ईश्वर कृपा Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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ईश्वर कृपा

ईश्वर कृपा

जबलपुर शहर में सेठ राममोहन दास नाम के एक मालगुजार रहते थे। वे अत्यंत दयालु, श्रद्धावान, एवं जरूरतमंदों, गरीबों तथा बीमार व्यक्तियों के उपचार पर दिल खोल के खर्च करने वाले व्यक्ति थे। वे 80 वर्ष की उम्र में अचानक ही बीमार होकर अपने अंतिम समय का बोध होने के बाद भी मुस्कुराकर गंभीरतापूर्वक अपने बेटे राजीव को कह रहे थे “ बेटा मेरी चिंता मत कर मैं अपने जीवन में पूर्ण संतुष्ट हूँ। तुमने मेडिकल की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम आकर हम सब को गौरवांवित किया है। मेरा मन तुम्हारे डाक्टर बनने की खुशी में कितना प्रसन्न है, इसकी तुम्हे कल्पना भी नही है। ”

वे अपनी जिंदगी के पचास वर्ष पूर्व राजीव के जन्म के अवसर की घटनाओं को मानो साक्षात देख रहे थे। वे बोले कि 15 अक्टूबर का दिन था, मैं नर्मदा किनारे गोधूलि बेला में बैठा हुआ नदी में बहते हुए जल की ओर अपलक देख रहा था। आज मेरा मन अवसाद में डूबा हुआ था एवं दिलो दिमाग में निस्तब्धता छायी हुयी थी। सेठ जी भरे मन से उठे और धीरे धीरे भारी कदमों से अपनी कार की ओर बढ़ गए। वे मन ही मन सोच रहे थे कि मैंने अपना सारा जीवन सादगी, धर्म और कर्म को प्रभु के प्रति साक्षी रखते हुए सेवा भावना से अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रखते हुए बिताया है। फिर आज मुझे क्यों इन विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है?”

सेठ राममोहनदास के बचपन में ही पिता का साया उठ गया था। उनकी माँ ने व्यवसाय को संभालते हुए उन्हे बडा किया एवं उनका विवाह भी एक संपन्न और सुशील परिवार में कर दिया था। उनके विवाह के दस साल के उपरांत उनकी पत्नी माँ बनने वाली थी और इस सुखद सूचना को सुनकर पूरा परिवार अत्याधिक प्रसन्न होकर ईश्वर की इस असीम कृपा के प्रति नतमस्तक था। उनकी पत्नी को गर्भावस्था के अंतिम माह में अचानक तबीयत खराब होने से अस्पताल में भर्ती किया गया था और चिकित्सकों ने उनकी स्थिति को गंभीर बताते हुए सेठ जी को स्पष्ट बता दिया था कि बच्चे के जन्म से माँ के जीवन को बहुत अधिक खतरा है तथा उनकी प्रसव के दौरान मृत्यु भी हो सकती है? इन परिस्थितियों में माँ के जीवन को बचाने हेतू गर्भपात कराना होगा। इस खबर से सभी गहन दुख की स्थिति में आ गये थे। सेठ जी अपने प्रतिदिन के नियमानुसार नर्मदा दर्शन हेतू गये हुये थे, और वहाँ पर उन्होने दुखी मन से इस निर्णय को स्वीकार करने का मन बनाते हुए वापिस अस्पताल जाकर काँपते हुये हाथों से इसकी सहमति पर हस्ताक्षर कर दिए। अब चिकित्सकों की टीम ने विभिन्न प्रकार की दवाईयाँ व इंजेक्शन देकर गर्भपात कराने का पूरा प्रयास किया। उनकी पत्नी इससे अनभिज्ञ थी व तकलीफ के कारण बुरी तरह कराह रही थी। समय बीतता जा रहा था और उनकी तबीयत गंभीर होती जा रही थी। ऐसी स्थिति में चिकित्सको ने शल्य क्रिया के द्वारा स्थिति को संभालने का प्रयास किया। सेठ जी बाहर अश्रुपूर्ण नेत्रों से सोच रहे थे यह कैसी विडम्बना है कि जिन हाथों से उन्होने बच्चे को गोद में खिलाने की कल्पना की थी। उसे ही परिस्थितियों वश गर्भपात हेतू सहमति देनी पड़ रही थी।

आपरेशन पूरा हो चुका था और नर्स ने बाहर आकर सेठ जी को बधाई दी और कहा कि आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है और आपकी पत्नी भी सुरक्षित है। सेठ जी यह सुनकर अवाक रह गये और प्रभु कृपा के प्रति भाव विभोर होकर हृदय से उनके प्रति अविश्वास में अनर्गल बातें कहने हेतु ईश्वर से माफी माँग रहे थे। सेठ जी की माता जी भी दादी बनने से अति प्रसन्न थी और प्रभु के प्रति इन विपरीत परिस्थितियों में भी माँ और बच्चे दोनो की रक्षा हेतू हृदय से आभार व्यक्त कर रही थी।

सेठ जी ने राजीव से कहा कि- “ देखो आज तुम डाक्टर बन गये हो, यह एक बहुत ही पवित्र पेशा है मेरा अंतिम समय नजदीक दिखाई पड़ रहा है। मैं यह असीम धन दौलत तुम्हें सौंपकर जा रहा हूँ मेरी अंतिम इच्छा यही है कि जिन आदर्शो को अपनाकर मैने अपना जीवन जिया वे तुम्हारे जीवन में मार्गदर्शक बनकर बने रहे।” इतना कह कर वे अपनी अंतिम साँस लेकर अनंत में विलीन हो गये।