डोर – रिश्तों का बंधन - 6 Ankita Bhargava द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डोर – रिश्तों का बंधन - 6

डोर – रिश्तों का बंधन

(6)

वह समय नयना के लिए बहुत कठिन था। विवेक से उसकी बात ही नहीं हो पा रही थी, बहुत कोशिश करती नयना उसका फोन लगाने की पर कुछ दिनों तक तो उसका नंबर व्यस्त आता रहा और फिर नोट रीचेबल आने लगा, शायद उसने अपना नंबर ही बदल लिया था। नयना ने मां से विवेक का नया नंबर इस उम्मीद से मांगा कि मां को तो उसने फोन किया ही होगा पर उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया। मां पापाजी ने उन दिनों ख़ामोशी की एक अजीब सी चादर ओढ़ ली थी। नयना को यह तो समझ आ रहा था कि कुछ गलत हो रहा है पर क्या यह वह समझ नहीं पा रही थी। हालांकि मां के पास विवेक के फोन आते थे पर अधिकतर उस समय जब नयना घर पर नहीं होती थी। एक रोज़ उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो वह बैंक से कुछ जल्दी घर आ गई उस समय मां किसी से फोन पर बड़े हंस हंस कर बातें कर रही थी मगर उसे देखते ही उन्होंने फोन रख दिया।

"किसका फोन था मां?"

नयना के पूछने पर वो सकपका गई और जल्दी से बोली, "किसीका नहीं," फिर कुछ देर में संभल कर बोली, "मैं अपनी बहन से बात कर रही थी। आज तू जल्दी घर कैसे आ गई।"

"आज तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही। काम भी कम था तो मैं आधे दिन की छुट्टी ले कर आ गई।" नयना मां के चेहरे पर आते जाते भावों को बड़े गौर से देख रही थी।

"अच्छा ठीक है, अपने कमरे में आराम कर। कुछ चाय पानी चाहिए हो तो बता देना।" मां ने नज़रें चुराते हुए कहा। उनके हाव भाव से साफ पता चल रहा था कि वो झूठ बोल रही हैं और उन्हें नयना का यूं बेवक्त घर आना भी रास नहीं आ रहा था। घर के भीतर आते हुए उनके मुंह से 'विक्की' संबोधन तो नयना ने भी सुना था। विक्की तो मां विवेक को कहती हैं। मतलब वे विवेक से बात कर रही थीं। पर फिर उन्होंने नयना को देखते ही फोन रख क्यों दिया। नयना के दिमाग मे शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा। यह तो तय था कि उससे कुछ छिपाया जा रहा है मगर क्या बस यही समझ नहीं आ रहा था। अचानक प्रकाश मोसाजी का नाम उसके दिमाग में कोंध गया।

आश्चर्य है 'अब तक मुझे उनका ख्याल क्यों नहीं आया? वे तो विवेक के अफसर हैं उन्हें तो विवेक के बारे में हर बात पता होगी ही। उसका नंबर भी।' नयना ने अपने सर पर हाथ मारा। शायद इसलिए भी कि आजकल मां जया मोसी और प्रकाश मोसाजी से चिड़ने लगीं हैं, उनकी कोशिश रहती है कि नयना उन लोगों से कम मिले, बल्कि ना ही मिले और अगर फोन पर भी बात ना करे तो ज्यादा अच्छा। नयना ने भी घर की शांति की खातिर उन लोगों से दूरी बना ली थी। 'मां को बिना बताए ही जाना होगा जया मोसी से मिलने, अगर बता कर गई तो मां डांटेंगी। कल लंच टाइम में बैंक से ही चली जाऊंगी।'

"अरे नयना! बहुत दिनों बाद आई बिटिया, इसी शहर में तेरी एक मोसी भी रहती है भूल गई है क्या?" जया मोसी ने नयना को देखते ही प्यार से उलाहना देते हुए गले से लगा लिया।

"आपको कैसे भूल सकती हूं मोसी, बस काम ही इतना ज्यादा है कि फुर्सत ही नहीं मिलती। मार्च का महीना चल रहा है, ऑफिस में इतना काम है कि सांस लेने का भी वक्त नहीं है। होली के दिन सोचा था आऊं आपसे मिलने पर उस दिन तो मेहमानों ने ही नहीं निकलने दिया।" नयना ने सफाई सी दी, ठीक ही कह रही थी मोसी उसे सच में बहुत दिन हो गए थे इन लोगों से मिले।

"अच्छा किया नयना तुम आ गई मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।" प्रकाश मोसाजी कुछ गंभीर लगे नयना को।

"हां नयना सही कह रहे हैं तेरे मोसाजी, मैं तो तुम्हें देखते ही गिले शिकवे करने लगी और जरूरी बात बताना ही भूल गई। सोनू का इंजीनियरिंग में दाखिला हो गया। और....."

"जया! हो गया तुम्हारा?" मोसाजी ने मोसी की बात बीच में ही काट दी।

"प्रकाश प्लीज़।" मोसी ने विनती सी की। उन दोनों की बातें सुन नयना का जी घबराने लगा, उसे कुछ गलत होने की आशंका हो रही थी जो मोसाजी ही नहीं मोसी भी जानती थीं पर नयना से छिपाने की पुरजोर कोशिश कर रही थीं।

"मोसी-मोसाजी मैं पहले से ही बहुत परेशान हूं और आज आपके पास उसी परेशानी का हल ढ़ूंढंने आई हूं। पता नहीं क्या बात है पर पिछले कई महीनों से विवेक से मेरी बात ही नहीं हो पा रही है। ना कोई फोन, ना कोई मैसेज। क्या हुआ है उसे? कहीं वह किसी मुसीबत में तो नहीं है। मां पापाजी से पूछती हूं तो वो भी कुछ नहीं कहते। उनसे तो बात करता है वो फिर मुझसे क्यों नाराज़ है।" कहते कहते रोने को हो गई नयना। मोसी ने उसे शांत करवाया।

"विवेक किसी मुसीबत में नहीं है बेटा वो तो खुद तुम्हारे लिए मुसीबत बन चुका है। अपने बेटे की करतूतें किस मुंह से बताएंगे उसके मां बाप।" मोसाजी गुस्से में हांफने लगे। मोसी ने बहुत कहा 'रहने दो, मत बच्ची का दिल दुखाओ,' पर मोसाजी ने नयना को ऐमिली और विवेक के रिश्ते के बारे में सब बता दिया। सारी बात सुन कर नयना शांत हो गई, असल में तो मोसाजी ने उसे कुछ अलग नहीं बताया था बल्कि वही सब बताया था जिसकी नयना को आशंका थी। वह विवेक के सोशल मीडिया एकाउंट पर विवेक के साथ ऐमिली की तस्वीरें पहले ही देख चुकी थी और आज मोसाजी ने भी पुष्टि कर दी थी।

"नयना मैंने यह सब तुम्हें दुखी करने के लिए नहीं बताया है बल्कि तुम्हें आने वाले कष्टों के लिए सचेत करने के लिए बताया है। मैंने अपने स्तर पर संभालने की बहुत कोशिश की पर मैं असफल रहा। अब जब बात मेरे हाथ से निकल चुकी है बेटा तो मुझे लगता है इस बारे में सुरेशजी को भी पता होना चाहिए शायद वो इस समस्या का मुझसे बेहतर हल निकाल सकें। मैंने तुम्हारे सास ससुर से भी बात की थी पर उन्हें तो अपने बेटे की गलती पर पर्दा डालने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। उनके रवैये को देख कर मुझे भय लग रहा है कि उन्हें तुम्हारे भविष्य की फिक्र है भी या नहीं। मैं खुद सुरेशजी से इस बारे में बात करना चाहता था पर उससे पहले तुम्हरा ऐमिली और विवेक के विषय में सब कुछ जानना जरूरी था।" नयना ने प्रकाश मोसाजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया चुपचाप उठ कर घर चली आई। मोसी मोसाजी भी इस वक्त उसकी मनः स्थिति से अनभिज्ञ नहीं थे अतः उन्होंने भी उसे नहीं रोका।

नयना घर तो आ गई थी पर उसे समझ नहीं आ रहा था यह घर आखिर है किसका। पांच साल उसने जिस छत के नीचे काटे थे वो छत और उस छत के तले उसके साथ रहने वाले लोग आज उसे पराए लग रही थे। 'इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा विश्वासघात!' नयना के भीतर जैसे एक लावा उबल रहा था जो किसी भी समय फट पड़ने को आमादा था। 'कितने भरोसे के साथ मैंने विवेक को भेजा था कनाडा, मगर क्या सिला मिला मुझे उस भरोसे का, हर बार की तरह एक और छल। अब और नहीं, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। विवेक की यह हरकत माफ करने लायक नहीं है। और तो और मां पापाजी ने भी मुझे मेरी ही ज़िंदगी से जुड़ी इतनी बड़ी बात बताना जरूरी नहीं समझा। ठीक कहते हैं मोसाजी इन लोगों को विवेक की करतूत पर पर्दा डालने के अलावा और कोई काम नहीं है। पर मैं अब और बर्दाश्त नहीं करूंगी, इन लोगों को मेरे सवालों का जवाब देना ही होगा।'

"नयना!" नयना अपने कमरे में बेचेनी से इधर से उधर चक्कर लगा रही थी कि मां और मीनू ने कमरे में प्रवेश किया।

"जी मां!" नयना को कुछ समय लगा खुद को समेटने में पर बहुत कोशिश करके भी वह पूरी तरह सहज नहीं हो पा रही थी।

"अभी मीनू के ससुराल से फोन आया था वो लोग कल रोके की रस्म निभाने आना चाहते हैं। बाकी तैयारी तो मैंने पहले ही कर रखी है बस मीनू के लिए ड्रेस खरीदनी रह गई थी, सोचा था ड्रेस खरीदने में कितना वक्त लगता है पर अब इतनी रात को इसे बाजार कहां भेजूं। तुम्हारे पास तो बहुत सारे नए कपड़े हैं, इसे दिखा दो अगर कोई पसंद आई तो वही पहन लेगी कुछ देर के लिए।" मां ने कहा तो नयना ने निर्विकार भाव से उठ कर अलमारी खोल दी। मीनू नयना की ड्रेसज देखने लगी।

"नहीं, यह मत लो। यह सूट मुझे चिंटू ने अपनी पहली तनख्वाह से खरीद कर गिफ्ट किया था।" जैसे ही मीनू ने गुलाबी रंग का फुलकारी की कढ़ाई वाला सूट उठाया तो नयना बोल पड़ी।

"ओहो भाभी इतना भी ना फेंको, खुद महंगा सूट खरीद कर मायके से मिला ना बताया करो। इतना कीमती सूट तो आपके मायकेवालों ने आपको शादी में भी नहीं दिया था तो अब कौन देगा। आप चिंटू भैया की चचेरी बहन हो सगी नहीं, खुद को इतना भी भाव ना दिया करो।" सूट हाथ में पकड़े पकड़े मीनू ने हंस कर कहा। नयना ने मां की ओर देखा, हमेशा की तरह उनके होठों पर भी एक व्यंग्यात्मक मुस्कान थी।

कोई और दिन होता तो नयना यह सोच कर चुप भी रह जाती कि इन लोगों का तो यह रोज़ का काम है उसके मायके का नाम आते ही उसे ताने देने का एक दौर चल पड़ता है इस घर में। पर आज वह चुप नहीं रह पाई और चिल्ला कर कह उठी, "हां ठीक है, मैं तो झूठी हूं, फैंकती रहती हूं, फिर क्यों हर बार चली आती हो मुंह उठा कर मेरे पास मदद मांगने। जाओ इस बार तुम कुछ नया करो, एक काम करो अपने उस हरीश्चंद्र भाई और ऐमिली भाभी से मदद मांगे जाकर। मेरे पास अब तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है।" नयना ने अपना सूट मीनू के हाथ से छीन कर वापस अलमारी में रख दिया।

नयना की बात सुन मां अवाक सी खड़ी रह गई। उन्होंने मीनू को बाहर जाने का इशारा किया। मीनू कुछ देर हतप्रभ सी वहीं खड़ी रही फिर धीरे धीरे बाहर चली गई। वह आश्चर्यचकित थी क्योंकि आज तक उसने अपनी भाभी को इतनी जोर से बोलते हुए कभी देखा ही नहीं था। इधर मां भी अचरज से नयना को देख रही थी, उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी कि नयना को भी ऐमिली के बारे में कुछ पता भी हो सकता है, उन लोगों ने तो नयना से यह बात छुपा रखी थी, सोचा था लड़का है, घर से बाहर पहली बार निकला है, बहक गए कदम, तो क्या, मीनू की शादी में आएगा तो समझा लेंगे। नयना को बता कर क्यों बेकार बात बढ़ानी। फिर इसे कैसे पता चला, क्या जया और प्रकाश ने?

"तुम प्रकाश और जया से मिल कर आई हो? मैंने कहा था ना तुम्हें इन लोगों से दूर रहने को।" मां ने गुस्से से नयना को घूरा पर आज उनकी आंखों में वह ताप नहीं था जो नयना को डरा सके।

"तो उस प्रकाश और जया ने तुम्हें भी झूठी पट्टी पढ़ा ही दी। मुझे तो समझ नहीं आता ये दोनों किस जन्म का बदला निकाल रहे हैं हमसे, मेरे बेटे को बदनाम करके जाने इन्हें क्या मिलेगा। पता नहीं क्यों मेरा घर बर्बाद करने पर तुले हैं। और तुम भी इनकी बातों में आ गई।" मां मोसाजी और मोसी को कोसने लगीं। नयना ने अपने मोबाइल पर विवेक का सोशल मीडिया एकाउंट खोल कर विवेक और ऐमिली की तस्वीरें दिखा दी और सवालिया निगाहों से मां को देखने लगी।

"ठीक है तो इसमें कौनसी बड़ी बात है, दोनों दोस्त हैं, और दोस्त तो साथ में तस्वीर खिंचवा ही लेते हैं ना। तुम्हारी तस्वीरें भी तो होती है तुम्हारे दोस्तों के साथ, उन्हें देख कर हमने तो कभी कुछ नहीं कहा जो तुम इतना बवाल खड़ा रही हो।"

"इन तस्वीरों में ये दोनों किस एंगल से दोस्त नज़र आ रहे हैं आपको।"

"चलो ठीक है तुम्हारी बात ही मान लेती हूं तो भी क्या, हो गई होगी गलती लड़के से। अपने घर परिवार से इतनी दूर है। पता नहीं किस हाल में है मेरा बच्चा, तुम क्या समझोगी उसकी परेशानी तुम तो यहां आराम से घर में बैठी ऐश कर रही हो।" सच तो मां की ज़बान पर आ गया था पर अभी भी वो यह मानने को तैयार नहीं थी कि उनका बेटा गलत है।

"मैं ऐश कर रही हूं?" तड़प उठी नयना।

"और नहीं तो क्या? सर पर छत है, परिवार का साथ है, हर आराम है, सुख है, अपनी नींद सोना अपनी नींद जागना, कोई ऊंची आवाज में बोलता तक नहीं। एक औरत को इससे ज्यादा और क्या चाहिए। वनवास तो मेरा बेटा भोग रहा है अपने परिवार से दूर रह कर।" मां ने रो कर भी नयना को दबाने की कोशिश की पर आज वह दबने के मूड में नहीं थी, उसके अपने मन में बहुत कुछ दबा था जो आज बाहर निकलने पर आमादा था।

"आपके लाडले को किसी ने मजबूर नहीं किया था वनवास पर जाने के लिए। वो खुद अपनी मर्जी से गया है इस वनवास पर। हाथ जोड़ कर मैंने उसीके कहने पर प्रकाश मोसाजी को मनाया था। इसके लिए आप मुझे ताने ना ही दें तो बेहतर होगा। और अगर सच में आपको लगता है मेरे कारण आपका बेटा आपसे दूर है तो आप दूर कर दीजिए उसका वनवास, वापस बुला लीजिए उसे और साथ में उसकी उस लाडली को भी। मैं चली जाती हूं यहां से आखिर ऐमिली को भी तो पता चले मैंने कितनी ऐश की है इस घर में।"

"अच्छा चली जाओगी! अरे वाह! बहुत खूब, और जाओगी कहां ये भी बता दो। दोबारा अपने चाचा के घर, जहां से आई थी। बहूरानी एक बात आज मेरी भी सुन लो, ये जो गज भर लंबी ज़बान है ना यह तभी तक चल रही है जब तक सर पर छत है। जिस दिन ये छत ना रही उस दिन कोई ना पूछेगा। शादीशुदा बेटी चार दिन से ज्यादा आज भी पीहर में बोझ ही कहलाती है तो छोड़ी हुई बेटी को कौन मान सम्मान देगा। तुम्हें तो पहले भी मायके में कोई नहीं पूछता। इसलिए ये तेवर दिखाना बंद करो, थोड़ा अक्ल से काम लो और धीरज रखो। मीनू की शादी में आएगा विवेक, समझा देंगे उसे, सब ठीक हो जाएगा।"

"मैं बोझ नहीं हूं किसी पर कमाती हूं। अपनी जिस तनख्वाह से छः लोगों का परिवार चला रही हूं उससे अपना खर्चा आसानी से निकाल लूंगी। आपके बच्चों की कॉलेज की कॉलेज फीस मैं ही भरती आई हूं। आपके लाडले ने जाने से पहले भले ही कितने ही बड़े बड़े दावे किए थे पर उसने वहां जाकर एक पाई भी नहीं भेजी कभी। आप तो यह भी भूल जाती हैं कि आपका लाडला जिस वनवास पर खुशी से उछलता हुआ गया था उसका हवाई जहाज का टिकट भी मैंने ही खरीद कर दिया था और आप अब चाहे इसके लिए हर रोज़ मुझे कोसते हुए आंसू बहाती रहें पर तब तो खुशी से फूली नहीं समाई थीं।" मां की बात सुन कर नयना के तन बदन में आग लग गई फिर वह भी उन्हें सुनाए बिना नहीं रही। आज पहली बार नयना की ज़बान खुली थी और एक बार जो खुली तो आग उगल रही थी। मां उसका यह रूप देख कर सहम सी गई और कमरे से बाहर हो गई।

नयना ने तय कर लिया था अब वह इस घर में और नहीं रहेगी। चाचा चाची अगर समाज और लोग क्या कहेंगे के भय से उसे अपने साथ रखने से मना भी करेंगे तो भी वह किसी वर्किंग वूमैन हॉस्टल में रह लेगी पर अब यहां और नहीं। नयना अपना सामान पैक करने लगी पर जितना सामान बांध रही थी उतना ही खुद टूट कर बिखर रही थी। वह फूट फूट कर रोने लगी, आज पहली बार उसे लग रहा था जैसे वह इस दुनिया में बिल्कुल अकेली है। आज फिर उसे अपने पापा की बहुत याद आ रही थी। "पापा आप अपनी नन्नी को अकेला छोड़ कर क्यों चले। देखो ना आपकी नन्नी बिल्कुल अकेली है, पापा वापस आ जाओ ना, प्लीज़ पापा एक बार तो आ जाओ।" नयना देर तक अपने पापा को याद करती रही और रोती रही। कोई नहीं आया उसे दिलासा देने, चुप करवाने।

हां थोड़ी देर में विवेक का खत जरूर आ गया ई मेल से। शायद मां की उससे बात हुई होगी। नयना ने खत पढ़ना शुरू किया-

नयना

मैं कई दिनों से तुम्हें यह पत्र लिखना चाहता था क्योंकि मुझे लगता है पत्र के जरिए मैं तुम्हें अपनी भावनाओं से ज्यादा अच्छे से अवगत करवा सकता हूं बजाय फोन के। किंतु हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि मैं यह भी जानता था कि जब भी तुम्हें ऐमिली के बारे में पता चलेगा तुम्हारा दिल टूट जाएगा। किंतु आज मैं लिख सकता हूं क्योंकि अब तुम्हें ऐमिली के बारे में सब पता चल गया है। मैं समझ सकता हूं कि तुम्हें किस हद तक बुरा लग रहा होगा। पर एक तरह से अच्छा ही है कि अब तुम मेरे इस सच से वाकिफ हो वरना तो अब तक मैं तुमसे झूठ बोलने के गिल्ट में ही जी रहा था और इसी कारण से ऐमिली के साथ अपने रिश्ते को कोई नाम देने से कतरा रहा था जबकि वह लगातार मुझ पर हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाने का दबाव बना रही है। मां-पापाजी और प्रकाश सर से तुम्हारे प्रति ईमानदारी और को लेकर लंबे लंबे भाषण सुनने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि यह रिश्ता, यह शादी हमारी है और इसे कैसे निभाना है यह फैसला भी हम दोनों ही करें तो बेहतर है। मेरे हिसाब से किसी अन्य को इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई हक नहीं। आखिर हम बच्चे तो नहीं, इतनी आपसी समझ तो हममें है ही।

तुम ऐमिली को लेकर कोई भी गलत धारणा बनाओ उससे पहले ही मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि वह जितनी खूबसूरत है उससे कहीं अधिक दिल की अच्छी है। उससे ना जाने कितनी ही बार मेरी इस अनजान देश में मदद की। कनाडा की इस बर्फीली ठंड में गुनगुनी धूप के अहसास की तरह वो मुझे मिली थी और कब मेरी ज़िन्दगी का अभिन्न हिस्सा बन गई मुझे पता ही नहीं चला। मैं ऐमिली को अपने लिए ईश्वर का वरदान कहूंगा क्योंकि यदि वह ना मिली होती तो शायद मैं कब का कनाडा से पलायन करके भारत वापस आ चुका होता। उसी के कारण, उसी की मदद से मैं यहां टिक पाया और कंपनी में सुपरवाईज़र की पोस्ट तक पहुंच पाया हूं। मेरी तरक्की में सबसे बड़ा हाथ उसी का है।

ना! मैं अपने जीवन में तुम्हारे योगदान को नकार नहीं रहा हूं। तुम्हारे सहयोग से ही तो मुझे प्रगति की यह नई राह मिली है वरना तो मैं वहीं किसी फैक्ट्री में मजदूरी करता पड़ा सड़ रहा होता। तुम्हारे अच्छे स्वभाव और व्यवहार की कायल तो ऐमिली भी है। हम दोनों तुम्हारी बहुत बातें करते हैं और ऐमिली तो तुमसे बिना मिले ही तुम्हारी फैन हो गई है वह अक्सर मुझसे कहती है मुझे एक बार नयना से मिलवाने भारत लेकर चलो। किंतु अब तक मैं ही भारत आने से कतरा रहा था और इसका कारण मां पापाजी का मुझ पर लगातार ऐमिली को छोड़ने का दबाव था। लेकिन अब जबकि तुम सब कुछ जान चुकी हो तो मुझे यकीन है तुम मेरा नज़रिया समझोगी भी और घरवालों को समझा भी पाओगी। अगर ऐसा हो सका तभी मैं मीनू की शादी में आ पाऊंगा वरना मेरा आना मुश्किल है।

नयना मैं मानता हूं मैंने तुम्हारे साथ गलत किया है पर मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं जो बस ऐमिली को ही चाहता है। मैं जैसा उसके लिए महसूस करता हूं वैसा मैंने तुम्हारे लिए तो कभी महसूस ही नहीं किया। मेरे दिल में तुम्हारे लिए बहुत ईज्जत है पर मैं कभी तुमसे प्यार नहीं कर पाया। करता भी कैसे मुझे तुम्हें जानने समझने का मौका ही कब मिला बस बड़ों ने मिल कर फैसला कर लिया कि हमारी शादी हो जानी चाहिए और शादी हो गई। तुम अच्छी हो, बहुत अच्छी पर तुम्हारे व्यक्तित्व, तुम्हारी उपलब्धियों के सामने मैं खुद को बहुत छोटा पाता हूं, दबा हुआ पाता हूं शायद इसीलिए तुम्हारे साथ सहज भी नहीं रह पाता जबकि ऐमिली के सामने मेरा व्यक्तित्व निखर जाता है क्योंकि वह कोई बहुत बड़ी अफसर नहीं है अपितु मेरी ही तरह साधारण सी नौकरी करने वाली कम पढ़ी लिखी लड़की है। अपनी सफाई में मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता उम्मीद है तुम मेरी भावनाओं को समझोगी और मेरे इस फैसले में हमेशा की तरह मेरी मदद करोगी। मैं मां पापाजी को ऐमिली को स्वीकार करने के लिए मनाने की जिम्मेदारी भी तुम्हें ही सौंपता हूं। पत्र लंबा हो गया है अब बंद करता हूं तुम्हें भी नींद आ रही होगी।

हमेशा तुम्हारा दोस्त

विवेक

विवेक का पत्र पढ़ कर नयना होंठ व्यंग्यात्मक मुस्कान से वक्र हो गए, उसका दिल कर रहा था वह इतनी ज़ोर से हंसे कि उसकी हंसी की आवाज से कमरे की छत ही उड़ जाए। उसके पति ने लगभग सात महीने के बाद उससे संपर्क किया है और खत तो जीवन में पहली बार लिखा है पर खत में अधिकतर बातें ऐमिली की थीं। कितनी बेशर्मी से उसने ऐमिली के साथ अपने संबंधों को स्वीकार किया था। नयना मोबाइल स्क्रीन पर टाइप करने लगी-

विवेक

अभी अभी तुम्हारा पत्र मिला, जिसमें तुमने अपनी भावनाओं के बारे में खुल कर लिखा। अगर तुमने पहले मुझे बता दिया होता तो शायद मेरे मानसिक संताप की अवधि कुछ कम हो जाती। खैर जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। अपने जीवन की इस नई राह के लिए मेरी ओर बधाई एवं शुभकामनाएं, मैं तुम्हें हर बंधन से मुक्त करती हूं। तुमने इतना कुछ कहा अपना दिल मेरे सामने खोल कर रख दिया, एक बात आज मैं भी कहना चाहती हूं, तुम कहते हो तुम्हें मुझे जानने समझने का मौका नहीं मिला तो तुम भूल जाते हो कि तुम भारत में पैदा हुए हो और यहां आमतौर पर विवाह का यही रूप प्रचलित है जिसे अरेंज मैरिज कहते हैं। विवाह के समय तुम भी मेरे लिए उतने ही अजनबी थे जितनी मैं तुम्हारे लिए, मुझे भी तुम्हें जानने समझने का कोई मौका नहीं मिला था। कम से कम तुम अपने परिवारजनों के साथ तो थे मेरा तो परिवार ही नहीं कुल गोत्र सब कुछ बदल गया था, इसके बावजूद भी मैंने तुम लोगों के प्रति अपना हर कर्तव्य निभाने की कोशिश की। मैंने तुम्हें और तुम्हारे परिवार को अपना बनाने का हर संभव प्रयास किया। यह बात अलग है कि ना मुझे इसमें किसी का सहयोग मिला और ना ही सफलता पर। जहां तक मां पापाजी से ऐमिली को स्वीकृती दिलाने का प्रश्न है तो मुझे क्षमा करो मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती यह तुम्हारी व्यक्तिगत समस्या है इसे तुम्हें खुद ही सुलझाना होगा मैं अब कुछ नहीं कर सकती। तुम अपने जीवन में नई राह चुन चुके हो अब मैं भी अपने लिए एक अलग और शायद बेहतर राह चुनने के लिए स्वतंत्र हूं।

तुम्हारी कुछ नहीं

लंबे से खत का जवाब लिखने के लिए नयना को इससे ज्यादा शब्द मिले ही नहीं। विवेक के खत का संक्षिप्त सा जवाब दे कर वह लेट गई और छत को घूरती रही। अब यह तय था कि इस शादी में अब नयना के लिए कुछ नहीं बचा था और उसे अपने विषय में खुद ही सोचना था।

अगले दिन मां ने मीनू के रोके की रस्म और उसके ससुरालवालों के स्वागत की तैयारियां शुरू कर दीं। वे बड़ी उम्मीद से नयना के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रही थी पर जब वह बहुत देर तक कमरे से बाहर नहीं आई तो मां खुद ही उसके कमरे में आ गई। वे नयना को पैकिंग करते देखती रही फिर बोली, "नयना तू विवेक से अपनी नाराज़गी मीनू पर क्यों निकाल रही है? जब उसके ससुरालवाले आएंगे तब उसकी भाभी ही घर में ना हुई तो क्या सोचेंगे वो लोग।" नयना ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। "मेरी तुमसे बस इतनी सी विनती है मेरी बेटी का घर बसा दो फिर उसके बाद खुद के साथ तुम्हारे जो मन में आए वो करो, मैं कुछ नहीं कहूंगी।" नयना ने इस बार भी मां कोई जवाब नहीं दिया वह बस चुपचाप बैठी रही। असल तो वह इस वक्त भीतर से बिल्कुल खाली हो गई थी, उसमें ना कोई संवेदना बची थी और ना ही कोई भावना।

मां अभी नयना को समझा ही रही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी। रोहित ने दरवाज़ा खोला बाहर सुरेश चाचा और चिंटू खड़े थे। प्रकाश मोसाजी भी आए थे उनके साथ। "नन्नी,"घर में प्रवेश करते ही चाचा ने नयना को आवाज दी। चाचा की आवाज सुनते ही नयना दौड़ कर चाचा के गले लग गई और उसका दर्द अब चाचा का सीना भिगोने लगा था। अचानक सुरेश ने उसे पकड़ कर झकझोर दिया और बोले, "नन्नी तुझे विदा करते हुए मैंने तुझे जो कहा तू भूल गई, मैंने तुझसे कहा था भाईसाहब भले ही इस दुनिया से चले गए पर तेरा बाप अभी भी ज़िंदा है, मैं अपनी आखिरी सांस तक तेरे साथ हूं। कहा था या नहीं बोल, फिर क्यों तू अकेली इतना दर्द सहती रही। एक बार मुझे बताती तो सही मेरी बच्ची।" चाचा नयना को डांटते रहे और वह उनके सीने से लगी सोचती रही कल रात वह बेकार ही रोई, पापा तो कहीं भी नहीं गए यहीं तो हैं उसके पास बस वही उन्हें पुकारने में हिचकिचा रही थी।

चाचा चिंटू को नयना का ध्यान रखने को कह नयना के सास ससुर की ओर बढ़ गए। इसके बाद जिस घर से मीनू के रोके की रस्म के उपलक्ष्य में मंगल गीतों की आवाज आने की उम्मीद थी उसी घर से नयना के सुरेश चाचा की क्रोध में गरजने की आवाजें आ रही थीं। घर के बाहर आस पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए थे। आज से पहले कभी इस घर से ऊंची आवाज नहीं सुनी थी किसी ने, नयना ने कभी ऐसा मौका आने ही नहीं दिया। पर आज यह हो रहा था और मां पापाजी को बदनामी का डर भी सता रहा था। मीनू के ससुरालवालों के आने का समय भी हुआ जा रहा था इसलिए मां पापाजी मामला जल्दी से जल्दी निपटाना चाह रहे थे पर विवेक का गुनाह मानने को फिर भी तैयार नहीं थे बस यही कहे जा रहे थे कि वे विवेक को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। मां तो यह भी मानने को तैयार नहीं हो रही थी कि नयना के साथ कुछ गलत हो रहा है। बार बार यही कहे जा रही थी, 'आराम से तो है आपकी बेटी, ऐसा आराम तो आपके घर भी ना था।'

यह सुन कर सुरेश चाचा और प्रकाश मोसाजी का गुस्सा आसमान छूने लगा, सुरेश चाचा बोले, "बहनजी मेरे घर में मेरी बेटी को रोने की जरूरत नहीं पड़ी पर आपके घर में उसके आंसू नहीं सूखते। मैं आपको बता दूं कि मेरी बेटी मुझ पर भार नहीं है। मुझे या मेरी बेटी को आपके नालायक सपूत के अहसान की जरूरत नहीं। शायद आप लोग भूल रहे हैं कि आप आप लोग आए थे मेरे दरवाजे पर नयना का हाथ मांगने और यह कह कर नयना को बहू बनाया था कि आपके घर उसे कोई तकलीफ नहीं होगी। क्या हालत कर दी है इसकी, अब मैं इसे यहां नहीं रहने दूंगा। और मैं कहे दे रहा हूं आपके सपूत को मेरी बेटी के आंसुओं की कीमत चुकानी होगी। अगर अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए मुझे कोर्ट कचहरी भी करनी पड़ी तो मैं वो भी करूंगा।"

सुरेश चाचा की बातों ने मां पापाजी के होश उड़ा दिए। पापाजी ने तुरंत विवेक को फोन लगाया और पूरी बात बता कर उसकी सुरेश चाचा से बात करवाई, उसने चाचा के समक्ष भी ऐमिली से अपने संबंधों को स्वीकार तो कर लिया किंतु साथ ही यह भी कहा कि उसे नयना के अपने घर में रहने से कोई ऐतराज नहीं है, चाचा ने विवेक को समझाने की बहुत कोशिश की पर वह ऐमिली से संबंध तोड़ने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं था। अब उससे बात करने का कोई फायदा नहीं था फिर भी पापाजी ने उसे जल्द से जल्द भारत आने को कहा। विवेक ने भी जल्दी ही आने का आश्वासन दिया।

चाचा तो नयना को उसी दिन अपने साथ ले जाना चाहते थे पर मां ने हाथ जोड़ कर कहा, "ठीक है आप लोग नयना को ले जाना चाहते हो तो ले जाओ बस मेरी मीनू की डोली उठ जाने दो, जो उसके ब्याह में उसकी भाभी ही ना हुई तो उसके ससुरालवाले उसे चैन से जीने नहीं देंगे। तब तक विवेक भी आ जाएगा, हो सकता है उसके साथ बात करके इस समस्या का भी कोई समाधान निकल आए।" चाचा तो मां की यह बात मानने को तैयार नहीं थे पर नयना ने ही हां कह दिया। आखिर उसके साथ जो भी हो रहा था उसमें मीनू की तो कोई गलती नहीं थी फिर उसे सज़ा क्यों मिले।

विवेक की एक सप्ताह बाद की भारत आने की टिकट कन्फर्म हो गई थी। इस बात का फायदा उठा कर मां ने मीनू की शादी का मुहूर्त भी पंद्रह दिन बाद का ही निकलवा लिया, शायद वे समाज में ऐमिली और विवेक की बात फैलने से पहले ही मीनू के हाथ पीले कर देना चाहती थीं।

नयना कुछ दिन और विवेक के घर पर ही रह गई, उसने मीनू के विवाह की तैयारियों में अपना योगदान भी दिया पर फिर भी अब ना तो वह सामान्य हो पाई और ना ही विवेक के परिवार से उसके रिश्ते ही पहले जैसे रह गए थे। वह बस अपने काम से काम रखती, ना तो पहले की तरह सबसे घुल मिल पाती और ना ही खुल कर किसी से बात ही करती। शादी से सप्ताह भर पहले विवेक भी आ गया पर अब नयना उसके सामने जाने से बचने का भरसक प्रयास करती। यद्यपि खुद विवेक का व्यवहार नयना के साथ काफी हद तक सहज ही था, शायद वह रिश्तेदारों के समक्ष दिखाना चाहता था कि उन दोनों के बीच सब कुछ ठीक है पर जब ठीक था ही नहीं तो दिखता कैसे।

विवेक के आने से मीनू बहुत खुश हुई। जब मां ने विवेक को मीनू के होने वाले दूल्हे का फोटो दिखाया गया तो वह बड़ी उम्मीद से विवेक को देख रही थी। विवेक कुछ देर तक बड़े ही ध्यान से फोटो को देखता रहा फिर मीनू की से मुखातिब हो कर बोला, "इसे देख कर एक ही बात दिमाग में आती है। बेचारा!" मीनू ने सुना तो वह विवेक को मारने उसके पीछे दौड़ी, रोहित भी उनकी धमा चौकड़ी में शामिल हो गया। कई दिन बाद घर में ऐसी रौनक आई थी मां पापाजी बहुत खुश थे।

पर नयना हमेशा की तरह खुश नहीं हो पाई। वह बस अपने आप में ही सिमटी रहती आजकल उसके पास फोन भी बहुत आने लगे थे, पता नहीं किससे बात करती रहती और फिर जाने कौनसी दुनिया में खो जाती। इस बीच सुरेश चाचा ने एक बार फिर आकर विवेक से ऐमिली के विषय में बात की पर कोई नतीजा नहीं निकला विवेक अपनी बात पर अड़ा हुआ था। ना तो वह भारत वापस आने को तैयार था और ना ही ऐमिली को छोड़ने को ही तैयार था, नयना के भविष्य के विषय में उसका कहना था कि नयना के उसके मां पापाजी के साथ रहने से उसे कोई एतराज नहीं। पर पति के बिना नयना का ससुराल में रहने का क्या औचित्य है? इस सवाल पर उसने एक लंबी चुप्पी साध ली थी।

मीनू की शादी से एक रोज़ पहले ऐमिली भी आ गई। उसे देख कर मां ने क्रोध से विवेक को देखा पर वह तो खुद भी हैरान था क्योंकि उसने तो ऐमिली को मीनू की शादी में आने के लिए आमंतत्रण दिया ही नहीं था। मेहमानों से घर भरा हुआ था और सभी ऐमिली को देख कर खुसर फुसर करने लगे। मां हैरान भी थीं और परेशान भी कि सबको ऐमिली का क्या परिचय दें।

"ये ऐमिली है अपने विवेक के साथ ही उसके दफ्तर में काम करती है, इसका बड़ा मन था हिंदूस्तानी संस्कृति के बारे में जानने का, हमारे यहां के रीति-रिवाज देखने का। जब विवेक ने मुझे इसके बारे में बताया तो मैंने भी कह दिया भई बुला ले अपनी दोस्त को मीनू की शादी में, आखिर इसे भी तो पता चले कैसा रंग रंगीला है हमारा भारत। विक्की ने एक बार कहा और ये आ भी गई। भई लड़कियो ध्यान रखना मेहमान का, इसे किसी तरह की दिक्कत नहीं होनी चाहिए कह देती हूं।" इतना कह कर वे अपने काम में लग गईं कि कोई उनसे कुछ ऐसा सवाल ना पूछ बैठे जिसका जवाब देना उनके लिए भारी पड़ जाए।

"अपना घर तो तोड़े बैठी ही है कम से कम मेरी बेटी का घर तो बस जाने दे। पता नहीं क्या दुश्मनी निकाल रही है हमसे। तुझे घर में रखा तो था कि समधियों के सामने थोड़ी इज्जत रह जाएगी पर मुझे लगता है तू तो रिश्तेदारों के सामने हमारी नाक पूरी तरह कटा कर ही मानेगी। तेरे चाचा ने हमारी बेईज्जती करने में कसर छोड़ी थी क्या जो बची खुची इज्जत तू उतारने पर तुल गई है।" जब ऐमिली ने मां को बताया कि उसे नयना ने आमंत्रित किया है तो मां गुस्सा हो गई और नयना को एक कोने में ले जा कर डांटने लगी।

"आप तो यूं हीं फिक्र कर रही हैं मां ना तो आपकी बेटी का घर बसने में कोई समस्या आएगी और ना ही आपकी इज्जत पर कोई आंच आती दिख रही है मुझे, देख लीजिए आपने ऐमिली को अपने बेटे के ऑफिस में काम करने वाली साथी बताया तब किसी ने भी पलट कर आपसे कोई सवाल नहीं पूछा।" नयना ने लापरवाही से कहा, पर आश्चर्य तो उसे भी हो रहा था समाज की सोच पर। जहां खुद नयना को हर कदम फूंक फूंक कर रखना पड़ता था वहीं विवेक के किए इतने बड़े कांड पर भी अब तक कोई बहुत बड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी थी किसी ने। नयना तो फिर भी बहू है मीनू पर भी वक्त के साथ साथ मां ने कई पाबंदियां लगा रखी हैं। एक बार ब्यूटी पार्लर से आते हुए पड़ोस के ही एक लड़के ने उसे देख कर सीटी बजा दी थी तब मां ने मीनू को ना सिर्फ डांटा ही बल्कि उसके घर से बाहर आने जाने का समय भी तय कर दिया था जबकि उस लड़के को किसी ने कुछ नहीं कहा और वह आज भी सड़कों पर पूर्व की ही भांति आवारागर्दी करता घूमता रहता है।

"तुमने ऐमिली को यहां क्यों बुलाया नयना, क्या जरूरत थी उसे बुलाने की?" विवेक भी वहीं आ गया था।

"ऐमिली का फोन आया करता था मेरे पास। परेशान लग रही थी बेचारी, उसे डर था कि विवेक के घरवाले उसे बरगला कर ऐमिली से उसका रिश्ता तुड़वा देंगे। मेरा रिश्ता अभी तक विवेक से टूटा नहीं है, उसे मुझसे भी भय लग रहा था। मैं उसकी चिंता समझ रही थी इसीलिए उसे सलाह दे दी कि वह भी शादी में आ जाए, उसके सामने रहते उसके और विवेक के रिश्ते को कोई खतरा नहीं है। शायद उसे मेरी सलाह पसंद आई इसीलिए आ गई या फिर यह कहूं कि वह विवेक से सच में बहुत प्यार करती है जो उसके पीछे इतनी दूर आ गई। इसमें गलत क्या है मां, बल्कि अच्छा ही है इस बहाने ऐमिली को भी आपके साथ रहने का मौका मिल जाएगा। आखिर आपके प्यार पर आपकी इस बहू का भी तो हक है।" ना चाहते हुए भी नयना के स्वर में व्यंग आ गया।

"मां रिश्ते में जब विश्वास टूटता है तो बहुत दर्द होता है और इसकी आशंका और भी अधिक तकलीफ देती है। ऐमिली इसी तकलीफ से गुज़र रही थी। उसने विवेक को यहां भेज तो दिया पर उसे हर पल यही भय लगा रहता था कि अगर मैंने या आप लोगों ने विवेक को वापस उसके पास ना जाने दिया तो? इसीलिए वह बार बार मुझे फोन कर रही थी। ऐमिली के भय का बस यही एक निवारण दिखा मुझे कि विवेक उसकी आंखों के सामने रहे और मैंने उसे यहां बुला लिया।"

"ऐमिली की तकलीफ तो तूने दूर कर दी पर तेरा क्या?" मां ने कहा।

"मेरे लिए ना तो अब इस शादी में कुछ बचा है और ना ही इस घर में। पति पत्नी का रिश्ता अजीब ही है मां, दुनिया में सबसे निराला, सबसे अलग। जितना मजबूत है उतना ही नाज़ुक भी। इसे दोनों को मिल कर संभालना होता है, पर मां विवेक ने ऐसी गांठ लगाई है कि इस रिश्ते की डोर ही उलझा कर रख दी। अब इस डोर को कोई नहीं सुलझा सकता इसे तोड़ना ही होगा तभी सबका जीवन सामान्य हो सकेगा।"

"नहीं नयना ऐसा नहीं है हम अब भी दोस्त हैं और हमेशा दोस्त रहेंगे, तुम्हें जब भी मेरी जरूरत होगी मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा।" विवेक ने भावुक स्वर में कहा।

"दोस्त! दोस्ती एक नए रिश्ते की खूबसूरत शुरुआत होती है विवेक किसी टूटे हुए रिश्ते का कॉन्सोलेशन नहीं। हमारे परिवार ने तुम्हें मेरा पति बनाया था दोस्त नहीं। एक अच्छे, ईमानदार पति तो तुम मेरे बन नहीं सके, मुझसे दोस्ती क्या खाक निभाओगे। मुझे तुम जैसे दोस्त की जरूरत नहीं है। अपना ख्याल मैं खुद रख सकती हूं।" विवेक की यह बात नयना को नागवार लगी और वह बिफर पड़ी।

"पति पत्नी के रिश्ते की तो शुरुआत ही गांठ से होती है बेटा। अगर तू थोड़ी सी समझदारी दिखाए तो तेरे रिश्ते की डोर भी सुलझ ही जाएगी। घर की इज्जत औरत के हाथ होती है और हर औरत अपने घर की इज्जत बनाए रखने के लिए बड़े से बड़ा त्याग कर देती है, बड़े बड़ा समझौता कर लेती है, फिर यह तो बहुत छोटी सी बात है। जीवन और विवाह को लेकर मेरा अनुभव तुमसे कहीं ज्यादा है और उसी अनुभव के आधार पर कह रही हूं, ना तो विवेक उस परदेस में ज्यादा दिन रह पाएगा और ना ही वो फिरंगन ही इसे ज्यादा दिन अपने रूप जाल में बांध कर रख पाएगी। अभी यह एक भ्रम में जी रहा है, पर बेटा जिस दिन इसका यह भ्रम टूटेगा उस दिन ये लौट कर अपने परिवार के पास ही तो आएगा ना। बस कुछ दिन सब्र रख ले हमारे साथ रह ले। क्या हम तुम्हारे लिए हम कोई मायने नहीं रखते?" मां ने कहा, उनकी आंखों में भी नमी थी।

"रखते हैं मां, शायद आप सब मेरे लिए विवेक से ज्यादा मायने रखते हैं तभी तो अब तक यहां हूं, चाचा के साथ नहीं गई। पर मेरा आत्मसम्मान भी मेरे लिए मायने रखता है। मुझसे जितना हो सका मैंने निभाया, पर अब और नहीं होगा मुझसे। अगर विवेक की बजाए ऐसी ही कोई भूल मैंने की होती तो विवेक मुझे माफ कर पाता या आप विवेक से भी यही सब कह पातीं जो आपने मुझसे कहा या फिर आप खुद भी कभी मुझे माफ कर पातीं। शायद यह सवाल ही बेमानी है क्योंकि इसका जवाब मैं भी जानती हूं और आप भी। मैंने यह फैसला बहुत सोच समझ कर लिया है और अब मेरा यह फैसला नहीं बदलेगा। कल मीनू की विदाई होते ही मैं भी चली जाऊंगी।"

मीनू की विदाई के बाद अपने ससुराल में अपना आखिरी फर्ज़ निभा कर नयना भी विदा हो गई। इस बार उसे किसी ने नहीं रोका। नयना के कदम उस घर की ज़मीन छोड़ रहे थे या उस घर की ज़मीन ने ही नयना का साथ छोड़ दिया था पता नहीं। जाने क्या हुआ कि घर की दहलीज़ तक पहुंचते पहुंचते नयना के चारों ओर एक शून्य सा घिर आया, उसे चक्कर सा आ गया। वह गिरती उससे पहले ही दो मज़बूत हाथों ने उसे थाम लिया। बंद होती पलकों में भी नयना ने जान लिया कि उसे थामने वाला कोई और नहीं चिंटू था, नहीं चिंटू नहीं आई.ए.एस. चैतन्य सुरेश। अब चिंटू कोई छोटा बच्चा नहीं बल्कि एक सजीला और कामयाब नौजवान था जो अपनी बहन को संभालने में हर तरह से सक्षम था। चिंटू ने नयना को गोद में उठा लिया और कार की ओर बढ़ गया, नयना चिंटू के कंधे पर सर रख कर आंखें बंद कर लीं।

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