Dorr - Rishto ka Bandhan - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

डोर – रिश्तों का बंधन - 2

डोर – रिश्तों का बंधन

(2)

पीले रंग का टॉप और ब्लू जींस पहन कर नयना तमन्ना के घर पहुंची। पर गली में उसके घर की ओर मुड़ते ही उसके पैर जम गए। तमन्ना के घर के बाहर लड़कों का एक झुंड खड़ा था। नयना को समझ नहीं आ रहा था वह उन लड़कों के बीच से निकल कर घर के अंदर कैसे जाए। वह असमंजस में थी कि तभी शोभित उस झुंड से बाहर आता हुआ बोला,"अंदर चली जाओ नयना, तमन्ना तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही है।" शोभित ने अपने दोस्तों को एक तरफ हटा कर उसके भीतर जाने का रास्ता बना दिया।

शोभित को धन्यवाद दे नयना घर के भीतर चली गई। वह तमन्ना के घर पहले भी कई बार आ चुकी थी और उसके पूरे परिवार से अच्छी तरह से परिचित थी। नयना को तमन्ना की भाई के दोनों बच्चों लावन्या और ईशान को ट्यूशन पढ़ाने का काम मिल गया। नयना को शुरू में थोड़ी समस्या तो आई, हर रोज़ तमन्ना के घर आने-जाने और छोटे बच्चों को पढ़ाने में उसका समय भी बर्बाद होता था और थकान भी बहुत हो जाती थी पर वह किसी तरह मैनेज कर लेती थी।

नयना की सबसे बड़ी समस्या तो बच्चे खुद थे। दोनों बहुत शैतान थे, पढ़ने में उनका मन लगता ही नहीं था। ऊपर से वे उसे अपनी टीचर मानने को भी तैयार नहीं थे। उन दोनों के लिए तो वह आज भी उनकी तनु बुआ की सहेली थी जिसके साथ बदमाशी करना उनका हक था। पहले तो नयना को लगा वह कहां फ़स गई। यह काम उसके बस का नहीं, इससे तो स्वयं पाठी छात्रा के रूप में बी. ए. करने का चाचा का दिया विकल्प मानना शायद ज्यादा आसान रहता।

नयना की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि दोनों बच्चों को घर में सब हद से ज्यादा प्यार करते थे। कोई उन्हें टोकता ही नहीं था फिर चाहे वे कितनी भी बदमाशी क्यों ना करें। तमन्ना की मम्मी और भाभी तो उन पर हद से ज्यादा प्रेम बरसाती ही थीं उसके पाप और भैया भी बच्चे हैं कह कर हर बात को हंसी में टाल देते थे। और तो और खुद तमन्ना जो हमेशा नयना की हर बात में मदद करती थी, भी अपने भतीजा-भतीजी का ही पक्ष लेती। उन सबके इस रवैए से बच्चों को और बढ़ावा मिलता और वे नयना को और भी ज्यादा परेशान करते। अब नयना को भी समझ आ रहा था कि कोई भी टीचर इन बच्चों को ज्यादा दिन तक ट्यूशन क्यों नहीं पढ़ा पाती।

एक रोज़ नयना बच्चों को मैथ्स पढ़ा रही थी। कुछ दिन बाद उनके क्लास टैस्ट थे। सवाल महत्वपूर्ण था, टैस्ट में आ सकता था, किन्तु बच्चे थे कि नयना की बात सुन ही नहीं रहे थे। दोनों अपने ही खेल में मगन थे। नयना को उनके व्यवहार से झल्लाहट हो रही थी। उसे उस वक्त उन दोनों पर बहुत गुस्सा आ रहा था फिर भी वह खुद पर काबू रखने की भरसक कोशिश कर रही थी। क्योंकि वह अच्छे से जानती थी यदि वह बच्चों पर गुस्सा करेगी या उन्हें डा़टेगी तो वो उसकी शिकायत अपनी दादी से कर देंगे और फिर नयना ना केवल उनकी ट्यूशन बल्कि तमन्ना की दोस्ती भी खो देगी। नयना रुंआसी हो गई, उसे समझ ही नहीं आ रहा था वह क्या करे कैसे इन बच्चों को संभाले। अगर बच्चे ठीक से नहीं पढ़े और उनके नंबर कम आए तब भी तो उसे ही कसूरवार माना जाएगा। तमन्ना की भाभी तो हर बार की तरह हंस कर रह गई।

"ईशू, वनु क्या हो रहा है, क्यों मैम को परेशान कर रहे हो?ठीक से पढ़ो वरना पिटाई कर दूंगा।" बच्चे अपने शोभित चाचा की गुस्से से भरी आवाज सुनते ही दोनों बच्चे शांत हो कर पढ़ाई करने लगे यह देख कर नयना को बड़ा आश्चर्य हुआ। आज शोभित किसी काम से जल्दी घर आ गया था वरना तो वह इस समय ऑफिस में होता था। उसने अभी हाल ही में अपने भैया की तरह पापा का बिज़नेस ज्वाइन कर लिया था। यह दूसरी बार था जब शोभित ने उसकी मदद की थी। कुछ दिन पहले भी तो वह हीरो की तरह ठीक समय पर पहुँच गया था नयना की मदद करने।

उस दिन जब नयना लावन्या और ईशान को पढ़ाने तमन्ना के घर पहुंची तो आसमान में बादल छाए हुए थे और जब वह बच्चों को पढ़ा कर निकली तब तक बूंदाबांदी भी शुरू हो गई जो किसी भी समय तेज़ बरसात में बदल सकती थी।

नयना को घर पहुंचने की जल्दी थी, पर जैसे कि बड़े बुजुर्ग कहते हैं मुसीबत कभी अकेले नहीं आती, नयना के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। इधर बरसात पल पल तेज हो रही थी और उधर उसे ऑटो नहीं मिल रहा था। चाचा भी किसी आवश्यक काम से शहर से बाहर गए थे और चिंटू अभी इतना भी बड़ा नहीं था कि उसे लेने इतनी दूर अकेला आ जाता। ऊपर से शोभित का दोस्त उसके सर पर आकर खड़ा हो गया और लगा पकाने। पता नहीं इन लड़कों की क्या समस्या होती है इन्हें जैसे ही अकेली लड़की दिखाई दे जाती है इनके अंदर का मददगार जाग्रत हो जाता है।

नयना की छठी इंद्री उसे सावधान कर रही थी कि नयना कुछ भी करके जल्दी से इससे पीछा छुड़ा वरना मुसीबत में पड़ जाएगी। वह लड़का पुरजोर कोशिश कर रहा था नयना को उसके घर तक छोड़ने के लिए मनाने की। अपनी नई बाइक का रोब नयना पर झाड़ने लगा। जब नयना ने उसे सख्ती से मना किया तो वह नयना के साथ बदतमीजी करने लगा। उस वक्त नयना बहुत घबरा गई। अचानक से सामने आई इस विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए वह मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। उसने किसी मददगार की उम्मीद में इधर उधर देखा। सामने से शोभित आता दिखाई दिया, यद्यपि नयना को उम्मीद नहीं थी कि शोभित अपने मित्र के खिलाफ जाकर उसकी कोई मदद करेगा फिर भी उसने उसे जोर से आवाज दी, 'शोभित......।'

नयना की सोच के विपरीत शोभित ने अपनी बाइक रोकी और नयना को पीछे बैठने का इशारा करते हुए उस लड़के को एक बार घूर कर देखा और बाइक आगे बढ़ा दी। हालांकि शोभित ने फिल्मों के हीरो की तरह उस लड़के पर घूंसे नहीं बरसाए पर नयना को टपकती बूंदों के बीच सुरक्षित घर पहुंचा दिया। सुरेश चाचा भी घर आ गए थे और नयना की फिक्र में घर के बाहर बरसात में भीगतेे हुए चक्कर लगा रहे थे। नयना को देख उन्हें जैसे राहत सी मिली।

"धन्यवाद शोभित बेटा, आपने नयना बिटिया को घर पहुंचाया। मुझे बहुत फिक्र हो रही थी कि यह ऐसे मौसम में इतनी दूर कैसे आएगी। मैं बस उसे लेने निकल ही रहा था।"

"धन्यवाद की क्या बात है अंकल चाहे आप नयना के साथ हों या मैं मतलब तो इसके सुरक्षित घर पहुंचने से है।"

सुरेश ने शोभीत को धन्यवाद दिया तो नयना जैसे नींद से जगी वरना तो वह अब तक एक अजीब ही सम्मोहन की स्थिति में थी। उसे लगा उसे भी शोभित को धन्यवाद देना चाहिए पर वह कुछ बोलती उससे पहले ही शोभित 'टेक केयर,' कह कर निकल गया।

उस दिन के बाद नयना की ज़िन्दगी जैसे बदल सी गई। शोभित में उसे अपना दोस्त, एक मददगार दिखाई देने लगा। अब उसकी कोशिश रहती कि वह बच्चों को जब पढ़ाने जाए तो शोभित भी घर पर हो। शोभित चाचा के भय से दोनों बच्चे अब शांति से पढाई करने लगे थे। अब नयना को शोभित के आसपास रहना अच्छा लगने लगा था। उसे कोई भी समस्या होती वह बेझिझक शोभित के पास चली जाती। शोभित भी उसे निराश नहीं करता बल्कि हर संभव मदद ही करता।

इन दिनों नयना अपने भीतर एक बदलाव सा अनुभव करने लगी थी। अब

उसे शोभित की वो आदतें भी अच्छी लगने लगी थी जिनका कभी वह जम कर मज़ाक उड़ाया करती थी और तब तमन्ना भी उससे चिढ़ जाती थी कि वह उसके भाई का मज़ाक उड़ा रही है। अब तो अगर कभी तमन्ना और शोभित की बहस होती तो नयना शोभित का साथ देती थी।

नयना खुद भी संवरी संवरी सी रहने लगी थी। पहले उसे कहीं बाहर जाने से पहले तैयार होने में पांच मिनट लगते थे पर अब घर से बाहर निकलने से पहले जाने कितनी देर तक वह आईने के सामने खड़ी खुदको निहारती रहती। अब उसकी ड्रेस, हेयर पिन यहां तक कि सेंडल सब परफेक्ट होते थे। हाव-भाव में भी में भी एक नज़ाकत आ गई थी। चाची भी नयना में आए इस बदलाव को महसूस कर रही थीं। पहले तो वे खुद ही उसे कहती रहती थी, 'थोड़ा तो लड़कियों वाले लखण भी सीख ले, वरना ससुराल वाले हमें ही दोष देंगे, कहेंगे कुछ नहीं सिखाया घर वालों ने।'मगर अब वे आश्चर्यचकित भी थीं और थोड़ी चिंतित भी।

इस बीच ईशान और लावन्या के हाफ इयरली शुरू हो गए। इस बार उन दोनों ने पढ़ाई को लेकर नयना के समक्ष कोई समस्या खड़ी नहीं की। उनके पेपर उम्मीद से ज्यादा अच्छे हुए थे। और इसका परिणाम यह था कि क्लास में उनकी रैंक पहले से सुधर गई थी। इसका श्रेय रिया भाभी नयना को दे रही थी क्योंकि उन्हें लगता था, उसका बच्चों को पढ़ाने का तरीका बहुत अलग है, वह मुश्किल सबक भी बच्चों को खेल खेल में बहुत आसानी से समझा देती थी। पर नयना जानती थी यह सफलता उसकी अकेली की नहीं है अपितु इसमें शोभित के सख्त और अनुशासनप्रिय स्वभाव का योगदान भी था।

"भाभी जब नयना के कारण हमारे ईशु और लावी के इतने अच्छे मार्क्स आए हैं तो उसे हमारी तरफ से एक ट्रीट भी मिलनी चाहिए। क्यों ना आज हम इसे कहीं बाहर लंच पर ले कर चलें?"

"नहीं तमन्ना आज मेरा मन नहीं है कहीं बाहर जाने का। मेरी तबियत भी ठीक नहीं है, मैं अब घर जाऊंगी।"

"ऐसे कैसे मन नहीं है। ये बहाने ना बहुत पुराने हो चुके हैं मैडम। यह मेरा घर है और यहां मेरी चलती है और जब मैंने कहा तू हमारे साथ चल रही है मतलब चल रही है। और फिर आज तो तेरा बर्थडे है। बर्थडे को भी कोई मुंह फुला कर बैठता है क्या?"

"अरे नयना आज तुम्हारा बर्थडे है? बहुत बहुत बधाई हो, खूब खुश रहो।" तमन्ना ने जैसे ही नयना के जन्मदिन का ज़िक्र किया उसे बधाई मिलनी शुरू हो गई, आंटी अंकल और भैया भाभी सबने नयना को बधाई दी। अंकल ने जब नयना के सर पर हाथ फेरा तो उसकी आंखें भर आईं। उसे एक पल को लगा जैसे सामने तमन्ना के नहीं उसके पापा खड़े हैं। उसे कल से अपने पापा की याद भी बहुत आ रही थी। पापा हर साल उसका जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाते थे। कभी नयना को कुछ सरप्राइज़ गिफ्ट देते तो कभी उसके लिए पार्टी रखते। पार्टी में पापा नयना के ही नहीं अपने दोस्तों को भी आमंत्रित करते।

एक बार उनके मित्र ने कहा भी था, "वाह रमेश जी मज़ा आ गया। आपने क्या खूब पार्टी दी है नयना बिटिया के जन्मदिन की।"

"क्यों नहीं देंगे भई बेटियां होती ही इतनी प्यारी हैं। बेटे तो सिर्फ़ एक ही परिवार तक सीमित रहते हैं जबकि बेटियां तो दो परिवार संवार देती हैं। आप देखना एक दिन मेरी नयना कैसे मेरा नाम रोशन करती है।" पापा ने जवाब दिया। उस समय उनके मुख पर गर्व का तेज देखते ही बनता था। पापा रहे बस तब तक ही नयना ने अपना जन्मदिन मनाया, उनके जाने के बाद तो उसका आज का दिन याद रखने का भी मन नहीं करता।

"भई नयना के बर्थडे पर तो पार्टी होनी ही चाहिए। क्यों नयना?" शोभित भी अब उनकी बातों में शामिल हो गया। उसकी आवाज नयना को भी अतीत से वर्तमान में ले आई।

"वही तो भैया, पार्टी तो इसे देनी चाहिए हमें, वो तो इस कंजूस से होता नहीं, उल्टा मैं पार्टी दे रही हूं तो भी मैडम नखरे दिखा रही है।"

"चलो फिर ठीक है तुम सब बच्चे मिल कर आज घूम आओ।"

"पर आंटी! मैंने चाची से पूछा नहीं है, उन्हें चिंता हो जाएगी।" नयना ने उन लोगों से पीछा छुड़ाने की आखिरी कोशिश की।

"कोई बात नहीं बेटा उनसे मैं पूछ लूंगी।" आंटी तो जैसे उसकी हर बात की काट पहले ही तैयार किए बैठी थीं। अब नयना के पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचा था।

'ऊफ़ इस तमन्ना की बच्ची ने मुझे कहां फ़सा दिया।'

तमन्ना के भैया को कुछ काम था इसलिए वह तो उन लोगों के साथ नहीं गए पर तमन्ना के साथ साथ रिया भाभी, बच्चे और शोभित ने मिल कर उसका जन्मदिन बहुत अच्छा बना दिया। उन्होंने सबसे पहले फिल्म देखी, फिर एक रेस्टोरेंट में लंच किया। रिया भाभी ने नयना को एक ड्रेस भी गिफ्ट की। वह तो लेना ही नहीं चाहती थी पर जब तमन्ना और भाभी ने बहुत ज़ोर दिया तो उसे लेनी पड़ी।

उस दिन सबने उसका बहुत ख्याल रखा, उसे स्पेशल फ़ील करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, खासकर शोभित ने। एक बार तो वह जोर से चिल्लाई, 'शोभित बुड्ढी के बाल, बुढ्ढी के बाल,' बुढ्ढी के बाल वाला काफ़ी दूर खड़ा था, शोभित लेने जाना नहीं चाहता था पर जब नयना बच्चे की तरह मचल गई तो बेचारे को जाना ही पड़ा।,

'नयना तुम भी लावी से कम जिद्दी नहीं हो कितनी दूर तक दौड़ा दिया मुझे।' शोभित ने सबको बुढ्ढी के बाल पकड़ाते हुए शिकायती लहज़े में कहा तो नयना के साथ साथ बाकि सब भी हंस दिए। शाम को शोभित ने उसे घर छोड़ दिया।

नयना आज बहुत थक गई थी। अब उसका पढ़ने का मन नहीं था। उसने खाना खा कर थोड़ी देर चिंटू के साथ मस्ती की और फिर गुनगुनाते हुए अपने बिस्तर पर लेट गई। आज वह बहुत खुश थी, रात को वह अपने पापा की याद में जितना रोई थी, दिन में शोभित और तमन्ना ने उसे उससे कहीं ज्यादा हंसाया था।

नयना के सपने अब अपना रूप बदलने लगे थे। पहले वह किसी बड़ी कंपनी में अधिकारी बनना चाहती थी पर अब उसके सपनों में शोभित ही शोभित था। कभी कभी वह खुद भी अपने सपनों को यूं रूप बदलते देख कर आश्चर्यचकित हो जाती। उसके मन में एक अजीब सी कशमकश चलती रहती, कभी उसे उसका कैरियर बनाने का सपना अपनी ओर खींचता तो कभी शोभित का आकर्षण।

मन एक, इच्छाएं अनेक

हैं चाह अनंत

हर पल हर घड़ी

जन्म ले एक नई चाह

देती है जता

मैं हूं पहली से बड़ी

पिछली से खास

मन में मेरे

अब बस यही संत्रास

किसका करूं मैं स्वागत

किसका कर लूं आलिंगन

और किसे छोड़ कर स्वतंत्र

हो जाऊं उदास

कि मेरे मन पंछी को चाहिए

उड़ने को एक खुला सा आकाश

'अरे वाह नयना तू तो कवियित्री हो गई। कमाल हो गया। प्यार में लोग बदल जाते हैं सुना था पर तू भी बदल जाएगी ये नहीं पता था।' नयना खुद से ही कह उठी और आखिरी पंक्ति पर जाने क्यों शर्मा भी गई। क्या वह शोभित से प्यार करने लगी है? नयना के दिमाग ने उससे से प्रश्न किया।

'हां।' प्रश्न नयना से था पर जवाब उसके दिल ने दिया।

'और शोभित! क्या शोभित भी तुमसे प्यार करता है?' नयना के दिल और दिमाग के बीच आज जैसे बहस छिड़ी हुई थी।

'अब इसका क्या मतलब है? वह मेरी कितनी मदद करता है। कितना ख्याल रखता है मेरा। ये प्यार नहीं तो और क्या है।'

'पर उसने स्पष्ट तो कभी कुछ नहीं कहा नहीं।'

'स्पष्ट कहना क्या होता है। पापा ने मां से कब आई लव यू कहा या चाचा चाची से कब कहते हैं, तो क्या वो उनसे प्यार नहीं करते। फिर अनजाने ही सही कह तो गया था शोभित कि उसे नयना अच्छी लगती है। अब और क्या वह सारी दुनिया के सामने ढ़िढ़ोरा ही पीटता फिरे, वो सब करे जैसे फिल्मों में हीरो करते हैं।' नयना के दिल के पास खुद को सही साबित करने के लिए बहुतेरे तर्क थे, और आखिर उसे भी अपने दिमाग की नहीं बल्कि दिल की बात ही ज्यादा सही लगी।

नयना हर समय शोभित के विचारों में इस कदर खोई रहती कि कहीं उसका मन नहीं लगता, पढ़ने में भी नहीं। जो काम करने जाती उसकी जगह कुछ और ही कर डालती । एक दिन तो हद हो गई, चाचा ने उसे चाय बनाने को कहा और वह गैस पर तवा चढ़ा बैठी।

"क्या कर रही है नन्नी?" चाची की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ तो अपनी बेवकूफ़ी पर खुद पर ही हंस पड़ी। "नन्नी अपनी आंखों में ऐसे सपने ना सजा जो तेरे चाचा पूरे ना कर सकें। मेरी बच्ची, अगर तेरे सपने टूटे तो तुझे ही नहीं हमें भी बहुत दुख होगा।"

"क्या मतलब चाची?" नयना झेंप गई। वह समझ रही थी चाची किस बारे में बात कर रही हैं फिर भी उसने अनजान बनते हुए पूछा।

"ईश्वर ना करें तुझे कभी इस बात का मतलब समझने की जरूरत पड़े। जा तू तैयार हो जा चाय मैं बनाती हूँ। तुझे कॉलेज जाने के लिए देर हो जाएगी।" उस दिन के बाद नयना चाची से थोड़ा दूरी बना कर रखने लगी। डरती थी कहीं चाची उसकी चोरी पकड़ ना लें। डरती तो चाची भी थी यह सोच कर कि नयना अपनी हथेली में चांद समेटना चाहती है, कहीं अपना हाथ ही ना जला ले।

चाची क्या कहना चाहती थी यह नयना समझ रही थी। पर उसे लगता था चाची व्यर्थ ही चिंता कर रही हैं शोभित का पूरा परिवार कितना मान देता है नयना को। खासकर उसकी मम्मी। एक रोज़ तो वे कह भी बैठी थीं, 'कितनी प्यारी बच्ची है नयना, कितना ख्याल रखती है सबका, जिस घर में भी यह बहू बन कर जाएगी उनके तो भाग खुल जाएंगे।'

आंटी की बात सुन कर नयना ने एक बार इतरा कर शोभित की ओर देखा और फिर उसकी नज़रें शर्मा कर खुद ब खुद झुक गई। शोभित की आंखों में भी अपनी मम्मी की बात सुन कर चमक आ गई थी। उस समय शोभित के दिल में क्या था यह तो नयना समझ गई थी किंतु आंटी क्या सोच रही थी इसका अंदाज़ा नयना नहीं लगा पाई। वे शोभित और नयना दोनों को बड़े ग़ौर से देख रही थीं।

तमन्ना की मम्मी ने क्या सोच कर यह बात कही पता नहीं पर इसका असर यह हुआ कि अब नयना खुदको शोभित के परिवार का सदस्य समझने लगी थी और परिवार की एक सदस्य की तरह ही उनके हर काम में भाग लेने लगी थी। यहां तक कि जब आंटी की हार्ट सर्जरी हुई थी तब उसने तमन्ना और रिया भाभी से भी बढ़ कर उनकी सेवा की थी।

शायद नयना को भ्रम हो गया था कि शोभित की मम्मी भी उसे पसंद करती हैं और वे भी उसे अपनी बहु बनाना चाहती हैं। भ्रम! हाँ यह उसका भ्रम ही तो था, और जाने वह कब तक इस भ्रम में जीती रहती अगर रिया भाभी की बहन शिवांगी ना आई होती।

गोरी, खूबसूरत, आधुनिक फैशन डिज़ाइनर शिवांगी अपनी परीक्षा खत्म होने के बाद कुछ दिन अपनी बहन के घर रहने आई थी पर इन कुछ दिनों में ही वह नयना का सपना तोड़ कर उसे उसके जीवन की सबसे कड़वी सच्चाई समझा गई। शिवांगी शोभित पर इस तरह से हक जमाती थी कि नयना को बहुत अजीब लगता था। शोभित भी उसके इशारों पर नाच रहा था और उसके व्यवहार से नयना को जलन होने लगी थी पर फिर भी उसे विश्वास था शावांगी और उसके बीच यदि कभी चुनाव हुआ तो शोभित उसे ही चुनेगा।

"शोभित आज मुझे घर छोड़ दो।" नयना ने बड़े हक से कहा था, शायद शोभित के जीवन में अपना महत्व तोलना चाहती थी। कुछ कुछ गुरूर भी था उसके स्वर में, कि चाहे कुछ भी हो पर शोभित उसे नज़रंदाज़ नहीं करेगा और शायद यही वह शिवांगी को भी समझाना चाहती थी।

"आई एम सॉरी नयना मैं आज तुम्हारे साथ नहीं जा सकता, मैं शिवांगी के साथ बाहर जा रहा हूं, पर मैं ड्राइवर को कह देता हूं वह तुम्हें घर छोड़ देगा।" शोभित के जवाब ने नयना का दिल तोड़ दिया, उसे ड्राइवर के साथ नहीं शोभित के साथ घर जाना था। बल्कि उसे तो शिवांगी को जताना था कि शोभित सिर्फ उसका है और उसे शोभित से दूर रहना चाहिए। पर उसे तो इससे कुछ हासिल नहीं हुआ, उल्टा शोभित और शिवांगी को एकसाथ हंसते मुस्कुराते घूमने जाते देख उसकी तकलीफ और बढ़ ही गई।

जब रोज़ रोज़ की यह तकलीफ नयना के लिए बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने तमन्ना से पूछा, "यह शिवांगी शोभित को कितना परेशान करती है ना।"

"करेगी ही, हक बनता है उनका।" तमन्ना का जवाब नयना को थोड़ा अजीब लगा।

"मतलब!" उसने धड़कते दिल से पूछा।

"मतलब यह बुद्धू कि शोभित भैया की शादी तय हो गई है, बहुत जल्द शिवांगी दीदी मेरी भाभी बन कर हमेशा के लिए हमारे साथ रहने आ जाएंगी। देख तू मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड है और हमेशा मेरी मदद करती इस बार भी तुझे मेरी मदद करनी होगी........"

तमन्ना जाने क्या क्या कहती रही पर नयना को अब कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। उसके कानों में तो बस यही बात अटक गई थी कि शोभित की शादी किसी और से तय हो चुकी है, उसके जीवन में कोई आने वाली है जो बहुत खास है। शोभित के जीवन में यह स्थान नयना पाना चाहती थी पर अब उसका सपना टूट चुका है। अब उसके सुनने लायक कुछ बचा ही नहीं था। वह तो बस तमन्ना की हर बात पर सर हिलाती रही।

पता नहीं क्यों नयना समझ क्यों नहीं पाई। यह तो बहुत पहले ही तय हो गया था या शायद तय करने के लिए ही शिवांगी को यहां बुलाया गया था। कई बार इशारों इशारों में नयना को समझाने की कोशिश भी की गई थी पर वह बेवकूफ बनी रही। अंकल आंटी की शादी की 30वीं सालगिरह की पार्टी की सारी तैयारी शिवांगी की देखरेख में हुई। काम तो नयना ने हमेशा की तरह खूब किया पर इस बार श्रेय उसके नहीं शिवांगी के हिस्से आया। पार्टी में जब शोभित और शिवांगी एकसाथ डांस कर रहे थे तो वे दोनों भी एकदूसरे में खोए खोए से थे। दिल खोल कर तालियां बजाई थी सबने उनके डांस पर, शिवांगी मम्मी ने तो आगे बढ़ कर बलैया भी ले ली थी दोनों की। यह सब देख कर नयना के दिल में कहीं कुछ तड़क गया था फिर भी उसने खुशी दिखाने में कसर नहीं छोड़ी थी।

"नयना क्या बात है आजकल तुम नयना के घर नहीं जाती। कॉलेज से सीधे घर आ जाती हो। सब ठीक तो है?" चाची ने पूछा तो नयना हड़बड़ा गई।

"वो चाची, बच्चों के फ़ाइनल एग्ज़ाम हो गए और मेरे शुरू होने वाले हैं, अगर अब भी नहीं पढ़ूंगी तो फ़ेल हो जाऊंगी। बस इसीलिए।" नयना ने नज़रें चुराते हुए जवाब दिया।

"हाँ सही है। वैसे भी बच्चे इन दिनों व्यस्त भी तो होंगे, अपने चाचा की शादी में।" नयना ने चौंक कर चाची की ओर देखा, इन्हें शोभित की शादी के बारे में कैसे पता चला।

"शोभित की मां दे कर गई थी आज। बहुत खुश लग रही थी। अपनी नयना बिटिया को याद भी कर रही थी।" सामने टेबल पर पड़े शादी का कार्ड की ओर इशारा करते हुए चाची ने कहा। नयना ने अपनी चाची की ओर देखा, वे गहरी नज़रों से नयना को देख रही थी, मानो आज उसके दिल का हर राज़ जान कर ही रहेंगी। नयना के सब्र ने उस पल उसका साथ छोड़ दिया, इतने दिनों से उसके दिल में दबी घुटन आंसुओं का रूप ले कर बाहर आ गई।

,"कहा था ना तुझसे ऐसे सपने ना देख जो कभी पूरे ना हो सकें। जब सपने टूटेंगे तो तुझे भी तोड़ कर रख देंगे। तूने मेरी बात नहीं मानी। बच्चे वो बड़े लोग हैं, उनके यहां शादी ब्याह हैसियत देख कर किए जाते हैं। किसी मोहल्ले में किराने की दुकान करने वाले सुरेश की बेटी, उनकी बेटी की सहेली तो हो सकती है पर उनके घर की बहु नहीं। बहु तो वो उस शिवांगी को ही बनाएंगे जो जिसके पिता उनके बराबर की हैसियत रखते होंगे।" चाची ने उसे गले लगा लिया और उसका सर सहलाती हुई बोलीं। उस दिन तमन्ना की मां भी तो यही कहा था अपनी बहन से।

"कितनी सुंदर है तमन्ना की सहेली दीदी और देखो कैसे भाग भाग कर काम कर रही है, मैं तो सोचती हूं अगर आप शोभित की शादी में इसके माता-पिता को भी बुला लें तो मैं अपने रजत के लिए इसका हाथ मांग लूं। रजत को भी लड़की पसंद है।" शोभित की मासी ने नयना को देख कर अपनी कहा।

"हां राधा सारे गुण हैं इसमें, पर फिर भी मैं तुझे यह सलाह नहीं दूंगी। शादी ब्याह तो बराबर वालों से ही भले लगते हैं। रजत तो अभी बच्चा है, उसे दुनियादारी की समझ ही कहां है। ये सब तो हमें ही समझना है और इन्हें समझाना भी है। बाकी तुम्हारी इच्छा।" मतलब उसके और शोभित के दिल की बात जानती थी आंटी और उन्होंने ही शोभित बड़े तरीके से दूर किया है। उस दिन उनकी आंखों में क्या था नयना आज समझी थी।

अगर नयना ने उस दिन शोभित की मां और मोसी की बातें ना सुनी होतीं तो कम से कम वह इस मुगालते में तो रहती कि शोभित और उसके परिवार का क्या कसूर, वे तो अवगत ही नहीं थे नयना की भावनाओं से। यहां तक कि वह तो अपनी दोस्त तमन्ना से भी इस बारे में कभी कुछ नहीं कह पाई। पर अब तो उसका यह भ्रम भी टूट गया। आंटी सब जानती थीं और उन्होंने सब जानते बूझते हुए भी शावांगी और शोभित के रिश्ते को स्वीकृती दी बल्कि सच कहें तो उन्होंने ही इस रिश्ते को बढ़ावा दिया। पर वह किसी और को क्या दोष दे जब शोभित भी उसका नहीं हो सका तो किसी और से क्या उम्मीद रखती। शोभित ने भी तो अपने दोस्त प्रणव को लगभग यही जवाब दिया था जब उसने शोभित से नयना को लेकर सवाल किया था।

"शोभित यार! ये क्या कर रहा है तू अपने साथ? क्यों अपने साथ साथ नयना और शिवांगी की ज़िन्दगी भी बर्बाद कर रहा है? अब भी वक्त है शोभित, मेरी बात मान ले, शिवांगी को नयना के बारे में सब कुछ बता दे। वो खुद ही शादी से मना कर देगी।" प्रणव शोभित को समझा रहा था। एक प्रणव ही तो था जो नयना और शोभित की मित्रता के अलग आयाम पर पहुंचने का मूक साक्षी था।

"नहीं मैं यह नहीं कर सकता। अगर शिवांगी को मैंने नयना के बारे में बताया तो उसका दिल टूट जाएगा।"

"और नयना का क्या? तू किसी और से शादी कर लेगा तो उसका दिल नहीं टूटेगा।"

मैंने नयना से कोई कमिटमेंट तो नहीं किया था, वो मुझे अच्छी दोस्त थी बस।"

"नयना तुम्हारी दोस्त थी बस! सिर्फ दोस्त।।"

"चलो ठीक है, मान लेता हूं मुझे नयना से प्यार था, पर यार तू समझता क्यों नहीं मैं उससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि शादी के लिए घरवालों की इजाज़त की ज़रूरत पड़ती है। और मेरे घरवाले खासकर मम्मी पापा मुझे नयना से शादी की इजाज़त कभी नहीं देंगे। तू तो जानता है उन्हें यह लव मैरिज का रिवाज ही पसंद नहीं।"

"नयना से प्यार करने से पहले तूने ये सब नहीं सोचा।" प्रणव ने अभी भी हार नहीं मानी थी।

"प्यार कभी सोच कर थोड़े ही किया जाता है, वो तो बस हो जाता है। नयना अच्छी लगी और मुझे उससे प्यार भी हो गया, पर शादी के लिए तो बहुत सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। काश मैं नयना से शादी कर सकता पर क्या करूं मम्मी पापा को जैसी बहू चाहिए नयना उस कसौटी पर खरी नहीं उतर रही। और फिर शिवांगी जैसी अच्छी लड़की के लिए मैं क्या कह कर मना करूं, मैं उसके साथ कुछ भी ग़लत नहीं कर सकता। प्रणव तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते अगर अब ये शादी टूटी तो दोनों ही परिवारों की बहुत बेइज़ती होगी। अब बहुत देर हो चुकी है, अब कुछ नहीं हो सकता।"

"हाँ शिवांगी अच्छी लड़की है उसके साथ कुछ गलत नहीं होना चाहिए, पर नयना का क्या? हालत देखी है उसकी! पहले कैसे चहकती रहती थी पूरा दिन और जबसे उसे तेरी और शिवांगी की शादी के बारे में पता चला है कैसा कुम्हला सा गया है उसका चेहरा।" प्रणव भी अब निराश हो चला था।

"मैंने नयना के साथ कोई कमिटमेंट नहीं किया था। वह बहुत समझदार है, मेरे हालात भी वह जरूर समझेगी। हाँ मानता हूं अभी वह थोड़ी दुखी है पर धीरे धीरे वक्त के साथ सामान्य हो जाएगी और फिर उसे भी कोई उसके लायक अच्छा लड़का मिल जाएगा। मम्मी ने मुझसे वादा किया है वे खुद नयना के लिए लड़का ढ़ूंढ़ेंगी।"

"सच! वॉओ यह तो बहुत अच्छी खबर है। एक काम क्यों नहीं करते तुम खुद नयना को जाकर यह खुशखबरी दो, वह बहुत खुश होगी।" प्रणव ने व्यंगात्मक लहज़े में कहा और वहां से चला गया।

नयना की ज़िन्दगी से भी अब शोभित का अध्याय खत्म हो गया। कितने आश्चर्य की बात है ना शोभित ने प्रणव से कहा उसके मम्मी पापा को लव मैरिज पसंद नहीं, अगर यह सच है तो उन्होंने तमन्ना और प्रणव की शादी के लिए कैसे हाँ कर दी। उन दोनों की भी तो लव मैरिज ही है ना। हाँ बस इतना सा फर्क है कि प्रणव एक अमीर बिजनेस मैन का इकलौता बेटा है और नयना एक प्राइवेट कॉलेज के लैक्चरार की बेटी वो भी दिवंगत। या शायद यह कोई छोटा नही बल्किं एक बहुत बड़ा फर्क है नयना की हैसियत शोभित के सामने बहुत छोटी थी जबकि प्रणव की उनके बराबर की और शोभित के माता पिता ने अपने बच्चों की शादी इसी आधार पर तो तय की थी।

इस सपने का टूटना कुछ हद तक ठीक ही रहा नयना के लिए, यह अनुभव भी जरूरी था उसके लिए। सपना तो टूटा पर नयना नहीं। रोई तो वह बहुत पर बिखरी नहीं, जल्दी ही उसने फिर से खुदको समेट लिया और भी मजबूती से खड़े होने के लिए। उसने अपनी सबसे प्यारी सहेली तमन्ना के भाई की शादी में उसकी हर काम में मदद की, उसके साथ नाची भी खूब और फिर अपना हर दर्द भूल कर किताबें में खो गई। अब उसका सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य था अपने पैरों पर खड़ा होना और समाज में अपने दम पर एक इज्जतदार मकाम हासिल करना।

अब उसके पास वक्त भी बहुतायत से था पढ़ने के लिए। ग्रैजुएशन पूरी हो चुकी थी और ईशान और लावन्या भी अब बड़ी क्लास में पहुंच कर शहर के माने हुए कोचिंग सेंटर में ट्यूशन के लिए जाने लगे थे। हाँ तमन्ना अब भी आती रहती थी उससे मिलने। नयना के साथ उसके बर्ताव में भी कोई खास फर्क नहीं आया था, या तो उसे शोभित और नयना के बारे में अब तक कुछ पता नहीं था या फिर शायद उसे अपनी सहेली से अब भी लगाव था।

आखिर नयना की मेहनत रंग लाई, उसका बैंक क्लर्क की परीक्षा में चयन हो गया। उसे दुख था कि बहुत कम अंकों से वह बैंक अधिकारी की परीक्षा में पीछे रह गई थी। इस बार भी वह संतुष्ट तो नहीं थी पर आज के कड़ी प्रतियोगिता के समय में उसकी यह सफलता भी छोटी नहीं थी। नयना के चाचा चाची उसकी इस सफलता से बहुत खुश थे।

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