आखर चौरासी - 7 Kamal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आखर चौरासी - 7

आखर चौरासी

सात

उस सुबह भी सूरज आम दिनों-सा निकला था। चिड़ियों ने हर रोज की भाँति ही चहचहाते हुए अपने दिन की शुरुआत की थी। रोजाना की तरह ही लोग अपने-अपने घरों से तैयार होकर सड़कों पर आये थे। सब कुछ एक सामान्य दिन और सामान्य शुरुआत की तरह ही था। मगर किसे पता था कि तब तक एक अभूतपूर्व दुर्भाग्य सामान्य से दिखने वाले उस आम दिन को इतिहास के भीषण काले दिन में बदलने को निकल चुका है। अगर पहले से पता चल जाता तो क्या सारी मानवता मिल कर भी काल-चक्र की उस गति को ना मोड़ पाती ?

पूरे देश की तरह ही दोपहर तक उस हॉस्टल में भी सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा था। फिर सहसा ही वातावरण में एक रहस्य-सा घुलने लगा। होंठों ने फुसफुसाना शुरु किया तो कान चौंकने लगे। दिमागों में शंकाएँ एक-दूसरे से ऊपर उठने की होड़ में आपस में उलझने लगीं।

‘‘न्यूज कहाँ से आयी है ?’’ किसी ने पूछा था।

‘‘...सच नहीं लगती। रेडियो पर तो गाने बज रहे हैं ।’’ दूसरा बोला।

‘‘हाँ यार, अगर यह न्यूज सच होती तो अब तक गाने बन्द होकर सारंगी बजने लग जाती।’’ तीसरे ने दूसरे की पुष्टि की।

‘‘अरे यार बी.बी.सी. की न्यूज है। बी.बी.सी. की न्यूज कभी झूठ नहीं होती।’’ पहले वाले स्वर ने पूरज़ोर तर्क किया।

‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है। मगर तुम्हारी बात पर यकीन करें तो कैसे ? तुम्हारे अनुसार हमारे देश से हज़ारों मील दूर बी.बी.सी. को ख़बर हो गई, लेकिन हमारे अपने दूरदर्शन और आकाशवाणी को इसकी ख़बर नहीं लगी ?’’ स्वर में संदेह स्पष्ट था।

‘‘वो सब मैं नहीं जानता, मगर बी.बी.सी. ने साफ-साफ खबर दी है, दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई है।’’ पहला बोला।

‘‘तुमने स्वयं सुना है ?’’

‘‘नहीं, मगर मुझे जिसने बताया है, उसने स्वयं सुना है।’’

‘‘ विश्वास नहीं होता। प्रधानमंत्री के चारों ओर तो ‘ब्लैक कैट कमांडो’ और न जाने क्या-क्या बहुत बड़ा सुरक्षा घेरा होता है।’’

‘‘यही तो विडम्बना है, धोखा यहीं हुआ है। उनके सुरक्षाकर्मियों ने ही गोलियां चलाई थीं।’’

“अरे .....!”

‘‘...जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो खेत कैसे बच सकता है ?’’

धीरे-धीरे पूरे हॉस्टल में वह मनहूस ख़बर फैल गई थी। जो भी सुनता एक बार शक़ ज़रुर करता। जितने मुँह उतनी बातें, जितनी बातें उतनी ही शंकाएँ , जितनी शंकाएँ उतने ही तर्क। ख़बर सुनते ही हर स्टूडेंट कॉमन-रुम का रुख करता, जहाँ टी.वी. रखा था। जिन लड़कों के कमरों में रेडियो थे, भीड़ वहाँ भी जुट आई थी।

अचानक ही रेडियो पर गाने आने बंद हो गये। रेडियो और टी.वी. पर लगभग एक ही समय विशेष समाचार बुलेटिन प्रसारित हुए, जिससे सारा दिन हवा में इधर-उधर तैरती ख़बर की पुष्टि हो गई कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई है। हत्यारे उनके ही सुरक्षाकर्मी थे।

जिसने भी, जहाँ भी वह समाचार सुना, स्तब्ध रह गया। समूचे राष्ट्र के लिए वह एक बहुत ही दुःखदायी समाचार और संकट की घड़ी थीं। उस दुखद समाचार का असर और भी दुखदायी होने वाला था। समाचार फैलने के साथ ही वातावरण में एक अजीब तरह का बोझिलपन छाने लगा था। चारों तरफ फैली खामोशी एक डरावनी हलचल अपने में समेटे बैठी थी। अगर इतिहास का मध्य काल होता तो राष्ट्र-प्रमुख की हत्या के बाद तुरन्त ही तलवारें खिंच जातीं और दावेदारों में राज-गद्दी के लिए खूनी संघर्ष छिड़ जाता। परन्तु प्रजातंत्र के इस काल में तो कुछ और ही होना लिखा था। अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शनों के लिए शव को अगले दिन रखा जाना था। अभी तो ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेने के लिए नज़रें टी.वी. स्क्रीनों पर जमी हुई थीं।

‘‘ये तो बड़ा बुरा हुआ।’’ गुरनाम ने अपनी बगल में खड़े प्रकाश की ओर देखते हुए कहा।

‘‘हाँ बुरा तो हुआ।’’ प्रकाश ने हामी भरी।

उस समय वे दोनों भी अन्य लड़कों के साथ कॉमन-रुम में खड़े टी.वी. देख रहे थे।

‘‘चलो प्रकाश, हम लोग भी उनके अंतिम दर्शन के लिए दिल्ली चलें। इसके लिए ट्रेन में डब्ल्यू.टी. भी जाएंगें तो टी.टी. नहीं पकड़ेगा। केवल खाने के लिए पैसे ले लिये जाएं तो काम हो जाएगा।’’ गुरनाम ने प्रकाश की ओर देखते हुए पूछा।

‘‘इम्तहान सर पर हैं और तुम्हें दिल्ली जा कर दर्शनों की पड़ी है ? मुझे नहीं जाना दिल्ली-विल्ली। तुमको जाना है तो जाओ।’’ टी.वी. देख रहे प्रकाश ने गर्दन घुमा कर उसे आँखें दिखाईं।

अब तक का सारा वार्तालाप पास खड़े, टी.वी. देख रहे, जगदीश के कानों में भी पड़ चुका था। कॉमन रुम आने से पहलें वह रेडियो पर बी.बी.सी. द्वारा दिए गये समाचार विस्तार से सुन चुका था कि हत्यारे सुरक्षाकर्मी सिख थे। वह उनकी तरफ मुड़ा, ‘‘इम्तहान न होते, तब भी तुम दिल्ली जाते क्या ?’’

उसकी कड़ी नज़रों से गुरनाम सकपकाया। उसे जगदीश का स्वर आश्चर्यजनक रुप से कड़ा लगा था, इसलिए उसने जगदीश के प्रश्न को नज़रअंदाज कर दिया।

उसे चुप देख कर जगदीश ने फिर पूछा, ‘‘जवाब दो, क्या तुम दिल्ली जा सकते थे ?’’

दुबारा टोके जाने से गुरनाम के लिए चुप रहना असम्भव हो गया। उसने भी प्रतिप्रश्न किया,‘‘क्यों, मैं क्यों नहीं जा सकता अपने दिवंगत प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ? अंतिम दर्शन नहीं किये जाने चाहिए क्या ?’’

‘‘किये तो जाने चाहिए, मगर तुम नहीं कर सकते।’’ जगदीश का लहज़ा पूर्ववत् था।

‘‘क्यों मैं क्यों नहीं कर सकता ?’’ गुरनाम ने जानना चाहा।

‘‘क्योंकि सिख सुरक्षाकर्मियों ने ही इन्दिरा गाँधी को मारा है।’’

जगदीश का उत्तर सुन कर गुरनाम सन्नाटे में रह गया। एक पल को तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया। फिर उसने पलट कर पूछना चाहा था, हत्यारे सुरक्षाकर्मियों का सिख होने और उसका श्रद्धांजलि अर्पित करने जाने में क्या संबंध है ? अगर कोई संबंध है भी तो कैसे ? संबंध होने के लिए तो उनसे मिलना-जुलना जरुरी है, वह तो उनसे कभी नहीं मिला। बल्कि देखा जाए तो उन सुरक्षाकर्मियों का मिलना-जुलना और संबंध तो प्रधानमंत्री से ही था। हमेशा वे प्रधानमंत्री को घेरे रहते थे। हर जगह वे साये की तरह प्रधानमंत्री को घेरे रहते थे। हर जगह वे साये की तरह प्रधानमंत्री के साथ लगे रहते थे। इस हिसाब से तो उन हत्यारों का ज्यादा संबंध प्रधानमंत्री से ही हुआ न ! ....वह और भी न जाने क्या-क्या पूछना चाहता था। मगर गुरनाम कुछ कहता उससे पहले ही प्रकाश उसे खींचता हुआ कॉमन रुम से बाहर निकल गया।

‘‘तुम फिर जगदीश से उलझ रहे थे। उससे तर्क करने की क्या ज़रुरत थी ?’’ बाहर आते ही प्रकाश ने उसे आड़े हाथों लिया।

अभी तक गुरनाम का ध्यान जगदीश के अंतिम वाक्य में ही अटका हुआ था। जगदीश ने क्यों कहा कि सिख हत्यारों ने इंदिरा गाँधी की हत्या की ? .....क्या हत्यारों की कोई अलग पहचान हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के रुप में की जा सकती है ? हत्यारे तो केवल हत्यारे होते हैं और उनकी एकमात्र पहचान हत्यारों के रुप में ही की जा सकती है। गुरनाम अभी भी तर्क करने को तत्पर प्रतीत हो रहा था।

‘‘...तो जगदीश ने क्यों कहा कि सिख हत्यारों ने इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी ?’’

‘‘फिर वह क्या कहता? सुरक्षाकर्मी सिख थे तो दोष सिखों पर ही आएगा न !’’ प्रकाश ने समझाया ।

‘‘प्रकाश मेरी तरफ ज़रा ध्यान से देखो। क्या मैं तुम्हें इंदिरा गाँधी का हत्यारा लगता हूँ ? ...इंदिरा गाँधी तो छोड़ो क्या मैं तुम्हें किसी का भी हत्यारा लगता हूँ ?’’ गुरनाम ने प्रकाश की आँखों में झाँकते हुए पूछा।

‘‘मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा। तुमसे आदमी क्या चिड़िया भी नहीं मारी जाएगी। मैं तो हत्या का दोष सिखों पर आने की बात कर रहा हूँ।’’ प्रकाश ने जवाब दिया।

‘‘हत्यारे सिख थे क्या इसीलिए दोष सिखों पर आएगा ?’’ गुरनाम ने फिर पूछा।

‘‘हाँ, इसलिए आएगा।’’

‘‘तो फिर महात्मा गाँधी की हत्या का दोष हिन्दुओं पर क्यों नहीं आया ?’’ गुरनाम ने आवेशपूर्ण स्वर में पूछा।

‘‘सुनो गुरु, मैं तुमसे तर्क में नहीं जीत सकता।’’ प्रकाश ने हथियार डालते हुए कहा, ‘‘वैसे भी अभी मेरी चिन्ता इन्दिरा गाँधी की हत्या नहीं, अपना एक्ज़ाम है। चलो ज़रा चाय पी कर आते हैं, फिर पढ़ाई में जुटना है। इस टी.वी. के चक्कर में आज बड़ा समय बर्बाद हो गया।’’

विषय बदल जाने से गुरनाम भी शांत हो गया था। उनके बीच पढ़ाई की बातें होने लगीं। उन दिनों अक्सर सवार रहने वाला इम्तहान का भूत फिर से उन पर हावी होता चला गया। चाय पीने के लिए वे दोनों हुरहुरु चौक स्थित रामप्रसाद के होटल की ओर बढ़ गये।

चाय पीते हुए गुरनाम ने प्रकाश से कहा, ‘‘यार फिजिक्स के ‘सर्कुलर मोशन’ वाले चैप्टर में मुझे कुछ कठिनाई हो रही है। अगर एक बार तुमसे डिस्कसन हो जाता तो समझ में आ जाता।’’

जीव विज्ञान के छात्र आमतौर पर फिजिक्स में कुछ कमज़ोर होते हैं। वह समस्या गुरनाम के साथ भी थी। दूसरी तरफ गणित का विद्यार्थी होने के कारण प्रकाश फिजिक्स में तेज था। गुरनाम अपनी फिजिक्स की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए अक्सर उससे मदद लेता रहता था।

‘‘ठीक है लौटते हुए पहले तुम्हारे रुम में ही चलते हैं। वहीं ‘सर्कुलर मोशन’ पर डिस्क्स कर लेंगे।’’ प्रकाश बोला।

वे दोनों बातें करते चाय पीने लगे। चाय खत्म कर जब वे रामप्रसाद को पैसे दे रहे थे, कुछ शोहदे किस्म के लड़के हो...हो हंसते और ज़ोर-ज़ोर से बातें करते होटल में घुसे। उन्हें देख कर रामप्रसाद बड़बड़ाया, ‘‘आ गये मुफ्तखोर....’’

‘‘क्या बात है रामप्रसाद जी किसे कोस रहे हैं ?’’ प्रकाश ने पूछ लिया।

रामप्रसाद ने एक नज़र भीतर बैठ चुके उन लड़कों पर डाली और बोला, ‘‘वही सब जो अभी-अभी भीतर घुसे हैं। दस रुपये का खायेँगे और देंगे कभी पाँच, कभी चार तो कभी कुछ भी नहीं। बोल कर चले जाएंगे कि कल देंगे और वह कल कभी नहीं आता है। इन्हें मुफ्तखोर न कहें तो क्या कहें ?’’

गुरनाम ने मुड़ कर देखा, चार-पाँच लड़कों के उस ग्रुप को वह पहले भी कई बार हुरहुरु चौक पर आवारागर्दी करते देख चुका था। वे लड़के एक टेबल पर जम चुके थे और होटल का नौकर उनके सामने पानी के गिलास रख रहा था। तब तक प्रकाश रामप्रसाद से बाकी पैसे ले चुका था। वे दोनों होटल से

निकल कर हॉस्टल की तरफ बढ़ गये।

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कमल

Kamal8tata@gmail.com