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सैलाब - 2

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 2

अंधेरी कोठरी में उन काली रातों की यादों को भुलाने का प्रयत्न कर रहा था। जब भी आँखें बंद कर सोने की कोशिश करता, कोई साया सपने में आ कर मन को विचलित कर देता था। उसने आकाश की ओर देखा, आकाश में सूरज के उदय होने में बहुत समय था। वह हाथ को चेहरे पर रखकर सोने की कोशिश करने लगा लेकिन उसे नींद भला कैसे आती। एक के बाद एक विचार उसके दिमाग में जैसे घर कर रहे थे। चेहरे पर से हाथ हटा कर देखा, कमरे में अब भी अँधेरा राज कर रहा था। एक छोटा सा बल्ब दूसरे कमरे में जल रहा था शायद इसलिए हल्की सी रोशनी से उसका कमरा धुंधला सा नज़र आ रहा था।

उस कमरे में शतायु के पलंग के साथ एक टेबल रखी हुई थी जिस पर कुछ किताबें, कलम और एक पुराना टेबल लैंप रखा था। शतायु को रात में उठ कर पानी पीने की आदत है इसलिए शतायु की बेबे पानी भरे लोटे पर एक ग्लास को उल्टा ढक कर टेबल पर रख देती थी। कमरे में टेबल के सामने अब भी वही पुरानी चेयर रखी है जो वर्षों से उसकी खिदमत में हाजिर है।

कमरे के एक कोने में लकड़ी से बनी एक अलमारी रखी है। जिस पर बहुत ही सुन्दर से नक्काशी की गयी है। वह शतायु की बहुत पसंदीदा अलमारी है क्यूँकि उस अलमारी के साथ शतायु की बहुत सी पुरानी यादें जुड़ी हैं। इस अलमारी को शतायु की माँ ने बड़े चाव से खरीदा था। उसके एक कोने में अब भी उनके कपड़े रखे हुए हैं। जब भी शतायु को माँ की याद आती, वह उन कपड़ों को गले लगाकर रो कर मन का बोझ हल्का कर लेता था। इस आलमारी को शतायु अपनी जान से ज्यादा संभाल कर रखता है।

उस कमरे की दीवारें कुछ घिस गई थीं जैसे कि दीवारों पर बहुत दिनों से रंग नहीं लगाया गया है। दीवार की एक तरफ एक खिड़की है, जो रात को मच्छरों के भय से बंद रखनी पड़ती है। दूसरी तरफ कुछ तस्वीरें टंगी हुई हैं, जिन पर फूलों के हार चढ़ाए हुए थे जो अँधेरे में साफ़ साफ़ नज़र नहीं आ रही थी। कमरे के दूसरे कोने में एक स्टेंड रखा हुआ है, जिस पर कपड़े सजाकर रखे हुए हैं।

उस कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए एक दरवाजा था जो अंदर से खुलता है, दरवाज़ा खुलते ही दूसरे कमरे की सजावट कुछ हद तक दिखाई देती थी। उस कमरे में शतायु की बेबे रहती है। उसकी सजावट कुछ खास नहीँ थी, बस एक कोने में दो चेयर और एक छोटी सी मेज रखी हुई है। उस की एक दीवार पर एक ऐनक टंगी हुई है, साथ कुछ जरूरी सामान भी रखा हुआ था। देखा जाए तो बस जिन्दा रहने के लिए दो लोगों के लिए जितनी चीज़ें आवश्यक हैं उतनी ही चीजें उस घर में मौजूद थीं। कमरे से पीछे की तरफ देखें तो एक छोटा सा रसोई घर, एक कोने में चूल्हा और साथ साथ कुछ बरतन रखे हुए थे।

एक वीरान सा घर जिसमें दो प्राणी रहते हैं। लेकिन एक ऐसा भी दिन था, जब उसका घर भी रौनक से भरा हुआ रहता था। शतायु के माँ, दादी, दादा, बाबा इन सबसे घर हमेशा खुशहाल रहता था। माँ बाबूजी के प्यार से खिल खिलाती हुई एक नन्हा बच्चा जो संपूर्ण परिवार की आँखों का तारा था। माँ के गोद में सारे जहां का प्यार उसे मिल रहा था जिसका वह पूरा हक़दार था। लेकिन कुदरत के सामने कौन भला क्या कर सकता है। आज माँ की कुछ यादोँ के अलावा उसके जीवन में बाकी सारी चीज़ें गायब हो गयी हैं। बस कुछ यादें हैं जो शतायु के जहन में आज भी ताज़ा है। वही कुछ पल है जो उसने जिंदगी भर के लिए सीने में समेट रखें है।

उसे याद है बाहर बगीचे में बैठी उस की माँ बाहर निकलते हुए चाँद को दिखा कर शतायु को परियों की कहानी सुनाती थी। वह चुपचाप माँ की गोद में सिर रख कर पल्लू से खेलते हुए सुनता था, बीच बीच में बहुत सारे सवाल एक साथ करता रहता था।

- माँ, परियाँ सच में होती हैं? क्या वह हमारे जैसी होती हैं? वे क्यूँ दूर आसमान पर रहती हैं? वे वहाँ कैसे पहुँचीं? धरती पर क्यूँ नहीं रहतीं? क्या हमसे बात कर सकती हैं? वह हमसे मिलने क्यूँ नहीं आती हैं?

एक साथ इतने सारे सवाल सुन कर शतायु की माँ पवित्रा हँस देती और कहती - हाँ बेटा, परियाँ होती हैं, जब अच्छे लोग भगवान के पास चले जाते हैं तो वे परी बन जाते हैं।

- माँ, परियाँ आकाश में कहाँ रहती हैं?

शतायु की माँ चंदा मामा की ओर हाथ दिखाते हुए कहती - वह दूर आसमान में जो चंदा मामा का घर दिख रहा है, परियाँ वही रहतीं हैं। दिन के उजाले में घर चली जाती हैं और जब रात होती है, सारी परियां बाहर निकल कर आकाश में टिमटिमाती रहती हैं।

शतायु पूछता – माँ, आप भी भगवान के पास जाओगी तो परी बन जाओगी? आप भी बहुत ही अच्छी हो न, तो फिर मुझसे रोज़ मिलने आया करोगी न परी माँ बन कर? वह बहुत ही नासमझ और मासूम सा सवाल कर बैठा।

माँ ने हँसते हुए कहा - हाँ, अगर ऐसा वक्त आए तो समझ लेना मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तारा बन कर, तुम जब चाहो मुझसे बात कर लेना।

- सच माँ, आप परी माँ बन कर मुझ से बात करोगी? उसने बहुत ही सहज स्वर में पूछा।

पवित्रा शतायु का माथा चूम कर गोद में सुलाकर पीठ थपकाते हुए कहती - जरूर बेटा, आपको छोड़कर हम रह सकते हैं भला?

घनघोर अँधेरे के बीच चाँद की रोशनी की तरह वे यादें और वे कुछ पल शतायु के मन के अंधकार को दूर कर आश्वासन देते लेकिन वे पल ही उसके जीवन को ऐसे घने अँधेरे की ओर ले जाएंगे यह कभी भी सपने में सोचा नहीं था। ऐसी ही एक अंधेरी रात शतायु को ही नहीं सारे शहर को ऐसे अंधकार में डुबो देगी इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।

बस यही कुछ बातें हैं जो शतायु के कानों में आज तक गूँजती रहती हैं। वह खुद को कोसने लगता - कहीं उसकी बातों के असर ने उसके दामन से ममता तो नहीं छीन ली? उसकी जिंदगी सूनी तो नहीं कर दी? वह पल उसकी जिंदगी में इतना भारी पड़ जाएगा, वह सोच भी नहीं सकता था।

शतायु ने आकाश की ओर देखा। दूर कहीं कुछ तारे टिमटिमा रहे थे। बादलों से चाँद भी बाहर आने को तत्पर था। आकाश कुछ कुछ साफ़ होने लगा था। लेकिन शतायु के मन का गहरा अँधेरा अभी मिटा नहीं था। उसका मन उदास था। आज फिर से वह रात आ ही गयी। वह मन ही मन अपने माँ को आवाज़ दे रहा था।

- माँ! कहाँ हो आप? क्यों हमें अकेले छोड़ कर चली गयीं? क्या अपराध था हमारा? क्यों? ऐसे कई सारे प्रश्न उसके मन को विचलित कर देते थे। वह अपने हाथों से खिड़की को प्रहार करता रहा। आंखों में आँसू लिए टिमटिमाते तारों को देखता रहा। एक तारा आकाश से टूट कर धरती की तरफ बढ़ते हुए कुछ ही क्षण में गायब हो गया।

शतायु ने समय देखा, साढ़े चार बजने वाले हैं। बिजली भी आ चुकी थी। वह सीधा घर के पीछे की ओर गया, वाशरूम में मुँह हाथ धोकर तौलिया कंधे पर लिए अन्दर आते-आते, दूसरे कमरे में झाँक कर देखा, बेबे सिर के नीचे हाथ रखकर सोयी थी। बिना तकिये सिर के नीचे हाथ को तकिए जैसे रखकर सोना बेबे की आदत थी। पहले तो शतायु उन के सो जाने के बाद तकिया लेकर सोयी हुई बेबे का सिर उठाकर उसके नीचे तकिया रख देता था और चुप चाप जा कर सो जाया करता था। मगर सुबह उठकर देखता, तकिया उन के आसपास कहीं भी नज़र नहीं आता था। एक दिन शतायु ने पूछा - बेबे, आप को तकिए के बिना नींद कैसे आती है, मैं तो तकिये के बगैर सो ही नहीं पाता।

उन्होंने कहा - बचपन से आदत है न बाबा। हाथ को जब तक सिर के नीचे न रखो तो नींद ही नहीं आती। फिर तकिये की क्या जरूरत, भगवान के दिए हुए हाथ काफी हैं।

शतायु ने फिर कभी इस बात का जिक्र नहीं किया।

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