Aakhar Chaurasi - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

आखर चौरासी - 5

आखर चौरासी

पाँच

‘‘आज की ताजा खबर .... आज की ताजा खबर, हमारे मेन-हॉस्टल का रैगिंग किंग घोषित...... आज की

ताजा खबर, मेन-हॉस्टल का रैगिंग किंग घोषित......’’ देवेश ने नाटकीय ढंग से अपना हाथ लहराते हुए

कमरे में प्रवेश किया मानों उसके हाथ में सचमुच का अखबार हो।

रोज की तरह उस दिन भी वे चारो दोस्त शाम की चाय पी कर हुरहुरु चौक से लौटे थे। वहाँ से लौटने के बाद गुरनाम, संगीत पांडे और प्रकाश तो सीधे कमरे में लौट आए थे, मगर देवेश कॉमन रुम की ओर चला गया था। देवेश यूनिवर्सिटी का टेबल-टेनिस चैम्पियन था, हर शाम उसका एक-डेढ़ घण्टा कॉमन रुम में टेबल-टेनिस खेलते बीतता था। लगता था रैगिंग किंग की चर्चा वह वहीं कॉमन रुम से सुन कर आया था।

वह हमेशा यूँ ही तूफान की तरह आता और कुछ ऐसा करता कि तुरंत ही आस-पास का सारा माहौल उसकी तरफ आकर्षित होकर उसके उत्साह और हँसी से ओत-प्रोत हो जाता। कहीं भी एण्ट्री मारने का वह देवेश का अपना निराला ही अंदाज था। औसत कद, गोरे रंग और गठे हुए शरीर वाले देवेश का सरस स्वभाव सभी को भाता था। अभी तक गुरनाम ने पिछली रात मोहन की रैगिंग और सुबह राजकिशोर आदि के साथ हुई अपनी उस झड़प के बारे में उन्हें नहीं बताया था, वर्ना देवेश की ताजा खबर का अनुमान लगाने में उनको ज़रा भी कठिनाई न हुई होती। उन सबकी उत्सुक नज़रें एक साथ देवेश की ओर उठीं।

‘‘बताता हूँ ... बताता हूँ।” देवेश ने अपने हाथों को हवा से नीचे गिरते हुए उनकी आँखों को जवाब दिया, “वो ऐसा है कि बाकी लोग तो वैसे ही रैगिंग करने मे नाम कमा रहे हैं। असल छुपा रुस्तम तो अपना गुरु निकला। इसने मोहन की ऐसी कलम-तोड़ .... मेरा मतलब है कमर-तोड़ ऐसी रैगिंग की, कि बस कुछ मत पूछो। उसी के फलस्वरुप इसको पूरे हॉस्टल की ओर से ‘रैगिंग किंग’ के खिताब से नवाजा गया है।’’ देवेश ने अपने चिर-परिचित अंदाज में उनकी जिज्ञासा शांत की।

‘‘अरे, क्या बोलते हो ?’’ प्रकाश चौंका, ‘‘अपना सीधा–साधा गुरु .... और रैगिंग किंग ! व्हाट ए जोक !’’

‘‘...वह भी मोहन की रैगिंग ?’’ इस बार संगीत पांडे बोला। उसके स्वर में आश्चर्य और आशंका दोनों के भाव थे, ‘‘देख लेना अब राजकिशोर तुम्हें नहीं छोड़ेगा, सरदार !’’

‘‘अब तुम्हें जो भी कहना है कहो लेकिन अपना गुरु अब ‘रैगिंग किंग’ है।’’ देवेश ने घोषणा की।

संगीत के बोलने के ढंग और अपने लिए ‘सरदार’ संबोधन सुन कर गुरनाम चिढ़ गया था। उसने भी तल्ख स्वर में जवाब दिया, ‘‘देख पांडे, मैं भी उससे नहीं डरता। जो होगा देखा जाएगा।’’

गुरनाम ने जान-बूझ कर उसे पांडे से संबोधित किया था। जितना वह सरदार शब्द सुनकर चिढ़ता था, उतना ही संगीत ‘पांडे’ शब्द से चिढ़ता है। इसलिए उसने ‘पांडे’ शब्द पर खास जोर दिया था। संगीत पर उसके संबोधन का मानो-वांछित प्रभाव पड़ा।

संगीत ने नर्म होते हुए कहा,‘‘यार गुरु, तुम्हें कितनी बार कहा है, गाली दे दिया करो, मगर मुझे पांडे मत बोला करो।’’

‘‘तुमने भी तो मुझे सरदार कहा था।’’ उसके यूँ अचानक नर्म पड़ने पर गुरनाम अपनी हँसी न रोक सका।

‘‘खैर छोड़ो। लेकिन अब तो तुमने मुफ्त में ही राजकिशोर से झमेला ले लिया है न !’’ संगीत ने बात को मुद्दे की तरफ मोड़ा।

‘‘तो क्या हुआ ? सिवाय धमकाने के वह मुझे कुछ नहीं कर सकता।’’ गुरनाम ने कहा और उन्हें सुबह वाली घटना के बारे में विस्तार से बताया।

‘‘यह तो सच में बुरा हुआ।’’ प्रकाश चिन्तित स्वर में बोला।

‘‘देखा, इसीलिए मैं बोल रहा था।’’ संगीत बोला, ‘‘अब भोगना !’’

‘‘देख लूँगा। उनके दस का जवाब, मैं भी तो दो से तो जरूर ही दूँगा। मैंने हाथों में मेंहदी नहीं लगा रखी। तुम मत घबराओ, तुमसे मदद के लिए नहीं कहूँगा।’’ गुरनाम ने चिढ़ते हुए कहा।

शायद उसकी मदद वाली बात से संगीत भी चिढ़ गया था। वह गुस्से से बोला, ‘‘आजकल सब सरदार लोग केवल बातें करने वाले ही रह गए हैं। तुम भी गाल बजा कर अपने दिल की तसल्ली कर लो। तुमसे भी कुछ होने-जाने वाला नहीं है, समझे।’’

‘‘सब सरदार लोग से क्या मतलब है तुम्हारा ?’’गुरनाम गुस्से से बोला।

‘‘सीधा-सा मतलब है। सरदारों ने कहा था कि इंदिरा गाँधी को ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ की सजा देंगे, आज तक क्या हुआ ? सरदारों ने आज तक कुछ भी तो नहीं किया। तुम भी उनकी तरह बस बोल कर रह जाओ।’’

संगीत की बात ने गुरनाम को किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया। उसे सूझ नहीं रहा था कि वह क्या जवाब दे। कहाँ हॉस्टल की छोटी-सी घटना और कहाँ ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’।

‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ के उन दिनों तो गुरनाम ने भी मन ही मन, स्वर्ण मंदिर पर सेना के आक्रमण का समर्थन किया था। उसने सोचा था अब सब ठीक हो जाएगा। पंजाब की सारी समस्या सुलझ जाएगी और पंजाब के मेहनती लोग फिर से ढोलों की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा में झूमते हुए खुशी-खुशी अपने काम धंधों में मस्त हो जाएंगे। वहाँ की खुशहली लौट आएगी । दरअसल पंजाब के उग्रवाद ने वहां के खेत खलिहानों और उद्योग धंधों पर ऐसा प्रतिकूल प्रभाव डाला था, वहाँ सब कुछ चौपट हो गया था। उसका सरल मन सब कुछ अच्छा हो जाने की उम्मीद पाल बैठा था, क्योंकि तब उसका सरल मस्तिष्क आधुनिक राजनीति के दाँव-पेंचों को नहीं समझ पाया था। जहाँ शासक दल पहले ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ की स्थिति पैदा करते हैं और फिर ऑप्रेशन करवाते हैं। ये सारी उठा-पटक मात्र सत्ता की कुर्सियाँ बचाने के लिए होती है। जनता की जानें नहीं बचती, ना सही ! पंजाब की स्थिति तो ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ के बाद भी कमोबेश पहले जैसी ही बनी रही थी, फिर उस कार्रवाई का क्या औचित्य हुआ था ?

संगीत का ताना उसके मर्म को भेदता चला गया था, वह निरूत्तर हो गया और असहाय भी। लेकिन संगीत की उस चुभती हुई बात ने उसे एकाएक आक्रामक भी बना दिया था। उसने ईंट का जवाब पत्थर से देने की मंशा से कहा, ‘‘हो सकता है, कभी न कभी उसे अपने किये की सजा मिल ही जाए। इसके लिए तुम क्यों परेशान हो ?’’

उन दोनों के बीच चल रहे वाक युद्ध से देवेश उखड़ गया। उसने दोनों को झिड़कते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों हॉस्टल के लफड़े में नेशनल पालिटिक्स मत डालो। अगर डालनी ही है तो पढ़ाई छोड़ कर नेतागिरी में उतर जाओ।’’

उस अप्रिय बहस पर प्रकाश ने भी हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘बहस बंद करो। तुम लोगों को नहीं पढ़ना न सही, मुझे तो पढ़ने दो।’’

प्रकाश की बातें सुन कर उन दोनों के वाक्-युद्ध पर विराम लगा। कमरे में खामोशी फैल गई। गुरनाम और संगीत के चेहरों पर अभी भी तनाव व्याप्त था। तभी हॉस्टल में शाम के ‘स्टडी पीरियड’ की घंटी बजी। देवेश ने उठ कर कमरे के दोनों दरवाजे अच्छी तरह खोल दिए। शाम के सात बज चुके थे, स्टडी पीरियड नौ बजे तक दो घण्टे का होता है। इसी दौरान ब्लॉक का प्रीफेक्ट हर कमरे में घूम कर सारे स्टूडेंट को चेक करता है और हॉस्टल के रजिस्टर पर उनकी उपस्थिति दर्ज की जाती है। ऐसा ही स्टडी पीरियड सुबह भी, सात से नौ, दो घण्टों का होता है। इस प्रकार रोज सुबह-शाम पढ़ाई के घण्टे उपलब्ध होने के साथ-साथ सभी की उपस्थिति भी सहज ही चेक हो जाती है। वे चारों अपनी पढ़ाई में लीन हो गये।

संभवतः सुबह धमकाने भर से राजकिशोर पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ था। वह चाहता था, गुरनाम को मोहन की रैगिंग के लिए कड़ी सजा मिले, इस उद्देश्य से उसने हॉस्टल सुपरिंटेंडेंट के पास मोहन से शिकायत भी करवा दी। उस शिकायत का पता उन्हें तब चला जब शाम को हॉस्टल सुपरिंटेंडेंट ने गुरनाम को अपने ऑफिस में बुलवाया। संगीत सहित सब मित्र धड़कते हृदय से अनुमान लगा रहे थे कि अब गुरनाम को जरूर कोई कड़ी सजा मिलेगी। परन्तु संगीत की आशंका के विपरीत और राजकिशोर की इच्छा के प्रतिकूल सिन्हा सर ने केवल रैगिंग नहीं करने और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने की बात समझते हुए गुरनाम को छोड़ दिया।

गुरनाम भी “जी सर” कहता हुआ ऑफिस से निकाल कर किसी विजेता की तरह अपने कमरे में पहुँचा। वह घटना संगीत से अधिक राजकिशोर के लिए तकलीफ़देह थी।

हाँ, इस घटना का जगदीश और राजकिशोर के सम्बन्धों पर एक उलटा असर पड़ा। जगदीश ने राजकिशोर को मोहन द्वारा सिन्हा सर से शिकायत करवाने की बात पर आड़े हाथों लिया। उसका कहना था कि यदि बात को सिन्हा सर तक ही पहुँचाना था तो फिर उसने सुबह जगदीश के द्वारा गुरनाम को क्यों घेरवाया था ?

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कमल

Kamal8tata@gmail.com

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