बिन फेरे Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बिन फेरे

बिन फेरे

आनंद के उन पलों में प्रकाश सब कुछ भूलकर पूरी तरह खोया हुआ था कि तभी मानसी ने प्रकाश को अपनी कोमल बाहों में कसकर अपने शरीर से चिपकाते हुए अपना मुंह कान के पास ले जाकर धीरे से पूछ लिया, “प्रकाश हम एक दूसरे से अथाह प्रेम करते हैं, एक दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते फिर हम कब तक इस बिना शादी वाले बंधन में बंधे रहेंगे, जब हम दोनों को जीवन भर साथ ही रहना है तो अब हम शादी क्यों नहीं कर लेते, हमारा ये बिन फेरे वाला संबंध कानूनी मान्य हो सकता है लेकिन सामाजिक दृष्टि से तो ये नाजायज ही है, अब तो दो वर्ष होने को हैं हम दोनों को इस रिलेशनशिप में रहते हुए, क्या आपको नहीं लगता कि अब हम सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करके अपना परिवार बनाने की तरफ कदम बढ़ाएँ।”

प्रकाश को मानसी की बातें परम आनंद के क्षणों में ऐसे लगीं जैसे स्वादिष्ट भोजन खाते समय मुंह में कोई बड़ा सा कंकर आ गया हो और प्रकाश ठीक वैसे ही जैसे मुंह में कंकड़ आने पर निवाला थूक देते हैं, झटके के साथ स्वयं को मानसी के बाहुपाश से अलग कर बिस्तर से खड़ा हो गया, नाइट गाउन ओड़ते हुए गुस्से से मानसी को डांटते हुए “क्या तुम्हें ये बाते करने के लिए यही समय मिला था” एवं पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया।

मानसी भी अपनी गलती पर पछता रही थी एवं सोच रही थी कि पहले तो प्रकाश ने कभी भी ऐसा नहीं किया एवं प्रकाश में हो रहे बदलाव को मानसी महसूस तो कर रही थी लेकिन यह सोच कर शांत हो जाती थी कि कार्यालय में ज्यादा कार्य भार के दबाव ने शायद प्रकाश को चिड़चिड़ा बना दिया है।

रात की घटना से दुखी व उदास मानसी ऑफिस नहीं गयी व घर से ही काम कर रही थी। प्रकाश सुबह तैयार होकर नाश्ता किए बिना चुपचाप ही अपने ऑफिस के लिए निकल गया।

समीर घर का नौकर सुबह आकर घर का सब काम करता एवं रात में जब प्रकाश व मानसी सोने चले जाते तभी सब काम निबटा कर ही अपने कमरे पर जाता।

समीर घर की सफाई में लगा था, मानसी कॉफी का सिप लेते हुए लैप टॉप पर काम कर रही थी। सफाई करते हुए समीर पीछे खड़े होकर देखने लगा तो उसे लगा जैसे मानसी ने कोई गलती कर दी हो एवं वह गलती सुधारने के लिए बोल पड़ा, “मैडम आपने जो अभी एंट्री की है, शायद गलत गयी है, एक बार चेक करके देख लेना।” समीर ने मानसी से कह तो दिया लेकिन अब मन ही मन पछता भी रहा था, ‘कहीं मैडम को बुरा न लग जाए, और मुझे इस नौकरी से भी हाथ धोना पड़े।’

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, मानसी ने एंट्री चेक की तो देखा वास्तव में गलत हो गयी थी और उसने उसे ठीक कर दिया। समीर सफाई करते हुए दूसरे कमरे में जा चुका था एवं मन ही मन सोच सोच कर दुखी हो रहा था।

मानसी ने समीर को आवाज दी, समीर डरते डरते आया और सहमा सहमा सा आकार मानसी के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया, “मैडम मेरी धृष्टटा के लिए मुझे माफ कर दो दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी, मुझे नौकरी से मत निकालना, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है अन्यथा मेरा परिवार भूखा मर जाएगा।”

मानसी ने कहा, “बैठो समीर, तुम कितने पढे हो? बताओ?” “मैडम मैंने बी कॉम किया है एवं कम्प्युटर में टैली में पारंगत हूँ, जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो घर का गुजारा करने के लिए मैं यह नौकरी करने लगा।”

“ठीक है तुम्हें नौकरी तो छोडनी पड़ेगी क्योंकि मेरे ऑफिस मैं तुम्हें मेरे सहायक के रूप में नियुक्त करती हूँ, अब तुम अपने जैसा कोई मेहनती ईमानदार घरेलू नौकर लाकर दोगे।”

आज समीर की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, वह आसमान में उड़ जाना चाहता था, तुरंत जाकर यह सूचना अपनी माँ बहन व पिताजी को देना चाहता था लेकिन भावनाओं पर काबू रखते हुए समीर बोला, “मैडम मैं घर का काम भी सुबह शाम कर लूँगा, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी।”

शाम को प्रकाश घर आया और अपने कपड़े सूटकेस में लगाने लगा, मानसी के पूछने पर बताया कि ऊसे कुछ दिनों के लिए प्रबंध निदेशक मैडम के साथ अमेरिका जाना है।

प्रकाश अपना सूटकेस लेकर निकल गया, पीछे मुड़कर भी नहीं देखा, मानसी पुकारती रह गयी। सामने से समीर आ रहा था, मानसी को परेशान हालत में बाहर खड़ा देखकर पूछने लगा, “क्या हुआ मैडम कुछ परेशान लग रही हो, साहब कहीं बाहर गए हैं क्या?”

मानसी घर के अंदर चली गयी, पीछे पीछे समीर भी आ गया। समीर अपने काम में लग गया लेकिन मानसी ने अपने कमरे में घुस कर कमरा अंदर से बंद कर लिया, उस दिन मानसी बहुत रोई थी, जब मन हल्का हुआ तो कमरे से बाहर आ गयी, समीर काम खत्म कर चुका था लेकिन अभी गया नहीं था, जैसे ही मानसी बाहर आई समीर ने खाना लगाने के लिए पूछा, मानसी का मन नहीं था खाना खाने का तो उसने मना कर दिया और समीर से कहा, “सुबह तुम्हें मेरे साथ ऑफिस चलना है, अतः तैयार होकर आना।”

अगले दिन सुबह समीर को लेकर मानसी ऑफिस चली गयी, समीर का नियुक्ति पत्र बनवाया, उसको काम समझा कर एक कक्ष में स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए बैठा दिया। समीर को भी मानसी अपने साथ गाड़ी में ही लेकर आती व शाम को दोनों साथ ही जाते।

घर का काम खत्म करके समीर अपने कमरे पर सोने के लिए चला जाता, सुबह जल्दी आ जाता और घर का काम करके ऑफिस जाता।

प्रकाश को गए हुए काफी समय हो गया था, उसका फोन भी नहीं मिलता था, शायद नंबर बदल गया होगा, कहीं सोशियल मीडिया पर भी नहीं दिखता था, मानसी के पास ये सब सोचकर दुखी होने के अलावा कोई चारा नहीं था। समीर भी मानसी के दर्द को भली भांति समझता था लेकिन कुछ नहीं कह सकता था।

एक दिन मानसी ने स्वयं ही कहा, “समीर तुम किराए वाला कमरा छोड़ कर अपना सामान यही ले आओ, काफी बड़ा घर है, और तुम्हें भी आने जाने में मुश्किल होती है।” पहले तो समीर ने मना किया परंतु मानसी के ज़ोर देने पर समीर उसके साथ उसके घर में रहने लगा।

समय गुजरता गया प्रकाश नहीं आया, जिस प्रकाश को मानसी ने दिल की गहराइयों से प्यार किया उसने पलट कर कोई खबर ही नहीं ली, मानसी सोचती, उस रात की बात से क्या वो इतना नाराज हो गया कि पूरी तरह ही नाता तोड़ कर चला गया।

समीर ने एक दिन प्रकाश को देखा एवं उसका पीछा करता हुआ उसके घर तक जा पहुंचा, पड़ोसियों से पता करने पर उसे जानकारी मिली कि वह उस घर में अपनी पत्नी के साथ रहता है, एक बच्चा भी है जिसका जन्म कुछ दिन पहले ही हुआ।

इस बात से समीर को बड़ा दुख हुआ एवं सोचने लगा कि वहाँ मैडम मानसी प्रकाश की प्रतीक्षा में बैठी हैं और यहाँ इसने अपनी शादी करके अपना परिवार बना लिया।

एक दिन समीर ने मानसी को साथ लिया और दोपहर में प्रकाश के घर पहुँच गए, समीर ने इस बारे में मानसी को कुछ बताया नहीं था बस एक विश्वास था जिसके कारण मानसी बिना कुछ पूछे बिना कुछ जाने साथ चल पड़ी।

प्रकाश के घर पहुँच कर समीर ने दरवाजे पर दस्तक दी तो सरिता ने दरवाजा खोला। समीर ने प्रकाश के मित्र के रूप में अपना परिचय दिया तो सरिता ने उन्हे घर में आने दिया।

स्वागत कक्ष में घुसते ही सामने की दीवार पर जैसे ही मानसी ने प्रकाश व सरिता की एक दूसरे को जयमाला डालते हुए बड़ी सी फोटो देखी तो मानसी को चक्कर आ गया, चक्कर खाकर मानसी गिरने ही वाली थी कि समीर ने आगे बढ़ कर अपनी बलिष्ठ व निश्छल बाजुओं में पकड़कर मानसी को गिरने से बचा लिया।

सरिता कुछ समझ नहीं पाई फिर भी दौड़ कर रसोई से एक गिलास पानी ले आई, समीर ने मानसी के मुंह पर पानी के छींटे मारे तो उसको होश आया लेकिन अब वह वहाँ रुकना नहीं चाहती थी अतः समीर ने मानसी को चिकित्सक के पास ले जाने का बहाना बना कर उसको वहाँ से उसके घर वापस ले आया।

उस समय मानसी पर क्या गुजर रही थी कोई सोच भी नहीं सकता था, उसके साथ प्रकाश ने कितना बड़ा धोखा किया, उस प्रकाश ने जो कई वर्षों तक मानसी के साथ बिन फेरे रहता रहा, संबंध बनाए और शादी किसी और से कर ली। मानसी पूरी रात सो न सकी, मन में बुरे बुरे विचार आते रहे। वैसे तो समीर ने इस बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन मानसी की मनःस्थिति देख कर समीर पूरी रात चौकन्ना रहा की कहीं मैडम कुछ ऐसा वैसा न कर ले।

अगले दिन मानसी प्रकाश के ऑफिस पहुंची, मानसी को इस तरह अचानक अपने ऑफिस में आया देखकर प्रकाश सकपका गया। मानसी ने खुद को संभालते हुए भारी मन को काबू में करके कहा, “प्रकाश! तुम्हें तुम्हारी शादी और पहला बच्चा बहुत-बहुत मुबारक हो।”

प्रकाश ने भी किसी तरह हिम्मत जुटा कर कहा, “हाँ मानसी! आओ मेरे कक्ष में बैठते हैं वहीं बात करेंगे।”

मानसी ने प्रकाश के कक्ष में जाकर बस एक ही प्रश्न पूछा, “जब मैं शादी करने को तैयार थी तो आपको किसी और से शादी करने की क्या मजबूरी थी?”

प्रकाश बोला, “मानसी देखो, मेरा तुम्हारा रिश्ता बिन फेरे वाला था जो कानूनन तो उचित था लेकिन सामाजिक रीतिरिवाज से अनुचित था और हम दोनों उस रिश्ते में आपसी सहमति से जुड़े थे, जिसका हम दोनों ने ही भरपूर आनंद लिया अगर सोचा जाए तो इस तरह के रिश्ते केवल आनंद के लिए ही बनाए जाते हैं, परिवार बनाने के लिए नहीं, शादी करके परिवार बनाने के लिए तो सुंदर सुशील कन्या ही चाहिए और मेरी पत्नी बिलकुल वैसी ही है। तुम्हारे जैसी लड़कियां जो बिन फेरे वाले रिश्तों में आनंद खोजा करतीं हैं उनसे शादी नहीं की जा सकती।”

मानसी को स्वयं पर ग्लानि हो रही थी, किसी तरह घर वापस आई तो समीर घर पर ही था, मानसी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी, दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

समीर दरवाजे की दरार से मानसी पर निगरानी रख रहा था और वही हुआ जिसकी समीर को आशंका थी।

मानसी ने बिस्तर पर स्टूल रखा व अपना दुपट्टा पंखे पर लटका कर फंदा बनाया एवं स्टूल पर खड़े होकर फंदा गले में डाल लिया।

समीर ज़ोर से चिल्लाया, “नहीं मैडम नहीं ऐसा पाप मत करो, दरवाजा खोलो” और दरवाजे पर एक जोरदार धक्का मारा। दरवाजा टूटते ही समीर अंदर घुसा तो तब तक मानसी फंदे पर लटक गयी थी।

समीर ने दौड़ कर मानसी को संभाला, गले से फंदा निकाला व मानसी को नीचे उतार कर बिस्तर पर लिटाया। समीर ने मानसी के मुंह मे मुंह लगा कर कृत्रिम श्वास दी व उसको उल्टा लिटाकर ज़ोर ज़ोर से पीठ को दबाकर श्वास देने की कोशिश करता रहा, तभी उसने अपने माँ व पिताजी को भी फोन कर दिया।

समीर ने भगवान से ऊंची आवाज में प्रार्थना की, “हे भगवान, अगर मेरा प्यार सच्चा है, अगर आज तक मैंने मैडम जी को सच्चे मन से चाहा है तो मुझे मेरा प्यार लौटा दो भगवान मैडम जी को जीवन दान दे दो।”

समीर की कोशिशों और भगवान से की गयी प्रार्थना रंग लायी एवं मानसी ने गहरी सांस लेकर आंखे खोल दी। समीर की खुशी का ठिकाना न रहा और उसने मानसी को उठाकर अपनी बाजुओं में भर लिया, मानसी भी समीर से लिपट कर रोने लगी, बहुत रोई, शायद आंसुओं के साथ उसका दर्द भी बह गया, तब तक समीर के माता पिता भी वहाँ पहुंच गए।

सब शांत होने के बाद समीर ने मानसी से अपने माता पिता का परिचय करवाया।

समीर के पिताजी बोले, “बेटे, तेरे बारे में समीर ने हमें बहुत कुछ बताया और यह तुमसे प्यार भी बहुत करता है तुमसे शादी करना चाहता है, डरता है कहीं तुम मना न कर दो, अब अगर तुम हाँ कर दो तो हम धूम धाम से तुम दोनों की शादी कर दें। मानसी को अपना अतीत सामने दिखा तो उसने मना कर दिया एवं बोली, “समीर तुम जानते हो कि दो वर्ष तक मेरा संबंध प्रकाश के साथ बिन फेरे वाला रहा है, फिर भी तुम मुझसे शादी क्यों करना चाहते हो?” तब समीर ने एक ही बात कही, “हाँ! मैं जानता हूँ लेकिन मैं आपसे प्रेम करता हूँ और प्रकाश जी से आपके संबंध वाली बात मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती।”

प्रकाश के माता पिता के समझाने व समीर के प्यार के सामने मानसी को झुकना पड़ा।

मानसी ने उठ कर अपना पल्लू सिर पर ओड़ते हुए उन दोनों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया एवं सभी रस्मों रिवाज के साथ सात फेरे लेकर समीर के साथ शादी का बंधन में बंध गयी।”