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सैलाब - 21

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 21

दूसरे दिन उन्होंने सूर्योदय से पहले उठ कर आँगन में भोगी जलाई। यह आंध्र प्रदेश का एक विशेष पर्व है। इस पर्व को तीन दिन तक मनाया जाता है। घर के आँगन में रंग बिरंगी रंगोली बना कर बीच में गोबर(गाय के गोबर) के छोटे छोटे गोले बना कर रखते हैं। उस गोबर के गोले को फूल पत्तियों से सजाकर गांव की कन्याएँ 'गोब्बीळ आम्मा गोब्बीळू' कहते हुए रंगोली के चारों तरफ नृत्य करती हैं। झूला झूल कर अपनी खुशियों को जाहिर करती हैं।

गांव की गलियों से छोटी-मोटी लकड़ियों से ले कर बड़ी और पुरानी चीजों को इकट्ठा कर भोगी जलाई दी जाती है। कहते हैं कि ये टूटे फूटे व वर्जित सामान नकारात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं। आग में इन टूटी फूटी चीजों को जला कर नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस तरह पुरानी चीजों को जलाने के बाद दूसरे दिन नये चावल से एक विशेष तरह का व्यंजन 'पोंगल' बना कर प्रसाद की तरह पूजा करके सेवन करते हैं।

नये वस्त्र धारण कर जीवन में सुख सौहार्द का खुशी खुशी स्वागत करते हैं। सुंदर वस्त्र, कौड़ी और झुमके आदि से बैल को सजा कर उस से नृत्य करवाते हैं। उस बैल को 'वासवय्या' कहाजाता है। साथ हरीदास भी रहते हैं जो हरि भक्ती के गाने गा कर सबके मन को बहलाते हुए उस वासवाय्या को गली-गली घर-घर घुमाते हैं और नृत्य करवाते हैं। हरिदास के कहने पर वासवाय्या सिर हिला कर पैरों से ताल दे नृत्य कर लोगों को रिझाने की कोशिश करता है। लोग श्रद्धा और भक्ति से उस बैल के मेजबान हरिदास को तरह-तरह के व्यंजन पैसे और चावल उपहार स्वरूप प्रदान करते हैं।

शहर की जिंदगी में ये सब कहाँ होता है? हर प्रदेश के रिवाज अलग होते हैं। भारत में न जाने कितने मजहब धर्म और भाषा के लोग रहते हैं। हर एक भाषा और धर्म के लोगों का पहनावा त्योहार, भाषा, खान-पान और जीवन शैली अलग होती है। एक शहर से दूसरे शहर एक राज्य से दूसरे राज्य की त्योहारों और जीवन शैली में भी भिन्नता देखने को मिलती है। फिर अब गांव और शहर के बीच का फासला भी बढ गया है। शहर की जिंदगी और गांव की जिंदगी में काफ़ी अंतर है। जहाँ गांव के लोग हर पर्व व त्योहार एक परिवार की तरह मनाते हैं। वहीं शहरों में लोगों के पास मिल जुल कर त्योहार मनाने के लिए वक्त ही नहीं होता। अपने-अपने कार्य भार से जूझते लोग मशीन की तरह बन गए हैं और रस्म रिवाज सिर्फ घर तक सिमट कर रह गये हैं।

मुम्बई में संक्रांति मात्र नये वस्त्र, नये चावल से शुरू हो कर मिठाई और पोंगल के साथ खत्म हो जाती है। पावनी का परिवार आंध्र से आ कर महाराष्ट्र के मुंबई शहर में बस गया है। आंध्र का संक्रांति पर्व, वहाँ का पहनावा, लोगों का मस्ती-मज़ाक शोर-गुल आपसी नजदीकियाँ सब अब यादों में ही रह गया है। भोगी और संक्रांति अपने तरीके से मनाने के बाद वे सब लोनावला की ओर निकल गए। सोहम, सेजल, बिंदु, बिंदु का भाई ओमकार, शतायु, विनिता, गौरव, राम और पावनी सभी तैयार हो कर सुबह गाड़ी ले कर चल पड़े। रास्ते में रूक कर कहीं नाश्ता-चाय पीते थे तो कहीं प्रकृति के सौदर्य को कैमरे में कैद करते हुए चलने लगे थे। शतायु पहले से ही शांत शर्मीला और अपने में खोया हुआ रहता है। सोहम बिंदु और सेजल बहुत मस्ती कर रहे थे। एक दो बार बिंदु ने शतायु से बात करने की कोशिश की पर शतायु की चुप्पी देख कर वह पीछे हट गई।

बिन्दु, सेजल के कान में फुसफुसा कर बोली, "तुम्हारे मामा हमेशा ऐसे ही रहते हैं क्या कभी किसी से ढ़ंग से बात करना नहीं जानते? ऐसे लोगों के साथ जीना कितना बोरिंग होगा न।"

"स्.. चुप वह मेरे मामा हैं वह हमेशा ऐसे ही चुप चुप रहते हैं। किसी से ज्यादा बात नहीं करते |"

"ज्यादा? मुझे लगा कि वह गूंगे तो नहीं हैं?"

"स्.. मेरे मामा के बारे में ऐसा मत बोल। वे बहुत अच्छे हैं, बस चुप चुप रहते हैं और उसका कारण भी है।"

"अच्छा बाबा नहीं कहूँगी । चल गाड़ी में बैठते हैं।"

कुछ ही देर में वे लोनावला की एक नदी के पास पहुँच गये। वहाँ गाड़ी से उतर कर प्रकृति के सौंदर्य का आस्वादन करने रुक गए। सेजल, बिंदु ओमकार पानी में खेलने चले गये, सोहम भी पानी में उतर गया। शतायु, राम और गौरव के साथ किनारे पर बैठा रहा। पावनी और विनिता भी पानी में उतर कर एक पत्थर पर बैठ गई। गौरव राम और शतायु पानी को दूर से ही देख रहे थे। गौरव ने शतायु से पूछा, "आप भोपाल में क्या करते हो?"

"बस सरकारी स्कूल में शिक्षक हूँ साथ ही एक छोटा फार्म है जिसकी देखभाल करता हूँ।" शतायु ने जवाब दिया।

"आपका परिवार?"

"बस मैं और बेबे, यही मेरा परिवार है।"

"आप ने अभी तक शादी नहीं की?"

"जी नहीं।"

"पर क्यों कोई खास वजह? कोई प्रेम का चक्कर तो नहीं।" मुस्कुराते हुये पूछा।

"जी नहीं ऐसी कोई बात नहीं। मन नहीं था इसलिए नहीं की।"

तुरंत ही राम ने कहा, "कब तक शादी किये बिना जिंदगी अकेले अकेले काटोगे शतायु, घर बसा लो दु:ख सुख में दो बात करने के लिए कोई अपना होना चाहिए।"

"जी अब तक उस बारे में कुछ सोचा नहीं है।"

"ऐसे बातें ज्यादा सोचते नहीं है 32 साल के हो गए हो अब शादी कर ही लेना चाहिए। उम्र ढल जाए इससे पहले शादी कर लेना जरूरी है।"

शतायु चुप रहा। "मेरी नजर में एक लड़की है बात चलाऊँ ?" राम ने पूछा।

"क्या मौसा जी आप भी ।"शरमाते हुए कहा।

"नहीं सच कह रहा हूँ शतायु बहुत सुंदर और सुशील लड़की है कहो तो बात चलाऊँ?" राम ने कहा ।

शतायु कुछ नहीं बोला। वह स्वत: बहुत शर्मीला था और मौसा जी की बात को टाल नहीं सकता था। वह सेजल बिंदु और सोहम की ओर देखता रह गया। किसी बात को ले कर बिंदु जोर जोर से हँसने लगी। शतायु को उसका बे फिकर हँसना अच्छा लगा। यूँ तो उस के खिलखिलाते हुये हँसते चेहरे और आँखों की चमक देख कर किसी मुर्दे में भी जान आ जाए।

शतायु को मौसी के घर पहुँच कर दो दिन बीत चुके थे। उसके सामने से बिंदु न जाने कितनी बार गुजरी होगी पर अब तक उसने ठीक तरह से उसे देखा भी नहीं था। अचानक उसकी खिलखिलाती हँसी ने शतायु का सारा ध्यान उसकी तरफ खींच लिया। शतायु ने पहली बार किसी लड़की की तरफ ध्यान से देखा था। पानी में खेलती हुई बिन्दु किसी बात पर जोर जोर से हँस रही थी उसे देख कर अनजाने में शतायु के होंठों पर मुस्कुराहट खिल गई। राम ने गौरव से बात करते हुए जब शतायु की ओर देखा वह शतायु के होंठों पर मुस्कुराहट देख कर आश्चर्य से देखता रह गया।

वे जब लोनावला पहुंचे लंच का समय हो गया था। होटल में पहुँच कर सबने अपने अपने कमरे में विश्राम किया। शाम को तैयार हो कर वे पहाड़ियों के सौंदर्य दर्शन करने के लिए चल पड़े। दूर से घने कोहरे के बीच पहाड़ियाँ बहुत ही सुंदर और मन मोहक लग रही थीं। उपर से गिरता हुआ जल प्रवाह जैसे सफेद चद्दर का एहसास दे रहा था। ढ़लते हुए सूरज के साथ ठंड का असर भी बढ़ रहा था। ठंडी के चलते होंठ काँप रहे थे। शॉल को शरीर पर लपेटे हुए प्रकृति का सौंदर्य देखना अपने आप में ही रोमांचक था। पहाड़ों से गिरता हुआ नदी प्रवाह का जल हरी-भरी पहाड़ी के बीच से निकल कर खाई में कहीं दूर धरती पर खोता जा रहा था एक गमगीन पथिक की तरह। इस नदी का जल लहराते बलखाते, पत्थरों के बीच से राह निकालते धरती की गोद में बहते हुए न जाने कहां दौड़े जा रहा था।

पावनी और विनिता भी पहाड़ी की चोटी पर खड़े हो कर खाई में अदृश्य हो रही गमगीन नदी की ओर ताक रहे थे। संध्या की रंगीन किरणें नदी के जल में बिखरी हुई थी। यूँ प्रतीत हो रहा था कि जैसे अभी अभी सूरज नदी में नहा कर निकल रहा हो। उसमें झलकती किरणें रंग बिरंगी साड़ियों में लिपटी हुई गंधर्व कन्याओं की भांति नज़र आ रही थी। सेजल, सोहम इस सौंदर्य को कैमरे में कैद कर रहे थे। जब असमान में चाँद चमकने लगा वे प्रकृति के इस अद्भुत नज़ारे देख कर अचंभित थे। इस तरह वह शाम भी सुहानी गुजरी।

दूसरे ही दिन वे लोग भीमाशंकर जी के दर्शन भी कर आये। भीमाशंकर में प्रसिद्ध शिवजी का ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में पुणे से 132 किमी दूरी पर स्थित है। यह एक बहुत प्राचीन मंदिर है धरती से 1032 मीटर की ऊँचाई पर है। यहां से पूरा पहाड कोहरे से ढ़का हुआ नज़र आता है। यहाँ का मौसम हमेशा खुशगवार रहता है। भीमाशंकर जाते हुए सर्पिल रास्ते के एक तरफ ऊँची पर्वतमालाएँ और दूसरी तरफ अगाध खाई। पहाड़ों से गिरते हुये जल प्रवाह नीचे कहीं अदृश्य हो रहे थे। सघन कोहरे का कोमल दुधिल स्पर्श शरीर में नाज़ुक सा कंपन पैदा कर रहा था। प्राकृतिक सौंदर्य से हरे भरे पेड़-पौधों और कोहरे के बीच आधा ढका हुआ सूरज प्रकृति की सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था। हम मंत्रमुग्ध से सब कुछ देख रहे थे।

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