ऐ जिंदगी........... pradeep Kumar Tripathi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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ऐ जिंदगी...........

1.
ऐ जिंदगी आ तुझे कुछ इस तरह से, आजमाया जाए।।
मैं जिन्दा भी रहूँ और, मर कर के दिखाया जाए।।
वो मुझसे नाराज है, मालूम है मुझको।
चल उसकी नाराजगी को, थोड़ा और बढ़ाया जाए।।
वो नाराजगी में भी मुझे थोड़ा, सा भी दुख होने नहीं देेता ।।
सोचता हूँ आज उसके प्यार, को थोड़ा आजमाया जाए।।
ऐ ईश्वर मुझे कुछ, ऐसा भी आजमाया जाए।
मैं भक्ति करूं तेरी और मुझे भक्त भी न बनाया जाए।।
2.
चलो ईश्क का पैगाम लिखते हैं, उन्हें उन्हीं का नाम लिखते हैं।
वो मेरे हैं ये क्या लिखें, वो मेरे सिवा किसी के नहीं ये एहतराम लिखते हैं।।
3.
वो एक शक्स था जो जिंदगी नहीं पर जिंदगी था।
वो शक्स बेवफा नहीं पर बेवफा था ।।
4.
''देश के वीर जवान''

मैंने देखा कल सुबह सुबह शरहद के मैदानों में।
कुछ फूल खिलें हैं नये नये शरहद के मैदानों में।।
मैंने देखा कल..............
कुछ माली भी हैं वहाँ जो रक्षक हैं बागानों में ।
उन फूलों को कोई तोड़ न ले रस्ते बीच बिछाने में।।
मैंने देखा कल..............
उन फूलों को पाल रहे वो महबूबए बतन बनाने में।
कुछ लोग लगे हैं उस फूलों को महबूब बदन सजाने में।।
मैंने देखा कल...............
उन फूलों को सहेज रहे हैं दिल के मंदिर को सजाने में।
कुछ लोग लगे हैं उन फूलों को अर्थी बीच सजाने में।।
मैंने देखा कल.................
उन फूलों को फिरो रहा वतन पर शहीद जवानों में।
कुछ लोग लगे हैं उन फूलों को गर्दन बीच घूमने में।।
मैंने देखा कल..................
उन फूलों ने उन फूलों से लगे हैं राष्ट्र का मान बचाने में।
कुछ लोग लगे हैं उन फूलों की मेहनत को धूर बनाने में।।
मैंने देखा कल....................
आओ मिलकर हम सब भी कुछ भेंट तो उन वीरों को दें।
अपना प्यार भरा दिल कुछ पल उन कदमों में रख दें।।
हम उनका भार उतारने में सक्षम नहीं सात जन्म में।
मैंने देखा कल.................

5.
अये दोस्त तेरी दोस्ती को कुछ इस तरह से निभाउं।
तुझसे दोस्ती तो करलू और तुझे दोस्त भी ना बनाऊ।।

6.
मैं एक किसान हूँ........

हांथों में इसके कलम नहीं है सायद ये मेरा भरम नहीं है।
लगता है ये किसान है भाई मेरे जैसा करम नहीं है।।
ये धरती को कोड़ने जा रहा सायद उसमें कुछ बोने जा रहा।
सायद इसको मालूम नहीं है धरती में अभी जान नहीं है।।
हांथो में इसके कलम…..............
ये तो बारिश को मात दे रहा धूप दीप का साथ दे रहा।
सायद इसको मालूम नहीं है सूखे की ऋतु दूर नहीं है।।
हांथों में इसके कलम................
फिर भी खुश होकर काम कर रहा खून पसीना एक कर रहा।
सायद इसको मालूम नहीं है बाजारों में मजमून नहीं है।।
हांथों में इसके कलम..................
फसलें उसकी तैयार पड़ी है घर में उसके उत्साह भरी है।
सायद उसको मालूम नहीं है बादल का घट दूर नहीं है।।
हांथों में इसके कलम...................
ओले गिरने से फसल तो इसकी सारी बर्बाद हुई है।
अब इसके परिवार को भूखें मरने के दिन दूर नहीं है।।
हांथों में इसके कलम...................
ये सारे परिवार तो मिलाकर एक जून खा कर खुश रहते हैं।
आशाओं का खून नहीं है हिम्मत से बड़ा जुनून नहीं है।।
हांथों में इसके कलम....................
फिर से यह धरती कोड़ने जा रहा उसमें कुछ बोने जा रहा है।
सायद इसको मालूम नहीं है धरती में अभी जान नहीं है।।
हांथों में इसके कलम नहीं है सायद ये मेरा भरम नहीं है।।