डोर – रिश्तों का बंधन
(10)
अगले दिन नयना और चिंटू सुबह सुबह ही पूर्वी की मोसी के घर जनकपुरी पहुंच गए। बस चाय के साथ बिस्कुट ही लिए थे दोनों ने, शनिवार को लीलाधर की छुट्टी रहती है, नयना ने तो बोला भी था ब्रेक फास्ट वह बना लेगी पर चिंटू कहने लगा, 'पूर्वी को भी साथ ले लेते हैं फिर किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में ही कुछ खा लेंगे, चल आज तेरी पार्टी करवाता हूं, तू भी क्या याद करेगी कितना दिलदार है तेरा भाई।' पर इसकी तो नौबत ही नहीं आई पूर्वी की मोसी के घर उन दोनों की जम कर खातिरदारी हुई। चिंटू शायद पहले भी यहां आ चुका था इसलिए उसे सब जानते थे। जान तो नयना को भी गए थे जब जया मोसी ने अपनी बहन के समक्ष मां का जिक्र किया, पूर्वी की मोसी नयना के साथ भी बहुत प्रेम और अपनत्व से भरा व्यवहार कर रही थीं उनके पास भी नयना के बचपन की ढेरों बातें थीं जिन्हें सुन कर चिंटू पेट पकड़ कर हंस रहा था, पर नयना को उन मोसीजी से जुड़ी एक भी बात याद नहीं आ रही थी शायद इसीलिए वह उनके साथ उस तरह की नज़दीकी महसूस नहीं कर पा रही थी जितनी जया मोसी के साथ करती आई थी। खूब अच्छे से पेट भर नाश्ता कर वो लोग पूर्वी को साथ ले बाजार निकल गए।
शनिवार और इतवार दोनों दिन इधर से उधर, एक मॉल से दूसरे मॉल घूमने में निकल गए। उन लोगों ने बहुत सारी शॉपिंग की, सिर्फ चिंटू की शेरवानी सलेक्ट करने में ही उन्हें आधा दिन लग गया। क्योंकि पूर्वी को जो शेरवानी पसंद थी वह चिंटू को नहीं जंच रही थी और चिंटू की पसंद की शेरवानी पूर्वी और नयना को पसंद नहीं आ रही थी। आखिर काफी बहस के बाद पूर्वी की पसंद पर समझौता हो ही गया। चिंटू और पूर्वी ने नयना के बहुत मना करने के बाद भी उसके लिए भी तीन अलग अलग फंक्शन के लिए अलग अलग ड्रैसेज़ खरीद ली थीं। नयना सिर्फ एक दिन पहनने के लिए महंगे कपड़े खरीदने के पक्ष में नहीं थी पर उसकी ना चिंटू ने सुनी और ना ही पूर्वी ने।
दोपहर होने आई थी और उन लोगों को ज़ोरों की भूख भी लग आई थी। चिंटू उन दोनों को एक रेस्टोरेंट में लेकर आया जहां सबने मिल कर छक कर खाना खाया। रेस्टोरेंट की कुर्सी पर पीछे सर टिकाए नयना सोच रही थी कैसा अजीब शहर है, रेड लाइट, ग्रीन लाइट के इशारे पर दौड़ता- हांफता, कभी नयना खुद भी यहां आना चाहती थी। अगर किस्मत साथ दे देती तो शायद आ भी जाती और तब शायद उसे भी यहां के नियमों की आदत होती और तब उसे ट्रैफिक और इंसानों की भीड़ को खुद पर झेलती इन सड़कों को क्रॉस करने के लिए चिंटू का हाथ थामने की जरूरत भी नहीं पड़ती। "नयना दीदी! सो गए?" पूर्वी की आवाज सुन नयना ने आंखें खोलीं। चिंटू और पूर्वी उसी की ओर देख कर मुस्कुरा रहे थे।
"कुछ खाने के लिए ऑर्डर करें?" कहते हुए उसने वेटर की ओर देखा तो बुरी तरह चौंक गई। किस्मत ने भी कैसा अजीब खेल खेला था इस इंसान के साथ कभी आसमान से ख्वाहिशों के तारे तोड़ने निकला था पर आज किसी बाग में खड़े पेड़ से अमरूद तोड़ने लायक भी नहीं बचा था। विवेक को वेटर के रूप में खड़ा देख नयना ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। पूर्वी उसकी मनःस्थिति समझ रही थी इसलिए नयना का ऑर्डर भी उसी ने दे दिया। जब तक वो लोग रेस्टोरेंट में बैठे रहे विवेक किसी ना किसी बहाने से उनके आसपास अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने की कोशिश करता रहा पर उन लोगों ने उसकी मौजूदगी को पूरी तरह से नकार दिया। उन लोगों ने अपना खाना खत्म किया तो वेटर बिल ले आया। बिल पे कर चिंटू और पूर्वी तो कुर्सी से उठ गए मगर नयना नहीं उठ पाई, विवेक पहले की तरह साधिकार कुर्सी पर हाथ धरे खड़ा था। "दूर हटो!" चिंटू ने उसे घूर कर देखते हुए गुस्से में झिड़का तो वह सकपका कर एक तरफ हो गया और नयना निर्विकार भाव से उसकी बगल से निकल गई।
शॉपिंग का काम खत्म कर वो लोग वापस घर की ओर चल पड़े। वापसी में नयना मौन थी, कुछ थकी सी, उदास सी। पूर्वी को उसके घर छोड़ कर नयना को ले चिंटू अपने घर आ गया। रास्ते में उसने खाना भी पैक करवा लिया, दोनों भाई-बहन ने मिल कर खाना खाया और सीधा बिस्तर में घुस गए। दिनभर की थकान थी और अगले दिन घर जाना था, लंबा सफर करना था इसलिए जल्दी ही सो भी गए। चिंटू को इस वक्त खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसने वही रेस्टोरेंट ही क्यों चुना, गुस्सा तो उसे विवेक पर भी बहुत आ आया था, उसकी हिमाकत देख कर चिंटू का मन किया वह एक पंच मार कर उसका मुंह तोड़ दे पर क्या फायदा इससे विवेक का ही मकसद पूरा होता और कुछ नहीं इसीलिए चुप रह गया पर अब नयना का मूड देख कर उसे समझ आ रहा था कि दो दिन पहले की उसकी मेहनत पर पानी फिर चुका था।
शादी की शॉपिंग करके सामान से लदे फदे चिंटू और नयना जब अपने घर पहुंचे तो शांति बुआ ने उनका स्वागत किया। शांति बुआ को देख कर नयना सोच रही थी शुक्र है पूर्वी इस बार उनके साथ नहीं आई वरना शांति बुआ तो उसकी क्लास ही लगा देतीं, उन्हें लड़का लड़की का विवाह से पूर्व यूं मिलना जुलना पसंद नहीं आता। चिंटू ने तो बहुत कहा था उन लोगों को घर आने के लिए पर जया मोसी ने ही मना कर दिया। चिंटू तो दौड़ कर बुआ के गले लग गया पर नयना थोड़ा सकपका कर पीछे ही रह गई। कुछ देर बाद बुआ ने खुद ही आगे बढ़ कर नयना को प्यार से अपने पास बुला लिया। इस बार आश्चर्यजनक रूप से शांति बुआ कुछ शांत थीं। रौब दाब दिखाने की बजाए सबके साथ प्यार से पेश आ रही थीं, खुश भी बहुत थीं। होती भी क्यों नहीं आखिर लाडले इकलौते भतीजे की शादी जो थी। मगर नयना थोड़ा संभल कर ही रह रही थी, वह बुआ से ज़रा दूरी बना कर ही रखती, कौन जाने कब बुआ का मूड खराब हो जाए और नयना की मुसीबत हो जाए। पर वो कहते हैं ना बकरे की मां कब तक खैर मना सकती है आखिर तो उसकी नियति शेर का शिकार बनने की ही होती है। नयना के साथ भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ उसे भी बुआ के सवालों का सामना करना ही पड़ा।
विवाह के दोनों पक्षों के सभी अहम फंक्शन यहीं होने थे। चाचा ने घर से कुछ ही दूर मैरिज पैलेस और उसके पास का ही होटल शादी के लिए बुक कर लिया था। दोपहर तक प्रकाश मोसाजी भी परिवार सहित पहुंच जाने वाले थे। चाचा फूफाजी और राहुल जीजाजी के साथ उन लोगों का स्वागत करने होटल गए थे। सभी बहनें और बाकी जीजा अगले दिन होने वाली चिंटू की हल्दी की तैयारी करने के साथ साथ चिंटू के साथ हंसी मज़ाक कर रहे थे। चाचा फूफाजी की नाराज़गी के डर से चिंटू को साथ नहीं लेकर गए थे और सब इसी बात को पकड़ कर उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। आज खुशी रोए जा रही थी, रिन्नी दीदी ने बताया उसे रात से बुखार है शायद इसीलिए कुछ बेचेन सी थी, ऊपर से यह शोरगुल भी उसे परेशान कर रहा था। इस हंगामे से तो नयना को भी घुटन सी हो रही थी, यह शोरगुल और रस्में उसे अपने अतीत की याद दिला रही थीं। वह खुशी को ले कर अपने कमरे में आ गई और उसे सुलाने की कोशिश करने लगी पर कमरे में आ कर खुशी इतनी खुश हुई कि सोने की बजाए खेलने लगी। "बदमाश! बाहर तो रो रही थी और अब यहां आ कर खेलने लगी।" नयना ने उसके गाल सहला दिए। वह खुशी से बातें कर रही थी कि तभी बुआ भी वहां आ गई। "क्या कर रही है नन्नी?"
"कुछ नहीं बुआ मैं तो खुशी को सुलाने लाई थी पर यह तो यहां आकर खेलने लगी।" नयना ने खुशी को अपनी बाहों में झुलाते हुए कहा।
"बड़ी प्यारी बच्ची है, पर इसकी देखभाल तो रिन्नी को करनी चाहिए ना, आखिर दीपक उसी का तो रिश्तेदार है, तू क्यों परेशान हुई जा रही है?"
"क्योंकि खुशी मेरी फ्रेंड है और हमें साथ में खेलना अच्छा लगता है, है ना खुशी।"
"पर इसे दोस्त की नहीं मां की जरूरत है।" बुआ वहीं बैड पर बैठ गई। बुआ क्या कहना चाहती हैं नयना समझ रही थी, इस तरह की बातों से नयना को बड़ी कोफ्त होती थी, उस दिन चिंटू और आज बुआ, जाने क्यों सबकी सुई एक जगह पर ही अटक कर रह गई है। नयना साफ साफ कह देना चाहती थी बुआ से कि, 'मैं जानती हूं खुशी को मां की जरूरत है पर मैं कहां से उसे मां ला कर दूं? ना तो मैं खुशी की मां हूं और ना ही मुझे कोई शौक है उसकी मां बनने का।' पर उसे डर था कहीं उसकी बातों को बुआ बदतमीजी समझ कर नाराज़ ही ना हो जाएं, खामखां सबका मूड खराब हो जाएगा, इसीलिए उसने बाहर काम का बहाना बना कर वहां से उठने की कोशिश भी की, पर बुआ ने उसे उठने नहीं दिया।
"मैं सही कह रही हूं बेटा, दीपक से शादी करके इस बच्ची को अपना ले देखना तुझे बहुत सुख मिलेगा। ये समाजसेवा में तुझे जो सुकून मिलता है ना उससे भी ज्यादा सुकून तुझे खुशी को पालने में मिलेगा क्योंकि एक बच्ची का जीवन संवारने से बड़ा पुण्य और दूसरा नहीं हो सकता। तू चाहे तो इसका जीवन संवार सकती है क्योंकि यह तो तू भी जानती है कि पत्नि तो दीपक को एक से बढ़ कर मिल जाएंगी पर उनमें से खुशी की मां शायद ही कोई बन सके। मैं जानती हूं तू क्या कहेगी, 'बुआ स्त्री जीवन की पूर्णता विवाह में ही क्यों है?' किसने कहा तुझसे कि मात्र स्त्री की ही पूर्णता विवाह में है, मैं तो कहती हूं पुरूष भी स्त्री के बिना उतना ही अधूरा है। अगर ऐसा ना होता तो विवेक की मां अपने दिल में तुझसे सुलह की उम्मीद लिए मेरे घर के चक्कर ना काटती और यह ना कहती कि उसके बेटे ने कांच की चकाचौंध में पड़ कर हीरा खो दिया। और दीपक अपनी बेटी की सार संभाल के लिए रिश्तेदारों का मुंह ना जोहता। सच तो यह है नन्नी कि मानव जीवन रिश्तों की एक श्रंखला है जिसकी हर कड़ी अपने आप में महत्वपूर्ण भी है, पूर्ण भी, और दूसरी कड़ी के बिना अपूर्ण भी।"
"आज तुझे कोई कमी नहीं, तेरे पास हम सब हैं, पर हम बूढ़े हैं कगार के पेड़ हैं, हम कब तक तेरा साथ निभा पाएंगे पता नहीं और बिटिया भाई बहनों की तो अपनी ज़िन्दगी होती है, अपनी व्यस्तता में वो लोग तेरे लिए कितना समय निकाल पाएंगे बता? एक हमदर्द, एक साथी जिसके साथ अपना हर दुख बांटा जा सके, की जरूरत सबको होती है और हमेशा रहती है। अगर तुझे मेरी बात पर विश्वास ना हो तो कभी अपनी मां की आंखों में झांक कर देखना, कितनी उदासी है भाभी की आंखों में, सब तो हैं उनके साथ बस एक भाईसाहब के सिवाय फिर भी कैसा सूनापन है उनके जीवन में। हम सब तेरे अपने हैं, तुझसे प्यार करते हैं इसीलिए तुझे इस अकेलेपन से बचाना चाहते हैं इसीलिए कहते हैं मान जा अपनी जिद छोड़ दे।"
"एक साथी था तो सही बुआ, उसने कितना साथ निभाया मेरा? जानते बूझते एक ही तरह की चोट बार बार खाने का क्या औचित्य?" नयना तड़प कर कह उठी।
"हर इंसान बुरा ही हो जरूरी तो नहीं। सबको एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है? अब मुझे ही देख ले मेरी बड़ी बहू से मेरी ज़रा भी नहीं बनी, ना उसे मैं पसंद आई और ना मुझे वो। वह आज़ाद ख्याल लड़की है जिसे सिर्फ पति से मतलब है, ससुराल के बाकी किसी सदस्य से उसे कोई लेना देना नहीं। मेरा बेटा भी उसी की भाषा बोलने लगा और धीरे धीरे यह हालात हो गए कि एक घर में रह कर एक दूसरे से निभाना हम दोनों ही पक्षों के लिए ही कठिन हो गया और उन लोगों ने अपनी गृहस्थी अलग बसा ली। तो क्या मैं सारी लड़कियों को एक ही नज़र से देखती? छोटे बेटे का ब्याह सिर्फ इसलिए ना करती कि एक बार धोखा खा चुकी अब बार बार नहीं सह सकती? नहीं हमने अपने छोटे बेटे का घर भी बसाया और अब बहू के साथ अच्छे से निभा भी रहे हैं। कुछ वह झुकी कुछ हमने अपनी पुरानी गलतियों से सीखा। रिन्नी ही बता रही थी कि एक लड़की ने दीपक से शादी करने के लिए खुशी को किसी और को गोद देने की शर्त रखी थी। वो तो दीपक ने उस लड़की से विवाह करने से मना कर दिया वरना रिन्नी और राहुल ने तो खुशी को गोद लेने के बारे में गंभीरता से सोचना भी शुरू कर दिया था। एक तो वो हृदयहीन लड़की और एक तू जो इस बच्ची की ज़रा सी तकलीफ से भी कांप जाती है। ना तेरा इससे कोई रिश्ता ना उसका, पर तुम दोनों को क्या एक ही पलड़े में रखा जा सकता है?"
"नन्नी मेरे पास तेरी तरह ऊंची ऊंची डिग्रियां तो नहीं है पर जीवन का अनुभव अच्छा खासा है और उसी अनुभव के आधार पर कह रही हूं दीपक दिल का बहुत अच्छा है, उसका हाथ थाम ले बच्चे वह तुझे बहुत खुश रखेगा। फिर रिन्नी भी तो है वहां, वह तेरे साथ कुछ गलत कैसे होने देगी। हमारी खुशी के लिए ही सही मेरी बात मान ले बिटिया।"
"नहीं दीदी अब नयना किसी और की खुशी के लिए कोई समझौता नहीं करेगी। बहुत समझौते कर चुकी है यह, अब और नहीं। अब यह वो करेगी जो भी इसका दिल कहेगा, और सिर्फ अपनी खुशी के लिए करेगी और मैं इसके हर फैसले में इसका साथ दूंगा।" सुरेश चाचा होटल से वापस आ गए थे और उन्होंने बुआ की बातें भी सुन ली थीं।
"सुरेश तुम लड़की को समझाने से तो गए और उल्टा उसे बढ़ावा दिए जा रहे हो।" शांति बुआ अपनी बात कटते देख नाराज़ हो गई थीं।
"पापा सही कह रहे हैं बुआजी, शादी जैसा अहम फैसला यूं जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता, हमें नयना और दीपक दोनों को सोचने एक दूसरे को समझने का वक्त देना होगा। हमने इन दोनों के सामने अपनी इच्छा रख दी है अब आगे इन दोनों पर छोड़ देते हैं। ऐसा करते हैं चिंटू की शादी के बाद इस मुद्दे पर बात करते हैं, लेकिन हां मैं यह जरूर कहना चाहता हूं कि नयना और दीपक दोनों जो भी फैसला लेंगे हमें उसका सम्मान करना होगा, क्योंकि ये दोनों ही परिपक्व और समझदार हैं और सही फैसला लेने में सक्षम भी।" राहुल ने बात संभालने की कोशिश की। नयना ने राहत की सांस ली कि चलो कुछ दिन तो बात टली आगे की आगे देखो जाएगी, वह खुशी को गोद में उठा कमरे से बाहर हो गई।
नयना का दिल भारी हो रहा था, उसका मन कर रहा था घर में कोई सूना सा कोना ढ़ूंढ़ कर जी भर रो ले पर शादी की रौनक भरे इस घर में उसे रोने को जगह कहां मिलती। पता नहीं क्यों सब एक ही बात पर अटक कर रह गए हैं, कभी चिंटू और कभी बुआ, हर वक्त बस एक ही बात सुन सुन कर कान पक गए नयना के। जैसे कि उसका ब्याह ना हुआ तो दुनिया ही सूनी हो जाएगी, ऊपर से वक्त भी ऐसा चुना है बात करने के लिए कि जब वह सिर्फ हंसते रहना चाहती है, पर कोई हंसने दे तब तो? सब उसके जख्म कुरेदने में लगे हैं। क्यों नहीं समझते ये लोग कि वह कोई रबड़ की गुड़िया नहीं है जिसे जैसे चाहे उछाल दो, उसके साथ जैसे चाहे खेलो, एक जीती जागती इंसान है वह, उसे भी तकलीफ होती है।
पर शायद उसका दर्द समझने वाला कोई है ही नहीं, सबको बस अपनी ही पड़ी है। उस दिन जब रेस्टोरेंट में अचानक विवेक उसकी आंखों के सामने आया और बार बार आता ही रहा तो नयना के दिल पर क्या बीती यह उसने भी कहां सोचा होगा। विवेक का उस दिन का स्पर्श आज भी चुभ रहा है नयना को, उस दिन उसका दिल कर रहा था वह विवेक का कॉलर पकड़ कर उसे झंझोड़ डाले और पूछे उससे 'जब एक बार निकल गए हो मेरी ज़िंदगी से, तो क्यों आ जाते हो झांकने बार बार? जब सारे रिश्ते तोड़ ही चुके हो मुझसे तो क्यों मेरे झील से शांत जीवन में कंकर मार कर ऐसी अशांति फैला देते हो कि मुझे कई कई दिन लग जाते हैं फिर से खुद को संभालने में?' पर नहीं वह कहां निकला था? निकली तो नयना थी विवेक की ज़िंदगी से, विवेक तो हमेशा उसका अच्छा दोस्त बने रहना चाहता था और शायद इसी हक से उसके सामने आता भी था बार बार।
"नन्नी, आ मेरे साथ स्टोर रूम में, हम मिल कर मेहमानों को देने वाले मिठाई के डब्बे पैक कर लें।" मां ने कहा तो नयना यंत्रवत सी उनके पीछे चल दी। स्टोर रूम में जाकर मां ने उसकी पीठ पर हाथ फेर दिया, जाने क्या था मां के उस स्पर्श में कि नयना की आंखें बह चलीं और फिर जितनी देर में मेहमानों के लिए मिठाई पैक हुई उतनी देर में नयना के दिल में धधक रहा लावा भी शांत हो गया। शायद मां उसके दिल का हाल समझ रही थीं इसीलिए उसे यहां लाई थीं। "नन्नी! बुआ तुझसे बहुत प्यार करती है बेटा, उन्हें फिक्र होती है तेरी इसीलिए बार बार तेरी शादी की बात उठाती रहती हैं। जो भी उन्होंने कहा तेरे भले के लिए ही कहा, बुआ ज़बान से चाहे कितना भी कड़वा बोलें पर दिल की साफ हैं जो उनके दिल में है वही उनकी ज़बान पर भी आ जाता है। उनकी बातों का बुरा नहीं मानते, चाचा ने कहा है ना कोई तुझ पर दबाव नहीं डालेगा वही होगा जो तू चाहेगी। उदास मत हो बच्चे जा जा कर मुंह हाथ धो ले, तुझे उदास देख कर चिंटू भी उदास हो जाएगा, जानती है ना।" नयना उठ कर वॉशरूम में चली गई और मुंह धो कर चेहरे पर मुस्कान का मेकअप लगा बाहर सबके बीच आ बैठी।
चिंटू की शादी की हर रस्म मस्ती से भरपूर रही, सुबह हल्दी की रस्म में सबने मिल कर चिंटू को सर से लेकर पैर तक हल्दी से सराबोर कर दिया। बेचारा चिंटू तो 'छोड़ दो अब बस करो की गुहार लगाते लगाते थक गया पर उसकी किसी ने एक नहीं सुनी। घर में बहन जीजा ही क्या कम थे कि ऊपर से उसके दोस्त भी आ गए दिल्ली से, उन सबके आगे बेचारा बेबस हो कर रह गया। शाम को संगीत का फंक्शन भी शानदार रहा। चाचा को तो कोई तैयारी करनी ही नहीं पड़ी, चिंटू के दोस्तों ने सब संभाल लिया, उन्होंने बहुत खूबसूरत तरीके से संगीत का इंतज़ाम किया, बिल्कुल अपने और चिंटू के स्तर के अनुरूप। हॉल की सजावट से लेकर भोजन तक हर इंतज़ाम काबिले तारीफ था। फूलों और लाइट्स की सजावट तो देखते ही बनती थी। सामने एक मंच था और नीचे सबके बैठने के लिए कुर्सियां लगी थीं।
सब बनठन कर नीयत समय पर होटल पहुंच गए। चिंटू आसमानी रंग पाजामे कुर्ते और जैकेट में जच रहा था, नयना का मन कर रहा था कोई चिंटू की बलैया लेले कि उसके भाई को किसी की नज़र ना लगे। कम तो आज नयना भी नहीं थी लग रही थी, वह भी आसमानी रंग के सलवार कुर्ते में थी। संगीत की कलर थीम स्काई ब्लू रखी गई थी इसलिए सबने आसमानी रंग के लिबास ही पहने हुए थे। चाचा चाची भी बहुत खूबसूरत लग रहे थे, लगते भी क्यों नहीं आखिर दिल की खुशी चेहरे से जो झलक रही थी। अब सबको पूर्वी का इंतज़ार था। राहुल ने फोन कर पूछा वो लोग होटल से तो निकल गए थे बस किसी भी समय पहुंचने वाले थे। आखिर पूर्वी भी आ ही गई, जैसे ही वह कार से उतरी उसके ऊपर गुलाब की पंखुड़ियों की बरसात होने लगी, आसमानी रंग के लहंगे में वह भी बिल्कुल परी जैसी लग रही थी जो होले होले गुलाब की पंखड़ियों पर पैर धरती हुई चिंटू के जीवन में बहार बनकर खुशियां बिखेरने आ रही थी। पूर्वी जब चिंटू की बगल में आकर खड़ी हुई तो शांति बुआ ने उन दोनों की बलैया ले ली और बोली, "कैसी प्यारी जोड़ी है, किसी की नज़र ना लगे।" नयना अपनी यह इच्छा भी पूरी होते देख मुस्कुरा दी।
राहुल के साथ दीपक और खुशी भी आए थे। खुशी फ्रिल वाली फ्रॉक में बहुत प्यारी लग रही थी, नयना का मन किया उसे गोद में लेकर चूम ले पर डर गई कहीं बुआ शादी की बात को लेकर फिर से शुरू ना हो जाएं जैसे मेंहदी में शुरू हो गई थीं। नयना रिन्नी दीदी को मेंहदी लगा रही थी तब बुआ बोलीं, "अरे वाह दोनों बहनें एकसाथ कितनी सुंदर लग रही हैं, इन्हें देवारानी जेठानी बना दो कि घर में हमेशा इतना ही प्यार बरसता रहे। पर रिन्नी जेठानी बन कर हमारी नन्नी पर रौब मत जमाना।"
"मुझे क्या अपनी शामत बुलानी है इस पर रौब जमा कर बुआ, आप अपने भतीजे को जानती है ना, वह अपनी नन्नी दीदी का सबसे बड़ा रक्षक है उसके रहते उसकी नन्नी दीदी पर कोई रौब नहीं जमा सकता, क्यों नन्नी है ना।" नयना उन दोनों की बातें सुन कर मुस्कुरा दी पर उसने कुछ कहा नहीं बस सोचने लगी, 'काश कोई बुआ को समझाए कि कोई बात चाहे कितनी भी फायदेमंद हो पर अगर बार बार दोहराई जाए तो चिढ़ ही पैदा करती है।' उनका यूं बार बार शादी की बात करना नयना के दिमाग में भी खीज ही भर रहा था।
नयना के दोनों छोटे जीजा हॉल में दीपक को घेर कर खड़े हो गए, "हां तो दीपक बाबू सुना है आप हमारे साढ़ू भाई बनने की फिराक में हैं?" मंझले जीजाजी ने कहा।
"जी अभी तो सोच विचार चल रहा है यदि मन बन गया तो आपको खबर हो जाएगी।" दीपक ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
"अरे ऐसे कैसे, बिना जांच पड़ताल के लड़की थोड़े ही दे देंगे हम, पहले आपकी परीक्षा तो लेलें। क्यों भाईसाहब ठीक कह रहा हूं ना?" छोटे जीजाजी ने कहा।
"बिल्कुल परीक्षा तो हम जरूर लेंगे पर क्या?"
"ऐसा है कि अपने चैतन्यजी के विवाह का संगीत समारोह है तो क्यों ना इनसे कोई अच्छा सा नृत्य मतलब डांस करवा लिया जाए।"
"बचा लो राहुल भैया।" दीपक ने उन दोनों से बचने के लिए राहुल से गुहार लगाई। "बुरे फंसे दीपक ये दोनों आज तुम्हें नहीं छोड़ेंगे।" राहुल हंस दिया।
"नहीं जीजाजी दीपक भैया की परीक्षा मैं लूंगा।" चिंटू उन लोगों के करीब आता हुआ बोला।
"पर सीनियर तो हम हैं।"
"होंगे, दिन तो आज मेरा है तो मेरी चलेगी। दीपक भैया मुझे अभी नहीं पता शादी को लेकर आपका और नन्नी दीदी का क्या फैसला होगा, सारी दुनिया एक तरफ पर मैं नन्नी दीदी के हर फैसले का समर्थन करूंगा। पर फिर भी मैं आज आपसे एक वादा चाहता हूं अगर नन्नी दीदी इस शादी के लिए हां करती है तो आप उसे हमेशा खुश रखोगे। मेरी सभी बहनें मुझे बहुत प्यारी हैं पर नन्नी दीदी उनमें मेरे सबसे नज़दीक है, सबसे खास है, वह मेरी बहन भी है, और दोस्त भी, बचपन से लेकर आज तक जितना झगड़ा हूं उससे ज्यादा मैंने उससे प्यार किया है। मेरी नन्नी दीदी ने बहुत दुख झेले हैं अब उसे सिर्फ खुशियां ही मिलनी चाहिए। अगर कभी आपने उसे रुलाया तो मैं आपको छोड़ूंगा नहीं। मैं तो विवेक को भी सबक सिखा देता पर पापा नहीं माने उन्हें उस वक्त नन्नी दीदी को संभालना ज्यादा जरूरी लगा पर इस बार मैं किसी की भी नहीं सुनुंगा, मैं क्या कर जाऊंगा यह मुझे खुद भी नहीं पता।" चिंटू की बातें सुन दीपक ने मुस्कुराते हुए उसका कंधा थपथपा दिया। इधर चिंटू भावुक हो रहा था और इधर नयना का मन उसे कह रहा था, 'बेटा नयना लगता है तेरे घरवाले तेरा बोरिया-बिस्तर घर से लपेट कर ही मानेंगे।'
अभी उन लोगों की बातें चल ही रही थीं कि 'अटेंशन! अटेंशन! अटेंशन!' मंच की ओर से आती इस आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, सभी उस ओर देखने लगे। यह चिंटू का दोस्त अजय था 'मैं चिंटू यानी चैतन्य का बचपन का दोस्त आज आप सबका उसकी शादी के संगीत में स्वागत करता हूं। हर शुभ काम में बड़ों का आशीर्वाद जरूरी होता है और फिर हमारा प्यारा चैतन्य तो है भी अपने घर में सबका लाडला, तो क्यों ना इस संगीत सेरेमनी की शुरुआत भी बड़ों के डांस परफोर्मेंस से ही की जाए? तो मैं स्टेज पर आमंत्रित करता हूं चैतन्य की मम्मी, बड़ी मां और बुआजी को कि वो अपनी जबरदस्त डांस परफोर्मेंस से अपने बेटे को आशीर्वाद दें-"
मां शुरू में स्टेज पर आने में शर्मा रही थीं पर बुआ और चाची ने उन्हें अपने साथ खींच ही लिया। फिर तो तीनों ने पंजाबी बोलियों पर गिद्धा करके समा बांध दिया। घर की सबसे बुजुर्ग महिला शांति बुआ का जोश तो देखते ही बन रहा था। उनके डांस के बाद अजय ने चिंटू और पूर्वी को स्टेज पर आमंत्रित किया। उन दोनों ने बॉलीवुड सोंग 'ओ रे पिया, ओ रे पिया' पर बहुत गजब का डांस किया। कुछ डांस परफोर्मेंसेस और भी हुए, अजय खुद तो नाचा ही उसने बाकी सबको भी नचा दिया, यहां तक कि चाचा-चाची और प्रकाश मोसाजी-जया मोसी को भी। सोनू ने भी बहुत सुंदर डांस किया, उसे देख कर नयना को आश्चर्य हो रहा था कुछ साल पहले तक जो लड़का हर बात के लिए अपने पापा से डांट खाता रहता था आज लगभग हर काम में परफेक्ट हो गया था। सोनू का डांस खत्म होने के बाद अजय ने माइक पूर्वी के हाथों में पकड़ाते हुए कहा, "हमारी भाभी दिखने में जितनी सुंदर हैं उतनी ही गुणी भी हैं और मीठी आवाज की मालकिन भी तो एक गाना उनकी आवाज में होना ही चाहिए।" कुछ क्षणों बाद पूर्वी की मखमली आवाज हॉल में सबको मंत्रमुग्ध करने लगी-
बाबा की रानी हूं आंखों का पानी हूं
बाबा की रानी हूं आंखों का पानी हूं
बह जाना है जिसे दो पल कहानी हूं
अम्मा की बिटिया हूं आंगन की मिटिया हूं
टुकटुक निहारे जो परदेसी चिट्ठिया हूं
बस इतना ही गा पाई पूर्वी इसके आगे का गाना उसके आंसुओं ने सुनाया। उस पल प्रकाश मोसाजी, जया मोसी और सोनू भी बहुत भावुक हो उठे थे।
शादी का दिन तो और भी मज़ेदार रहा पूरा दिन की गहमागहमी के बाद शाम को वो लोग बारात सजा कर नाचते कूदते पूर्वी को ब्याहने मैरिज हॉल पहुंच गए। मैरिज हॉल के दरवाज़े पर तो चिंटू के दोस्तों ने धमाल मचा दिया, खुद तो नाचे ही घरवालों को भी पकड़ पकड़ कर अपने साथ नचाया, किसी ने भी उन्हें नाचने से नहीं रोका और अगर किसी ने कोशिश की तो उन लोगों ने उसे भी अपने साथ नचाना शुरू कर दिया। फिर वरमाला के लिए बने स्टेज की ओर आ गए, इतना नाचने के बाद भी कोई नहीं थका था सबका जोश बुलंदियों को छू रहा था। चिंटू स्टेज पर दुल्हा दुल्हन के लि रखी कुर्सी पर बैठ चुका था, अब सबको पूर्वी का इंतज़ार था। कुछ ही देर में खूबसूरत गुड़िया सी दुल्हन पूर्वी ने हॉल में प्रवेश किया। अपने दोस्तों के साथ सोनू उसे फूलों की चादर तले कुछ इस तरह सहेजे हुए था जैसे सीप मोती को सहेजे रहती है, नयना को उस पल सोनू में चिंटू की छवि दिखाई दे रही थी। दुल्हन के जोड़े में पूर्वी सच में बहुत खूबसूरत लग रही थी, अब तक तो नयना पूर्वी को ही किस्मत की धनी मान रही थी कि उसे चैतन्य जैसा कामयाब और सजीला वर मिला है पर अब पूर्वी को दुल्हन के भेस में देख उसे अहसास हो रहा था कि चिंटू भी कम तकदीर वाला नहीं था।
वरमाला के दौरान भी चिंटू के दोस्तों ने खूब हंगामा किया, वे चिंटू को झुकने ही नहीं दे रहे थे जिस कारण कुछ छोटे कद की पूर्वी चिंटू के गले में वरमाला नहीं डाल पा रही थी। नयना आगे बढ़ कर चिंटू के कान में कुछ कहने लगी, जैसे ही वह नयना की बात सुनने उसकी ओर झुका नयना ने झट पूर्वी को इशारा कर दिया और उसने चिंटू को वरमाला पहना दी। यह देख अजय चिल्लाया, "दीदी आप चैतन्य की बहन हो!"
"हां! पर पूर्वी मेरी भाभी है और मैं तुम लोगों को अपनी भाभी को तंग नहीं करने दूंगी।"
वरमाला के बाद हंसी-खुशी से खिले खिले माहौल और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच चैतन्य और पूर्वी ने हमेशा हमेशा के लिए एक दूसरे का हाथ थाम लिया। पूरी शादी के दौरान चाचा और प्रकाश मोसाजी दौड़ दौड़ कर सभी मेहमानों का व्यक्तिगत रूप से ध्यान रख रहे थे, वे दोनों मेहमानों की आवभगत में इतना खोए थे कि उन्हें अपनी डायबिटीज की बिमारी का भी ख्याल नहीं रहा। नयना चाचा और प्रकाश मोसाजी दोनों के लिए खाना ले कर जा रही थी, उन दोनों ने काफी देर से कुछ भी नहीं खाया जबकि डॉक्टर की सख्त हिदायत थी कि उन्हें थोड़ी थोड़ी देर में कुछ खाते रहना चाहिए। जब नयना बुआ के पास से निकलने लगी तो उनकी गोद में बैठी खुशी नयना की गोद में आने को मचल गई पर दोनों हाथों में प्लेट होने के कारण नयना उसे नहीं ले पाई। खुशी ने इसे अपनी अवहेलना माना और वह गुस्से में भर कर नयना पर जोर से चिल्लाई।
"हे भगवान! कितना गुस्सा करती है ये लड़की। ला नन्नी ये प्लेट्स मुझे दे और तू संभाल अपनी इस लाडली को।" माही दीदी ने नयना के हाथ से प्लेट्स लेलीं। नयना ने खुशी को गोद में लिया तो उसका गुस्सा दूर हो गया और वह खुशी के मारे किलकारी मारने लगी। "नन्नी तू माने या ना माने पर लगता है खुशी ने तो तुझे अपनी मां मान लिया है तभी तो तेरे साथ हक से झगड़ा करती है।" बुआ ने फिर अपना राग दोहरा दिया पर इस बार नयना को उनकी इस बात पर गुस्सा नहीं आया बल्कि उसके दिल में गुदगुदी सी हुई और उसने खुशी को अपनी बांहों में भींच लिया।
बिदाई के समय प्रकाश मोसाजी सुरेश चाचा के पास आए और हाथ जोड़ कर बोले, "भाईसाहब मैंने अपनी तरफ से विवाह समारोह को आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप बनाने की पूरी कोशिश की है पर फिर भी अगर कहीं कोई कमी रह गई हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं।"
"प्रकाशजी मैंने भी पांच पांच बेटियां बिदा की हैं, आज आपकी भावनाओं को मैं अच्छे से समझ सकता हूं। कुछ भी गलत नहीं है यहां सब ठीक है, आप फिक्र ना करें।" सुरेश चाचा ने प्रकाश मोसाजी के जुड़े हुए हाथ थाम लिए। पूर्वी भी अपने पापा के गले लग कर सिसक पड़ी। पूर्वी की हालत देख कर नयना और उसकी बहनों की आंखों में भी आंसू आ गए, उन्हें भी अपनी बिदाई का मंज़र याद आ रहा था। "ये बेटियां भी ना जब तक घर में रहती हैं रौनक बन कर रहती हैं पर जब बिदा होती हैं तो बाप को रुला कर ही जाती हैं," सुरेश चाचा ने प्यार से पूर्वी का सर थपक दिया। उस पल प्रकाश मोसाजी और जया मोसी ही नहीं चाचा चाची भी भावुक हो उठे थे, सोनू भी तो कितना रोया था अपनी दी के लग कर। बचपन में कितना भी झगड़ा करें भाई बहन पर बहन की बिदाई भाई की आंख में नमी ला ही देती है। नयना की आंखों के आगे अपनी बिदाई का दृश्य एक बार फिर सजीव हो उठा, वो लोग पूर्वी को बिदा करवा कर अपने घर आ गए। पूर्वी के आंसू पूरे रास्ते नहीं रुके थे, चिंटू पूरा वक्त उसका हाथ अपने हाथों में थामे रहा। घर पहुंचने तक वह बड़ी मुश्किल से सामान्य हो पाई।
नववधू के स्वागत की सभी रस्में होने के बाद नयना और गिन्नी दीदी पूर्वी को उसके कमरे में ले आईं। उन्होंने उसे दुल्हन के भारी भरकम जोड़े के स्थान पर आरामदायक साड़ी पहना दी और उसे लेटने को कह दोनों उसका जोड़ा समेटने लगीं। कुछ देर बाद उन दोनों ने पूर्वी की ओर देखा तो मुस्कुरा पड़ी, वह बेड पर अधलेटी अवस्था में सोई पड़ी थी। नयना को याद आया वह भी अपनी ससुराल में थकान के मारे यूं ही बेसुध हो कर सोई थी। गिन्नी दीदी ने पूर्वी को ठीक से सोने को कहा और फिर वो दोनों कमरे की लाइट ऑफ कर बाहर निकल आईं। बाहर हॉल में देखा चिंटू भी सोफे पर ही घोड़े बेच कर सोया पड़ा था। शादी की रस्मों के चलते कुछ भी काम ना करके भी दुल्हा दुल्हन सबसे ज्यादा थक जाते हैं। थक तो वो लोग भी गई थीं और इसीलिए जिसे जहां जगह मिली सो गई।
अगले एक दो दिन और शादी की रस्में और मस्ती चलती रही फिर एक एक कर के सब मेहमान विदा हो गए। जब बुआ भी चली गई तो एक तरफ तो नयना ने राहत की सांस ली पर वह थोड़ी दुखी भी हुई क्योंकि अगले दिन चिंटू भी पूर्वी को लेकर दिल्ली चला गया और साथ में चाचा चाची और घर की रौनक भी ले गया। अब बस घर में दो ही लोग थे नयना और मां। कुछ दिन दिल्ली बेटे बहू के साथ रह कर चाचा चाची वापस लौट आए। उनका वहां मन नहीं लगा। चिंटू तो दिल्ली पहुंचते ही अपने काम में व्यस्त हो ही गया था, पूर्वी ने भी एक लॉ फर्म में नौकरी कर ली थी।
उन दोनों के ऑफिस जाने के बाद चाचा चाची पूरा दिन घर में बोर होते ऊपर से वो लोग वहां पड़ोस में भी किसी को नहीं जानते थे, दिल्ली जैसे शहर में किसी के पास पड़ोसी से बात करने का वक्त भी कहां होता है। दरअसल हम जिस शहर, जिस परिवेश में रहने के आदि होते हैं हमारा मन भी वहीं लगता है, यह तो बस लड़कियों के वश की बात ही होती है कि वे अपने जीवन के शुरू के बीस-पच्चीस साल पितृ गृह में बिता कर विवाह के बंधन में बंध दूसरे घर चली जाती हैं और ना सिर्फ अलग परिवार वरन अलग परिवेश में भी सामंजस्य बिठ कर उसे सहज ही अपना लेती हैं। यह लड़कियों के लिए सहज इसलिए भी रहता है कि उन्हें बालपन से ही इसके लिए मानसिक रूप से तैयार कर दिया जाता है।
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