आखर चौरासी
अठाईस
अभी सतनाम बाहर वाले गेट तक ही पहुँचा था कि सामने से ग्वाला आता नज़र आया। सतनाम वहीं रुक गया। ग्वाले ने उसे डोल पकड़े देखा तो सब समझ गया। वैसे भी आज उसे काफी देर हो गयी थी।
‘‘क्या बताएं सतनाम बाबू, आज भैंस ही नहीं लग रही (दूध दे) थी। दूध दुहने में बहुत कुबेर (देर) हुई गवा।’’ ग्वाले ने स्पष्टीकरण दिया।
‘‘अच्छा, अच्छा आ जाओ। मैंने सोचा शायद तुम ना आओ, इसीलिए स्वयं तुम्हारे पास जा रहा था।’’ सतनाम ने बताया।
‘‘नहीं काहे आएँगे ? हमको पता नहीं है का, डिम्पल बचिया को सुबह-सुबह दूध चाहिए। एही खातिर तो पहिले सीधे आपके घर आए हैं।’’ ग्वाले ने डोल में दूध डालते हुए कहा।
अन्दर से मनजीत आकर दूध ले गई। हरनाम सिंह के चेहरे पर कुछ देर पूर्व आकर घना हुआ तनाव पिघल कर बहने लगा था। ग्वाला दूध दे कर चला गया। वे दोनों अन्दर आ गये। सतनाम ने दरवाजा बंद कर लिया। तब तक जाड़ों की सुबह वाली खुशनुमा धूप लॉन में आ चुकी थी। और कोई दिन होता तो ऊनी गाऊन पहने हरनाम सिंह लॉन में बैठे जाड़े की उस धूप का आनन्द ले रहे होते। मगर उस दिन तो उन्होंने घर का दरवाजा अन्दर से बन्द कर रखा था।
थोड़ी देर में सुरजीत कौर चाय ले कर आ गई। अब घर के लोग आपस में बातें करने लग गए थे। मगर उनका स्वर असामान्य रुप से धीमा था और बातें बहुत संक्षिप्त....।
जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता डिम्पल की बोरियत बढ़ती जा रही थी। पिछली शाम से ही वह घर के बाहर नहीं निकली थी। न ही आस-पड़ोस के बच्चे उसके घर खेलने आए थे। जबकि प्रतिदिन सुबह-शाम हरनाम सिंह के लॉन में आस-पड़ोस के बच्चे नियमित रूप से खेलने आ जाया करते थे। जबकि पिछली शाम से कोई बच्चा वहां खेलने नहीं आया था। सम्भवतः उन बच्चों को उनके घर वालों ने आने से मना कर दिया हो।
बोर होती डिम्पल बार-बार बाहर खेलने जाने की ज़िद करती। उसकी माँ मनजीत उसे बड़ी मुश्किल से मना कर पा रही थी। इस बार भी थोड़ी देर घर में इधर-उधर डोलने के बाद डिम्पल अपनी उसी जिद के साथ माँ के पास लौट आई।
‘‘मम्मी, बाहर वाला दरवाजा खोल दो न ! मैं खेलने जाऊँगी।’’ उसने मचलते हुए कहा।
बार-बार एक ही बात के लिए मना करती मनजीत कौर के सब्र का पैमाना तब तक छलक चुका था। उसने डिम्पल को ज़ोर से डाँट दिया, ‘‘तुमसे कहा न घर में बैठ कर खेलो। बाहर नहीं जाना है !’’
माँ की डाँट सुन कर डिम्पल रुँआसी हो गई। उसकी खूबसूरत आँखों से मोटे-मोटे मोतियों जैसे आँसू निकल कर उसके गोरे-गोरे, चिकने गालों पर फिसलने लगे। उन आँसुओं ने मनजीत की क्रोधाग्नि में घी का काम किया। मगर वह डिम्पल से कुछ और कह पाती, तब तक सुरजीत कौर वहाँ आ पहुँची।
‘‘बच्ची को ऐसे डाँटते हैं क्या ?’’ उन्होंने अपनी बेटी को झिड़कते हुए कहा।
‘‘बी’जी देखिये न ये बार-बार बाहर जाने की ज़िद कर रही है।’’ मनजीत कौर ने अपनी सफाई दी।
सुरजीत कौर ने उसकी सफाई अनसुनी करते हुए डिम्पल को अपनी गोद में उठा लिया, ‘‘आ तो मेरी रानी बेटी, हम तुम्हारे साथ खेलते हैं। मम्मी को अपने साथ नहीं खेलने देंगे, वो डाँटती है।’’
नानी की गोद में आकर डिम्पल को कुछ तसल्ली हुई। उसके आँसू रुक गए। वह मुस्कुराते हुए अपनी मम्मी को अँगूठा दिखा कर चिढ़ाने लगी। बच्चों का हंसना-रोना ऐसा ही होता है। ज़रा-सी डाँट पर ढेर सारे आँसू और ज़रा से प्यार पर ढेर सारी मुस्कान के फूल लुटाने लगते हैं।
‘‘बी’जी मैं बाहर खेलने जाऊँगी।’’ डिम्पल ने नानी के सामने अपनी माँग रख दी। उसने कभी अपनी नानी को नानी कह कर सम्बोधित नहीं किया था। अपनी मम्मी की देखा-देखी वह थी उन्हें बी’जी ही कहती थी।
सुरजीत कौर ने उसके आँसुओं को पोंछ कर प्यार से उसके गाल थपथपाये और बोली, ‘‘नहीं बेटे, अभी आप बाहर नहीं जा सकते। बाहर न एक बहुत बड़ा ‘भु-भू’ आया है। वह ‘भु-भू’ सबको मार कर खा जाता है। देख लो तुम्हारे नाना, मामा सभी तो घर में बैठे हैं। कोई बाहर नहीं जा रहा। जब ‘भु-भू’ चला जाएगा तब आप भी खेलने बाहर चले जाइएगा।’’
अपनी नानी की बातें ध्यान से सुन रही डिम्पल ‘भु-भू’ का जिक्र आते ही चौंकी । उसने अपनी प्यारी-प्यारी आँखें नचाते हुए पूछा, ‘‘क्या वह बहुत बड़ा ‘भु-भू’ है ?’’
‘‘हाँ, वह बहुत बड़ा है।’’ उसकी नानी ने उसे बहलाया।
डिम्पल देख रही थी कि कल से घर का कोई सदस्य बाहर नहीं निकला है। उसे सहज ही अपनी नानी की बातों पर विश्वास हो गया। उसका छोटा-सा दिमाग उसे यह तो बता रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है। मगर उस ‘भु-भू’ के कारण मामला इतना ज्यादा बिगड़ा हुआ है, यह उसे अभी पता चला। सुरजीत कौर उसे गोद में लिए-लिए ड्राइंग रुम में आ गई। हरनाम सिंह पलंग पर लेटे हुए कुछ सोच रहे थे। डिम्पल सुरजीत कौर की गोद से उतर कर उनके पलंग पर जा चढ़ी।
‘‘नाना जी आप भी बाहर मत जाइएगा। बाहर एक बहुत बड़ा ‘भु-भू’ आया है।’’ डिम्पल ने उन्हें समझाते हुए कहा।
डिम्पल के आने से हरनाम सिंह का ध्यान भंग हुआ था। मगर डिम्पल की बात उनकी समझ में नहीं आई। उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। सुरजीत कौर ने जब उन्हें सारा किस्सा बताया तो वे मुस्कराते हुए अपनी धेवती की ओर मुड़े, ‘‘हाँ ठीक है बेटी, मैं बाहर नहीं जाऊँगा....।’’
अभी वे शायद डिम्पल से कुछ और बोलना चाहते थे। तभी बाहर से अम्बिका पाण्डे के ज़ोर-ज़ोर से बोलने की आवाज़ आई। हरनाम सिंह ने खिड़की का पर्दा थोड़ा सरका कर बाहर देखा। उनके गेट के पास एक मजदूर-सा दिखने वाला आदमी अपनी धोती पकड़े खड़ा था। उसके हिलते-डोलते खड़े होने के ढंग से ही लग रहा था कि उसने शराब पी रखी है। पाण्डे जी ने अपने दाहिने हाथ में चप्पल पकड़ रखी थी और बाएँ हाथ से उस शराबी का गिरेहबान।
‘‘बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? तुम अन्धे हो क्या ? तुम्हें दिखाई नहीं देता यह किसी के घर का गेट है ? स्साले तुमको मूतने की जगह यहीं मिली थी क्या ?’’ कहते हुए पाण्डे जी ने दो-तीन चप्पलें उस शराबी के सर पर जड़ दीं। उनका रौद्र रुप और सर पर तब तक हो चुकी चप्पलों की करारी मार ने उस शराबी का नशा बहुत हद तक उतार दिया था।
‘‘हुज़ूर, हमको माफ कर दीजिए। अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी। वो तो ऊ साहब लोग हमको दारु पिलाया फिर बोला कि सरदरवा का गेट पर जाकर मूतोगे तो पैसा देंगे। हम उनका दारु और पैसा का लालच में चला आया। हमको माफ कर दीजिए। फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे।’’ वह शराबी रोते हुए बोला।
‘‘कौन लोग बोला था ?’’ अम्बिका पाण्डे ने सवाल दागा।
‘‘ऊ देखिए न हुजूर ओहां पर सब खड़ा है। स्साला हमको पिटवा कर तमाशा देख रहा है।’’ शराबी ने कुछ दूर खड़े लड़कों की तरफ इशारा किया।
उनके इशारे का पीछा करने पर पाण्डेय जी ने देखा कि सत्ताधारी पार्टी की युवा शाखा के कार्यालय की दीवार के पास कुछ लड़के खड़े हैं। जब शराबी ने उनकी तरफ इशारा किया तो वे सब तेजी से दीवार की ओट में हो गए। अम्बिका पाण्डे ने और दो-तीन चप्पलें शराबी के सर पर और रसीद कीं तथा उन छुपे हुए लड़कों को सुनाते हुए बोले, ‘‘तुम लोग अब यह तमाशा बन्द करो। जितना उत्पात तुम लोगों ने करना था, कर लिया। आगे कोई ऐसी-वैसी हरकत की तो तुम सबों की खातिर भी इसी चप्पल से होगी।’’
फिर पाण्डेय जी ने एक झटके के साथ उस शराबी का गिरेहबान छोड़ दिया। वह झूमता हुआ दूर जा गिरा। उन्होंने अपनी चप्पल उसके सर पर लहराते हुए कहा, ‘‘चलो भागो यहाँ से ! दुबारा इधर नज़र भी आए तो वो हाल करुँगा कि हमेशा के लिए पेशाब करना भूल जाओगे, समझे !’’
नीचे गिरा शराबी उनके चंगुल से छूटने पर तेजी से भाग खड़ा हुआ। उसका सारा नशा उन चप्पलों ने ऐसा उतारा था कि वह अब दुबारा कभी मुफ्त की शराब पीना नहीं चाहता था।
सारा दृश्य देख कर हरनाम सिंह ने धीरे से खिड़की का पर्दा ठीक किया और अपनी जगह पर आ बैठे। सारा किस्सा सुन कर सुरजीत कौर भी चुप हो गई।
थोड़ी देर बाद हरनाम सिंह ने खामोशी तोड़ी, ‘‘अब वे लोग इतने निम्नस्तर पर उतर आये हैं ? आर्थिक नुकसान पहुंचाने के बाद अब वे लोग हमें मानसिक रुप से भी लूटना चाह रहे हैं ! हमारा मनोबल ध्वस्त करना चाहते हैं...! कहाँ तो कल तक सब मेरा आदर करते नहीं थकते थे। आज वही लोग इतनी बेशर्मी पर उतर आए हैं ? हमारा सब कुछ तो उन्होंने लूट लिया, अब वे हमसे क्या चाहते हैं ? हमें जान से नहीं मार सके इसलिए अब बेइज्जत कर, तिल-तिल कर मारना चाहते हैं क्या ? आज गेट पर मूत रहे हैं, कल घर में घुस कर माँ, बेटी और बहनों के सामने मूतेंगे....?’’ कहते-कहते हरनाम सिंह बुरी तरह हाँफने लगे। उनकी हालत देख सुरजीत कौर भी घबरा गईं।
‘वे रब्बा, ए दुनियाँ नूँ की आखर आई ए (हे ईश्वर, ये दुनिया को क्या आफत आ गई) ?‘’ इधर सुरजीत कौर के मुँह से यह वाक्य निकला और उधर आँखों से टप् ....टप् आँसू बहने लगे।
उन्हें रोते देख डिम्पल तेजी से उनके पास आई और आँसू पोंछने लगी। आँसू पोंछते-पोंछते उसके बालमन ने सोचा, शायद नानी ‘भु-भू’ से डर कर रो रही हैं।
‘‘नहीं बी’जी, मत रोओ ! अच्छे बच्चे नहीं रोते। मैं भी खेलने बाहर नहीं जाऊँगी। अब्भी मेरे गुरनाम अंकल आ जाएँगे और ‘भु-भू’ को मार भगायेंगे। फिर ‘भु-भू’ किसी को नहीं मारेगा। आप मत रोओ....!’’ डिम्पल अपनी नन्हीं-नन्हीं अँगुलियों से अपनी नानी के आँसू पोंछती जाती और बोलती जाती।
सुरजीत कौर उसके हाथों को पकड़ कर चूमने लगी, ‘‘...हाँ डिम्पल, तेरे गुरनाम अंकल आ कर ‘भु-भू’ को मार भगाएँगे। फिर सब ठीक हो जाएगा...!’’
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कमल
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