आखर चौरासी
बाईस
हरनाम सिंह के घर से निकल कर, नेताजी अपने दल-बल सहित घर लौट कर फिर से अपना मजमा सजा कर बैठ गए। रेडियो पर उन दिनों सर्वाधिक विश्वसनीयता का दर्जा बी.बी.सी. के समाचारों को प्राप्त था। उनका समय हो चुका था। रेडियो चालू करते ही समाचार आने लगे। सब लोग खामोश हो गये।
रेडियो पर जब बताया गया कि दिल्ली और कानपुर के साथ-साथ बिहार के शहर बोकारो में भी भयानक दंगे हुए हैं, निर्दयता से सिक्खों का कत्लेआम किया गया है। तब नेताजी ने चहकते हुए कहा, ‘‘अरे देखिए, हमारे राज्य का नाम भी बी.बी.सी. पर आ गया। भई वाह, बोकारो ने अपना नाम बी.बी.सी. तक पहुंचा ही दिया। लगता है वहाँ भी काफी मार-काट हुई। बाकी जगहों पर तो लोग केवल लूट-पाट से ही शान्त हो गए।’’
उनके चहकते स्वर के मायूसी होते अंत से ऐसा लग रहा था मानो बी.बी.सी. पर बताये गये शहरों की संख्या तीन ही क्यों रह गई ? वह संख्या जितनी अधिक होती, उन्हें उतनी अधिक प्रसन्नता मिलती।
‘‘अपने यहाँ भी तो एक सिक्ख, गुरुद्वारा वाला ग्रंथी मारा गया है।’’ गोपाल चौधरी ने कहा।
‘‘एक-दो के मरने से कुछ नहीं होता।’’ नेताजी ने समझाया, ‘‘जब तक पचीस-पचास नहीं मारे जाते यहाँ का नाम रेडियो पर आने से रहा।’’
उनकी हाँ में हाँ मिलाने के लिए हरीष बाबू ने भी अपनी जानकारी उढ़ेली, ‘‘हाँ ये बात तो आप बिल्कुल ठीक बोल रहे हैं। दो-चार लोगों के मारे जाने की बात तो पुलिस ही दबा देती है। समाचारों में यदि दस लोगों के मरने की बात हो तो समझिए कि पन्द्रह-बीस तो जरुर मरे होंगे।’’
ऐसी ही चर्चाओं के बीच बैठकी समाप्त करने का समय हो चला था। लोग बारी-बारी से उठ कर अपने घरों की ओर जाने लगे थे।
वह रात बढ़ती ठंढ के साथ रफ्ता-रफ्ता गहरी होती जा रही थी। बदन में चुभता हवा का नश्तर तीखा होता जा रहा था। वह एक ही रात अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग सरोकारों वाली थी। नेताजी जैसों के लिए जश्न की तो हरनाम सिंह जैसों के लिए भय, चिन्ता व आशंकाओं वाली तो महादेव जैसों के लिए चौकस रहने वाली। चारों तरफ फैल चुकी थी वह गहरी, काली रात ....रात ....रात...।
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गुरनाम मेस से दोपहर का खाना खा कर लौटा था और अब सोने की तैयारी कर रहा था। सारी रात जग कर पढ़ने के कारण दोपहर को सोना उसके लिए जरुरी हो जाता है। तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई।
अपने सोने में संभावित खलल की आशंका में उसने बड़े बेमन से पूछा, ‘‘कौन है ?’’
‘‘मैं हूँ, जगदीश। दरवाजा खोलो।’’
उसने दरवाजा खोला। सामने खड़े जगदीश के चेहरे पर सामान्य भाव नहीं थे।
गुरनाम ने उसे अंदर आने का रास्ता देते हुए चिंतित सावार मेँ पूछा, ‘‘क्या बात है ?’’
‘‘क्या तुमने पिछले दिनों कभी कहा था कि ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ का बदला इंदिरा से जरुर लिया जाएगा ? अगर वो आज तक जिन्दा है तो इसका अर्थ ये नहीं कि उसे छोड़ दिया गया है।’’ कुर्सी पर बैठते हुए जगदीश ने पूछा।
अचानक से पूछे गये उस अजीब प्रश्न को सुन कर गुरनाम हत्प्रभ रह गया। फिर उसे अपनी स्मरण शक्ति पर काफी ज़ोर डालना पड़ा। वह उस दिन की छोटी-सी घटना को कब का भूल चुका था। काफी प्रयास के बाद उसे सारा वाकया याद आया। पहले राजकिशोर द्वारा धमकाये जाने और फिर क्लास में प्रोफेसर गुप्ता द्वारा खिंचाई किये जाने के बाद उस दिन जब वह कमरे में लौटा था। तभी संगीत पाण्डे ने किसी बात पर व्यंग करते हुए उसके जले पर नमक छिड़का था और बिल्कुल ‘रिफ्लैक्स एक्शन’ की तरह वह बात उसके मुँह से निकली थी। मगर वह तो काफी पुरानी बात है, जब संगीत, प्रकाश, देवेश और वह चारों एक ही कमरे में रहते थे। उतनी पुरानी बात की चर्चा आज जगदीश क्यों कर रहा है ?
‘‘हाँ, ऐसा हुआ तो था।’’ कहते हुए गुरनाम ने जगदीश को सारी घटना विस्तार से बताई, ‘‘मगर तुम्हें कैसे पता चला और तुम क्यों पूछ रहे हो ?’’
‘‘तब तो वह कोई विशेष बात नहीं थी।’’ जगदीश ने सामान्य होते हुए कहा। फिर कुछ पलों की चुप्पी के बाद वह बोला, ‘‘देखो गुरनाम तुम ज़रा सावधानी से रहना। आज मैं कॉमन रुम में बैठा टी.वी. देख रहा था। मैंने वहाँ राजकिशोर और विक्रम को बातें करते सुना था कि इंदिरा गाँधी की हत्या की भविष्यवाणी तुमने कैसे कर दी थी ? आज तुमने भी तो टी.वी. पर आ रही ख़बरें देखी ही होंगी। किस तरह दिल्ली में सिक्खों के खिलाफ लूट-मार हो रही है। सारा माहौल बिगड़ा हुआ है। ऐसे समय में छोटी-सी बात भी एक बड़ी अफवाह का रुप ले लेती है। मालुम नहीं उन दोनों को तुम्हारी इस बात का पता कैसे चला, मगर उनकी चर्चा का ढंग मुझे ठीक नहीं लग रहा था। उनकी बातें सुनने के बाद मुझे यह भी लग रहा है कि आज सुबह तुम्हारे साथ होटल में घटी उस घटना के बाद दुबारा तुम्हें अपने साथ ले कर मुझे होटल नहीं जाना चाहिए था। खैर...तुम्हें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। हॉस्टल में तो तुम्हारे साथ कुछ ऐसा-वैसा नहीं हो सकता। मैं कुछ होने भी नहीं दूँगा। फिर भी एहतियात के तौर पर मैं सोच रहा हूँ, तुम कमरे से बाहर मत निकलना। हॉस्टल से बाहर तो अकेले कहीं मत जाना। जिस चीज़ की भी जरुरत हो मुझे बता देना, मैं ला दूँगा।’’
गुरनाम अवाक् जगदीश को देखे जा रहा था। जिसकी बातें पिघले सीसे की भाँति उसके कानों में उतर रही थीं। उसके दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था।
...माहौल ठीक नहीं है। ...हवाओं में ज़हर-सा घुल गया है। इन बातों का अंदाज तो उसे सुबह ही हो गया था। सबों की नफरत भरी मानसिकता सिक्खों के खिलाफ अजीब-सी बनती जा रही है, इस बात को वह भी महसूस कर चुका था। लेकिन अपने हॉस्टल में ही वह असुरक्षित हो जाएगा, ऐसा उसने कतई नहीं सोचा था। जगदीश की बातें सुन कर अब पहली बार उसे अहसास हुआ कि पूरे हॉस्टल में वह अकेला सिक्ख है। अगर कोई गड़बड़ हुई तो इतने सारे लड़कों के सामने उस अकेले की भला क्या बिसात ? वह भीतर तक भय की लहर से काँप उठा। भय और असुरक्षा की भावना ने उसे पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया था।
‘‘कुछ दिनों पहले ही हॉस्टल सुपरिटेन्डेन्ट छुट्टी पर अपने गाँव गये हैं। वे यहाँ होते तो हमें चिन्ता करने की कोई जरुरत ना थी। तुम सुन रहे हो न गुरनाम ?’’ जगदीश ने पूछा। उसकी नज़रें गुरनाम के चेहरे पर बदलते रंगों पर ही टिकी थीं।
टोके जाने पर वह सजग हुआ, ‘‘आं हाँ, मैं सुन रहा हूँ।’’ उसने धीमे से उत्तर दिया।
जगदीश ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘वैसे भी तुम्हें बाहर निकलने की क्या आवश्यकता है ? इम्तहान सर पर हैं। कमरा बन्द कर चुपचाप पढ़़ते रहो, समझे !’’
‘‘हाँ, तुम ठीक कहा रहे हो। मैं कमरे में ही रहूँगा।’’ गुरनाम खोये-खोये स्वर में बोला।
उसके उत्तर से आश्वस्त हो कर उठते हुए जगदीश बोला, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूँ। दरवाजा ठीक से बन्द कर लो।’’
दरवाजा भीतर से बंद कर गुरनाम बिस्तर पर लेट गया। थोड़ी देर पहले नींद से बोझिल पलकों में अब दूर-दूर तक नींद का कोई नामोनिशान न था। जगदीश की बातों ने उसे भयभीत कर दिया था। उसे एकाएक माँ की याद आ गई।
रात को उसे डरावने सपने ना आये इसके लिए बचपन में बी’जी हर रात सोने से पहले एक ‘शबद ’ सुनाती थीं। वह भी उनके साथ-साथ उसे दोहराता था। गुरनाम ने अपनी आँखें बन्द कर लीं, हाथ जोड़े और बी’जी का सिखया वही ‘शबद’ बुदबुदाने लगा-
‘‘तेरे घर बैसो हरजन प्यारे,
सतगुरु तुमरे काज सँवारे
दूत दुष्ट परमेश्वर मारे
........................
........................’’
शबद को चार-पाँच बार दुहरा लेने के बाद उसका मन कुछ शांत हुआ। वह बार-बार वही पंक्तियाँ दुहराने लगा। दुहराते हुए उसे कब नींद आयी पता ही न चला।
जल्द ही उसका अवचेतन उसे सपनों की दुनियाँ में सैर पर ले गया। वह एक खुशनुमा दिन था। रोज की तरह तैयार हो कर खाना खाने के बाद वह कॉलेज जाने के लिए हॉस्टल से निकला तभी कहीं से आकर एक उड़नतश्तरी उसके सर पर मँडराने लगी। उस उड़नतश्तरी से निकलने वाली ढेर सारी नीली-पीली रोशनी की किरणे उसे घेरने लग गईं। आसपास की सारी चीज़ें एक-एक कर उस रोशनी की चमक में ओझल होती जा रही थीं। फिर चारों तरफ चैंधियाता प्रकाश अचानक ही खत्म हो गया। जब उसने स्वयं को देखा तो उसे पता चला कि अनजान उड़नतश्तरी की तिलस्मी रोशनी ने उसका कायान्तरण एक शेर में कर दिया है। उसके चारों तरफ का दृष्य भी पहले जैसा नहीं था। इसके पहले कि वह उन सब के कारण पर कुछ सोचता, वहाँ राजकिशोर अपने कुछ लोगों के साथ आ पहुँचा। गुरनाम की तरफ इशारा करते हुए वह चीखने लगा, ‘‘देखो नरभक्षी शेर ! इसे तुरंत मार डालो !’’
वह उसकी बातें सुन कर डर गया। उसने कहना चाहा ‘कि वह कोई शेर नहीं है और नरभक्षी तो बिल्कुल ही नहीं है। वह तो कॉलेज जाने के लिए निकला था। तभी न जाने कहाँ से वो उड़नतश्तरी आ कर उसके सर पर मँडराने लगी और देखते ही देखते उसने मेरा कायान्तरण कर दिया। उसका विश्वास है, गिनिपिग की तरह वह जरूर किसी वैज्ञानिक प्रयोग की बलि चढ़ गया है। न जाने उड़नतश्तरी इसी पृथ्वी की थी अथवा किसी बाहरी अनजान ग्रह से आयी थी। राजकिशोर मुझे पहचानो, मैं गुरनाम हूँ। जल्दी से जल्दी मुझे प्रोफेसर गुप्ता के पास ले चलो। वे मुझे जरुर बचा लेंगे। मैं फिर से अपने वास्तविक रुप में आ सकूँगा।’
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कमल
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