धनिया Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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धनिया

धनिया

फुट पाथ पर पडी धनिया भंयकर प्रसव पीडा से तडप रही थी, बेचारा सुखिया इस शहर मे किसी को जानता भी नही जो उसकी सहायता के लिये आता।

कुछ दिन पहले ही सुखिया अपनी धर्मपत्नी धनिया को लेकर शहर आया था। पूरा गांव बाढ की चपेट मे आ गया था, घर द्वार सब बाढ मे बह गये किसी तरह सेना के जवानो ने बाढग्रस्त गांवों से लोगों को सुरक्षित निकाला।

जान तो किसी तरह बच गयी अब रोजी रोटी की चिंता सताने लगी, सरकारी सहायता भी कुछ दिन मिली अब तो खुद ही सोचना था और यही सोचकर सुखिया अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर शहर आकर रिक्शा चलाने लगा, वंही फुटपाथ पर अपना रहने का ठिकाना बना लिया ।

पत्नी प्रसव पीडा से तड़प रही और सुखिया लाचार बस देखता ही रहा कोई सहायता के लिये नही आया, दूसरे रिक्शा वाले सभी मर्द थे अकेले रहते तो चाहकर भी उसकी कोई सहायता नही कर सकते थे ।

साथी रिक्शा वाले ने अस्पताल ले जाने की सलाह दी एवं सहायता करके उसने अपनी ठेला रिक्शा मे लिटाकर धनिया को अस्पताल तक पंहुचाया ।

सेठ धनीराम कंई दिनो से काफी बीमार थे, मरने वाली हालत थी लेकिन प्राण नही निकल रहे थे, डा. बार बार वेंटीलेटर लगाकर सेठ जी को बचाने की कोशिश मे लगे थे। सेठ धनीराम शहर के नामी सेठ थे कंई बाजार, बहुत से भवन बनाकर सेठ जी ने किराये पर चढा रखे थे। बहुत सारा काला सफेद धन जोडकर रखा था । सेठ जी को जैसे लगता कि उसका अंतिम समय आ गया है तो सेठ जी को अपनी सारी धन सम्पत्ति याद आने लगती और सेठ जी के प्राण फिर उन सब मे अटक कर रह जाते, हालत बिगडती देख डा. भी बचाने की कोशिश मे लग जाते और वेंटीलेटर लगा देते।

स्वर्ग लोक मे हलचल थी, ब्रह्मा जी से सेवक कह रहा था, 'भगवन! धनिया भयंकर प्रसव पीडा से तडप रही है आप वंहा किसी प्राणी को भेज क्यों नही देते जिससे उसका प्रसव हो जाये और उसको पीडा से मुक्ति मिले।

तभी ब्रह्मा जी ने यमराज को उपस्थित होने का आदेश दिया।

ब्रह्मा जी ने यमराज से पूछा, 'सेठ धनीराम के प्राण लेकर अभी तक यमदूत क्यों नही आया, सेठ धनीराम को धनिया के गर्भ से पुनर्जन्म लेना है, धनिया भयंकर प्रस्व पीडा से तडप रही है अगर शीघ्र ही प्राण नही भेजे तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

यमराज ने ब्रह्मा जी से विनम्रता पूर्वक कहा, ' सेठ धनीराम के प्राण लेने मैने अपने सबसे कुशल यमदूत को भेजा है लेकिन बार बार उनके प्राण किसी ना किसी मोहमाया मे उलझ जाते हैं उनकी धन सम्पत्ति का पूरे शहर मे जाल बिछा है और उसी जाल मे उनके प्राण अटक रहे हैं जो काफी उलझकर रह गये, शीघ्र ही यम दूत उस मोहजाल को काटकर सेठ धनी राम के प्राण आपके पास उपस्थित कर देगा।'

यमराज अपनी पत्री देखते हैं और ब्रह्मा से बताते हैं, 'भगवन मृत्यु तो धनिया की भी है, मेरा एक यमदूत उसके पास ही खडा है, जैसे ही वह बच्चे को जन्म देगी मेरा यमदूत उसके प्राण खींचकर ले आयेगा और उसको भी तो सेठ धनीराम की पुत्रवधु के गर्भ से पुनर्जन्म लेना है।'

तभी यमदूत सेठ धनीराम के प्राण लेकर उपस्थित होता है, ब्रह्मा जी बिना विलम्ब किये सेठ धनीराम के प्राण धनिया के पैदा होने वाले बालक मे डाल देते हैं। धनिया एक स्वस्थ बेटे को जन्म देती है लेकिन बच्चे की किलकारी के साथ ही धनिया की आवाज बंद हो जाती ।

डा. दोनो हाथ जोडकर सुखिया से माफी मांगता है और कहता है, 'आपकी पत्नी ने एक सुंदर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया है लेकिन अफसोस हम आपकी पत्नी को नही बचा सके।' डा. सभी औपचारिकतायें पूरी करके नवजात शिशु एवं धनिया के शव को सुखिया को सौंप देता है। सुखिया रोता बिलखता अपनी रिक्शा की टोकरी मे बच्चे को लिटाकर पत्नी के शव को रिक्शा की सीट पर बांधकर किसी तरह अपने ठिकाने पर ले जाता है।

पत्नी का अंतिम संस्कार करके घर आया तो बेटा बुरी तरह रो रहा था, भीगी पलकों व कांपते हाथों से बेटे को गोद मे लेकर भरपूर प्यार किया, लडखडाती जबान से बस यही बोल पाया, 'बेटा तेरी माँ धनिया तेरे रूप मे अपनी निशानी मुझे देकर सदा सदा के लिये चली गयी अब तो बस तू ही मेरे जीने का सहारा है।'

सुखिया ने बेटे का नाम धनुष रखा, धनिया व सुखिया दोनो का ही नाम धनुष मे आ गया लेकिन जो सुखिया नही जानता था वह था सेठ धनीराम का नाम इस जन्म मे धनुष हो गया।

सुखिया ने अपनी रिक्शा मे धनुष को लिटाने का प्रबंध कर लिया एवं रिक्शा चलाते समय भी बच्चे को अपने साथ ही रखता।

जहां भी सुखिया रिक्शा लेकर जाता धनुष भी रिक्शा की टोकरी मे लेटे लेटे सब देखता रहता। जब धनुष को भूख लगती तो वह रो पडता, सुखिया समझ जाता कि बच्चा भूखा है और वह दूध की बोतल का निप्पल उसके मुंह मे लगा देता।

कहते हैं कि जब तक बच्चा बोलना नही सीखता तब तक उसे अपने पिछले जन्म का सब याद रहता है। धनुष को भी अपना पिछला जन्म याद आता और वह अच्छी बुरी बातें सोच सोच कर कभी हंसने लगता और कभी कभी जोर जोर से रोने लगता। एक दिन जब सुखिया रिक्शा लेकर सेठ धनी राम की हवेली पर गया तो धनुष ने हवेली पहचान ली और उसको रिक्शा वाले के बारे मे भी याद आ गया कि यह तो वही रिक्शा वाला है जो मुझे रोज मेरी हवेली पर छोडता था और मै इसको डांट कर हमेशा कम पैसे दिया करता था। धनुष सोचने लगा ,' मैने कितना गलत किया भगवान मुझे बता देते कि यह रिक्शा वाला मेरा बाप होगा तो मै इसको पूरे पैसे दे दिया करता जो आज मेरे ही काम आते।' आज धनुष को अपने पिछले जन्म के कर्मो पर बहुत पछतावा हो रहा था।

जैसे जैसे धनुष बडा होता गया बोलना सीख गया तो उसको अपनी पूर्व जन्म की सारी यांदें भूल गयी अब वो सिर्फ सुखिया का बेटा था सुखिया रिक्शा वाला एक गरीब बेघर बाप....

सुखिया बेटे धनुष को रिक्शा की टोकरी मे लिटाये लिटाये ही सवारियाँ ढोता रहता, जब बच्चा रोता तो दूध की बोतल उसके मुंह मे लगा देता। कभी कभी सुस्ताने के लिये बैठता तब बच्चे को गोद मे लेकर दुलारता प्यार करता व धनिया को याद करके आँसू बहाता रहता। धनुष को अपना पिछला जन्म रह रहकर याद आता अपने पिछले जीवन मे कमाई गयी अपार धन सम्पत्ति के बारे मे सोचकर उसे बडा दुख होता एवं सोचता, 'मैने किसलिये इतनी धन सम्पत्ति जोड कर रखी, इतना धन जोडने के लिये ना जाने कितने लोगों के साथ हेरा फेरी की ना जाने कितने लोगों को धोखा दिया और ना जाने कितने लोगों के साथ बेईमाना किया लेकिन यह सब मेरे किस काम आया।'

धनुष को अपना धनीराम वाला पूरा जीवन याद आ रहा था लेकिन वह किसी से कुछ भी नही बता सकता था क्योंकि उसको बोलना नही आता था ।

एक दिन धनी राम का बेटा और बहु अपनी बेटी को गोद मे लिये रिक्शा मे बैठे, सुखिया रिक्शा खींच रहा था, धनुष सब देख रहा था। अपने पिछले जन्म के बेटे बहु व पोती को देखकर धनुष बहुत खुश हुआ, कुछ कहने की कोशिश की लेकिन मुंह से शब्द ही नही निकल पाये, अपनी मजबूरी पर उस दिन धनुष बहुत रोया चुप ही नही हो रहा था सुखिया ने रिक्शा रोककर धनुष को गोद मे उठाकर दुलारने लगा लेकिन धनुष और जोर से रोने लगा। धनी राम के बेटे ने दूसरी रिक्शा पकड ली सुखिया को पैसे भी नही दिये, उनके चले.जाने पर धनुष चुप हो गया और सोचने लगा, ' मै भी गरीबों के साथ ऐसा ही व्यवहार करता था कभी भी उनको उनकी मेहनत का पूरा पैसा नही दिया आज मै खुद गरीब हो गया, मुझे ऐसा नही करना चाहिये था।