे गलत और किसे सही साबित करेंगे ? आपने मुझ से हिन्दुस्तान चलने के बारे में पूछा, मैंने मना कर दिया। जिस दिन आप महसूस पाएंगे, आपको, मुझे हिन्दुस्तान चलने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी।’ सुशांत को खुद के भीतर बहुत बेचैनी महसूस हुई। जैसे बरसों से ठहरी हुई झील अपने किनारांे को तोड़कर बह चली हो। उसने सबरीना की आंखों में देखा। दोनों किसी पूर्वनियोजित क्रिया का पालन करते हुए एक साथ उठे और सुशांत ने सबरीना को गले लगा लिया। सबरीना ने सुशांत की कमर पर हाथ ले जाकर दोनों तरफ की उंगलियांे को एक-दूसरे में फंसा लिया। काफी देर तक दोनों ऐसे ही रहे, सुशंात ने महसूस किया कि सबरीना ने उसके बहुत-से उलझे सवालों का जवाब दे दिया है। जारीना ने उन्हें देखा और फिर डाॅ. मिर्जाएव को देखकर धीरे से कहा,’ ये तो होना ही था।’

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