सैलाब - 23 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सैलाब - 23

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 23

उन दोनों के बढ़ता हुआ मेलजोल विनिता और गौरव को परेशान करने लगा। आखिर दोनों के उम्र और तजुर्बे में बहुत फरक है। बिन्दु को उसके उम्र से कई साल बड़े शतायु से प्यार हो जाये तो? शतायु ने जिंदगी की खुशियों को कबूल करना छोड़ ही दिया था। वह जैसे अभी अभी बिंदु की आँखों से दुनिया देख रहा था और जीना सीख रहा था ।

राम और पावनी का आशीर्वाद लेकर शतायु भोपाल लौट गया और सेजल होस्टल चली गई। जब कभी बिंदु पावनी के घर आती पावनी से शतायु की तारीफ करते नहीं थकती। शतायु के बारे में पूछती। पावनी ने बहुत बार उसकी आँखों में शतायु के लिए प्यार देखा था। शतायु की बातें करते करते उसकी आँखें नम होते भी देखा था। पावनी ने उसकी बेचैनी और उसकी मन की आहट को पहचान लिया था।

बेबे ने शतायु के एक नये रूप को देखा। उसके चेहरे पर एक चमक थी। सालों बाद अपनों के साथ उसे एक नयी ऊर्जा मिली। वह भोपाल पहुँचते ही ख़ुशी से बेबे के गले लग गया। आखिर वही तो है शतायु के लिए माँ बाप सब कुछ।

"बेबे आपकी तबीयत कैसी है ?" शतायु ने पूछा |

" ठीक है, तू बोल कैसे दिख रही हूँ?"

" बिलकुल अच्छी दिख रही हो बेबे।"

".. और तू कैसा है ? पावनी बच्चे सब ठीक तो है ?" शतायु को देख बेबे बहुत खुश थी।

"हाँ बेबे मौसी और उनके बच्चे सब बिल्कुल ठीक है ।"

"..और क्या हाल है, मुंबई में सब घूम के आया है? कोई कष्ट तो नहीं हुआ?"

"नहीं बेबे बल्कि बहुत खुश हूँ। वहाँ के लोग बहुत अच्छे हैं। मैंने तो मुंबई शहर भी देखा और सोहम सेजल बिंदु सब से मिला। और.."

" अच्छा! बहुत अच्छी बात है । सब से मिला और राम कैसा है ?"

" मौसा? मौसा तो बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे पिछले बरस यहाँ आते वक्त थे। बिल्कुल नहीं बदले, मौसी थोड़ी मोटी हो गई। बच्चे पढ़ने के लिए बाहर चले गए, तो घर में बहुत अकेली पड़ जाती है। इसलिए ज्यादा चिंता करती रहती है। वैसे बिंदु आती जाती रहती है..." कहते कहते रूक गया।

" लेकिन ये बिंदु कौन है? ये नाम पहले कभी सुना ही नहीं और तेरी ख़ुशी देख लगता है कि अब मेरा बच्चा भी घर परिवार वाला बन जाएगा।"

"बिंदु सेजल की दोस्त और विनिता ऑटी की बेटी है और कुछ नहीं। मेरी भी अच्छी दोस्त बन गयी है। हमेशा हँसती खिलखिलाती रहती है। पता है बेबे वह इतनी छोटी उम्र में ही एक संस्था चलाती है। बहुत अच्छी लड़की है। पावनी मौसी भी उसकी मदद करती हैं।"

"अच्छा तो ये बात है इसलिए इतना खुश है मेरा बच्चा। वही तो सोचूँ अचानक ही तेरे आँखों में चमक कैसी ?"

"ऐसी कोई बात नहीं बेबे, सब से मिल कर आया हूँ तो ख़ुशी होगी ही ना। अब बोलिए आप समय पर दवा लेती हो कि नहीं ?"

"हाँ बाबा! ले रही हूँ, देखता नहीं कि बिल्कुल हट्टी कट्टी हूँ।"

"रमेश आया था कि नहीं? उससे मैं ने कहा था कि आपकी देख भाल करने को।"

"हाँ, बेटा वह तो हमेशा पूछता रहता था कि तू कब आएगा। तेरे बिना तो उसका एक एक पल भारी था। फिर वह न आता कैसे? बाबा उस लड़की .. के बारे में कुछ और बताना।"

"कौन सी लड़की बेबे? किसके बारे में पूछ रही है? सेजल? हां सेजल तो अच्छी है बेबे तुम भी चलो न मुम्बई, तुम्हें भी घुमाकर ले आता हूँ।"

"मेरी चिंता छोड़, तू खुश है यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है और इस उम्र में कहाँ घूमने जाना बस राम राम कहते कहते आँख मूंद जाए इतना ही चाहती हूँ। चल तू जा तैयार हो जा।"

" ठीक है बेबे! मुझे नहा कर स्कूल जाना है गरम पानी रख दो न।"

"तू बैठ थक कर आया है, मैं अभी पानी गरम करने के लिए रख कर आती हूँ।" कह कर बेबे किचन की ओर बढ़ गई।

शतायु कुछ ही देर में तैयार हो नाश्ता खा कर निकल गया। बेबे शतायु को खुश देख कर बहुत खुश थी। उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर खिलखिलाहट बस यही देखने के लिए तो वह तरस गई थी। उसका खिला हुआ चेहरा देख कर शतायु की बेबे को जैसे सौ हाथियों की ताकत आ गई थी।

उसने जल्दी जल्दी खाना बनाना शुरू कर दिया ।

पावनी बहुत दिनों बाद कंप्यूटर खोलकर कुछ लिखने बैठी। स्वयं के एहसासों में से कुछ शब्द कुछ जज़्बातों को जोड़ कर लिखने कि कोशिश करती रही। समय के साथ साथ रिश्तों की कश्ती को पकड़ कर रखे तो थी लेकिन कभी कभी बदलता समय उसे परेशान करता रहता। वह अपनी जिंदगी के कुछ खट्टे मीट्ठे अहसासों को शब्दों के साँचे में ढाल कर लिखती रहती। जब पावनी लिखने बैठती जाने कितना समय बीत जाता समय का होश ही नहीं रहता। शाम होने को आयी। सूरज का लाल पीला रंग, घर के अंदर के आईने में प्रतिबिम्बित हो कर पावनी के चेहरे पर रंग बिखेरने लगा। वह अपने काले घनेरे लंबे बालों को पीछे धकेल कर कंप्यूटर छोड़ कर बाल्कनी में आ कर खड़ी हो गयी।

अचानक देवेंद्र की याद आयी। कई दिन हो गए उससे बात करके। उसे अब तक समझ आ गया होगा कि मैने उसे ब्लॉक कर दिया है। लेकिन क्या मैने सही किया कहीं मैं जो सोच रही हूँ वह उसके दिल में हो ही न। लाल गुलाब के साथ "लव यू.." कहना आज कल तो फैशन बन गया है लेकिन नहीं मैं इसे कोई गलती नहीं मान नहीं सकती यानी मैने जो भी किया सही था।

शाम की सुनहरीकिरणें और धीमी धीमी सुगंध मिश्रित पश्चिमी हवा उसके बालों को सहलाते हुए गालों को स्पर्श कर रही थी। सुवर्ण रंग के आकाश पर लाल रंग की चुनरी जैसे धरती को स्पर्श कर रही थी। हरे भरे लंबे लंबे पेड हवा की सुरीली ताल पर नाच रहे थे। दूर बगीचे से बच्चों की किलकारियाँ, घर लौटते हुए पक्षियों की चहचहाहट, दूर मंदिर में घंटियों की गूँज कानों में मीठे संगीत सी लग रही थी। दूर आकाश में सांझ का तारा टिमटिमा रहा था। शाम को सांझ के तारे को निहारते रहना उसे अच्छा लगता था।

जब छोटी थी तब वह घर की बालकॉनी में बैठ कर पढ़ाई करती थी। सांझ तारा जब नीले आकाश पर उबर आता था वह उस तारे से ढेर सारी बातें करती थी जैसे कि वह तारा उसका साथी संगी हो। कभी सोचती उस तारे से कोई परी या प्रेमी निकल आए और उसका हाथ पकड़ कर दूर आकाश में सैर कराने ले जाए जहाँ चाँद तारे खिलखिलाते रहते हैं और उन सब के बीच वह खुदको कभी अकेली महसूस न करे। प्रकृति के सौंदर्य के बीच सांझ तारे को देख कर उसके मन में वह सारी यादें ताज़ा हो गयी।

पावनी कॉलिंग बेल बजने की आवाज़ से चौंक कर इस दुनिया में आई।

"लगता है राम आगये।" सोचते हुए पावनी ने जा कर दरवाजा खोल कर देखा। राम ऑफिस से लौट आया था।

***

कुछ महीने यूँ ही गुजर गए। इस दौरान राम और पावनी केरल यात्रा पूरी करके आये। पावनी को पति के संग अकेले कुछ समय बिताने का मौका मिला। उसकी बहुत दिनों की इच्छा पूरी हुई। केरल के प्राकृतिक सौंदर्य में राम के साथ कुछ फुरसत के पल पावनी के लिए बहुत ही ख़ुशी के पल रहे। केरल के गाँव गलियों में घूमने का मज़ा वहां का रहन सहन लोगों की आत्मीयता ने उसे बहुत प्रभावित किया। उनके घर और हर घर के सामने एक बड़ा सा आँगन, गलियारों में बेतरतीब खेलते हुए बच्चे एक सुरक्षित सा माहौल पैदा कर रहे थे।

केरल में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ नैसर्गिक संपदा के खजाने भरे पड़े हैं। भोजनादि सामग्री ख़ास नारियल तेल से ही बनती है। इस की खशबू और गुणवत्ता की वजह से इस तेल को अधिक से अधिक उपयोग में लाया जाता है। रास्ते के दोनों तरफ नारियल पेड़ों पर मटकियाँ बाँध कर रखी गयी थी। पावनी वहां के माली से कारण पूछ बैठी। उसने मलयाली और हिंदी मिश्रित शब्दों में बताया - नारियल पेड़ से निकले रस से एक तरल पदार्थ तेड्डू बनता है, जो एक नशा है वहां के लोग त्योहारों में इसे बड़े चाव से पीते हैं।

इसके अलावा यहां ख़ास है, केले के चिप्स जो नारियल तेल में तले हुए होते हैं । केरल में नारियल, केले, चाय और कॉफ़ी का उपयोग भी बहुत होता है। केले के पत्ते पर भोजन करना इनको बहुत पसंद है। इस शहर में कई छोटे बड़े प्राकृतिक तालाब हैं जिनमेँ बोट हाउस में सैर किए जाने की सुविधा भी है। उसी बोट हाउस पर टूरिस्टों का स्वयं मछली पकड़ना और उन्हीं मछलियों से खाना बना कर खिलाना भी एक आह्लाद का विषय है।

***