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सैलाब - 22

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 22

भीमाशंकर जी के दर्शन करके वे वापस लौट आए। शतायु के लिए यह यात्रा बहुत ही रोमांचक और सुखप्रद रही। वह अपनी परेशानी भूलकर एक अलग ही दुनिया में सैर कर रहा था। उसके लिए तो जैसे यह एक नयी दुनिया थी। हँसी खुशी से भरी एक चमकती दुनिया। उसे आश्चर्य हो रहा था की लोग इस तरह खुशी और आनंद से जीवन बसर कर सकते हैं। उसे बहुत खुशी हुई कि देर से ही सही वह जाग उठा।

सोहम की छुट्टियाँ खत्म हो गई। इन चार दिनों में वह अपनी माँ पावनी और पिता राम से जितना प्यार बटोर सकता था, बटोर लिया। सेजल से छोटी छोटी नोंक झोंक, प्यार दुलार याद के लिए उन पलों को कैमरे कैद कर लिया। सोहम ने माँ, पिताजी राम और शतायु के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। शतायु ने भी उसे गले लगा कर बिदा किया। ऐसी छोटी छोटी बातें ही तो रिश्तों को मजबूत करती है। सोहम घर वालों से बिदा ले कर वापस अपने काम पर लौट गया।

काफ़ी रात हो चुकी थी और बिन्दु घर जाने को तैयार हुई, "ऑटी! मैं घर जा रही हूँ, सेजल तो अभी दो दिन रहेगी, मैं बाद में आऊँगी।"

"आज यहीं रूक जाओ बिंदु काफी रात हो गई है।"

"नहीं ऑटी माँ इंतजार करती होगी। "

"ठीक है मैं फोन करके बता देती हूँ, आज की रात यही रूक जाओ ढेर सारी बातें करेंगे।" सेजल ने कहा।

"नहीं सेजल मुझे प्रोजेक्ट पूरा करके कल कॉलेज में देना है। फिर कभी रुक जाउँगी और घर यहीं पास ही तो है चली जाउँगी चिंता मत कर।"

"नहीं काफी रात हो चुकी है मैं शतायु को तुम्हारे साथ भेजती हूँ वह तुम्हें घर तक छोड़ देगा।"

"नहीं, ऑटी मैं चली जाऊँगी।"

"एक मिनट रुको।" कह कर उसने शतायु को साथ जाने को कहा। सेजल और शतायु बिन्दु के साथ उसके घर तक छोड़ने गये। सेजल और बिंदु दोनों साथ-साथ चल रहे थे और शतायु उनसे कुछ दूरी रख कर चल रहा था। सेजल और बिंदु आपस में बात करते हुए उसके घर पहुँचे। बिन्दु ने दोनों को घर के अंदर बुलाया।

"नहीं अभी नहीं तुम अंदर जाओ हम चलते है।" कह कर वे वापस आने लगे। रास्ते में शतायु ने सेजल से बिंदु के बारे में पूछा। सेजल ने उसके बारे में और उसकी नारी कल्याण संस्था के बारे में बताया। इतनी छोटी उम्र मे उसकी मेहनत, धैर्य और सोच को जान कर शतायु उसे दाद दिए बिना रह नहीं पाया।

कुतूहल वश उसने पूछा, "क्या हम उस संस्था के बारे में और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं? क्या उसके ऑफिस जाकर देख सकते हैं कि संस्था किस प्रकार से महिलाओं की मदद करती हैं।"

"क्यों नहीं! कल जब बिंदु घर आएगी हम भी उसके साथ चलते हैं। मुझे भी देखना है।"सेजल ने कहा।

दूसरे दिन बिंदु के घर आने पर सेजल ने उसके ऑफिस जाने की जिद्द की। "ठीक है चलो मैं लेकर चलती हूँ।" कहकर बिन्दु, शतायु और सेजल को अपना दफ्तर दिखाने साथ लेकर गयी। वे बस से ठाणे पहुँच कर वहाँ से ऑटो करके उसके ऑफिस में पहुँचे। बिंदु का ऑफिस सिर्फ दो ही रुम का था। एक रूम जरूरत मंद और मदद के लिए आने वाले लोगों के लिए बैठक थी। दूसरे रूम में दो कुर्सियाँ और एक टेबल रखा हुआ था। जहाँ पावनी, बिंदु व अन्य लोग बैठते थे। उनके काम करने का लेखा जोखा विवरण के साथ, काम करने की प्रणाली और लोगों के सलाह सूचना लेने के लिए कागज और फाइलें थी।

जैसे ही बिंदु ने ऑफिस में प्रवेश किया दो महिलाएँ उठ खड़ी हुई। बिंदु उन दोनों से कुछ बातें करके कुछ ही देर में लौट आयी। उन्हें बैठने को कह कर शतायु को और सेजल को लेकर अंदर गई। उन्हें अपनी कार्य प्रणाली के बारे में समझाया। शतायु ने बहुत ध्यान से सारी बात सुनी, कुछ नये तरीके अपनाने को कहा। कुछ मुश्किलों का सामना कैसे किया जा सकता है इस बारे में बिन्दु से चर्चा की। दोनों चर्चा में इस तरह मग्न थे कि सेजल की उपस्थिति को कुछ समय के लिए भूल गये। शतायु और बिंदु को इस तरह चर्चा करते हुए देख कर वह चुप चाप बैठी रही। शतायु को बिंदु से बात करते हुए देख कर सेजल को ऐसा लग रहा था जैसे कि वह शतायु की जगह किसी नये इंसान को देख रही हो क्यों कि शतायु को किसीसे इतनी सहजता से घुलमिल कर बात करते हुए उसने कभी नहीं देखा था। दोनों की बातें जब खत्म हुई सेजल को चुप चाप बैठे हुए देख कर वे जाने के लिए उठे। बिंदु की पारदर्शिता देख कर शतायु आश्चर्य चकित रह गया।

सेजल ने घर आते ही समय देख कर राम और पावनी से कहा, "माँ आज शतायु मामा को देख मुझे यूँ लगा किसी नए इंसान को ही देख रही हूँ। पता है बिंदु के साथ कितने अच्छे से बातें कर रहे थे, मुझे लगा गलती से किसी ऑफिसियल मीटिंग में आ गयी हूँ।"

"अच्छा ये तो बहुत अच्छी बात है, शतायु मामा अगर सब से घुलमिल रहे हैं इसका मतलब उन्हें यहाँ अच्छा लग रहा है। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है? उसे यहाँ बुलाने का मकसद भी तो यही था।"

तब राम ने कहा, "बिलकुल उस दिन पिकनिक में बहुत खुश नज़र आ रहा था और उसके होंठों पर मुस्कुराहट भी देखी थी मैंने।" यह सुनते ही पावनी का चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा। वह मुस्कुरा कर कहा, "हे भगवान! मेरी सुन ले, शतायु को थोड़ी सी बुद्धि दे कि सब भूल कर वह खुश रहे।"

"भगवान जरूर सुनेंगे। अगर उस वातावरण से निकल कर यहाँ आ जाए तो वह भी बाक़ी लोगों के जैसे हँसी-खुशी रहने लगेगा।" पावनी ख़ुशी के आँसू पोंछते हुये कहा।

सेजल किचेन में खाना पकाने में पावनी की मदद कर रही थी।

"माँ भाई पहुँच गया होगा ना? अभी तक फ़ोन नहीं किया।" सेजल ने सोहम को याद करते हुए कहा।।

"शायद, कुछ ही देर में पहुंच ही जाएगा। पहुँचते ही फ़ोन कर देगा।"

"भाई के लिए डब्बे में लड्डू भर के दिये है कि नहीं? उसे आप के हाथ के लड्डू बहुत पसंद है।"

"हाँ दिया है ना और थोड़ा सा नमकीन भी दिया है। कुछ दिनों के लिए तो चल जाएगा। पता नहीं वहां क्या खाता पीता है। ऑफिस से लौटते ही थक जाता होगा फिर खाना बनाना बच्चों की बात तो नहीं और अभी अभी तो उसकी नौकरी लगी है।"

"हाँ माँ। भाई को नौकरी करने के पहले ही खाना बनाना सीख लेना चाहिये था ना?" चेहरे को बेचारगी लाते हुये सेजल ने कहा।

"हट पगली! तुझे मज़ाक सूझ रहा है? तू भी जब खाना बनाने लगेगी न तब देखूँगी।" गाल पर प्यार से हाथ थपथपाते कहा।

"सेजल अब तुम बताओ हॉस्टल ले जाने तुम्हारे लिए क्या पैक करूँ? कुछ नमकीन, दो प्रकार की मिठाईयाँ बना देती हूँ। वहां जा कर अपनी सहेलियों के साथ बाँट कर खाना।"

तब सेजल ने पावनी को याद दिलाते हुए कहा, "माँ, आप तो केरला जाने वाले थी, फिर वहाँ जाने की तैयारियाँ कब करोगी ? अब तो सिर्फ चार दिन ही बचे हैं।"

"बस हो जाएगा अभी तो और चार दिन है । पैकिंग ही तो करनी है ।"

"मैं आपका बैग पैक कर देती हूँ। आप आराम से जाकर आना।" सेजल ने कहा।

"नहीं रहने दे सेजल मैं कर लूँगी। तुझे और भी काम है। कल तुझे निकलना है और अभी तक शॉपिंग भी बाकी है। जा! पापा के साथ जा कर तेरे लिए जो भी जरुरी चीज़ें लेनी है ले लेना। नहीं तो फिर वहाँ पहुँचते ही फोन करोगी मम् ये नहीं है, वो भूल गई आप ने याद नहीं कर वाया। जाते वक्त अपना सामान याद से रख लेना।" किचन का सामान समेटते हुए पावनी ने सेजल से कहा।

"माँ आप भी न , अभी मैं बच्ची हूँ क्या?"

"हाँ बिल्कुल तुम अभी बच्ची ही तो हो। "

".... मम्। आप भी ना ... ।" कहते हुए वहाँ से चली गई। पावनी मुस्कुराती रह गयी।

शतायु चाहे कुछ ही दिन के लिए ही मुंबई में रहा हो लेकिन बिंदु के उपर उसका प्रभाव कुछ इस तरह पड़ा की वह रात दिन शतायु के बारे में बात करने लगी। जब वह मुंबई में था बिंदु हर काम में शतायु की सलाह लेती थी। शतायु भी हर काम में बिंदु की मदद करता था। वह भोपाल के हादसे के बारे में और वहां चिल्ड्रन केअर होम के बारे में बिंदु को बताता रहता और बिंदु उसकी सारी बातें ध्यान से सुनती। कुछ ही दिनों में वे दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त बन गये।

शतायु को बिंदु से एक अपनापन मिला जिससे दोनों के बीच दोस्ती गहराने लगी। बिंदु स्वाभाव से बहुत रिजर्व्ड होने के बावजूद शतायु की हर बात सुनती और योग्य सलाह लेती। बिंदु से वह अपने सारे दुःख बताता और बिंदु उसकी हर बात को समझने की कोशिश करती। शतायु उसके बचपन, अतीत और परिवार से जुड़ी खुशियाँ के बारे में बताता रहता और बिंदु शांत मन से सुनती रहती।

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