आखर चौरासी
तेईस
मगर गुरनाम यह देख कर चौंकता है कि उसके मुँह से शेर की गुर्राहट के सिवा और कोई आवाज नहीं निकली। उसने दोबारा प्रयास किया लेकिन परिणाम वही था। वह जितनी ही ज़ोर से बोलने की चेष्टा करता उसकी गुर्राहट उतनी ही तेज होती जाती।
उसे उस तरह गुर्राता देख राजकिशोर ने सबको ललकारा, ‘‘देखो....देखो, एक तो नरभक्षी है, दूसरे हम लोगों पर गुर्रा रहा है। मारो स्साले को... मारो!’’
उसकी ललकार पर साथ आये लोगों के हाथों में तलवार, गड़ासा, बल्लम आदि चमकने लगे। कुछ के पास रायफलें भी थीं। वे उस पर फायर करते हैं। गोलियाँ उसे छू कर निकल जाती हैं। गुरनाम पलट कर भागने लगता है। उन लोगों की हुड़दंगी भीड़ भी उसके पीछे लपकती है। तभी उसे अपने सामने से ढोल-कनस्तर पीटते लोगों का शोर आता सुनाई देता है। वह पलट कर दाँयी तरफ भागता है। कुछ दूर भागने के बाद वैसा ही शोर उसे उधर से भी आता सुनाई पड़ता है। गुरनाम बुरी तरह डर गया। वे लोग तो हाँका लगा कर उसे घेर रहे हैं।
वह नरभक्षी नहीं है, शेर भी नहीं है। मगर वे सब उसे नरभक्षी शेर घोषित कर मार डालना चाहते हैं। वह पीछे की तरफ पलट कर तेजी से दौड़ना शुरू कर देता है। अब उसके भागने को केवल वही दिशा बाकी बची थी। वह उन लोगों से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देता है। वह सोचता है कि अपने इस प्रयास में संभवतः वह बच जाए। परन्तु अभी उस दिशा में वह थोड़ी ही दूर जा पाया था कि उधर से भी वैसे ही ढोल-कनस्तर पीटे जाने का शोर नजदीक आता सुनाई देता है। वह ठिठक कर रुक जाता है।
तीनों दिशाओं से आने वाला शोर क्रमश: बढ़ता ही जाता है। चौथी तरफ राजकिशोर और दूसरे लोग हथियारों से लैस खड़े हैं। वह उस शोर से बचने के लिए अपने कानों को बंद कर लेता है। मगर पास आता वह शोर इतनी तेजी से बढ़ता है कि उसके कानों के पर्दे फाड़ता उसके दिमाग में ही घुसा जा रहा है।
धप्...धप्...धप् ....टन्...टन्....टन् धप्...धप्...धप् ....टन्...टन्....टन् ...!!!
तीखे शोर से गुरनाम की नींद टूट जाती है। सपना टूटते ही उसने स्वयं को अपने बिस्तर पर पसीने से सराबोर पाया। उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था। कमरे की पिछली खिड़की से पश्चिमोत्तर सूर्य की तीखी किरणें सीधी उसके चेहरे पर पड़ रही थीं। तभी धप्...धप्...धप् का वह शोर फिर उभरता है। कोई ज़ोर से उसके कमरे का दरवाजा पीट रहा था।
‘‘कौन है ?’’ अलसायी आवाज में उसने तौलिये से अपना पसीना पोंछते हुए पूछा।
बाहर से आवाज आयी, ‘‘गुरनाम जल्दी दरवाजा खोलो। मैं हूँ, जगदीश !’’
वह बिस्तर से उठा, नींद ठीक से पूरी नहीं होने के कारण दर्द से उसका सर फटा जा रहा था। एक पल को माथा थामने के बाद उसने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही जगदीश ने तेजी से भीतर घुस कर अपने पीछे दरवाजा बंद कर लिया। कुर्सी पर बैठते हुए वह बेहद चिन्तित दिख रहा था। उसकी वह तेजी गुरनाम के लिए अस्वभाविक थी।
‘‘क्या बात है जगदीश ? इतने चिन्तित क्यों हो? सब ठीक तो है ?’’ गुरनाम ने जानना चाहा।
जगदीश कुछ देर वैसे ही बैठा रहा फिर बोला, ‘‘तुम्हारा हॉस्टल में रहना मुझे सुरक्षित नहीं लग रहा। राजकिशोर अपने टाऊन वाले दोस्तों के पास गया हुआ है। तुम तो जानते हो, टाऊन के उसके दोस्त छंटे हुए गुण्डे ही हैं। विक्रम ने मुझे बताया, वह तुम्हारी इंदिरा गाँधी की हत्या वाली भविष्यवाणी की बात वहाँ अपने दोस्तों को बता कर उन्हें तुम्हारे खिलाफ भड़काना चाहता है।’’
उसकी बात सुन कर गुरनाम के भी होश उड़ गये, ‘‘मगर मैं ऐसी हालत में कहाँ जाऊँ ?’’
‘‘वही तो मैं भी सोच रहा हूँ। ऐसे माहौल में तुम्हारा कहीं बाहर जाना भी खतरनाक है।’’ जगदीश बोला, ‘‘जब से मुझे विक्रम ने यह बात बताई है, तब से मैं लगातार इसी बात पर सोच रहा हूँ। मेरे दिमाग में एक उपाय आया है, तुम कहीं मत जाओ। मगर सभी को ऐसा लगे कि तुम हॉस्टल में नहीं हो।’’
‘‘क्या ? कहीं ना जाओ और हॉस्टल में भी न रहो। ऐसा कैसे हो सकता है ?’’ गुरनाम ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘हाँ, एक उपाय से ऐसा हो सकता है। इसके लिए तुम्हें लीव एप्लीकेशन देना होगा। प्रीफेक्ट के नाम से अपना एप्लीकेशन लिख दो कि तुम दो-चार दिनों के लिए अपने लोकल गार्जियन के पास ‘जुलू पार्क’ जा रहे हो। मैं वो प्रीफेक्ट को दे कर कहूँगा कि मैं ही तुम्हें छोड़ने गया था। तुम्हारे कमरे पर बाहर से ताला लगा रहेगा। इससे ऐसा लगेगा कि तुम अपने कमरे में नहीं हो, जबकि वास्तव तुम यहीं अपने कमरे में रहोगे। तुम हॉस्टल में नहीं हो जान कर किसी का भी ध्यान तुम्हारी तरफ नहीं जाएगा। मैं निश्चित समय पर आकर तुम्हें खाना आदि पहुँचा दिया करुँगा। मगर खबरदार कमरे में तुम केवल टेबल लैम्प ही जलाओगे और किसी भी किस्म की आहट नहीं करोगे।’’
जगदीश की योजना सुन कर गुरनाम ने उलझन भरे स्वर में कहा, ‘‘इतना कुछ करने की क्या जरुरत है ? मैं सचमुच ‘जुलू पार्क’ चला जाता हूँ।’’
‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते। अब शाम होने को आई है। दिन भर तुम कमरे में रहे हो और मैं पूरे शहर में घूमता रहा हूँ। अब तक तो यहाँ कुछ नहीं हुआ, मगर इस शहर की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। यहाँ से ‘जुलू पार्क’ के लिए दो-तीन किलोमीटर का सफर निरापद कट जाएगा, इसकी क्या गारंटी है ? फिर मान लो तुम वहाँ सुरक्षित पहुँच भी गये, तो यह कैसे मान लिया जाए कि वहाँ कुछ अप्रिय नहीं होगा ?’’ जगदीश के तर्क अकाट्य थे।
‘‘...तो, ...तो क्या यहाँ मैं सुरक्षित रहूँगा ?’’ आशंकित गुरनाम ने अटकते हुए पूछा।
लेकिन तुरन्त ही उसे अहसास हुआ कि उसे वैसा नहीं पूछना चाहिए था। जगदीश एकाएक ही चुप हो गया था। वह ख़ामोशी से कुछ पल गुरनाम को देखता रहा। धीरे-धीरे उसकी आँखों में एक दृढ़ता छाती चली गई। जब उसने गुरनाम के प्रश्न का उत्तर दिया तो वही दृढ़ता उसकी आवाज़ में भी उतर आयी थी, ‘‘हाँ, तुम यहाँ सुरक्षित हो! ...जब तक मैं जीवित हूँ, तुम पूर्णतः सुरक्षित हो! ...और मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूँ।’’
गुरनाम उसकी एक-एक बात बड़े ध्यान से सुन रहा था। सारा कुछ उसे बहुत अजीब लग रहा था। लेकिन अब तक वह इतना जरुर समझ चुका था कि उसके सामने वही एकमात्र विकल्प बचा है।
उसने कहा, ‘‘ठीक है जगदीश, जैसा तुम उचित समझो।’’ उसने जगदीश के कथनानुसार अपना ‘लीव एप्लीकेशन’ लिख कर उसे दे दिया।
जगदीश ने उठते हुए कहा, ‘‘ठीक है, मैं चलता हूँ। अब रात को ठीक ग्यारह बजे तुम्हारा खाना ले कर आऊँगा। मैं बाहर से ताला लगा देता हूँ, तुम सिटकनी लगा कर दरवाजा अन्दर से बन्द कर लो। ध्यान रहे हमारा कोडवर्ड रहेगा ‘लोकल गार्जियन’। मैं जब बाहर से ताला खोल कर कोडवर्ड बोलूँ, तभी तुम अन्दर से सिटकनी खोलना। समझ गए न !’’
गुरनाम ने सहमति में सर हिलाया। जगदीश गुरनाम से ताला लेकर बाहर निकल गया।
ताला लगाते हुए उसने दरवाजे से मुँह सटा कर कहा, ‘‘गुरनाम तुम बिल्कुल न घबराना। मेरे रहते कोई भी तुम तक नहीं पहुँच सकेगा।’’
जगदीश चला गया था। उधर कमरे में अकेले बैठे गुरनाम के मन में विचारों का तूफान छिड़ चुका था। जगदीश का आना, उसकी बातें और फिर उसका जाना, सारा कुछ बड़ी तीव्रता से हुआ था। उस दौरान गुरनाम केवल सुनता रहा था, मानों उसके सोचने-समझने की शक्ति ही खत्म हो गई हो। अब जगदीश के चले जाने के बाद वह एक-एक सम्भावना पर ठण्डे दिमाग से विचार करने लगा।
पहला प्रश्न तो उसके मन में यही उठा कि क्या उसने जगदीश की बात मान कर ठीक किया ? कल तक तो वह उसका वैसा हितैषी नहीं था। उसका एकाएक गुरनाम के प्रति इतना ज्यादा मित्रवत् व्यवहार कहीं किसी षड़यंत्र की कोई कड़ी तो नहीं ? यह बात मन में आते ही गुरनाम की बेचैनी बढ़ गई। क्या वह सचमुच किसी षड़यंत्र का शिकार होने वाला है? उसे पश्चाताप् होने लगा, क्यों उसने इतनी जल्दी जगदीश की बात मान ली ? इस विषय पर उसे प्रकाश, संगीत, देवेश आदि से भी संपर्क करना चाहिए था। यदि सचमुच उसके विरुद्ध कोई षड़यंत्र रचा जा रहा है, तब तो अब वह बुरी तरह उसमें फंस चुका है।
अपने ‘लोकल गार्जियन’ के पास ‘जुलू पार्क’ जाने का एप्लीकेशन स्वयं लिखकर देने से तो उसने अपने हाथ ही काट लिए हैं। अगर वे लोग उसका कोई अहित कर दें या मार कर हॉस्टल से बाहर ही फेंक दें ....तो ? हॉस्टल के रिकार्ड में तो उसकी अनुपस्थिति दर्ज हो चुकी है। ...हे ईश्वर वह कितने भयानक षड़यंत्र में फंस चुका है! क्या वह अभी चीख-चीख कर हॉस्टल के दूसरे लड़कों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ले ? ....इसके आगे वह कुछ न सोच सका।
नहीं ...नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। तभी गुरनाम के विचारों ने पलटा खाया। जगदीश ऐसा नहीं कर सकता। अगर उसे वैसा कुछ ही करना होता तो सुबह मेरे साथ हुरहुरु चौक क्यों जाता ? अभी भी जब वह मेरे साथ आया था, तब कितना चिन्तित दिखाई दे रहा था। अगर उसके मन में चोर होता तो उसकी आँखें जरुर चुगली कर देतीं। आँखें कभी झूठ नहीं बोलतीं...।
यदि सब कुछ वैसा ही है जैसा जगदीश ने कहा है तो अभी शोर कर, दूसरे लड़कों को बुला कर वह जगदीश की सारी योजना गड़बड़ नहीं कर देगा ? तब वैसी स्थिति में मेरी सहायता करने के कारण राजकिशोर एण्ड पार्टी जगदीश की भी दुश्मन नहीं बन जाएगी ?
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कमल
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