कौन दिलों की जाने!
छः
31 दिसम्बर
रात को आठ बजे प्रधानमन्त्री जी का राष्ट्र के नाम सन्देश प्रसारित होना था, इसलिये आलोक ने सात बजे ही सामने वाले ‘तन्दूर' से दाल—सब्जी व दो चपातियाँ मँगवा लीं। वैसे भी आलोक को रात का खाना जल्दी खाने की आदत है। इससे सोने से पूर्व खाना अच्छी तरह पच जाता है और नींद भी बढ़िया आती है। खाने से निवृत होकर टी.वी. ऑन करके रजाई ओढ़ ली। ठीक आठ बजे प्रधानमन्त्री का राष्ट्र के नाम सम्बोधन प्रारम्भ हुआ। प्रधानमन्त्री ने देशवासियों को नव—वर्ष की शुभ कामनाएँ व बधाई देने के उपरान्त 500 व 1000 के नोटों के विमुद्रीकरण को देशवासियों द्वारा व्यापक सहयोग देने के लिये धन्यवाद देते हुए उन्हें इस निर्णय से हुई तकलीफों का भी उल्लेख किया और साथ ही देश को हुए लाभ भी गिनवाये यथा कश्मीर में बॉर्डर पार से आतंकवादियों की फंडिंग रुकने से पत्थर फैंकने वालों की गतिविधियों का एकदम रुक जाना, नक्सलवादियों की कमर टूटना, काले धन पर रोक लगना इत्यादि। इस परीक्षा की घड़ी में बैंक कर्मचारियों द्वारा आधी—आधी रात तक काम करने की प्रशंसा भी की। साथ ही कुछेक बैंक मैनेज़रों तथा कर्मचारियों द्वारा भ्रष्ट तरीकों से कालाधन सफेद करने वालों के साथ मिलकर स्कीम को निष्फल करने की न केवल निन्दा की, बल्कि उनके विरुद्ध उचित कानूनी कार्रवाई करने का देश को आश्वासन भी दिया। देश के विकास में योगदान देने वाले छोटे व्यापारियों तथा किसान भाइयों के लिये भी कुछ विशेष रियायतों की घोषणा की।
प्रधानमन्त्री के भाषण के बाद आलोक ने कुछ देर तक टी.वी. सीरियल देखा और फिर टी.वी. और लाईट बन्द करके स्वयं को नींद के सुपुर्द कर दिया।
पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण भारत में भी ‘न्यू ईयर ईव' मनाने का प्रचलन दिन—प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। ‘न्यू ईयर ईव' एक ऐसी रात्रि का प्रतीक बन गई है, जब ज़श्न मनाने वाले विशेषकर युवक—युवतियाँ अर्ध—रात्रि तक मौज—मस्ती, डाँस, शराब और शबाब, संगीत, ग्लैमर के लिये मर्यादा की सभी सीमाएँ लाँघते हुए दिल खोलकर पैसा बहाते हैं। ऐसी पार्टियों में हुड़दंगबाज मौके का नाज़ायज फायदा उठाने की ताक में रहते हैं। उनके टारगेट अकेली आई हुई लड़कियाँ ही नहीं होती, बल्कि अपने पति अथवा परिवार के साथ आई हुई महिलाएँ भी इनकी अश्लील छींटाकसी तथा अनचाहे स्पर्श से बच नहीं पातीं, क्योंकि एक तो हम इस तरह की मौज—मस्ती और धमाल वाले सांस्कृतिक वातावरण का सही अर्थों में आनन्द लेने के लिये सम्भवतः अभ्यस्त व परिपक्व नहीं हैं; दूसरे, हमारे यहाँ कानून व्यव्स्था इतनी सख्त नहीं है कि ऐसे असामाजिक तत्त्वों को उनकी उद्दण्डता के लिये तुरन्त दण्डित किया जा सके। इसीलिये इनके हौंसले और बुलन्द हो जाते हैं। ऐसी हुड़दंगबाजी ऐसे अवसरों पर हर कहीं यहाँ तक कि फाईव स्टार होटलों जहाँ तथाकथित उच्च व सम्भ्रान्त वर्ग की ही पहुँच हो पाती है, में भी प्रायः होती रहती हैं, क्योंकि अबाध शराब और प्रतिबन्धित नशों का खुलेआम सेवन करने के बाद अधिकतर लोग स्वयं को ही नहीं सँभाल पाते। उन्हें अपनी दमित वासनाओं को प्रकट करने के लिये बना बनाया प्लेटफॉर्म मिल जाता है।
इस बार ‘न्यू ईयर ईव' के लिये रानी और रमेश जिस कपल्स—किटी पार्टी के मेम्बर थे, ने ‘जे डब्लयू मेरीयट, चण्डीगढ़' में केसिनो थीम का कबाना रिजर्व करवाया हुआ था। पार्टी में जाने के लिये तैयार होने के लिये रानी ने अपना वार्डरोब खोला। कौन—सी साड़ी पहनी जाये, देखते—देखते उसकी नज़र उसी साड़ी पर अटकी जो उसने आलोक के आने पर पहनी थी। जब वह तैयार होकर कमरे से बाहर निकली तोे रमेश ने कहा — ‘क्या सादी—सी साड़ी पहनी है, कोई भारी ‘काम' वाली साड़ी पहननी चाहिये थी। तुम्हारे पास साड़ियों की कोई कमी है? एक से बढ़कर एक बढ़िया साड़ियाँ हैं तुम्हारे पास। आज के माहौल के मुताबिक यह साड़ी फीकी—फीकी सी लगती है।'
‘मुझे यह अच्छी लगती है। दूसरे, सर्दी का मौसम है और उम्र के इस दौर में अधिक ठंड बर्दाश्त नहीं होती। हल्की साड़ी के साथ शॉल लिया जा सकता है, भारी साड़ी के ऊपर शॉल लेने से साड़ी की ‘ग्रेस' खत्म हो जाती है। वैसे भी कपड़े वे ही पहनने चाहियें, जिनमें तुम स्वयं को कम्पफर्टेबल महसूस करो। मैं इस साड़ी में कम्पफर्टेबल हूँ।'
अपनी बात का उत्तरार्द्ध कहते हुए रानी सम्भवतः अनजाने में आलोक की सोच को ही शब्दों में ढाल रही थी।
रानी की ओर गहरी दृष्टि डालकर निहारते तथा उसे अपनी ओर खींचते हुए रमेश ने कहा — ‘तुम्हारी उम्र को अभी हुआ ही क्या हैः
ऐ मेरी जोहराजबीं, तुझे मालूम नहीं
तू अभी तक है हसीं और मैं जवान....'
‘क्या बात है, आज बड़े रोमैंटिक हो रहे हो?'
‘मौज—मस्ती करने चल रहे हैं, अभी से मूड बना लें तो कोई हर्ज़ है?'
चाहे रमेश ने रानी की पसन्द—नापसन्द की ओर कभी ध्यान नहीं दिया था और रानी उसके इस प्रकार के व्यवहार से अभ्यस्त थी, किन्तु पिछले तीन—चार दिनों से वह नोट कर रही थी कि रमेश उससे कुछ अधिक ही खचा—खचा सा रहता है, लेकिन आज उसका मूड तथा उसके अन्दाज़ को देखकर रानी को सुखद आश्चर्य हुआ।
होटल की साज—सज्जा देखते ही बनती थी। रंग—बिरंगी, टिमटिमाती लाईटें नववर्ष के स्वागत के लिये आतुर प्रतीत होती थीं। नववर्ष के उपलक्ष्य में होटल को विशेष रूप से सजाया गया था। इस वर्ष का थीम था — ‘ब्लैक एण्ड व्हाइट'। टैंट, चेयर्स, टेबल—क्लाथ, स्टाफ की यूनिफार्म — कहने का अभिप्रायः, सभी ओर ब्लैक एण्ड व्हाइट का ही जलवा था। लॉन्स में केसिनो थीम पर प्राइवेट कबानाज़ (एक किस्म का टैंट टाईप कवर्ड एरिया) बनाये गये थे जिनमें बार, बुफे तथा गेम्स उपलब्ध थे। एक कबाना दस कपल्स के लिये रिजर्व करवाया जा सकता था। कबाना रिजर्व करवाने वाले गेस्ट बैंक्वट हाल में भी ‘न्यू ईयर इवेंट' का पूरा आनन्द ले सकते थे। बैंक्वट हाल में ‘गैला डिनर' के साथ अतिथियों के मनोरंजन के लिये बैंड, डी.जे. तथा प्रसिद्ध सगर का प्रबन्ध किया गया था। हॉल में चारों ओर तथा लॉन्स में बने कबानाज़ में एल.इ.डी. स्क्रीन लगी हुई थीं ताकि प्रत्येक अतिथि चाहे कहीं भी हो, हॉल में चल रहे कार्यक्रम का भी आनन्द उठा सके। दिल्ली से ‘काव्या' डी.जे. तथा पंजाब के सुप्रसिद्ध गायक सुखविन्दर सुक्खी ‘न्यू ईयर ईव' के विशेष आकर्षण थे। लॉबी में सेल्फी फ्रेम उपलब्ध थे।
चाहे इस वर्ष ‘न्यू ईयर ईव' पर होटल वालों ने ‘ब्लैक एण्ड व्हाइट' थीम रखा था, लेकिन इस अवसर पर पधारेे स्त्री—पुरुषों, युवक—युवतियों व बुजुर्गों के लेटेस्ट फैशन व डिजाइनर परिधानों से रंगों की इन्द्रध्नुषी छटा छाई हुई थी। लॉबी आगन्तुकों से लबालब भरी हुई थी। आगन्तुक लॉबी में भिन्न —भिन्न ऐंगलों से फोटो व सेल्फी ले रहे थे। लॉबी में रखे सोफों पर अधिकतर बुजुर्ग बैठे थे, जो शारीरिक असक्षमता के बावजूद नववर्ष का स्वागत करने के लिये अपने परिवार के युवा सदस्यों के संग आये थे। उत्सव भरे माहौल की झलक इनके चेहरों पर भी प्रत्यक्ष झलक रही थी। बैंक्वट हॉल में खूब भीड़ थी। डी.जे. की धुनों पर क्या युवा, क्या अधेड़ सभी थिरक रहे थे। डाँस करने वाले डाँस के साथ—साथ हो—हल्ला भी खूब कर रहे थे। श्रोता डी.जे. को बार—बार फरमाइश कर रहे थे। डी.जे. के लिये हर फरमाइश पूरी करना तो सम्भव न था, फिर भी जो लोकप्रिय गाने व धुनें थी, एक—एक करके प्रस्तुत की जा रही थीं। गायक सुक्खी ने भी अपने लोकप्रिय गीतों — आजा माहिया आजा सोह्नेया, बिल्लो नी तेरा दिल मँगदा, कालजाँ दे मुण्डे, छैयाँ—छैयाँ, ताल से ताल मिला, मेरा यार दिलदार बड़ा सोहना, लक तेरा पतला जेह्या — से माहौल को खूब गरमाया तथा श्रोताओं को थिरकने के लिये मज़बूर किया। अर्ध—रात्रि में जब आधा मिनट रह गया तो स्टेज से ‘काऊँटडाउन' शुरू हुआ। जैसे—जैसे गिनती घटती जा रही थी, शोर बढ़ता जा रहा था। पाँच—चार—तीन—दो और एक के साथ ही हॉल की लाईटें बुझा दी गईं। स्टेज से स्टाफ के तीन—चार आदमियों ने शैम्पेन की बोतलें खोलकर उपस्थित लोगों की तरफ उनके मुँह कर दिये। बौछारें भीड़ पर पड़ने लगीं। शैम्पेन की बू सारे हॉल में फैल गई। चारों तरफ से ‘हैप्पी न्यू ईयर' की कर्णभेदी ध्वनियों से हॉल गूँज उठा। लोग अपने मित्रों—सम्बन्धियों को ‘हैप्पी न्यू ईयर' — ‘हैप्पी न्यू ईयर' कहकर बधाइयाँ दे रहे थे, गले मिल रहे थे। अन्त में खाना खाकर लोग अपने—अपने ठिकानों के लिये विदा होने लगे।
प्रथम जनवरी के प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक तथा सोशल मीडिया में ‘न्यू ईयर' की चर्चा कम और मॉडर्न मेट्रो तथा आई.टी. सिटी बैंगलूरू में अर्ध—रात्रि में डिस्कथक से वापिस आती युवती के साथ एक युवक द्वारा की गई अश्लील व शर्मनाक शरारत की चर्चा अधिक थी।
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