मन्नू की वह एक रात - 23 Pradeep Shrivastava द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मन्नू की वह एक रात - 23

मन्नू की वह एक रात

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग - 23

‘यह क्या फालतू बात कर रहे हो। मुझ बुढ़िया से शादी करोगे।’

इस पर वह बोला,

‘फालतू बात नहीं कर रहा हूं, जो कह रहा हूं सच कह रहा हूं। इतना कह कर उसने अपना सिर मेरी गोद में रख दिया। फिर रो पड़ा। उसके दोनों हाथ अब मेरी कमर के गिर्द लिपटे थे। उसके गर्म आंसू मेरे पेट को गीला किए जा रहे थे। मैं इस अप्रत्याशित घटना से एकदम हतप्रभ थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ये क्या हो रहा है। ये नई मुशीबत क्या है ? इस लड़के को क्या हो गया है ? पगला गया है, मुझ से शादी करने के लिए बोल रहा है। काफी सोचती-विचारती रही। वह मेरे पेट को गीला किए जा रहा था।

कुछ देर में अपने को सम्हालने के बाद मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया। आंसूओं से तरबतर था चेहरा। मुझे लगा मामला बहुत गंभीर है। इसे गुस्से नहीं प्यार से समझाना होगा। यह भ्रमित है। उसका भ्रम दूर करना ज़रूरी है। नहीं तो यह कुछ गलत क़दम भी उठा सकता है। यह बातें कुछ ही सेकेण्ड में मेरे दिमाग में कौंध गईं। मैंने उससे बाथरूम में जाकर मुंह धोकर आने को कहा। लेकिन वह नहीं उठा तो मैं खुद जग में पानी ले आई और अपने हाथ से उसका मुंह धोकर तौलिए से पोंछा। फिर चाय, नमकीन, बिस्कुट ले आई। उसे खिला-पिला कर जब कुछ शांत कर पाई तो कहा,

‘चीनू तुम पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति हो। ऐसी बेसिर पैर की बात कैसे सोच ली।’

मैंने एकदम झूठ बोलते हुए कहा ‘मैं कहां साठ साल की बूढ़ी औरत, ज़िदगी के कुछ ही साल रह गए हैं और तुम्हारे पास तो अभी जीने को पूरा जीवन पड़ा है। अभी तुमने ज़िंदगी जी ही कहां है। अभी तो तुम्हें बहुत दुनिया देखनी है। तुम्हारे लिए एक से बढ़ कर एक पढ़ी-लिखी सुंदर लड़कियों के रिश्ते आ रहे हैं। उनमें से अपनी मन पसंद कोई लड़की चुन लो, उससे शादी करके ज़िंदगी को जियो, ज़िदगी के वास्तविक सुख का आनंद लो। मुझ बुढ़िया के चक्कर में कहां पड़े हो ?’

'‘क्या आपके मन में मेरे लिए कोई प्यार नहीं है ?’'

उसकी यह बात सुन कर मैं फिर हड़बड़ा गई। किसी तरह अपने पर काबू पा कर उससे कहा,

‘प्यार करती हूं ..... बहुत करती हूं पर वह प्यार नहीं कि तुमसे शादी की सोचूं। यह असंभव है चीनू।’

‘'तो इतने दिनों से जो संबंध हैं हम दोनों के वह बस ऐसे ही हैं।'’

‘देखो चीनू हम दोनों के बीच जो वास्तविक रिश्ता है वह सिर्फ़ चाची-भतीजे का है। जिस संबंध की तुम बात कर रहे हो वह तो एक विकृति है। गलत है उसमें कोई प्यार नहीं है। वह तो सिर्फ़ दैहिक आकर्षण है। देह की भूख है। परस्पर विपरीत लिंग के देह का आकर्षण। और यह हम दोनों के बीच जो हुआ यह एकदम गलत है।

समाज को पता चल गया तो लोग हम पर थूकेंगे भी नहीं। हां यह जो गलत हुआ इसके लिए मैं अपने को ज़िम्मेदार मानती हूं। पूरी तरह से मैं ज़िम्मेदार हूं। एक अजीब सी स्थिति में न जाने किस भावना में मैं बह गई उस दिन। और वह पापपूर्ण क़दम उठा बैठी। मैं तुम्हें ज़िम्मेदार कहीं से नहीं मानती। एक किशोर विपरीत लिंग के प्रति जैसे आकर्षित होता तुम भी उन दिनों उसी तरह स्त्री शरीर के दीवाने थे। तुम जो बराबर मेरे शरीर की ताक- झांक करते रहते थे वह मुझ से छिपा नहीं था। मैं तुम्हारी हर हरकत के मर्म को समझती थी।

कहते हैं औरत बहुत भावुक होती हैं। भावुक क्षणों में वह बड़ी जल्दी बिखर जाती हैं। या वह एक ऐसे पके फल के समान होती है जो मर्द का हल्का शीतल स्पर्श पाते ही उसकी गोद में गिर जाती है। उस दिन मैं भी भावनात्मक स्तर पर इतना टूट चुकी थी कि तुम्हारे जैसे लड़के मतलब की भतीजे के स्पर्श से ही बिखर गई। मेरी जिंदगी का यह सबसे पापपूर्ण कृत्य है जिसकी मुझे जो सजा मिले वह कम है। मेरे तुम्हारे बीच रिश्ता प्रेमी-प्रेमिका का नहीं है, न ही हो सकता है। और पति-पत्नी की बात तो सोची ही नहीं जा सकती। तुम अपने दिलो-दिमाग से यह फितूर निकाल दो और जो लड़की पसंद हो उससे शादी कर के अपना जीवन संवारो।

मेरे साथ अपना जीवन बरबाद मत करो। रही मेरी बात तो मैं वह महल हूं जिसकी एक-एक ईंट हिल चुकी है। महल कब ढह जाए इसका कोई ठिकाना नहीं है। इसलिए फिर कहती हूं कि हमारा तुम्हारा यह शारीरिक संबंध निकृष्टतम विकृति है। और यह अच्छी तरह जान लो कि विकृति हमेशा घृणापूर्ण होती है, दुखदाई होती है। अपमानपूर्ण होती है। फिर हम दोनों जिस विकृति का शिकार हैं वह तो इतनी खराब है कि जब सेक्स का तुफान गुजर जाता है तो खुद अपनी ही नजर में इतना अपमान घृणा पश्चाताप महसूस होता है कि लगता है कि जमीन फट जाए और उसी में समा जाऊं।’

'‘मुझे आपकी यह सारी बातें बकवास लगती हैं। अरे! जब इतना ही अपमानपूर्ण लगता है तो इतने बरसों से मुझ से बार-बार संबंध क्यों बनाती आ रहीं हैं। माना पहली बार आप भटक गईं। पर दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार और फिर इतने सालों से बार-बार। ये क्या तमाशा है। चाची जिसे भटकाव या जो तुम बोल रही हो कि पका फल हो टूट कर गिर जाती हो मेरी गोद में सब बकवास है झूठ है।

भटकाव एक बार होता है। बार-बार नहीं। यह सालों से चला आ रहा हमारा तुम्हारा संबंध भटकाव नहीं है। पूरी तरह सोचा, समझा, जाना, परखा संबंध है। और मैं इस संबंध को जीवन भर बनाए रखना चाहता हूं। क्योंकि इसके अलावा मुझे कुछ और स्वीकार नहीं है। इसलिए अगर तुम्हें यहां डर है तो चलो कहीं और चलें । किसी ऐसे शहर में जहां हम दोनों अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जी सकें। तुम मुझ पर भरोसा रखो चाची, मैं ये नौकरी भी छोड़ दूंगा, किसी दूसरे शहर में कुछ और कर लूंगा। बस तुम मेरे साथ चलो चाची।'’

चीनू ने बड़े सख्त लहजे में कही थीं ये बातें। उसकी आवाज़़ उसके एक-एक शब्द से मैं अंदर तक सिहर जा रही थी। मगर मैंने सोचा कि अगर इस समय दिमाग से काम न लिया तो यह बात बहुत बड़ा बवंडर पैदा कर देगी। सो मैंने संतुलन बनाए रखा। धैर्य नहीं खोया। बड़े प्यार से कहा,

‘चीनू मेरी बात को पहले ध्यान से सुनो। स्थिति को ठीक से समझो। इसके बाद कुछ बोलो। ये सब फ़िल्मों में बड़ा आसान लगता है कि चलो भाग चलें। या हीरो पूरी दुनिया को ठेंगे पर रख कर कुछ भी कर डालता है। हक़ीक़त में यह सब नहीं होता। ज़िंदगी बहुत कठोर है। आज तुम सिर्फ इसलिए इतने उतावले हो मेरे साथ शादी करने और जीवन भर साथ रहने के लिए क्यों कि एक खा़स किस्म के शरीर का स्वाद जो तुम्हारे दिलो-दिमाग पर चढ़ गया है उसके तुम दीवाने हो।

जिस दिन इस स्वाद से जी भर जाएगा तो आज मेरा जो शरीर तुम्हें जान से प्यारा है वही कल एक बदबूदार कचरा नजर आएगा। यह लगाव महज हवस के कारण है। इसलिए जहां एक बार एक छत के नीचे चौबीस घंटे एक साथ निभाए तो जी उकता जाएगा। अलग भागते हमें देर न लगेगी। रही बात कि इतने दिनों से कैसे चला आ रहा है रिश्ता ? तो बात बड़ी साफ है कि अभी हम एक दूसरे की कोई ज़िम्मेदारी नहीं उठाते। एक साथ कुछ ही देर रहते हैं। यह बात तुम भी अच्छी तरह मानोगे कि सेक्स का तुफान गुजरते ही सब लगाव टूटने लगते हैं और घृणा, विशाद से मन भारी होने लगता है।’

'‘मुझे यह सारी दलीलें बिल्कुल समझ में नहीं आतीं। मैं सिर्फ़ इतना जानता हूं कि मैं सिर्फ तुमसे ही शादी कर सकता हूं। क्योंकि दुनिया में मुझे आज तक केवल तुम्हारे पास आने पर ही सैटिसफैक्शन मिलता है। कहने को यूनिवर्सिटी लाइफ और उसके बाद भी तरह-तरह की करीब एक दर्जन लड़कियों से संबंध बने मगर मुझे हर जगह एक खालीपन-अधूरापन ही मिला। हर लड़की के साथ लगता अरे! यहां यह कमी है। अरे! यह तो मेरे लिए है ही नहीं। कौन है मेरे लिए किसकी बाहों में मुझे संतुष्टि मिलती है। कई बरसों तक मैं समझ ही नहीं पाया। इस प्रश्न पर बड़ी मगजमारी करता रहा। फिर धीरे-धीरे यह महसूस किया कि यह स्थिति उस दिन नहीं होती जिस दिन तुम मेरी बाहों में होती हो। इस बात पर मैंने बहुत गहराई से सोचा, बराबर सोचा, हर बार निष्कर्ष यही निकला कि मुझे कंप्लीट सैटिसफैक्शन तुम्हारे साथ वक़्त बिता कर ही मिलता है।

तुम जैसी परफेक्ट औरत दुनिया में है ही नहीं। और फिर चाचा पर तरस आता है, वे मुझे मूर्ख नजर आते हैं कि तुम्हारी जैसी परफेक्ट औरत के रहते वह दूसरी औरतों के पीछे भागते हैं। बस इसीलिए मैं आए दिन तुम्हारे पास भाग आता हूं। जब बिस्तर पर तुम्हारे सारे कपड़े सेकेंडों में उतार देने के लिए मैं पागलपन की हद तक तुम्हें झिंझोड़ डालता हूं इसी से तुम अंदाजा लगा सकती हो कि मैं तुमको कितना चाहता हूं। जब मैं तुम्हारे शरीर के साथ एक हो जाता हूं तो अलग होने का मन ही नहीं होता, बस जी करता है कि हमेशा तुमको ऐसे ही अपने से चिपकाए पड़ा रहूं। तुम्हारे शरीर के एक-एक अंग हर पल मेरे दिलो-दिमाग पर छाए रहते हैं। तुम्हारे शरीर की गर्मी से जैसे मैं जिंदा हो जाता हूं। मैंने बहुत सोचा लेकिन मुझे उत्तर यह मिलता है कि दुनिया में तुम्हारे सिवा मेरे लिए कोई और औरत है ही नहीं। इसलिए मैं कह रहा हू चलो मेरे साथ। कहीं बहुत दूर चल कर शादी करके जीवन जीते हैं। वैसे भी चाचा के साथ तो न तुम संतुष्ट हो न वो। तब एक छत के नीचे एक सड़ती हुई जिंदगी जीने का क्या फायदा। चलो-मेरे साथ चलो।'’

‘चीनू पहले मेरी बात ध्यान सुनो। न मैं इनसे ऊबी हूं न ये मुझ से। पति-पत्नी में झगड़े का मतलब यह नहीं कि रिश्ते सड़ गए। जब रिश्ते सड़ जाते हैं तो एक छत के नीचे वह रह ही नहीं पाते। तुम्हारे मां-बाप के बीच भी झगड़े होते हैं, तुम खुद बता चुके हो। तो क्या उसका मतलब यह है कि वह दोनों अलग हो जाएं।

मैं बार-बार कह रही हूं कि तुम एक सुंदर लड़की से शादी कर लो। पहली रात तुम उसे पत्नी के रूप में अपनी बांहों में लोगे तो तुम्हारा सारा भ्रम दूर हो जाएगा। अभी तक तुम जिन लड़कियों की बातें कर रहे हो वह केवल वासना की भूख शांत करने का रिश्ता था। वहां भावना नहीं है। इमोशनल अटैचमेंट नहीं है। इसलिए तुम भ्रमित हो। रही बात मेरे लिए कि मेरे साथ संबंध बना कर ही तुम्हें संतुष्टि मिलती है तो यह भी एक भ्रम है। होता यह है कि हम सब कोई चीज पहली बार देखते हैं और यदि वह हमारी नजरों को भा जाता है तो उसका एक स्थाई भाव उसकी एक स्थाई तस्वीर हमारे दिलो-दिमाग पर बैठ जाती है। फिर उसके बाद जब हम कुछ और देखते हैं तो हमें पहले वाली तस्वीर ही बेहतर लगती है। दूसरी सारी तस्वीरों में हम पहली वाली तस्वीर का ही अक्स ढूढ़ने लगते हैं। बस यहीं सारी समस्या खड़ी होती है।

तुम्हारे साथ वास्तव में यही हुआ है। जब तुम अश्लील किताबों में औरतों के साथ खुले सेक्स संबंधों के बारे में पढ़ते थे उनके चित्र देखते थे तो मन में वही सब करते थे। तुम्हारा मन जैसे-तैसे तुरंत एक संबंध या सेक्स करने के लिए एक औरत पाने के लिए तड़प उठता था। तुम व्याकुल रहते थे एक औरत पाने के लिए। यही वजह थी कि तुम जैसे-तैसे किसी औरत के शरीर को देखने की कोशिश में लगे रहते थे। इस बीच दुर्भाग्य से वह मनहूस काली रात भी आ गई जब तुम्हें वह मिल गया जिसकी तुमने कल्पना तक न की थी। तुम्हें एक भरीपूरी औरत मिल गई जो बिना किसी प्रयास के खुद ही आ कर तुम्हारे आगे लेट गई। पूरी तरह समर्पण कर दिया। सोने पे सुहागा यह कि जिस औरत को तुम छिप-छिप कर झांका करते थे। जिसके एक-एक अंग को अंदर तक नग्न देखने के लिए लालायित रहते थे वह सारे अंग तुम्हारे आगे खुद ही बिना प्रयास के आ गए। उन नग्न अंगों की चमक़, उनकी गर्मी, स्पर्श एवं घर्षण का अहसास तुम्हारे दिलो-दिमाग पर एक स्थाई भाव बन कर बैठ गया।

तुमने पहली बार किसी औरत का जो नंगा शरीर देखा उसकी तस्वीर स्थाई भाव के रूप में तुम्हारे रग-रग में बस गई। उसी का परिणाम है कि अब तुम्हें दूसरी हर औरत नकली लगती है। क्योंकि तुम सब में मेरे जैसे ही अंग को ढूंढ़ने लगते हो। इसका समाधान एक ही है कि तुम जल्दी से जल्दी शादी करो। जब पत्नी के रूप में एक नई लड़की अपने प्यार, स्नेह, श्रद्धा, उत्साह के साथ, अपने जवान शरीर की गर्मी के साथ तुम्हें अपने अंगों से लगाएगी तो तुम इस प्रौढ़ औरत के शरीर के प्रभाव से एकदम बाहर निकल जाओगे। एक नई दुनिया में पहुंच जाओगे जहां खुशियां हर तरफ से तुम पर बरस रही होंगी। इसलिए यह बचपना छोड़ो मेरा कहना मानो और शादी कर लो।’

***